1.1 मॉड्यूल से परिचय
सबसे पहले ये जान लीजिए कि इस अध्याय में आपको क्या सीखने को मिलेगा? इस अध्याय में मुख्यतः तीन विषयों पर बात करेंगे –
- करेंसी और करेंसी ट्रेडिंग
- कमोडिटीज को समझना
- इंटरेस्ट रेट फ्यूचर यानी ब्याज दरों का फ्यूचर बाजार
मुझे पता है कि यह तीनों विषय काफी बड़े और व्यापक हैं और इन सब पर अलग–अलग मॉड्यूल तैयार किया जा सकता है। लेकिन ये एसेट इक्विटी की तरह लिक्विड एसेट नहीं है। अभी भारत में इन एसेट में काफी सीमित कारोबार ही होता है। इसीलिए, यहां पर हम आपको सिर्फ इनसे परिचित करा रहे हैं। हम यह बताने वाले हैं कि ये एसेट ऊपर या नीचे क्यों होते हैं और इनमें ट्रेड करने के पहले आपको किन चीजों का ध्यान रखना चाहिए। तो आप मान सकते हैं कि यह एक तरह से आपको परिचित कराने वाला मॉड्यूल है। लेकिन हम कोशिश करेंगे कि इसके बारे में आपको ज्यादा से ज्यादा बता दें।
इस मॉड्यूल की शुरुआत हम करेंसी के साथ करेंगे। हम करेंसी के उन जोड़ों पर चर्चा करेंगे जिनका कारोबार भारत में काफी लोकप्रिय है जैसे डॉलर-रूपया, पाउंड- रूपया और रूपया- जापानी येन। हम कुछ गैर रूपया करेंसी जोड़ों पर भी बात करेंगे जैसे यूरो- अमेरिकी डॉलर, पाउंड – डॉलर और अमेरिकी डॉलर – जापानी येन। करेंसी पर हम अगले कुछ अध्याय तक बात करेंगे। हम कोशिश करेंगे कि आपको यह समझा सकें कि करेंसी के जोड़े (pair) कैसे काम करते हैं, इनके कॉन्ट्रैक्ट के विषय में बता सके और यह भी बता सकें कि इन करेंसी के ऊपर या नीचे जाने के पीछे कौन सी फंडामेंटल वजहें काम करती हैं।
एक बार यह सब हो गया तो हम मॉड्यूल के अगले हिस्से की तरफ बढ़ेंगे। जिसमें कमोडिटीज पर बात की जाएगी। यहां भी हम यही कोशिश करेंगे कि आपको अलग-अलग कमोडिटीज के बारे में बताएं, जिससे कृषि (एग्री/ Agri) कमोडिटी और नॉट एग्री कमोडिटी के बारे में आपको पता चल सके। हम आपको ये बताएंगे कि इनके कॉन्ट्रैक्ट कैसे होते हैं और इनको ऊपर या नीचे चलाने के लिए कौन से फंडामेंटल कारण काम करते हैं। जिन कमोडिटीज पर हम लोग बात करेंगे वो हैं – सोना, चांदी, जिंक (जस्ता/zinc), अल्यूमिनियम (Aluminium) क्रूड ऑयल (Crude oil), नेचुरल गैस (Natural Gas), हल्दी, इलायची, काली मिर्च, कपास यानी कॉटन (Cotton) आदि। साथ ही, हम यह भी बात करेंगे कि गोल्ड यानी सोने जैसी कमोडिटी की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के आधार पर कैसे तय होती हैं।
और फिर इस मॉड्यूल में हम चर्चा करेंगे इंटरेस्ट रेट फ्यूचर की, जो कि काफी रोचक होता है। इसमें हम इस बात पर भी चर्चा करेंगे कि RBI अपने कर्ज़ के प्रोग्राम को कैसे चलाता है? सॉवरिन बॉन्ड (Sovereign Bond) किस तरीके से जारी किए जाते हैं, उनकी NSE पर लिस्टिंग कैसे होती है और उनमें ट्रेड कैसे किया जाता है? इसी के साथ हम बॉन्ड (Bond) की ट्रेडिंग और बॉन्ड ट्रेडिंग से जुड़ी रणनीति पर भी चर्चा करेंगे।
मुझे उम्मीद है कि हम और आप काफी अच्छी और नई चीजें सीखेंगे।
लेकिन याद रखिए कि इन सब को सीखने के लिए आपको कुछ चीजों की जरूरत पड़ेगी, वो हैं –
- फ्यूचर्स ट्रेडिंग (Futures Trading)
- ऑप्शन थ्योरी (Options Theory)
