2.1 – शब्दावली से परिचय 

हमने पिछले अध्याय में यह बताया था कि पेयर ट्रेडिंग करने की दो तकनीकें होती हैं। अब हम पहली तकनीक पर बात करेंगे, जिसे को-रिलेशन बेस्ड (Correlation based) तकनीक कहा जाता है। पेयर ट्रेडिंग का ये काफी सीधा तरीका है, बहुत सारे ट्रेडर पेयर ट्रेडिंग की शुरुआत इसी तकनीक के आधार पर करते हैं। 

हम इस तकनीक के बारे में जानें उसके पहले यह जरूरी है कि हम इससे जुड़े कुछ शब्दों को जान और समझ लें। जिससे इस तकनीक को जानना आसान हो सके। ये सभी शब्द पेयर की ट्रैकिंग (Tracking) से जुड़े हुए हैं। तो आइए शुरू करते हैं इन शब्दों को जानना 

स्प्रेड (Spread) – ट्रेडिंग की दुनिया में जिस शब्द का इस्तेमाल बहुत ज्यादा होता है, वो है स्प्रेड। उदाहरण के तौर पर, अगर आप बाजार में स्कैल्पिंग (Scalping) कर रहे हैं तो वहां पर स्प्रेड का मतलब होता है बिड (bid) कीमत और आस्क (ask) कीमत के बीच का अंतर। अगर आप आर्बिट्राज ट्रेड कर रहे हैं तो स्प्रेड का मतलब होता है दो अलग-अलग बाजारों में एक ही अंडरलाइंग एसेट की कीमत का अंतर। अगर आप पेयर ट्रेडिंग पर ट्रेडिंग की दुनिया में हैं (मुख्य तौर पर को-रिलेशन आधारित तकनीक में) तो स्प्रेड का मतलब होता है कि 2 स्टॉक की क्लोजिंग कीमत में आए बदलाव में कितना अंतर है। 

स्प्रेड की गणना करने या कैलक्यूलेट/कैल्क्यलेट (Calculate)  करने के लिए –

स्प्रेड = स्टॉक 1 का क्लोजिंग मूल्य में हुआ बदलाव – स्टॉक 2 की क्लोजिंग मूल्य में हुआ बदलाव

Spread = Closing value of stock 1 – closing value of stock 2

इस पर नजर डालिए 

मान लीजिए कि GICRE यहां पर स्टॉक 1 है और ICICIGI  स्टॉक 2, तो यहां पर स्प्रेड होगा – 

स्प्रेड = 6.1 – 3.85

= 2.25

यहां ध्यान दीजिए कि 6.10 और 3.85 दोनों ही, स्टॉक की पिछली क्लोजिंग कीमत के मुकाबले हुए बदलाव को दिखा रहे हैं। साथ ही, दोनों ही संख्याएं पॉजिटिव हैं। लेकिन मान लीजिए कि ICICIGI की क्लोजिंग कीमत निगेटिव 3.85 होती तब यह स्प्रेड होता

6.1 – (-3.85)

= 9.95

मैंने पिछले कुछ ट्रेडिंग सेशन का स्प्रेड कैलकुलेट किया है जिससे आपको यह पता चल सके कि स्प्रेड किस तरह से चलता है (run करता है)। साथ ही मैंने यहां हर दिन का स्प्रेड कैलकुलेट किया है जिसे ट्रेडर आमतौर पर हिस्टोरिकल स्प्रेड (historical Spread) कहते हैं। 

जैसा कि आप देख सकते हैं कि स्प्रेड हर दिन बदलता रहता है। इसमें से जो कुछ खास चीजें दिखाई देती हैं, वो हैं – 

  1. अगर S1 की क्लोजिंग कीमत पॉजिटिव है और S 2 की क्लोजिंग कीमत नेगेटिव है तो स्प्रेड बढ़ता है 
  2. अगर S1 की क्लोजिंग कीमत पॉजिटिव है और S 2 की क्लोजिंग कीमत भी पॉजिटिव है तो इस स्प्रेट घटता है 

इस तरह की और संयोजन/मेल (combination) हो सकते हैं जिनकी वजह से स्प्रेड बढ़ या घट सकता है। लेकिन उस पर हम बाद में चर्चा करेंगे। 

