2.1 – साधारण ब्याज 

पर्सनल फाइनेंस में सीखने वाली सबसे जरूरी चीज होती है इसका गणित। एक बार आपने यह गणित समझ लिया तो इसके बाद सिर्फ इस गणित को इस्तेमाल करना होता है फिर जिंदगी आसान हो जाती है। 

इस अध्याय में हम इसी गणित को शुरू से समझने की कोशिश करेंगे, और इसकी शुरुआत करेंगे साधारण ब्याज से। मुझे पता है कि हमने वार्सिटी के अलग-अलग मॉड्यूल में इस पर कई बार चर्चा की है लेकिन यहां एक पूरे अध्याय में इसी को समझते हैं। 

एक उदाहरण के जरिए इस पर नजर डालते हैं। कल्पना कीजिए कि आपके एक दोस्त को कुछ पैसों की जरूरत है और वह इसके लिए आपके पास आता है। एक दोस्त होने के नाते आप उसकी मदद करने को तैयार होते हैं। लेकिन आप साथ में यह भी चाहते हैं कि वह आपको इस रकम पर एक ब्याज मिले। मैं जानता हूं कि आमतौर पर लोग अपने दोस्तों के साथ ऐसा नहीं करते लेकिन आप यह मान लीजिए कि आप अपने पैसों के लिए ऐसा कर लेते हैं। 

इस लेनदेन का विवरण इस प्रकार है –

  • रकम – 100,000 
  • समय अवधि – 5 साल 
  • ब्याज दर (%) – 10 

तो आपका दोस्त 5 साल में आपको 100,000 वापस चुकाने के लिए तैयार हो जाता है और साथ ही यह भी मान जाता है कि वह आपको इस रकम पर 10% की वार्षिक दर से ब्याज देगा। 

अब ऐसे में 5 साल के अंत में आप कितने पैसे बनाएंगे? आइए इस गणित को करके देखते हैं – 

याद रखिए कि वार्षिक ब्याज कुल मूलधन (Principal) पर दिया जाता है। यहां 

मूलधन यानी प्रिंसिपल अमाउंट = 100,000 

ब्याज दर = 10% 

तो सालाना ब्याज = 10% * 100,000 = 10,000 

तो अब यह पूरा गणित ऐसा दिखाई पड़ेगा –

वर्ष बचा हुआ मूलधन ब्याच देनदारी
01 Rs.100,000/- Rs.10,000/-
02 Rs.100,000/- Rs.10,000/-
03 Rs.100,000/- Rs.10,000/-
04 Rs.100,000/- Rs.10,000/-
05 Rs.100,000/- Rs.10,000/-
कुल ब्याज Rs.50,000/-

तो जैसा कि आप देख सकते हैं कि आप 50,000 ब्याज के तौर पर कमाएंगे। इस रकम को निकालने के लिए आप एक सीधे से फार्मूले का इस्तेमाल भी कर सकते हैं जो कि आपने स्कूल में जरूर सीखा होगा –  

रकम = मूलधन * समय * रिटर्न

Amount = Principal * Time * Return  

यहां पर रिटर्न का मतलब है मिलने वाली प्रतिशत ब्याज दर।

रकम = 100,000 * 5 * 10%

= 50,000 

तो यह तो बहुत सीधा सादा है और आपको यह याद भी होगा। इसे साधारण ब्याज कहते हैं। 

साधारण ब्याज में ब्याज हमेशा बचे हुए मूलधन पर लगाया जाता है। 

अगर इसे किसी बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट के तौर पर देखा जाए जहां पर आप को 5 साल के डिपॉजिट पर 10% का साधारण ब्याज मिलने वाला है, तो 5 साल के खत्म होने पर आपको ब्याज से 50,000 की आमदनी होगी। लेकिन बैंक साधारण ब्याज नहीं देते वह चक्रवृद्धि ब्याज यानी कंपाउंड इंटरेस्ट (Compound Interest) देते हैं।  तो, साधारण ब्याज और चक्रवृद्धि ब्याज यानी कंपाउंड इंटरेस्ट में क्या अंतर होता है?

