12.1 – पृष्ठभूमि 

अगर आपने स्ट्रैडल को समझ लिया है तो आपके लिए स्ट्रैंगल को समझना काफी आसान होगा। स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल करीब-करीब एक जैसे ही होते हैं क्योंकि इनके पीछे की सोच एक जैसी होती है। स्ट्रैंगल को वास्तव में स्ट्रैडल में सुधार कर बनाया गया है, जिससे कि स्ट्रैटेजी की कीमत कम हो जाए। इसको थोड़ा विस्तार से समझते हैं-

मान लीजिए – निफ्टी 5921 पर ट्रेड कर रहा है इसका मतलब है कि 5900 पर ATM स्ट्राइक है। अब अगर यहां आपको लॉन्ग स्ट्रैडल बनाना है तो आपको 5900 CE और 5900 PE खरीदना होगा। इन दोनों का प्रीमियम क्रमश: 66 और 57 होगा 

नेट कैश आउट ले =  66 57 = 123 

ऊपर का ब्रेक इवन = 5921 + 123 = 6044 

नीचे का ब्रेक इवन 5921 123 = 5798 

अब ऐसे में स्ट्रैडल बनाने के लिए आपने 123 खर्च कर दिए और दोनों ही तरफ ब्रेक इवन 2.07% दूर है यानी ब्रेक इवन आना आसान नहीं है।  जैसा कि आपको पता है कि स्ट्रैडल डेल्टा न्यूट्रल होता है मतलब इस स्ट्रैटेजी पर इस बात का कोई असर नहीं होता कि बाजार की चाल किस दिशा में होगी। यहां पर सोच यह है कि आपको पता है कि बाजार काफी ज्यादा चलेगा लेकिन किस तरफ चलेगा यह आपको नहीं पता है।

अब जरा सोचिए कि आपकी रिसर्च आपको बताती है कि बाजार चलेगा और इसीलिए आपने स्ट्रैडल बनाया, लेकिन इस स्ट्रैडल के लिए आपको 123 का भुगतान तुरंत करना होगा। अब ऐसे में अगर आपको कोई ऐसी मार्केट न्यूट्रल स्ट्रैटेजी मिल जाए जो कि हो तो स्ट्रैडल की तरह ही लेकिन उसकी कीमत कम हो तो, स्ट्रैंगल ठीक यही काम करता है.

12.2 स्ट्रैटेजी से जुड़ी हुई बातें

स्ट्रैंगल, स्ट्रैडल का ही सुधरा हुआ रूप है, इस सुधार की वजह से स्ट्रैटेजी की कीमत कम हो जाती है, लेकिन इसके बदले में ब्रेक इवन जरूर बढ़ जाता है। 

स्ट्रैडल में आपको कॉल और पुट ऑप्शन के ATM स्ट्राइक को खरीदना होता है, जबकि स्ट्रैंगल में आपको OTM का कॉल और पुट ऑप्शन खरीदना होता है। याद रखिए कि ATM की तुलना में OTM हमेशा ही कम कम कीमत पर मिलता है और इसी वजह से स्ट्रैंगल की कीमत स्ट्रैडल के मुकाबले कम होती है।

इसको ज्यादा अच्छे से समझने के लिए एक उदाहरण देखते हैं –

निफ़्टी 7921 पर है। स्ट्रैंगल बनाने के लिए हमें कॉल और पुट के OTM ऑप्शन खरीदने हैं। ध्यान रखिए कि दोनों ही ऑप्शन एक ही एक्सपायरी के और एक ही अंडरलाइंग के हों। उनको लेने का अनुपात हमेशा एक समान होना चाहिए। (स्ट्रैडल के समय मैं ये बात याद दिलाना भूल गया था) 

यहां एक ही अनुपात का मतलब है कि कॉल ऑप्शन की संख्या उतनी होनी चाहिए जितनी संख्या पुट ऑप्शन की है। मतलब यह कि 1:1 का अनुपात हो सकता है अगर कॉल का एक लॉट खरीदा गया है और  पुट का भी एक ही ल़ॉट खरीदा गया। अगर आप 5:5 का अनुपात बना रहे हैं तो कॉल का 5 लॉट खरीदने पर पुट का भी 5 लॉट खरीदें। 2:3 का अनुपात या ऐसा कोई और अनुपात स्ट्रैंगल या स्ट्रैडल के लिए नहीं है। अगर आप कॉल के दो लॉट खरीदे और पुट के तीन लॉट खरीदें तो यह स्ट्रैंगल और स्ट्रैडल में काम नहीं आता।