डिफरेंशियल (Differential) डिफरेंशियल में दोनों स्टॉक की कीमतों के अंतर को नापा जाता है। डिफरेंशियल दोनों स्टॉक की क्लोजिंग कीमत के अंतर को बताता है। इसे निकालने का फार्मूला है –

डिफरेंशियल = स्टॉक 1 की क्लोजिंग कीमत – स्टॉक 2 की क्लोजिंग कीमत

तो, अगर स्टॉक 1 की क्लोजिंग कीमत 175 है और स्टॉक 2 की क्लोजिंग कीमत 232 है तो डिफरेंशियल होगा –

175 – 232 

= – 57

डिफरेंशियल को भी आप एक टाइम सीरीज के तौर पर देख सकते हैं और इसे हर दिन कैलकुलेट कर सकते हैं। मैंने GICRE और ICICIGI  के लिए इसे निकाला है।


डिफरेंशियल के बारे में एक खास बात जो आपको जाननी चाहिए वो ये है कि इंट्राडे आधार पर पेयर को ट्रैक करने के लिए डिफरेंशियल बहुत अच्छी तकनीक नहीं है, इसका इस्तेमाल एंड ऑफ द डे (End of the day) पर ही होना चाहिए यानी दिन की अंतिम कीमत पर ही होना चाहिए। अगर आप इंट्राडे आधार पर किसी पेयर की ट्रैकिंग करना चाहते हैं तो उसके लिए स्प्रेड का इस्तेमाल कर सकते हैं। पेयर की ट्रैकिंग के लिए डिफरेंशियल के सही इस्तेमाल पर हम आगे चर्चा करेंगे। 

रेश्यो (Ratio) रेश्यो मुझे काफी रोचक लगता है। इसे पाने के लिए स्टॉक 1 की कीमत को स्टॉक 2 की कीमत से विभाजित किया जाता है। या स्टॉक 2 की कीमत को स्टॉक 1 की कीमत से भी विभाजित किया जा सकता है।

रेश्यो = स्टॉक 1 की स्टॉक कीमत / स्टॉक 2 की स्टॉक कीमत

Ratio = Stock Price of stock 1 / stock price of stock 2

मैंने अपने दोनों स्टॉक का रेश्यो निकाला है- 

आप देख सकते हैं कि रेश्यो को जब एक टाइम सीरीज के तौर पर देखें तो वो थोड़ा ज्यादा एक समान (consistent) दिखाई देता है। मैंने तीनों अवयवों (Variables) को नीचे एक ग्राफ के रूप में दिखाया है –

तो हमने जिन तीन चीजों की बात की –  स्प्रेड, डिफरेंशियल और रेश्यो-  ये सब पेयर ट्रेडिंग से कैसे जुड़े हुए हैं? 

ये तीनों अलग अलग तरीके के अवयव (variable) हमें ये बताते हैं कि पेयर के तौर पर देखे जा रहे दोनों स्टॉक के बीच में संबंध कैसा है? उनके संबंध को नापने के लिए इन तीनों अवयवों का इस्तेमाल होता है। ये ग्राफ हमें बताता है कि दोनों स्टॉक एक दूसरे के संदर्भ में किस तरह से चलते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर हम स्प्रेड को लें, तो हमें पता है कि अगर S1 की क्लोजिंग कीमत पॉजिटिव हो और s2 की क्लोजिंग कीमत नेगेटिव हो तो स्प्रेड कम होता है। इसी तरीके से अगर S1 की वैल्यू पॉजिटिव हो और s2 की भी पॉजिटिव हो तो स्प्रेड बढ़ता है।

इसी तरह से रेश्यो- दो स्टॉक के बीच का रेश्यो कम होता है अगर दोनों स्टॉक की कीमत नीचे गिरती है और अगर दोनों स्टॉक की कीमत बढ़ती है तो रेश्यो बढ़ता है। इसके अलावा भी और कई रूपांतर (variation) हो सकते हैं, जैसे अगर स्टॉक 1 की कीमत गिरती है और स्टॉक 2 की कीमत फ्लैट यानी स्थिर रहती है या फिर इसका उल्टा होता है तो फिर रेश्यो बढ़ता है। इसी तरह से स्टॉक 2, स्टॉक 1 की तुलना में काफी बढ़ सकता है या फिर इसका उल्टा भी हो सकता है।  