2.2 – चक्रवृद्धि ब्याज यानी कंपाउंड इंटरेस्ट

साधारण ब्याज का तुलना में कंपाउंड इंटरेस्ट या चक्रवृद्धि ब्याज अलग तरीके से काम करता है। जब कोई आप को कंपाउंड इंटरेस्ट देने को राजी होता है तो इसका मतलब यह है कि वह आपको अब तक मिल चुके ब्याज पर भी ब्याज देने को तैयार है। 

आइए इस को एक उदाहरण से देखते हैं। हम यहां उसी उदाहरण का इस्तेमाल करेंगे जो हमने साधारण ब्याज के लिए किया था। विवरण इस प्रकार है –

  • रकम – 100,000 
  • समय अवधि – 5 साल 
  • ब्याज दर (%) – 10 
  • ब्याज का प्रकार – चक्रवृद्धि ब्याज (ये ब्याज वार्षिक निकाला जाएगा)

आइए देखते हैं यह कैसे काम करता है – 

वर्ष 1

पहले साल के अंत में आपको अपने मूलधन यानी प्रिंसिपल पर और अब तक मिल चुके ब्याज (अगर मिला है तो) दोनों पर 10% का ब्याज मिलना है। अब मान लीजिए इसे आप पहले साल के अंत में ही बंद कर रहे हैं, तो आपको प्रिंसिपल अमाउंट यानी मूलधन पर ब्याज मिलेगा और साथ ही इस मूलधन पर मिलने वाले ब्याज पर भी ब्याज मिलेगा। 

रकम = मूलधन + (मूलधन * ब्याज)

Amount = Principal + (Principal * Interest)

इसे दूसरी तरह से देखें तो,

= मूलधन * (1+ ब्याज)

Principal * (1+ interest)

यहां पर, (1+ ब्याज) मूलधन पर मिलने वाले ब्याज को दिखा रहा है, तो इसके आधार पर –

= 100,000 *(1+10%)

= 110,000

वर्ष 2

अब मान लीजिए कि आप इसे पहले साल की जगह दूसरे साल में बंद करना चाहते हैं। अब आपको जो रकम मिलेगी – 

यहां याद रखिए कि आपको पहले साल में जो ब्याज मिला है अब उस पर भी ब्याज मिलेगा। इसलिए –

मूलधन *(1+ ब्याज) * (1+ब्याज)

Principal *(1+ Interest) * (1+Interest)

ऊपर हरे रंग से जो हिस्सा दिखाया गया है वह वो हिस्सा है जो आपको पहले साल के अंत में मिलने वाला है जबकि नीले रंग से दिखाए गए हिस्से में दूसरे साल में मिलने वाले ब्याज को दिखाया गया है।

इस समीकरण को आसान करें तो, 

= मूलधन *(1+ ब्याज)^(2)

Principal *(1+ Interest)^(2)

= 100,000*(1+10%)^(2)

= 121,000

वर्ष 3

तीसरे साल में आपको पहले दो साल के ब्याज पर भी ब्याज मिलेगा। देखिए कैसे –

मूलधन *(1+ ब्याज) *(1+ब्याज) *(1+ब्याज)

Principal *(1+ interest) *(1+interest) *(1+interest)

पहले 2 सालों में मिलने वाली रकम को यहां पर हरे रंग से दिखाया गया है और नीले रंग का हिस्सा उस पर तीसरे साल में मिलने वाले ब्याज को दिखा रहा है। 

इसे समीकरण के तौर पर देखें तो –

= मूलधन *(1+ ब्याज)^(3)

Principal *(1+ Interest)^(3)

= 100,000*(1+10%)^(3)

= 133,100

इसके आधार पर एक सर्वमान्य समीकरण भी बना सकते हैं  –

P*(1+R)^(n), जहां पर –

  • P = मूलधन यानी Principal
  • R = ब्याज यानी Interest rate
  • N = समय अवधि यानी Tenure

तो अगर आप इसको 5 साल तक चलाते रहेंगे तो जो रकम आपको मिलेगी – 

= 100,000*(1+10%)^(5)

=Rs.161,051/-

तो अब आप देख सकते हैं कि साधारण ब्याज में मिलने वाले 50,000 के मुकाबले यहां पर आपको 61,051 कंपाउंड इंटरेस्ट यानी चक्रवृद्धि ब्याज के तौर पर मिलेंगे। 

फाइनेंस की दुनिया में कंपाउंड इंटरेस्ट या कंपाउंड रिटर्न बहुत सारे चमत्कार करता है। पर्सनल फाइनेंस की सारी की सारी गणना इस बात पर निर्भर करती है कि आपके रिटर्न किस तरीके से कंपाउंड हो रहे हैं। इसीलिए जरूरी है कि हम कंपाउंडिंग को एक बार और अच्छे से समझ लें।

2.3 – रिटर्न की कंपाउंडिंग (कंपाउंडेड रिटर्न) 