तो अपने उदाहरण पर वापस लौटते हैं, हमने माना है कि निफ़्टी 7931 पर है हमें OTM कॉल और पुट ऑप्शन खरीदना है तो मैं यहां पर दोनों तरफ 200 प्वाइंट दूर की स्ट्राइक को खरीदूंगा (ध्यान रखिए कि इसकी कोई खास वजह नहीं है कि मैं 200 प्वाइंट दूर का स्ट्राइक चुन रहा हूं) इसका मतलब है कि मैं 7700 का पुट ऑप्शन 8100 का कॉल ऑप्शन खरीदूंगा। यह ऑप्शन 28 और 32 पर बिक रहे हैं। 

तो स्ट्रैंगल बनाने के लिए कुल मिलाकर 60 का प्रीमियम देना पड़ेगा। तो अब देखते हैं अलग-अलग स्थितियों में यह स्ट्रैटेजी किस तरह से काम करती है। मैं यहां पर चर्चा को छोटा ही रखूंगा क्योंकि मुझे भरोसा है कि अब आप बाजार की अलग-अलग स्थितियों में होने वाले P&L को आसानी से समझ सकते हैं।

स्थिति 1बाजार 7500 पर एक्सपायर होता है (PE स्ट्राइक से काफी नीचे) 

7500 पर कॉल ऑप्शन के लिए दिया गया प्रीमियम यानी 32 वर्थलेस हो जाएगा, लेकिन पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू 200 प्वाइंट की होगी। पुट ऑप्शन के लिए दिया गया प्रीमियम है 28 इस तरह कुल मुनाफा होगा 200 – 28  = 172

अब अगर हम कॉल आप्शन के लिए दिए गए प्रीमियम,32, को भी पुट ऑप्शन से हो रहे इस मुनाफे में से घटा दें तो कुल मुनाफा होगा 172 – 32 = 140

स्थिति 2 – बाजार 7640 पर एक्सपायर होता है (नीचे के ब्रेक इवन पर) 

7640 पर 7700 पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू 60 होगी। पुट ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू दोनों ऑप्शन के लिए दिए गए प्रीमियम के बराबर है, 32 + 28 = 60 , मतलब 7640 पर स्ट्रैंगल में ना तो पैसे बनते हैं और ना ही पैसे डूबते हैं। 

स्थिति 3 – बाजार 7700 पर एक्सपायर होता है (PE स्ट्राइक पर) 

7700 पर कॉल और पुट दोनों ऑप्शन वर्थलेस एक्सपायर होंगे और दिया गया प्रीमियम, 32 + 28 = 60,  डूब जाएगा। यहां पर इस स्ट्रैटेजी का घाटा अपने अधिकतम स्तर पर होगा। 

स्थिति 4 – बाजार 7900,8100 पर एक्सपायर होता है (क्रमश: ATM और CE स्ट्राइक) 

7900 और 8100 पर दोनों ऑप्शन वर्थलेस एक्सपायर होंगे और दिया गया प्रीमियम 60,  डूब जाएगा। 

स्थिति 5 – बाजार 8160 पर एक्सपायर होता है (ऊपर का ब्रेक इवन)

8160 पर 8100 के कॉल ऑप्शन की ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू 60 होगी। कॉल ऑप्शन में हो रहा मुनाफा  कॉल और पुट ऑप्शन के लिए दिए गए प्रीमियम की भरपाई कर देगा। 

स्थिति  – बाजार 8300 पर एक्सपायर होता है (CE स्ट्राइक के काफी ऊपर)

8300 पर 8100 के कॉल ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू 200 होगी। इसलिए इस आप्शन में 200 बनेंगे। दोनों प्रीमियम के 60 को निकालने के बाद हमारे पास बचेंगे 140. ध्यान दीजिए कि ब्रेक इवन के ऊपर और ब्रेक इवन के नीचे के पे ऑफ में समानता है।