यह सब थोड़ा उलझन भरा लग सकता है 

इसीलिए हमें अपने सारे अवयवों के चार्ट को देखना होता है चाहे वो स्प्रेड हो, डिफरेंशियल हो या फिर रेश्यो। हमें इन अवयवों को देख कर ये पता लगाना होता है की स्प्रेड बढ़ रहा है या घट रहा है। ये करते वक्त दो नए शब्द सामने आएंगे।

डायवर्जेंस (Divergence) – अगर किन्हीं दो स्टॉक के बीच का स्प्रेड या रेश्यो अलग यानी दूर होने लगे या फिर ग्राफ ऊपर जाने लगे तो इस स्थिति को डायवर्जेंस कहते हैं। अगर जब आप अपने अवयवों में डायवर्जेंस की उम्मीद कर रहे हों तो आप डायवर्जेंस ट्रेड करके पैसे बनाने की कोशिश कर सकते हैं।

कन्वर्जेंस (Convergence) – अगर किन्हीं दो स्टॉक के बीच का स्प्रेड या रेश्यो पास आने लगे या फिर ग्राफ नीचे की तरफ जाने लगे तो इसे कन्वर्जेंस कहते हैं। अगर जब आप अपने अवयवों में कन्वर्जेंस की उम्मीद कर रहे हों तो आप कन्वर्जेंस ट्रेड करके पैसे बनाने की कोशिश कर सकते हैं।

अब एक बड़ा सवाल – आप कैसे मानेंगे कि अवयव में कन्वर्जेंस या डायवर्जेंस होने वाला है? आप ट्रेड की तैयारी कब करेंगे? ट्रेड का सेट अप कैसे करेंगे? अगर ट्रेड सही नहीं पड़ा तो? ऐसे ट्रेड का स्टॉप लॉस क्या होगा?

इन सवालों का जवाब देने के पहले कुछ और सवाल- दो स्टॉक पेयर कब बनते हैं? क्या दो स्टॉक का एक ही सेक्टर से होना ही उनके पेयर होने के लिए काफी है? उदाहरण के तौर पर, क्या ICICI Bank और HDFC Bank सिर्फ इसलिए पेयर बन सकते हैं कि वो दोनों ही प्राइवेट सेक्टर के बैंक हैं?

दो स्टॉक को पेयर बन रहा है या नहीं, इसको पता करने के लिए हम सांख्यिकी माप (statistical measure), कोरिलेशन (Correlation) पर भरोसा कर सकते हैं। हमने पहले कई बार इस पर चर्चा की है, संक्षेप में फिर से बता देते हैं – 

कोरिलेशन से हमें पता चलता है कि दो स्टॉक एक दूसरे के संदर्भ में किस तरह से चलते हैं। कोरिलेशन को एक संख्या के तौर पर दिखाया जाता है जो कि – 1 से + 1 के बीच होती है। उदाहरण के लिए अगर दो स्टॉक के बीच का कोरिलेशन +0.75 है तो ये हमें दो बातें बताता है –

 

  • कोरिलेशन की संख्या के पहले लगा +  बता रहा है कि दोनों में पॉजिटिव कोरिलेशन है मतलब दोनों एक ही दिशा में चलते हैं
  •  कोरिलेशन की संख्या हमें बताती है कि कोरिलेशन कितना मजबूत है, ये संख्या + 1 या – 1 के जितना करीब होगी कोरिलेशन उतना ही मजबूत माना जाएगा, मतलब दोनों उनकी चाल काफी हद तक एक जैसी होगी
  • अगर कोरिलेशन की संख्या 0 है तो इसका मतलब है कि दोनों स्टॉक के बीच कोई कोरिलेशन नहीं है

 

तो इसका मतलब हुआ कि +0.75 के कोरिलेशन का अर्थ है कि दोनों स्टॉक ना सिर्फ एक दिशा में चलेंगे बल्कि काफी हद तक साथ में चलेंगे। लेकिन यहां पर एक बात याद रखनी चाहिए कि कोरिलेशन हमें ये नहीं बताता कि चाल कितनी बड़ी होगी। उदाहरण के तौर पर, अगर स्टॉक A और B के बीच का कोरिलेशन +0.75 है और स्टॉक A में 3% की चाल आती है तो इसका ये मतलब नहीं है कि स्टॉक B में भी 3% की चाल आएगी। यहां पर कोरिलेशन सिर्फ ये बता रहा है कि स्टॉक B भी स्टॉक A की तरह ऊपर की तरफ जाएगा।

