8.1 – म्यूचुअल फंड की दुनिया 

पिछले अध्याय में हमने सीखा कि फंड कैसे बनते हैं और इन्हें कैसे मैनेज किया जाता है। हम यह जाना कि कैसे बहुत सारे  लोगों के पैसे को एक साथ इकट्ठा करके उसको एक सामूहिक और निश्चित लक्ष्य यानी गोल के लिए बाजार में लगाया जाता है। हो सकता है कि कुछ चीजों को हमने ज्यादा ही सरल बना दिया हो, लेकिन हमारी कोशिश ये थी कि आप इसके जरिए फंड के स्ट्रक्चर या ढांचे को ठीक तरह से समझ सकें और यह जान सके कि इससे निवेशकों को कैसे सुविधा होती है। 

मुझे उम्मीद है कि अब आप नेट एसेट वैल्यू Net Asset Value यानी NAV को भी ठीक से समझ चुके होंगे। म्यूचुअल फंड में NAV या म्यूचुल फंड यूनिट एक जरूरी सिद्धांत है जिसे आप को समझना चाहिए और इसके बारे में कोई संशय नहीं रहना चाहिए। आप चाहे तो इसे समझने के लिए पिछले अध्याय को फिर से पढ़ सकते हैं। 

इस अध्याय में हम आगे बढ़ेंगे और हर फंड हाउस की तरफ से जारी किए जाने वाले सबसे जरूरी दस्तावेज को देखेंगे। इसे फंड का फैक्ट शीट कहते हैं। इसमें फंड या स्कीम से जुड़ी हुई सारी जानकारी म्यूचल फंड हाउस की तरफ से दी जाती है। यह वह जानकारी होती है जिसे निवेश के पहले आपको जानना चाहिए। इस अध्याय में हम फंड के फैक्ट शीट को देखेंगे और यह समझेंगे कि उसे कैसे पढ़ना और समझना चाहिए। 

लेकिन, हम फैक्शीट की तरफ आगे बढ़े उससे पहले यह जानना जरूरी है कि भारत में म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री का करोबार कैसा चल रहा है और इंडस्ट्री कहां तक पहुंच चुकी है। इससे आपको म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री के आकार के बारे में जानकारी मिलेगी-

दिसंबर 2019 तक म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री की स्थिति ऐसी थी –

फंड हाउस की संख्या43 

मतलब भारत में 43 म्यूच्यूअल फंड कंपनियों ने SEBI से AMC का लाइसेंस लिया है। इसके उदाहरण है – कोटक AMC, HDFC AMC, ICICI PRU AMC, एक्सिस AMC, DSP आदि। 

म्यूच्यूअल फंड स्कीम की संख्या – 2035 

हर फंड हाउस कई तरह की म्यूचुअलचल फंड स्कीम चला सकता है। उदाहरण के तौर पर ICICI PRU AMC 243 अलग अलग तरीके की स्कीम चलाता है। शायद इंडस्ट्री में इतनी ज्यादा स्कीम और कोई कंपनी नहीं चलाती है। फ्रैंकलीन AMC करीब 67, आदित्य बिरला AMC करीब 163 स्कीम चलाती है। स्कीम का मतलब एक ऐसा फंड जिसे एक निश्चित निवेश के लक्ष्य के साथ बनाया गया हो। इस पर हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे। 

सभी AMC द्वारा मिला कर मैनेज की जा रही रकम – 26 लाख करोड़ रूपए। म्यूच्यूअल फंड इंडस्ट्री द्वारा सभी AMC को मिलाकर इस समय इतनी बड़ी रकम मैनेज की जा रही है। उदाहरण के तौर पर HDFC AMC, जो कि देश की सबसे बड़ी AMC है, वह करीब 3.7 लाख करोड़ रुपए मैनेज करती है। एक्सिस AMC 1.05 लाख करोड़, जबकि यस (Yes) AMC 916 करोड़ रूपए मैनेज करती है। यह रकम व्यक्तियों से भी आती है और कंपनियों से भी आती है। कुल 25.68 लाख करोड़ में से 14.5 लाख करोड़ रिटेल इन्वेस्टर यानी आपके हमारे जैसे लोगों से और करीब 12 लाख करोड़ कंपनियों यानी कॉरपोरेट से आती है। 