अब बाजार की अलग-अलग एक्सपायरी स्तर पर होने वाले पे ऑफ के टेबल पर नजर डालते हैं

इनको स्ट्रैंगल के पे ऑफ स्ट्रक्चर के ग्राफ में भी देखा जा सकता है

हम स्ट्रैंगल के बारे में कुछ सामान्य बाते कह सकते हैं

  1. अधिकतम नुकसान दिए गए नेट प्रीमियम के बराबर होता है
  2. अधिकतम नुकसान दो स्ट्राइक कीमतों के बीच में होता है 
  3. ऊपर का ब्रेक इवन = CE स्ट्राइक + दिया गया नेट प्रीमियम 
  4. नीचे का ब्रेक इवन =  PE स्ट्राइक दिया गया नेट  प्रीमियम 
  5. मुनाफे की संभावना असीमित होती है

बाजार ऊपर जाए या नीचे आप पैसे बनाते हैं, बाजार की दिशा यहां कोई मायने नहीं रखती। 

12.3 – डेल्टा और वेगा

स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल दोनों एक जैसी स्ट्रैटेजी हैं इसीलिए इन पर ग्रीक्स का असर एक जैसा होता है। 

क्योंकि हम OTM ऑप्शन को चुन रहे हैं (याद रखें कि ये ATM से बराबर दूरी की स्ट्राइक है) इसलिए कॉल और पुट दोनों का डेल्टा 0.3 या उससे कम होगा। हम इन दोनों डेल्टा को जोड़ सकते हैं और पोजीशन का कुल डेल्टा निकाल कर देख सकते हैं

  • 7700 PE  का डेल्टा @ 0.3, 
  • 8100 CE का डेल्टा @ + 0.3, 
  • कुल डेल्टा होगा -0.3 + 0.3 = 0

मैंने दोनों के डेल्टा को 0.3 माना है लेकिन ये थोड़ा अलग भी हो सकते हैं, इसलिए ये हो सकता है कि हम पूरी तरह से डेल्टा न्यूट्रल ना हों, लेकिन डेल्टा इतने भी अधिक नहीं होंगे कि बाजार की दिशा इस स्ट्रैटेजी पर अपना असर डालने लगे। वैसे भी कुल डेल्टा हमें यही बता रहा है कि स्ट्रैटेजी डेल्टा न्यूट्रल है।

वोलैटिलिटी स्ट्रैडल और स्ट्रैंगल दोनों पर एक जैसा असर डालती है। आप अध्याय 10 के अंश 10.3 में जा कर देख सकते हैं कि वोलैटिलिटी स्ट्रैंगल पर क्या असर डालती है। 

स्ट्रैंगल पर ग्रीक्स का असर

  1. स्ट्रैटेजी बनाते समय वोलैटिलिटी को नीचे होना चाहिए 
  2. स्ट्रैटेजी के होल्डिंग अवधि में वोलैटिलिटी को ऊपर जाना चाहिए 
  3. बाजार में एक बड़ी चाल आनी चाहिए चाहे वह किसी भी दिशा में आ रही हो 
  4. बाजार की चाल एक निश्चित समय में और जल्दी होनी चाहिए यानी एक्सपायरी के पहले
  5. लॉन्ग स्ट्रैंगल को बाजार में होने वाली किसी बड़ी घटना के आसपास बनाना चाहिए और इस घटना का नतीजा बाजार की उम्मीद से काफी अलग होना चाहिए

मेरा अनुमान है कि आप समझ गए होंगे कि लॉन्ग स्ट्रैंगल को बाजार में होने वाली किसी बड़ी घटना के आसपास क्यों बनाना चाहिए, हमने इसके बारे में पहले भी बात की है, आप चाहें तो अध्याय 10 को फिर से पढ़ सकते हैं। 

12.4 – शॉर्ट स्ट्रैंगल 

शॉर्ट स्ट्रैंगल, लॉन्ग स्ट्रैंगल से पूरी तरह से विपरीत है  यहां पर OTM कॉल और पुट आप्शन को बेचना होता है जो कि ATM स्ट्राइक से बराबर दूरी पर हों। स्ट्रैंगल को शॉर्ट तब किया जाता है जबकि उससे लॉन्ग स्ट्रैंगल से मिलने वाले परिणाम के पूरी तरह से विपरीत परिणाम चाहते हों। मैं यहां पर इस पर चर्चा नहीं करूंगा कि अलग-अलग एक्सपायरी में यह स्ट्रैटेजी किस तरह से काम करती है क्योंकि मुझे लगता है कि अब तक आप पे ऑफ को देखना समझ गए होंगे।