- टेक्निकल एनालिसिस (Technical Analysis)
अगर आप इन विषयों के बारे में नहीं जानते हैं तो करेंसी के बारे में सीखना मुश्किल होगा। इसलिए मैं आपसे गुजारिश करूंगा कि पहले आप इन विषयों पर अपनी जानकारी को तरोताजा कर लीजिए।
आइए अब इस मॉड्यूल को शुरू करते हैं और करेंसी के बारे में जानते हैं।
1.2 – करेंसी (अ)संतुलन – Currency (in)equality
हम करेंसी पर बात करना शुरू करें उसके पहले आपको एक घटना बताना चाहता हूं, जो मेरे और मेरी 6 साल की पुत्री के साथ हुई। मुझे लगता है कि हमारी बातचीत के लिए यह एक अच्छी शुरुआत हो सकता है।
अभी हाल ही में, मैं अपने परिवार के साथ ऑस्ट्रिया में छुट्टी मनाने गया। ऑस्ट्रिया एक बहुत ही खूबसूरत देश है। मेरी बेटी पहली बार यूरोप गयी थी और उसे सब कुछ बहुत ही अच्छा लग रहा था। वहां छोटी-छोटी दुकानों पर मिलने वाली बहुत सारी चीजें उसे अपनी ओर आकर्षित कर रही थीं। एक दिन जब हम बाहर घूमने निकले तो वह मुझे एक छोटे से खिलौने की दुकान पर ले गयी जो उसे सड़क के किनारे पर दिख गयी थी। मुझे समझ में आ गया था कि मेरे लिए मुश्किल खड़ी होने वाली है। दुकान में 5-10 मिनट बिताने के बाद उसने एक छोटा सा लकड़ी का खिलौना उठाया और मुझसे उसे खरीदने को कहा। खिलौना काफी सुंदर था और मैं उसे खरीदने को तैयार हो ही रहा था लेकिन तभी मेरी नजर उसकी कीमत पर पड़ी। उस छोटे से लकड़ी के खिलौने की कीमत की 25 यूरो थी। मैंने अपनी बेटी को समझाने की कोशिश की और उसे कुछ और खरीदने की सलाह दी।
मैंने उसे समझाया कि यह 25 यूरो का था और 25 यूरो छोटे से लकड़ी के खिलौने के लिए काफी ज्यादा कीमत है। लेकिन उसे मेरी बात बिल्कुल समझ में नहीं आयी और वह उस खिलौने को खरीदने की जिद पर अड़ी रही। उसने मुझसे कहा कि सिर्फ यह खिलौना सिर्फ 25 यूरो का ही तो है। तब मुझे समझ में आया वह 25 यूरो को ₹25 के बराबर मान रही थी। और उसे यह बिल्कुल भी नहीं पता था कि 25 यूरो का मतलब होता है कि ₹25 को 78 से गुणा करना।
इस घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि यूरो या डॉलर की कीमत रुपए के बराबर क्यों नहीं है? एक देश की करेंसी दूसरे देश की करेंसी के बराबर क्यों नहीं होती? मुझे पता है कि आपमें से कईयों को इस सवाल का जवाब पता होगा। लेकिन मुझे लगता है कि दो करेंसी के बीच में जो अंतर होता है उसको समझना जरूरी है। इस अंतर की वजह से ही इन करेंसी में ट्रेडिंग होती है और करेंसी के जोड़े या पेयर (Pair) बनते हैं।
इसको समझने के लिए हमें करेंसी के इतिहास में जाना होगा और समझना होगा कि करेंसी की ट्रेडिंग कैसे शुरू हुई। मैं इस पर बहुत ज्यादा बात नहीं करूंगा लेकिन जल्दी से आपको यह बात समझाने की कोशिश करूंगा ताकि आपको करेंसी के इतिहास और उसके उद्भव के बारे में पता चल सके।
पहला दौर – बदला यानी बार्टर (Barter) का दौर
करेंसी या मुद्रा के चलन के पहले लेन–देन के लिए जिस प्रणाली का इस्तेमाल होता था उसको बार्टर सिस्टम कहते हैं। बार्टर सिस्टम में एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु दी जाती है। इस प्रणाली का चलन कई सदियों तक हुआ है। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि एक किसान के पास कपास है और वह दूसरे किसान से गेहूं लेना चाहता है। तो दोनों एक दूसरे की वस्तुओं की अदला-बदली कर सकते हैं। इसी तरीके से कोई एक इंसान जिसके पास बहुत सारे संतरे हैं वो किसी दूसरे इंसान को, जो संतरे चाहता है, उसको संतरे देकर अपनी गाय या भेड़ की साफ सफाई करवा सकता है।