कुल निवेशकों की संख्या – 2 करोड़। मतलब म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में करीब दो करोड़ व्यक्तियों ने निवेश किया हुआ है। 

हम यह संख्या या आंकड़े आपको इसलिए बता रहे हैं कि आपको म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हो सके। वैसे, म्यूचुअल फंड में निवेश करने के लिए इन आंकड़ों की आपको कोई जरूरत नहीं पड़ने वाली है।

8.2 – फंड फैक्ट शीट

एक म्यूचुअल फंड स्कीम को एक एसेट मैनेजमेंट कंपनी शुरू करती और चलाती है । SEBI की मंजूरी के बाद एक AMC कई तरह की स्कीम चला सकती है। म्यूच्यूअल फंड स्कीम का मतलब होता है एक फंड जिसका निवेश का लक्ष्य निश्चित हो। एक ऐसा लक्ष्य जो फंड हाउस पहले से बताता है। उदाहरण के तौर पर किसी एक म्यूचुअल फंड स्कीम के निवेश का लक्ष्य यानी इन्वेस्टमेंट ऑब्जेक्टिव – Investment Objective- यह हो सकता है कि वह 100 सबसे बड़ी लार्ज कैप कंपनियों में निवेश करेगा या फिर सबसे टॉप की 100 स्मॉल कैप कंपनियों में निवेश करेगा। निवेश का यह लक्ष्य यानी इन्वेस्टमेंट ऑब्जेक्टिव फंड को बनाते समय ही तय कर दिया जाता है। फंड मैनेजर से यह उम्मीद की जाती है कि जब तक वह फंड चल रहा है तब तक फंड मैनेजर इसका अनुसरण करे। 

आइए अब एक फंड की फैक्ट शीट पर नजर डालते हैं और देखते हैं कि उसमें क्या-क्या जानकारी हमें मिल सकती है। इसके लिए हम लेते हैं कोटक AMC की फैक्ट शीट को। 

फैक्टशीट के लिए हम AMC की वेबसाइट पर जा सकते हैं। वहां हमें जो जानकारी दिखाई पड़ती है वह है- 

जैसा कि आप देख सकते हैं कि सबसे ऊपर बहुत सारे टैब हैं। इक्विटी, टैक्स सेवर, हाइब्रिड, डेट, लिक्विड आदि। ये फंड की अलग-अलग श्रेणी या कैटेगरी है। अगले कुछ अध्यायों में हम इन सबको समझेंगे और जानेंगे कि इन अलग-अलग श्रेणियों में निवेश करते समय आपको क्या उम्मीद रखनी चाहिए। लेकिन अभी के लिए हम इक्विटी कैटेगरी पर नजर डालते हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं कि इक्विटी कैटेगरी में बहुत सारे अलग-अलग फंड यानी स्कीम दिखाई गई हैं। इनमें से, कोटक स्मॉल कैप फंड पर नजर डालते हैं और देखते हैं कि इसकी फैक्टशीट में क्या-क्या जानकारी है। जब आप इस लिंक पर क्लिक करेंगे तो आपको फंड फैक्शीट दिखेगी। यहां कोटक में वह लोग इसे वन पेजर कह रहे हैं। 

सेबी के नियमों के मुताबिक फंड के नाम में ही यह पता चलना चाहिए कि फंड क्या करने वाला है। तो जैसे ही मैं नाम पढ़ता हूं कोटक स्मॉल कैप फंड मुझे पता चल जाता है कि इस फंड का फोकस स्मॉलकैप में निवेश का है।

मैंने इसका वन पेजर डाउनलोड किया है और उसमें ये सब दिख रहा है- 

यहां हमें पहला पैराग्राफ हमें बताता है कि इस फंड का ऑब्जेक्टिव यानी उद्देश्य क्या है। जैसा कि आप देख सकते हैं वहां लिखा हुआ है कि कोटक स्मॉल कैप अलगअलग सेक्टर की स्मॉल कैप कंपनियों में इक्विटी और इक्विटी रिलेटेड दूसरी चीजों में निवेश करके आपके पैसे को बढ़ाने की कोशिश करेगा 