मैंने यहां पर शॉर्ट स्ट्रैंगल के लिए भी उन्हीं स्ट्राइक का इस्तेमाल किया है जिनको लॉन्ग स्ट्रैंगल के लिए चुना था। बस यहां पर इन स्ट्राइक को खरीदने के बजाय आपको इन OTM स्ट्राइक को बेचना है ताकि शॉर्ट स्ट्रैंगल बन सके। इनके पे ऑफ टेबल पर नजर डालते हैं

जैसा कि आप देख सकते हैं कि स्ट्रैटेजी में तब नुकसान होता है जब बाजार किसी भी दिशा में चलने लगता है, लेकिन नीचे और ऊपर के ब्रेक इवन के बीच में स्ट्रैटेजी में फायदा होता है। याद रखिए कि 

  • ऊपर का ब्रेक इवन 8160 पर है
  • नीचे का ब्रेक इवन 7640 पर है
  • अधिकतम मुनाफा मिले हुए प्रीमियम के बराबर यानी 60 प्वाइंट के बराबर ही होता है

दूसरे शब्दों में आप कह सकते हैं कि अगर बाजार 7640 से 8160 के बीच में रहता है तो आप 60 प्वाइंट का मुनाफा घर ले जा सकते हैं। मेरे हिसाब से ये बहुत बढ़िया है। बाजार आमतौर पर एक दायरे में ही रहता है और इसलिए आपको इस तरह के ट्रेडिंग के मौके मिलते रहते हैं। 

आपको सोचना ये है कि- कौन से स्टॉक एक ट्रेडिंग रेंज में हैं, आमतौर पर ऐसे स्टॉक डबल या ट्रिपल टॉप और बॉटम बनाते हैं। यहां पर एक स्ट्रैंगल बनाना है जिसमें स्ट्राइक ऊपर और नीचे के रेंज के बाहर हो। साथ ही, इस तरह से स्ट्रैंगल बनाते समय ध्यान दें कि ब्रेकडाउन या ब्रेकआउट कब हो रहा है।

मुझे याद है कि मैंने कुछ साल पहले रिलायंस में ऐसा ट्रेड बार बार किया था, जब रिलायंस 850 से 100 के रेंज में फंसा हुआ था।

शॉर्ट स्ट्रैंगल का पे ऑफ ग्राफ ऐसा दिखता है

  1. शार्ट स्ट्रैंगल का पे ऑफ लॉन्ग स्ट्रैंगल के पे ऑफ के एकदम विपरीत दिखता है।
  2. मुनाफा मिले हुए नेट प्रीमियम के बराबर होता है।
  3. अधिकतम मुनाफा तब होता है जब स्टॉक दो स्ट्राइक कीमतों के बीच में रहता है।
  4. नुकसान की संभावना असीमित होती है।

यहां पर ब्रेकइवन प्वाइंट वैसे ही निकालते हैं जैसे कि लॉन्ग स्ट्रैंगल के लिए करते हैं। इसे हमने पहले देखा हुआ है।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. स्ट्रैंगल, स्ट्रैडल का ही सुधरा हुआ रूप है। इस सुधार की वजह से स्ट्रैटेजी पर होने वाला खर्च कम हो जाता है।
  2. स्ट्रैंगल डेल्टा न्यूट्रल होते हैं और इनमें बाजार की दिशा का कोई रिस्क नहीं होता है।
  3. लॉन्ग स्ट्रैंगल में आपको OTM कॉल और पुट ऑप्शन को साथ-साथ खरीदना होता है। 
  4. लॉन्ग स्ट्रैंगल में अधिकतम नुकसान कुल मिले हुए प्रीमियम के बराबर होता है। 
  5. लॉन्ग स्ट्रैंगल में मुनाफे की असीमित संभावना होती है। 
  6. शार्ट स्ट्रैंगल, लॉन्ग स्ट्रैंगल के एकदम विपरीत होता है यहां पर आपको OTM कॉल और पुट ऑप्शन को साथ-साथ बेचना होता है।
  7. स्ट्रैंगल और स्ट्रैडल पर ग्रीक्स का असर एक जैसा ही होता है।



3 comments

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  1. Ram says:

    Very good,

  2. Asmit Gajbhiye says:

    लॉन्ग स्ट्रैंगल में अधिकतम नुकसान कुल मिले हुए प्रीमियम के बराबर होता है। sir isme ‘diye huye premium’ hona chahiye i think

    • Kulsum Khan says:

      सूचित करने के लिए धन्यवाद हम इसको सही करदेंगे।

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