लेकिन यहां पर एक और पेंच है, मान लीजिए कि स्टॉक A और स्टॉक B के बीच का कोरिलेशन +0.75 है, स्टॉक A और स्टॉक B का औसत डेली रिटर्न 0.9% और 1.2% है। तो ऐसे में ये कहा जा सकता है कि अगर स्टॉक A ने अपने औसत डेली रिटर्न 0.9% से ऊपर की चाल दिखाई है तो स्टॉक B भी अपने औसत डेली रिटर्न 1.2% से ऊपर की चाल दिखाएगा।

इसी तरह से, – 0.75 के कोरिलेशन का अर्थ है कि दोनों स्टॉक साथ चलेंगे लेकिन अलग अलग दिशा में चलेंगे। उदाहरण के तौर पर, अगर स्टॉक A और B के बीच का कोरिलेशन – 0.75 है और स्टॉक A में + 2.5 % की चाल आती है तो इसका ये मतलब है कि निगेटिव कोरिलेशन की वजह से स्टॉक B में नीचे की चाल आएगी लेकिन ये गिरावट कितनी होगी ये नहीं कहा जा सकता।

कोरिलेशन से जुड़ी एक और बात, उन लोगों के लिए जो कि गणित में रूचि रखते हैं, कोरिलेशन का डेटा तभी काम का होता है जब डेटा सीरीज माध्य/मीन के पास स्थिर हो (stationary around the mean)’। इसका अर्थ ये है कि डेटा औसत के जितना करीब दिख रहा हो उतना अच्छा।

डेटा सीरीज के मीन के पास स्थिर हो (stationary around the mean)’ होने के इस सिद्धांत को याद रखिए, जब हम पेयर ट्रेडिंग की दूसरी तकनीक पर चर्चा करेंगे तो हम इस पर लौटेंगे।

हम दो स्टॉक के संबंध को नापने के लिए कोरिलेशन का इस्तेमाल करते रहेंगे। अगले अध्याय मे हम कोरिलेशन के दो अलग अलग तरीकों की गणना करना सीखेंगे।

उम्मीद है कि स्प्रेड, डिफरेंशियल, रेश्यो, डायवर्जेंस ट्रेडिंग, कन्वर्जेंस ट्रेडिंग और कोरिलेशन आपको समझ आ गया है।

इस अध्याय में इस्तेमाल किए गए एक्सेल शीट को आप यहां से here डाउनलोड कर सकते हैं।

 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. दो कंपनियों के स्टॉक के क्लोजिंग कीमत में बदलाव को स्प्रेड कहा जाता है।
  2. डिफरेंशियल दो स्टॉक की क्लोजिंग कीमत के अंतर को बताता है। 
  3. रेश्यो पाने के लिए स्टॉक 1 की कीमत को स्टॉक 2 की कीमत से विभाजित किया जाता है। 
  4. दो स्टॉक के बीच का स्प्रेड या रेश्यो अलग यानी दूर होने लगे तो इसे डायवर्जेंस कहते हैं। 
  5. दो स्टॉक के बीच का स्प्रेड या रेश्यो पास आने लगे तो उसे कन्वर्जेंस कहते हैं। 
  6. कोरिलेशन हमें बताता है कि दो स्टॉक कितनी मजबूती से एक दूसरे के साथ चलेंगे।



6 comments

  1. aadyant tiwari says:

    Lovely

  2. DHEERAJ says:

    THANKYOU ZERODHA, FOR FREE LEARNING MATERIAL, NO BROKER CAN PROVIDE THAT TYPE OF KNOWLEDGE EXCEPT ZERODHA 👌✔

  3. BAIJNATH PRASAD says:

    ME TO

  4. sonu says:

    Madam 2 stock ke bich ka correlation kaise nikalna hai closing pr ya daily return pr.
    Risk management me daily return pr correlation nikala gya hai.
    Trading system me stock ke closing price pr correlation nikala gya hai.

    • Kulsum Khan says:

      हमने इसको इसी अध्याय में समझाया है आप कृपया इस मॉड्यूल को पूरा पढ़ें।

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