बार्टर सिस्टम की समस्या यह थी कि इसमें बड़े सौदे या बड़े लेन-देन नहीं कर सकते और दूसरा इसका विभाजन नहीं हो सकता। मतलब आप कम कीमत की वस्तु के लिए आधी गाय नहीं दे सकते। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कि एक किसान के पास कपास की 5 गांठे हैं और इसके बदले वो किसी से गाय ले रहा है जो दो गांठ के बदले एक गाय देने को तैयार है। अब दो गाय लेने के बाद भी उसके पास कपास की एक गांठ बच जाएगी। वह एक गांठ कपास के बदले आधी गाय नहीं ले सकता। इस तरीके से, यह इस प्रणाली की एक रुकावट थी।
इसके अलावा दूसरी समस्या यह भी थी कि एक किसान को अपना सामान बेचने या बदले कुछ और लेने के लिए बहुत दूर तक ऐसी जगह तक जाना पड़ता था जहां पर कोई उसकी चीज लेने को तैयार हो।
इसीलिए इसके बाद एक नई प्रणाली आई जो कि इसका एक सुधरा हुआ रूप था जहां पर किसी सामान के बदले कोई एक धातु या मेटल देने की परंपरा चली।
दूसरा दौर – सामान के बदले धातु (Metal) का दौर
बार्टर यानी सामान के बदले सामान लेनदेन की प्रणाली में आने वाली समस्याओं की वजह से लेनदेन की नई प्रणाली निकली। लोगों ने कोशिश की कि एक सामान के बदले दूसरा सामान देने की जगह एक ऐसी चीज निकाली जाएगी जिसे किसी भी सामान के बदले दिया जा सके। ऐसी वस्तु की तलाश अनाज से शुरू हुई और धातु तक गई। लेकिन अंततः धातु को ज्यादा पसंद किया गया। धातु को आसानी से टुकड़ों में बांटा जा सकता था, उसको एक जगह से दूसरी जगह ले जाना आसान था और उसके लंबे समय तक रखने पर भी कोई समस्या नहीं होती थी। सारी धातुओं में सोना और चांदी को सबसे ज्यादा सबसे ज्यादा लोकप्रिय थे और इन्हीं को स्टैन्डर्ड मान लिया गया। वस्तुओं के बदले सोना या चांदी देने की प्रणाली कई सदियों तक चली। इस स्थिति में बदलाव तब आया जब लोगों ने सोना चांदी को सुरक्षित जगह पर छुपा कर रखना शुरू कर दिया और उसकी जगह कागज जारी करना शुरु कर दिया। इस कागज की कीमत इस पर आधारित होती थी कि कितना सोना या चांदी जमा किया गया है।
जैसे-जैसे समय बीता वैसे-वैसे बैंक सामने आए और इन कागजों की जगह अलग-अलग तरह की मुद्राएं सामने आने लगी। शायद यही थी मुद्रा की यानी करेंसी की शुरुआत।
तीसरा दौर – गोल्ड (सोना) स्टैन्डर्ड का दौर
समय के साथ घरेलू कारोबार बढ़ा और दुनिया के दूसरे हिस्सों में या भौगोलिक क्षेत्र के बाहर भी फैलने लगा। आर्थिक जागरूकता भी बढ़ी और इसके साथ व्यापारियों को यह समझ में आने लगा कि हर चीज एक जगह नहीं पैदा की जा सकती और इसकी कोई जरूरत भी नहीं है। तो व्यापारियों ने भौगोलिक सीमा के बाहर जाकर कारोबार करने की शुरुआत की। वस्तुओं का आयात और निर्यात होने लगा। ऐसे में व्यापारियों को ऐसी मुद्रा यानी करेंसी की जरूरत थी जो कि इंपोर्ट एक्सपोर्ट यानी आयात और निर्यात में दूसरे भौगोलिक क्षेत्र के लोगों को भी मान्य हो। बैंकिंग प्रणाली बेहतर होने लगी और समय के साथ करीब 19वीं शताब्दी के अंत में किसी भी वस्तु के बदले सोना (चांदी नहीं) दिए जाने का चलन बढ़ गया। घरेलू मुद्रा की कीमत को सोने की कीमत के आधार पर नापने की परंपरा चली जिसे गोल्ड स्टैन्डर्ड (Gold Standard) कहा गया।