इसका मतलब यह हुआ कि 

  1. फंड मैनेजर  एक डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो बनाने की कोशिश कर रहा है और किसी खास सेक्टर पर उसकी नजर नहीं है 
  2. वह इक्विटी और इक्विटी से जुड़े हुए सिक्योरिटीज में निवेश करना चाहता है इसका मतलब ज्यादातर शेयरों यानी स्टॉक्स में निवेश करेगा।
  3. मुख्य तौर पर स्मॉल मार्केट कैपिटलाइजेशन वाली कंपनियों में निवेश किया जाएगा इसका मतलब यह कि अपने नाम के मुताबिक ये फंड  स्मॉल कैप कंपनी में निवेश करेगा। 
  4. दूसरा हिस्सा हमें बताता है कि स्मॉल कैप कंपनियों के शेयरों में ये फंड कैसे रिसर्च करेगा। वैसे यह जानकारी आपके लिए ज्यादा काम की नहीं है- क्योंकि अगर आपको पता होता कि रिसर्च कैसे होता है किस तरह से स्टॉक चुने जाते हैं और आपको अच्छे स्टॉक चुनना आता तो फिर आप स्टॉक में खुद से सीधे निवेश कर लेते, म्यूचुअल फंड में निवेश नहीं करते।

लेकिन ये सूचनाएं यहां पर दी हुई हैं इसलिए रिसर्च के तरीके पर नजर डाल लेते हैं-

  • कंपनी के प्रमोटर की ईमानदारी पर नजर डालेंगे मतलब यह देखेंगे कि वह घोटाला तो नहीं कर सकता 
  • कैश फ्लो बनाने की कंपनी की क्षमता कितनी है। मतलब वह ऐसी कंपनियों को देखेंगे जो अपने ऑपरेशन से मुनाफा कमा रही है और आगे जाते हुए  मुनाफे को और ज्यादा बढ़ाने की क्षमता रखती है 
  • बाजार के साइकिल के कंपनी के अनुभव को देखेंगे। मतलब ये देखा जाएगा कि कंपनी ने बाजार का बुरा समय देखा हुआ है और उसके बावजूद वह लगातार ठीक से काम करती रही है 
  • कंपनी का बिजनेस मॉडल सीधा और सरल है। कंपनी का कामकाज सीधा और समझने लायक है उसमें बहुत सारे उलझाव नहीं है।
  • कंपनी की गुणवत्ता ठीक है। इसका मतलब है कि कंपनी के वित्तीय रेश्यो या फाइनेंशियल रेश्यो ठीकठाक हैं 
  • बिजनेस की गुणवत्ता ठीक है। इसका मतलब यह है कि कंपनी का बिजनेस अच्छा है 
  • कंपनी का लेवरेज कम है। मतलब कंपनी के ऊपर काफी कम कर्ज है या कर्ज बिल्कुल भी नहीं है 

मैं इन सब चीजों को समझता हूं क्योंकि मैं इसी इंडस्ट्री का एक हिस्सा हूं, लेकिन म्यूचल फंड के ज्यादातर निवेशक इन बातों को नहीं समझ सकते और इसीलिए यह माना जा सकता है कि म्यूचल फंड निवेशक को इन चीजों को समझने की ज्यादा जरूरत नहीं है।

8.3 – फंड फैक्टशीट की दूसरी जानकारियां 

फंड के फैक्ट शीट में और भी कई जानकारी मिलती हैं। एक बार हम उस पर भी नजर डालते हैं इससे हमें म्युचुअल फंड से जुड़े हुए जटिल शब्दों को समझने का में मदद मिलेगी। फंड के फैक्ट शीट में जो और जानकारियां हैं – 