कंपाउंड रिटर्न एकदम कंपाउंड इंटरेस्ट यानी चक्रवृद्धि ब्याज की तरह ही काम करता है। वास्तव में रिटर्न और इंटरेस्ट दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब आप कोई कर्ज लेते हैं तो आप उस पर ब्याज देते हैं इसी तरीके से जब आप अपनी रकम कहीं निवेश करते हैं तो उस पर आपको रिटर्न मिलता है। इसलिए अगर आप ब्याज को समझ जाएंगे तो रिटर्न को समझना भी आपके लिए आसान होगा। 

इस हिस्से में हम देखेंगे कि रिटर्न कैसे पता किया जाता है। आपकी निवेश की अवधि के अनुसार आपका रिटर्न बदलता जाता है। 

अगर आपके निवेश की अवधि 1 साल से कम है तो आपके रिटर्न को एब्सॉल्यूट (Absolute) तरीके से नापा जाएगा। अगर आपके निवेश की अवधि एक साल से अधिक है तो कंपाउंडेड एनुअल ग्रोथ रेट – Compounded Annual Growth Rate यानी CAGR तरीके से रिटर्न को नापा जाता है। 

आइए अब इन दोनों के अंतर को एक उदाहरण से समझते हैं। 

मान लीजिए 1 जनवरी 2019 को आपने 100,000 का निवेश किया जिस पर आपको हर साल 10% का रिटर्न मिलना है। और आप इस रकम को एक साल बाद निकाल लेते हैं। तो आपको कितने पैसे मिलेंगे?

इसे पता करना आसान है –

आप 100,000 पर 10% यानी 10,000 कमाएंगे। यानी आपका निवेश एक साल में 10% की दर से बढ़ रहा है। यह रिटर्न एब्सॉल्यूट (Absolute) रिटर्न है। यह सीधा इसलिए है क्योंकि यहां पर समय अवधि 1 साल या 365 दिन है।

लेकिन मान लीजिए यही निवेश आपने 3 साल के लिए किया है और आपको सालाना 10% के साधारण रिटर्न के बजाए हर साल 10% का कंपाउंडेड रिटर्न मिलने वाला है। अब 3 साल के बाद आप कितने पैसे बनाएंगे? 

इसे निकालने के लिए हमें ग्रोथ रेट यानी वृद्धि दर का फॉर्मूला लगाना होगा 

रकम = मूल धन *(1+रिटर्न)^(समय) 

Amount = Principal*(1+return)^(time)

आप देख सकते हैं कि यह वही फार्मूला है जिसे हमने कंपाउंड इंटरेस्ट निकालने के लिए इस्तेमाल किया था। इस फॉर्मूले का इस्तेमाल करें तो – 100,000*(1+10%)^(3)

Rs.133,100/-

अगर आप पिछले हिस्से में इस्तेमाल किए गए कंपाउंड इंटरेस्ट के फॉर्मूले को लगाकर रकम निकालेंगे तो यह रकम भी उतनी ही होगी जो यहां पर नजर आ रही है।

अब एक सवाल – 

अगर आपने 100,000 निवेश किया है और 3 साल बाद आपको 133,100 मिलने हैं तो आपके निवेश की ग्रोथ रेट यानी वृद्धि दर क्या है? 

यह जानने के लिए हमें इस फार्मूले को फिर से व्यवस्थित करना होगा 

रकम = मूल धन *(1+रिटर्न)^(समय)

Amount = Principal*(1+return)^(time) 

और इससे रिटर्न निकालना होगा। अब ये फॉर्मूला ऐसा दिखेगा –

रिटर्न = [(रकम / मूलधन)^(1/समय)] – 1 

Return = [(Amount/Principal)^(1/time)] – 1

इससे जो रिटर्न निकलेगा वह CAGR रिटर्न होगा।

अब इस फॉर्मूले का इस्तेमाल करने पर 

CAGR = [(133100/100000)^(1/3)]-1

10%

2.4 – कंपाउंडिंग का असर 

ऐसा कहा जाता है कि एक बार अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कंपाउंड इंटरेस्ट को दुनिया का आठवां अजूबा बताया था। शायद इसे इससे अच्छे तरीके से बताया भी नहीं जा सकता। इसे समझने के लिए हमें कंपाउंड इंटरेस्ट को समय के साथ देखना होगा। 

फाइनेंस की दुनिया में कंपाउंडिंग का मतलब यह होता है कि आपके पैसे किस रफ्तार से बढ़ रहे हैं यानी निवेश की ग्रोथ कितनी है। इसमें पहले साल की कमाई को दूसरे साल फिर से निवेश कर दिया जाता है, इसी तरह से दूसरे साल की कमाई को तीसरे साल में फिर से निवेश कर दिया जाता है। ये सिलसिला इसी तरह से आगे भी चलता रहता है। 