समय बदला, भू-राजनीतिक परिस्थितियां बदली (विश्व युद्ध, गृह युद्ध, शीत युद्ध आदि) और दुनिया भर की आर्थिक स्थिति भी बदलने लगी। ऐसे में, भौगोलिक सीमा के आर-पार होने वाले सौदों में लोगों को एक ऐसी करेंसी या मुद्रा की जरूरत पड़ने लगी जिस पर भरोसा किया जा सके और जिसके मुकाबले वो अपनी मुद्रा या करेंसी की कीमत की तुलना कर सकें। ऐसे में सामने आया ब्रेटेन वुड्स सिस्टम (Bretton Woods System) यानी ब्रेटन वुड्स प्रणाली। आप इसके बारे में यहां और पढ़ सकते हैं। Bretton Woods System.
संक्षेप में कहें तो ब्रेटेन वुड्स प्रणाली या (BWS) दो देशों के बीच के मौद्रिक संबंधों को परिभाषित करने वाली प्रणाली थी। जहां मुद्राओं या करेंसी की कीमत को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले नापने और उनकी कीमत तय करने की व्यवस्था थी जबकि अमेरिकी डॉलर की कीमत सोने के मुकाबले तय की जाती थी। सभी देशों ने इस प्रणाली को मान लिया था और इसमें करेंसी की तय कीमत में 1% तक के हेरफेर या बदलाव की गुंजाइश रखी गई थी। BWS प्रणाली के आने के बाद से अमेरिकी डॉलर दुनिया भर के सौदों के लिए सर्वमान्य करेंसी बन गई क्योंकि अमेरिकी डॉलर की कीमत सोने पर आधारित थी।
धीरे-धीरे विकसित देश इस BWS प्रणाली से दूर जाने लगे और ये प्रणाली इस तरीके से इतिहास बन गया। कई देशों ने बाजार पर आधारित प्रणाली की ओर बढ़ना शुरू किया जहां पर बाजार तय करता है कि एक मुद्रा की कीमत दूसरी मुद्रा के मुकाबले कितनी होगी? बाजार मुद्रा की कीमत इस आधार पर तय करता था कि उस देश की आर्थिक और राजनीतिक स्थिति दूसरे देश के मुकाबले कैसी है?
यही प्रणाली आज काम करती है।
1.3 – अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार (Forex/फॉरेक्स)
दुनिया भर में होने वाली करेंसी ट्रेडिंग की मात्रा (Volume/ वॉल्यूम) इतनी बड़ी है कि उसको समझना और जानना आप को अचंभित कर सकता है। अप्रैल 2013 में बैंक ऑफ इंटरनेशनल सेटेलमेंट (Bank Of International Settlement) यानी BIS ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बाजार में हो रहे सौदों को 5.4 ट्रिलियन डॉलर का बताया । आप इस रिपोर्ट को यहां- link देख सकते हैं। मेरा अनुमान है कि अप्रैल 2016 में यह बाजार 5.8 से 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का था। मतलब एक दिन के कारोबार की यह रकम भारत की कुल सालाना जीडीपी से 20% ज्यादा है।
हर दिन इतनी ट्रेडिंग होने की एक वजह यह भी है कि करेंसी बाजार सूरज के साथ-साथ चलता है। मतलब सूरज सबसे पहले जहां उदय होता है वहां से शुरू होता है और फिर सूरज अस्त होने के बाद जहां अगली जगह सूरज उगता है वहां पर कारोबार होने लगता है। इस तरह से यह बाजार लगातार चलता रहता है। करेंसी या मुद्रा का यह व्यापार दुनिया के हर बड़े बाजार में होता है और इसकी हर सूचना आसानी से एक जगह से दूसरी जगह जाती रहती है।