पहला हिस्सा इन्वेस्टमेंट ऑब्जेक्टिव का है, जिसको हमने पहले ही देख लिया है तो उसको हम छोड़ देते हैं। अगली जानकारी फंड के बेंचमार्क के बारे में है। हर एक म्यूचुअल फंड स्कीम अपने आप को किसी  इंडेक्स के मुकाबले बेंचमार्क करती है। मतलब फंड की तुलना के लिए एक पैमाना तय करती है। इससे हमें फंड के परफॉर्मेंस या प्रदर्शन को उस बेंचमार्क के मुकाबले नापने का मौका मिलता है। किसी फंड ने कैसा प्रदर्शन किया है उसकी तुलना इस बेंचमार्क के प्रदर्शन से की जाती है। इसलिए फंड का बेंचमार्क सही होना बहुत जरूरी है। उदाहरण के तौर पर, स्मॉल कैप फंड का बेंचमार्क आमतौर पर स्मॉल कैप इंडेक्स ही होना चाहिए। कोटक स्मॉल कैप फंड का बेंचमार्क यही है। अगर बेंचमार्क सही नहीं होगा तो प्रदर्शन का सही पता नहीं चलेगा।  उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि स्मॉल कैप फंड को लार्ज कैप इंडेक्स के सामने बेंचमार्क किया गया है तो इसे गलत माना जाएगा। इसे ऐसा ही मान लीजिए जैसे किसी छोटी कार का मुकाबला किसी बड़ी कार से किया जा रहा हो और फिर उसका प्रदर्शन नापा जा रहा हो। ऐसा तो नहीं होता ना। 

फैक्टशीट का अगला हिस्सा हमें स्कीम के प्रकार को बताता है। ये जरूरी जानकारी है। स्कीम के प्रकार हैं -ओपन एंडेड- Open ended,  इक्विटी – Equity, ग्रोथ स्कीम – Growth Scheme। यह सब जरूरी चीजें हैं,  आइए समझते हैं कि इन का मतलब क्या है-

ओपन एंडेड (Open Ended) – जब कोई AMC किसी एक फंड को शुरू करता है तो उसके सामने यह विकल्प होता है कि वह चाहे तो इस फंड को हमेशा के लिए चलने दे या फिर उसे एक निश्चित अवधि के लिए चला कर बंद कर दे। उदाहरण के तौर पर मैं एक फंड शुरू कर सकता हूं और कह सकता हूं कि यह 3 साल तक चलेगा और तीसरे साल में फंड बंद हो जाएगा। तीसरे साल के अंत में निवेशक को अपने पैसे वापस लेने होंगे, चाहे उसमें फायदा हो रहा हो या नुकसान। जिस फंड में इस तरह की एक निश्चित अवधि दी जाती है उसे क्लोज एंडेड फंड (close ended fund) कहते हैं। लेकिन अगर फंड में कोई एक्सपायरी की तारीख नहीं दी गई है तो इसका मतलब यह है कि वह एक ओपन एंडेड फंड है। आमतौर पर ओपन एंडेड फंड में निवेश करना ज्यादा अच्छा होता है। 

इक्विटी – यहां पर यह बताया जा रहा है कि इस म्यूच्यूअल फंड का निवेश एक निश्चित एसेट क्लास यानी इक्विटी में होगा। जैसा कि आप जानते हैं कि इक्विटी का मतलब है कि शेयर बाजार में निवेश किया जाएगा। दूसरा एसेट क्लास डेट (Debt) हो सकता है यानी ऐसा फंड जो कंपनियों के डेट या पब्लिक सेक्टर कंपनियों के डेट में निवेश करता है। डेट फंड के बारे में जब हम चर्चा करेंगे तो इसे और अच्छे से समझेंगे। 

ग्रोथ – अभी इसकी चर्चा को छोड़ देते हैं इस पर आगे चर्चा करेंगे। 

इसके अलावा इस हिस्से में कुछ और जानकारियां भी दी गई हैं – 

फंड मैनेजर – मेरे हिसाब से यह काफी जरूरी जानकारी है। यह जानना जरूरी और रोचक है कि इस फंड को मैनेज कौन कर रहा है। मैं आमतौर पर फंड मैनेजर का नाम पता चलने के बाद उसके बैकग्राउंड और उसके पिछले प्रदर्शन को देखने के लिए उस नाम को गूगल पर सर्च करता हूं। आखिरकार, वह इंसान हमारी गाढ़ी कमाई के पैसे को मैनेज करने वाला है इसलिए जरूरी है कि हमें उसकी पृष्ठभूमि पता हो। 

