2.1 – ये क्या होता है?

अगर आपने किसी हाईवे पर सफर किया है तो आपने यह जरूर देखा होगा कि जिस हाईवे पर आपकी गाड़ी तेज रफ्तार से भागती है, उसके बगल में उसके साथ ही एक छोटी या पतली सड़क जरूर चलती रहती है जिसे सर्विस रोड कहा जाता है। इस सड़क पर कम दूरी तक जाने वाले वो वाहन चलते हैं जिनको पास की दुकान, घरों या आसपास की दूसरी जगहों तक जाना होता है। यह दोनों सड़कें एक दूसरे से समानांतर चलती हैं। 

अब जरा कल्पना कीजिए कि एक नए हाईवे और सर्विस रोड को बनाने का काम शुरू होता है। जो कॉन्ट्रैक्टर इस सड़क को बना रहा है उसे सर्विस रोड के रास्ते में कुछ दूर पर एक पेड़ मिलता है। सड़क बनाने वाला कॉन्ट्रैक्टर यह फैसला करता है कि वह इस पेड़ को नहीं काटेगा। और उस पेड़ के पास से वह सड़क को थोड़ा सा घुमाकर बनाएगा जिससे कुछ दूर के लिए रास्ता अलग होगा लेकिन फिर यह सर्विस रोड वापस हाईवे के समांतर चलने लगेगी। 

सड़क बन जाती है और लोग उसका इस्तेमाल करने लगते हैं।

अब जरा देखिए, दोनों सड़कें लगातार एक दूसरे के बराबर बराबर चलती हैं। पूरे रास्ते में जहां हाईवे ऊपर जाता है सर्विस रोड भी ऊपर जाती है, हाईवे नीचे जाता है तो सर्विस रोड भी नीचे जाती है, हाईवे एक नदी को पार करता है तो सर्विस रोड भी पार करती है। तो कुल मिलाकर दोनों सड़कें एकदम एक जैसे ही चलती हैं और एक जैसे ही बर्ताव करती हैं। सिर्फ एक जगह ऐसा नहीं होता, जहां पर वह पेड़ आकर उस सर्विस रोड पर रास्ते में रुकावट खड़ा करता है। 

अब अगर हम इन सबको अलग-अलग टुकड़ों मे में बांटे तो –

  1. तत्व (Entities) – हाईवे और सर्विस रोड 
  2. संबंध (Relationship) – दोनों तत्व का संबंध एक दूसरे के बराबर समानांतर चलने का है। जैसा एक तत्व (हाईवे) के साथ होता है वैसा ही दूसरे तत्व (सर्विस रोड) के साथ होता है 
  3. संबंध में विसंगति (Relationship Anomaly) – दोनों में समानांतर चलने संबंध है लेकिन सिर्फ एक जगह पर, जहां वह पेड़ आता है, यह स्थिति बदल जाती है 
  4. विसंगति का असर (Effect of the anomaly) – यह विसंगति बहुत छोटी सी है और दोनों सड़कें दोबारा अपने संबंध को कायम कर लेती हैं 

यह उदाहरण बहुत ही ज्यादा अजीब लग सकता है, लेकिन अगर आप सड़क, सर्विस रोड और पेड़ वाली इस पूरी स्थिति और उनके संबंध को ठीक से समझ लें तो शायद आपके लिए पेयर ट्रेडिंग के सिद्धांत को समझना आसान हो जाएगा। 

आइए इसी बात की कोशिश करते हैं 

तो सबसे पहले लेते हैं दो सड़कों या दो तत्वों जैसे यहां पर हमने हाईवे और सर्विस रोड को लिया है, इनको दो कंपनियां मान लीजिए जो कि एक जैसी हैं, उदाहरण के तौर मान लीजिए – HDFC बैंक और ICICI बैंक। 

आमतौर पर, पेयर ट्रेडिंग की हर किताब में पेप्सी और कोका-कोला का उदाहरण लिया जाता है लेकिन वो दोनों ही भारत में लिस्टेड नहीं हैं इसलिए मै HDFC बैंक और ICICI बैंक का उदाहरण ले रहा हूं, आइए आगे बढ़ते हैं – 

  1. दोनों बैंक काफी हद तक एक दूसरे के जैसे ही हैं 
  2. दोनों प्राइवेट सेक्टर के बैंक हैं 
  3. दोनों एक तरह की बैंकिंग उत्पाद और सेवाएं देते हैं 
  4. दोनों के ग्राहक करीब-करीब एक जैसे हैं 
  5. पूरे देश में दोनों की उपस्थिति एक जैसी है 
  6. दोनों बैंकों पर एक जैसे नियम कानून लागू होते हैं 
  7. दोनों बैंकों के सामने चुनौतियां भी एक जैसी होती हैं 

अगर इन दोनों बैंकों के बीच में इतनी ज्यादा समानताएं हैं तो बिजनेस के माहौल में होने वाला किसी भी बदलाव का जो असर एक बैंक पर होगा वही असर दूसरे बैंक पर भी होगा। उदाहरण के तौर पर अगर RBI ब्याज दरें बढ़ाता है तो दोनों बैंकों पर एक जैसा असर होगा और RBI ब्याज दरें कम करता है तो भी असर समान होगा।