उदाहरण के तौर पर मान लीजिए आप ने 100 निवेश किए हैं जो 20% सालाना की रफ्तार से बढ़ने वाले हैं (याद रखिए कि इसे ही CAGR या ग्रोथ रेट कहते हैं)। पहले साल के अंत में आपके 100 रूपए 20% ब्याज के साथ  120 हो जाएंगे। 

अब आपके सामने दो विकल्प हैं 

  • आप अपने बढ़े हुए 20 के साथ 120 को फिर से निवेश कर दें 
  • या फिर अपना 20 का मुनाफा निकाल लें। 

अब अगर आप ने यह फैसला किया कि आप 20 रूपए की कमाई को दूसरे साल फिर से निवेश कर देते हैं तो दूसरे साल के अंत में यह रकम बढ़कर 144 हो जाएगी। तीसरे साल के अंत में 20% ब्याज के साथ यह रकम 173 हो जाएगी। और ये ऐसे ही बढ़ती रहेगी। 

अब इसकी तुलना कीजिए उस स्थिति से जब आपने हर साल 20 रूपए की कमाई को निकाल लेते। तो हर साल 20 के हिसाब से 3 साल में आपके पास 60 होते जबकि कमाई को निकालने की जगह फिर से निवेश करने से आपकी यह रकम 173 तक पहुंच गई जो कि आपके 60 से 13 यानी 21.7% ज्यादा है। 

इसे ही कंपाउंडिंग का असर कहा जाता है।

अब जरा और गहराई में जाते हैं। इस चार्ट पर नजर डालिए – 

यह चार्ट हमें दिखा रहा है कि अगर 100 को निवेश किया गया है और उस पर 20% का सालाना रिटर्न मिल रहा है तो 10 साल में यह रकम किस तरह से बढ़ेगी। 

यहां पर मैं आपका ध्यान एक बात की तरह दिलाना चाहता हूं, आप ध्यान से देखेंगे तो आपको दिखेगा की 100 की रकम को 207 होने में यानी इसके 107% बढ़ने में करीब 4 साल का समय लगा लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता गया सातवें साल के बाद से वृद्धि की रफ्तार बढ़ गई और 107% का रिटर्न सिर्फ 3 साल में ही मिल गया। (रकम 298 से 620 हो गयी) 

कंपाउंडिंग के असर की यही सबसे बड़ी खासियत है। आप अपने पैसे को जितने ज्यादा समय के लिए निवेश करके रखते हैं आपका पैसा आपके लिए उतना ही ज्यादा मेहनत से काम करता है। 

पर्सनल फाइनेंस की दुनिया में यह सबसे महत्वपूर्ण जानकारी है। इसलिए आप इसको अच्छे से समझ लीजिए और दिमाग में बैठा लीजिए। 

अगले अध्याय में हम पर्सनल फाइनेंस से जुड़े एक और महत्वपूर्ण मुद्दे – टाइम वैल्यू आफ मनी पर चर्चा करेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  • सिंपल इंटरेस्ट यानी साधारण ब्याज वह ब्याज है जो आप के बचे हुए मूलधन (Outstanding Principal) पर मिलता है 
  • कंपाउंड इंटरेस्ट यानी चक्रवृद्धि ब्याज आप के बचे हुए मूलधन और उस पर मिल रहे साधारण ब्याज के ऊपर मिलने वाला ब्याज है 
  • इंटरेस्ट यानी ब्याज और रिटर्न एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं 
  • जब आपका निवेश 1 साल से कम के लिए होता है तो उस पर मिलने वाले रिटर्न को एब्सॉल्यूट रिटर्न (Absolute Return) कहते हैं 
  • जब आपका निवेश 1 साल से ज्यादा के लिए होता है तो उस पर रिटर्न निकालने के लिए कंपाउंड एनुअल इंटरेस्ट रेट यानी CAGR के फॉर्मूले का इस्तेमाल किया जाता है 
  • जब आप अपने निवेश को लंबा समय देते हैं तो आपको कंपाउंडिंग का असर ज्यादा अच्छे से दिखाई देता है



13 comments

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  1. GOPAL RAM says:

    thankxx team zerodha god bless you

  2. Aman kaushik says:

    इन calculations में ^ sign का क्या मतलब है?

  3. shaligram singh says:

    very useful

  4. Geeta kori says:

    Nice

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