एलॉटमेंट डेट (Allotment Date) – यह वह तारीख है जिस तारीख से इस इस फंड ने ऑपरेशन यानी काम करना शुरू किया है। इस तारीख से आपको पता चलता है कि यह फंड कितना पुराना है, हालांकि यह बहुत महत्वपूर्ण नहीं होता, लेकिन फंड जितना पुराना हो उसके बारे में इतनी ज्यादा जानकारी मौजूद होती है और उसकी एनालिसिस करना या उसका परीक्षण करना  आसान होता है। नए फंड में यह काम मुश्किल होता है। 

अगले हिस्से में प्लान और ऑप्शन के बारे में बताया गया है यहां पर 2 तरीके के प्लान हैं – 

रेगुलर प्लान – यह जरूरी जानकारी है। इसे इस तरह से समझिए कि एक किसान प्याज उगाता है। वह इसके पौधे लगाता है, पानी देता है, फिर उसकी फसल को काटता है। जब प्याज तैयार हो जाता है तो मान लीजिए कि उसकी कीमत ₹30 प्रति किलो होती है। अब एक एजेंट आता है और कहता है कि वह इस प्याज को बाजार में ले जाएगा और बेचेगा। वो इसे हमारे आपके जैसे लोगों को ₹40 प्रति किलो पर ये प्याज बेचता है। इस 30 से ₹40 के बीच में जो ₹10 बचते हैं वह इस एजेंट का मुनाफा होता है। अब इस उदाहरण में किसान की जगह AMC को रख कर देखिए। यहां पर प्याज की जगह म्यूचुअल फंड स्कीम को रखिए और एजेंट की जगह म्यूचल फंड डिस्ट्रीब्यूटर को रखिए। म्यूचुअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर वो बीच का आदमी है जो AMC और निवेशक को जोड़ता है। अगर म्यूचल फंड का एजेंट डिस्ट्रीब्यूटर आपके पास आता है और आपको एक रेगुलर प्लान बेचता है तो इसका मतलब है कि उसे AMC से इस प्लान को बेचने के लिए कमीशन मिलने वाला है। इसमें गलत कुछ नहीं है बस काम की बात यह है कि ये पैसे आपकी जेब से जाएंगे।

डायरेक्ट प्लान – अब म्यूचुअल फंड खरीदने के लिए आपको किसी डिस्ट्रीब्यूटर की जरूरत नहीं है। अगर आपको पता है कि आपको कौन सा फंड खरीदना है, आप म्यूचुअल फंड के बारे में अपनी रिसर्च खुद कर सकते हैं,  तो फिर आप आसानी से  AMC की वेबसाइट पर जाकर उस फंड को सीधे खरीद सकते हैं। जब आप फंड को सीधे AMC से खरीदते हैं तो बीच में कोई डिस्ट्रीब्यूटर नहीं होता इसलिए डिस्ट्रीब्यूटर को दिया जाने वाला कमीशन आपको नहीं देना पड़ता। इस तरह से वह बचा हुआ कमीशन आपके निवेश में जाता है यानी आपको अपने निवेश पर ज्यादा रिटर्न मिलने की संभावना होती है। 

यहां पर आपको यह बताना जरूरी है कि जब आप जीरोधा से म्यूचुअल फंड खरीदते हैं तो आप डायरेक्ट प्लान खरीद रहे होते हैं। इसलिए आपको बेहतर रिटर्न मिल सकता है। हम इस मॉड्यूल में आगे इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे। लेकिन अभी के लिए यह याद रखिए कि जब आप म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं तो डायरेक्ट प्लान को चुनिए जिस से आप कमीशन को बचा सकें और बेहतर रिटर्न पा सकें।