तो हम कह सकते हैं कि –

  1. तत्व – HDFC  और ICICI बैंक 
  2. संबंध – एक जैसे बिजनेस

ऊपर दी गई सूचनाओं के आधार पर हम जो निष्कर्ष निकाल सकते हैं – 

  1. दोनों बिजनेस एक ही तरीके के हैं इसलिए उनके स्टॉक की कीमत और उसमें होने वाले बदलाव भी एक जैसे होने चाहिए 
  2. यदि किसी दिन HDFC बैंक के स्टॉक की कीमत ऊपर जाती है तो ICICI बैंक के स्टॉक की कीमत भी ऊपर जानी चाहिए 
  3. अगर HDFC के स्टॉक की कीमत नीचे आती है तो ICICI के स्टॉक की कीमत भी नीचे आनी चाहिए 

इनके आधार पर सभी कंपनियों के लिए एक सामान्य नियम भी बनाया जा सकता है – 

अगर किन्ही दो कंपनियों के बीच में एक अच्छा संबंध स्थापित है तो पहली कंपनी की कीमत में आने वाला कोई भी बदलाव दूसरी कंपनी की कीमत में भी दिखाई देना चाहिए। और अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो वहां पर एक ट्रेड का मौका बनता है। 

उदाहरण के तौर पर अगर किसी दिन ICICI का स्टॉक X% ऊपर जाता है तो इस संबंध के मुताबिक HDFC के स्टॉक को भी उस दिन Y% ऊपर जाना चाहिए। लेकिन अगर किसी वजह से HDFC का स्टॉक ऊपर नहीं जाता है और अपनी जगह पर ही बना रहता है तो हम कह सकते हैं कि ICICI के स्टॉक की कीमत HDFC की तुलना में उम्मीद से ज्यादा ऊपर चली गई है। 

आर्बिट्राज की दुनिया में इसे सस्ते स्टॉक यानी HDFC को खरीदने या महंगे स्टॉक यानी  ICICI बैंक को बेचने के मौके के तौर पर देखा जाता है। 

संक्षेप में कहें तो इसे ही पेयर ट्रेडिंग का आधार कहा जा सकता है।

अब आप पूछ सकते हैं कि सड़क वाले उदाहरण में जो पेड़ की बात की गई थी उसका यहां पर क्या महत्व है? याद कीजिए कि समांतर चल रही दोनों सड़कों के संबंध में इस पेड़ की वजह से एक विसंगति आ गई थी। 

ठीक वैसे ही, एक दूसरे से एक संबंध के जरिए जुड़े हुए दो स्टॉक की कीमतों में कोई एक घटना विसंगति पैदा कर सकती है जिसकी वजह से एक स्टॉक की कीमत दूसरे स्टॉक की कीमत से अलग चलने लगे। 

यही विसंगति हमें ट्रेड करने का मौका देती है। यह विसंगति किसी भी वजह से आ सकती है – 

  1. HDFC बैंक अपने तिमाही नतीजों का ऐलान करता है। उस समय इसका असर HDFC के स्टॉक की कीमत पर अधिक पड़ेगा और ICICI पर कम। जिसकी वजह से इन दोनों स्टॉक की कीमतों के संबंध में एक विसंगति आएगी जो आगे जाकर ठीक होगी। 
  2. इसी तरीके से जब ICICI बैंक अपने नतीजों का ऐलान करेगा तो एक विसंगति पैदा हो सकती है। 
  3. इनमें से किसी एक बैंक का बड़ा अधिकारी इस्तीफा दे देता है जिसकी वजह से उस स्टॉक की कीमत पर असर पड़ता है जबकि दूसरे स्टॉक पर कोई इसका असर नहीं होता। 
  4. इनमें से किसी एक स्टॉक के बारे में काफी अफवाहें फैलती हैं जबकि किसी दूसरे स्टॉक में ऐसा कुछ नहीं होता। 

आमतौर पर, कीमत में होने वाली विसंगति एक छोटी घटना होती है जो उस समय असर डालती है। मैं इसको छोटी घटना इसलिए कहता हूं क्योंकि इसका असर दो में से सिर्फ एक कंपनी पर पड़ता है। 

दो स्टॉक के बीच का संबंध एक तरह से वह आधार या नियम तय करता है जिससे दोनों स्टॉक की कीमतें जुड़ी होती हैं। इसीलिए पेयर ट्रेडिंग के मामले में ज्यादातर जो चीजें काम आती हैं वह हैं – 

  1. दोनों स्टॉक के बीच के संबंध को पहचानना 
  2. उन दोनों स्टॉक के बीच के संबंध को नापना 
  3. दोनों स्टॉक के बीच के संबंध को हर दिन ट्रैक करना  
  4. इन दोनों के संबंध में आने वाली किसी विसंगति को पहचानना 

दो स्टॉक के बीच के संबंध को परिभाषित करने के कई तरीके हो सकते हैं लेकिन दो सबसे लोकप्रिय तकनीक हैं –  