इस हिस्से में अगली जानकारी ऑप्शन के बारे में है, यहां पर आप देख सकते हैं कि इस फंड के 2 तरह के ऑप्शन हैं –

डिविडेंड पेआउट (Dividend Payout) – जब आप किसी कंपनी का स्टॉक खरीदते हैं और कंपनी डिविडेंड का ऐलान करती है तो एक निवेशक के तौर पर वो डिविडेंड आपको मिलता है। इसी तरीके से जब फंड को मुनाफा होता है तो  निवेशकों को कुछ-कुछ वक्त पर वो मुनाफा डिविडेंड के तौर पर दिया जाता है। आपने उस म्यूचुअल फंड स्कीम में जितना निवेश किया है उसके आधार पर आपको AMC की तरफ से डिविडेंड मिलता है। यहां पर AMC आपको दो तरीके के विकल्प देती है आप डिविडेंड की रकम ले सकते हैं या फिर उस डिविडेंड को फिर से निवेश कर सकते हैं और उस रकम से ज्यादा यूनिट खरीद सकते हैं। डिविडेंड पेआउट ऑप्शन में आप अपने डिविडेंड की रकम निकाल सकते हैं। 

इसके बारे में भी हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे।

डिविडेंड रिइन्वेस्टमेंट प्लान (Dividend Reinvestment plan) – इस प्लान में आपके हिस्से का डिविडेंड आपके लिए फिर से उसी फंड में निवेश कर दिया जाता है। तो आपको वास्तव में डिविडेंड नगद के रूप में नहीं मिलता लेकिन उसके बदले आपको उस फंड में और अधिक यूनिट या NAV मिल जाती है। 

ग्रोथ प्लान (Growth Plan) – ग्रोथ प्लान में  निवेशक को कोई डिविडेंड नहीं मिलता बल्कि इससे जो भी मुनाफा होता है वह वापस फंड में लगा दिया जाता है इस तरह से फंड में कंपाउंडिंग का असर दिखने लगता है। व्यक्तिगत तौर पर मैं इसे बाकी दोनों तरीके के प्लान से ज्यादा पसंद करता हूं। 

इसके बाद फैक्ट शीट में SIP की जानकारी दी गई है SIP का मतलब होता है सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (Systematic Investment Plan) एक आम SIP में आप एक निश्चित रकम हर महीने कई सालों तक लगातार जमा करते रहते हैं। उदाहरण के तौर पर आप मान सकते हैं कि कोटक स्मॉल कैप फंड में हर महीने की 5 तारीख को ₹5000 जितने महीनों तक संभव हो तब तक आप जमा करते रहेंगे। SIP को आप  इंस्टॉलमेंट  या किस्तों में किया जाने वाला निवेश भी मान सकते हैं।SIP वित्तीय दुनिया के सबसे बड़े अविष्कारों में माना जाता है। इसके बहुत सारे फायदे होते हैं। यह मुद्दा इतना महत्वपूर्ण है कि इसके लिए हम एक अलग से अध्याय करेंगे। अभी बस याद रखिए कि इसका मतलब यह होता है कि हर महीने एक निश्चित रकम आप कई सालों तक जमा करते रहते हैं। 

जैसा कि आप फैक्ट शीट में देख सकते हैं कि कोटक स्मॉल कैप फंड में आप SIP कर सकते हैं लेकिन उसके लिए AMC ने एक शर्त लगाई हुई है कि आप को कम से कम ₹1000/ महीने की SIP करनी होगी और आपको कम से कम 6 महीने के लिए SIP करनी होगी। 

अगले हिस्से में यह बताया गया है कि इस फंड में शुरूआती न्यूनतम निवेश कितना किया जा सकता है। आप देख सकते हैं कि यहां पर साफ लिखा हुआ है कि अगर आप SIP नहीं करते हैं तो आपको कम से कम ₹5000 निवेश करने होंगे और SIP में महीने का ₹1000 निवेश करना होगा। 

फैक्टशीट के अगले हिस्से में फंड के लोड के बारे में बताया गया है। इसके अलावा कुछ और चीजें भी है जैसे SIP, STP, स्विच (switch) आदि।  इन सब पर हम SIP के अध्याय में चर्चा करेंगे। लेकिन अभी लोड स्ट्रक्चर (Load Structure) पर नजर डालते हैं।  

लोड (Load) वास्तव में वह रकम होती है जो आपको कुल रकम के एक निश्चित प्रतिशत के तौर पर तब देनी पड़ती है जब आप फंड में से पैसे निकाल रहे होते हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं कि यहां दो तरह के लोड बताए गए हैं

एंट्री लोड (Entry Load) – अब म्यूचुअल फंड में एंट्री लोड नहीं लगता, लेकिन पहले आपको अपने निवेश के समय एक निश्चित रकम म्युचुअल फंड को एंट्री लोड के तौर पर देनी पड़ती थी। AMC अभी भी फैक्ट शीट में एंट्री लोड को जीरो के तौर पर दिखाती हैं। 

एग्जिट लोड (Exit Load) – यह वह रकम है जो आपको तब देनी पड़ती है जब आप फंड से पैसे निकालते हैं। जैसा कि आप देख सकते हैं कि अगर आप रकम 1 साल के पहले निकाल रहे होंगे तो आपको उस रकम का 1% लोड के तौर पर देना होगा। लेकिन 1 साल के बाद रकम निकालने पर कोई लोड नहीं लगता।

8.4 – रिस्कोमीटर (Riskometer)

हर AMC को अपने फंड के रिस्क का आकलन करना होता है और इसे ग्राहकों को बताना होता है। SEBI ने इसे इस लिए जरूरी बनाया है ताकि फंड को खरीदने वाले को रिस्क पता रहे और इसे छुपा कर फंड को ना बेचा जा सके। उदाहरण के लिए किसी स्माल कैप फंड को कम रिस्क वाला बता कर ना बेचा जा सके।

AMC अपने रिस्क का आकलन इस तरह से करती है –

रिस्कोमीटर की सुई मॉडरेटली हाई (Moderately High) को दिखा रही है। इसका मतलब है कि इस फंड में निवेश में रिस्क है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इसमें आपको निवेश नहीं करना चाहिए।

म्यूचुअल फंड की दुनिया में रिस्क से बचने का सबसे बढिया रास्ता होता है समय, आपका निवेश जितने लंबे समय का होगा वह उतना ही सुरक्षित होगा।

इस पर हम आगे के अध्यायों में चर्चा करेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. म्यूचुअल फंड की फैक्टशीट में फंड के बारे में वो हर जरूरी जानकारी होती है जिसे आपको जानना चाहिए।
  2. किसी फंड का इन्वेस्टमेंट ऑब्जेक्टिव ही उस फंड के मैनेजर को निवेश की दिशा बताता है।
  3. एक ओपन एंडेड फंड की कोई एक्सपायरी नहीं होती, वो सदा के लिए चलता रह सकता है।
  4. जबकि क्लोज एंडेड फंड की एक समय सीमा होती है।
  5. रेगुलर प्लान में डिस्ट्रीब्यूटर को कमीशन दिया जाता है इसलिए निवेशक की कमाई कम हो जाती है।
  6. डायरेक्ट प्लान में डिस्ट्रीब्यूटर को कमीशन नहीं दिया जाता है इसलिए निवेशक की कमाई बढ़ जाती है।
  7. म्यूचुअल फंड का निवेशक यह तय कर सकता है कि वो डिविडेंड की रकम लेना चाहता है या उसे फिर से निवेश करना चाहता है।
  8. रिस्कोमीटर के जरिए AMC अपने फंड रिस्क का आकलन दिखाता है।



3 comments

  1. K Shyam says:

    क्या CAMS के म्यूचल फण्ड को ऑप्शन के लिऐ प्लैज कर सकते हैं

    • Kulsum Khan says:

      जी नहीं, ज़्यादा जानकारी के लिए आप पर्सनल फाइनेंस मॉड्यूल को पढ़ सकते हैं।

  2. Shailendra Verma says:

    very easy to explain , I am very thankful to all for all study material

    thank you

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