  1. कीमत का स्प्रेड और रेश्यो – Price spreads and ratios
  2. लीनियर रिग्रेशन – Linear Regression

ये दोनों तकनीक अलग-अलग तरीके की हैं और इन दोनों पर हम विस्तार से चर्चा करेंगे। 

हम इस अध्याय को समाप्त करें इसके पहले पेयर ट्रेडिंग का इतिहास आपको बता देता हूं। 

पहली बार पेयर ट्रेडिंग मॉर्गन स्टैनली ने 80 के दशक के शुरुआती दिनों में की थी। इस ट्रेड को करने वाले ट्रेडर का नाम गेरी बैमबर्गर था। ऐसा माना जाता है कि गेरी ने इस तकनीक को काफी पहले ही खोज लिया था लेकिन उसने काफी समय तक इसे सिर्फ अपने इस्तेमाल के लिए छुपा कर रखा हुआ था। फिर एक दिन नुनजियो टार्टग्लिया (Nunzio Tartaglia) नाम के एक दूसरा ट्रेडर इसे लोगों के सामने लाया और लोकप्रिय बनाया। 

उस समय काफी लोग नुनजियो टार्टग्लिया को फॉलो करते थे क्योंकि वॉल स्ट्रीट में उसे क्वान्ट ट्रेडिंग का एक्सपर्ट माना जाता था। वो 1980 के दशक में मॉर्गन स्टैनली के प्रॉप ट्रेडिंग डेस्क का हेड था।

मशहूर हेज फंड डी ई शॉ (DE Shaw) ने शुरूआती दिनों में इस स्ट्रैटेजी का इस्तेमाल किया था।

2.2 – कुछ विचार

जैसा कि आपको समझ में आ गया होगा कि पेयर ट्रेडिंग में आपको दो स्टॉक या इंडेक्स को एक साथ में बेचना और खरीदना होता है। इस वजह से कई लोग मानते हैं कि यह मार्केट न्यूट्रल स्ट्रैटेजी है। मार्केट न्यूट्रल इसे इसलिए कहते हैं क्योंकि आप एक ही समय में लॉन्ग और शॉर्ट दोनों होते हैं। लेकिन ऐसा मानना सही नहीं है क्योंकि आप दो अलग-अलग स्टॉक पर लॉन्ग और शॉर्ट होते हैं 

मार्केट न्यूट्रल होने के लिए आपको एक ही समय एक ही अंडरलाइंग पर लॉन्ग और शॉर्ट दोनों होना चाहिए। कैलेंडर स्प्रेड इसका एक अच्छा नमूना होता है। कैलेंडर स्प्रेड में आप एक ही अंडरलाइंग पर दो अलग-अलग तारीख पर लॉन्ग और शॉर्ट होते हैं। 

इसलिए ऐसा मत मानिए कि पेयर ट्रेडिंग मार्केट न्यूट्रल है। यह एक ट्रेडिंग स्ट्रैटेजी है जो कि दोनों स्टॉक की कीमतों में होने वाले आपसी अंतर का फायदा उठाने की कोशिश करती है। जब आप एक साथ दो स्टॉक को खरीदते और बेचते हैं तो आप उन दोनों के रिलेटिव वैल्यू का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे होते हैं। इसीलिए मैं पेयर ट्रेडिंग को रिलेटिव वैल्यू ट्रेडिंग (Relative Value Trading) भी कहता हूं। 

वैसे देखा जाए तो यह पूरी तरीके से एक आर्बिट्राज का मौका होता है। हम कम कीमत वाले स्टॉक को खरीद रहे होते हैं और ज्यादा कीमत वाले स्टॉक को बेच रहे होते हैं। इसीलिए कुछ लोग इसे स्टैटिसटिकल आर्बिट्राज (Statistical Arbitrage) भी कहते हैं। 

यहां पर कम कीमत और अधिक कीमत का मतलब एक दूसरे की तुलना में कीमत से है। इसको नापने का तरीका हम अगले अध्याय में सीखेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. एक ही तरीके के बिजनेस से जुड़ी हुई दो कंपनियों के स्टॉक की कीमत एक तरीके की चाल दिखाती हैं 
  2. किसी एक कंपनी में हो रही कोई घटना इन दोनों कंपनियों के शेयर की कीमत के आपसी संबंध में कुछ समय के लिए एक विसंगति पैदा कर सकती है 
  3. जब यह विसंगति पैदा होती है तो यह ट्रेड करने का एक मौका होता है 
  4. पेयर ट्रेडिंग में आप कम कीमत वाले स्टॉक को खरीदते हैं और अधिक कीमत वाले स्टॉक को बेचते हैं 
  5. पेयर ट्रेडिंग को रिलेटिव वैल्यू ट्रेडिंग या स्टैटिसटिकल आर्बिट्राज ट्रेडिंग भी कहते हैं



4 comments

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  1. Bhavesh sharma says:

    Tq zerodha team

  2. Aadyant Tiwari says:

    Great narration.

  3. Sanjay Kumar says:

    Tq zerodha time very good reading

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