इसको इस तरह से समझिए, जब भारत में बाजार खुलता है तो उसके पहले ऑस्ट्रेलिया, जापान, हांगकांग और सिंगापुर के बाजार खुल चुके होते हैं। तो हम वहां के कुछ बाजारों के साथ साथ कारोबार करते हैं और जब वो बाजार बंद होते हैं तो भारतीय बाजार पूरी तरीके से खुला हुआ रहता है और उस समय मध्य एशिया के बाजार खुल रहे होते हैं। और कुछ समय बाद, यूरोप के बाजार खुलते हैं। तो इस तरह से भारतीय बाजार दो टाइम जोन के बीच में पड़ता है- दक्षिण एशिया और यूरोपीय बाजारों के बीच में। इसके बाद, अंत में अमेरिकी बाजार खुलता है और फिर से उसके बाद, फिर से जापान का बाजार और दूसरे देशों के बाजार खुलते हैं। इस तरह से यह कारोबार 24 घंटे चलता रहता है। यह बाजार हफ्ते में 6 दिन खुला रहता है।
लेकिन करेंसी यानी मुद्रा बाजार में सबसे ज्यादा कारोबार तब होता है जब अमेरिका, इंग्लैंड, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बाजार खुले होते हैं। सबसे ज्यादा सौदे भी इसी समय होते हैं।
आप यहां पर एक रोचक सवाल आता है। वो लोग कौन हैं जो करेंसी में इतना कारोबार करते हैं और करेंसी यानी मुद्रा का सौदा कैसे होता है?
करेंसी बाजार इक्विटी बाजार की तरह नहीं होता जहां पर सिर्फ इन्वेस्टर और ट्रेडर ही होते हैं। करेंसी बाजार में इन्वेस्टर और ट्रेडर के अलावा कई देशों के सेंट्रल बैंक, बड़ी-बड़ी कंपनियां, बैंक, यात्री और ट्रेडर आदि सौदे कर रहे होते हैं। सौदे करने की सबकी अपनी अपनी वजह होती है। हो सकता है कि एक कंपनी अपनी पोजीशन को हेज (Hedge) करने के लिए अमेरिकी डॉलर खरीद या बेच रही हो और उसी समय एक यात्री अपनी यात्रा के लिए डॉलर खरीद रहा हो। जबकि एक ट्रेडर सिर्फ पैसे कमाने के लिए करेंसी के बाजार में उतरा हो। क्योंकि इतने ज्यादा तरीके के सौदे हो रहे होते हैं इसीलिए मुद्रा बाजार का वॉल्यूम यानी कारोबार काफी ज्यादा बड़ा होता है। साथ ही, मुद्रा या फॉरेक्स बाजार में लेवरेज (leverage) काफी ज्यादा होता है इसलिए इसमें कल्पित वैल्यू (Notional Value) काफी ज्यादा नजर आती है। मुद्रा बाजार के सौदों के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंज या बाजार नहीं है। दुनिया भर के अलग-अलग वित्तीय संस्थानों में जैसे भारत में NSE में इस तरह के सौदे होते हैं और सूचनाएं एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म पर जाती हैं।
1.4 – करेंसी जोड़े (Currency Pairs) और कीमतें (Quotes)
करेंसी या मुद्रा बाजार में सौदा करने के लिए सबसे अहम चीज होती है करेंसी का पेयर यानी जोड़ा बनाना। इस जोड़े की कीमत ऊपर या नीचे होती रहती है। जोड़ों के कुछ उदाहरण है- अमेरिकी डॉलर-भारतीय रुपया (USD-INR) या ग्रेट ब्रिटेन का पाउंड और भारतीय रुपया (GBP – INR) करेंसी के जोड़ों (pairs)के लिए एक फॉर्मूला होता है जो नीचे दिखाया जा रहा है–
बेस करेंसी (Base Currency) / कोटेशन करेंसी (Quotation Currency) = कीमत
यहां तीन हिस्से हैं, आइए इस को समझते हैं-
बेस करेंसी – बेस करेंसी को हमेशा मुद्रा की एक यूनिट के बराबर रखा जाता है। जैसे कि $1 या ₹1 या 1 यूरो
कोटेशन करेंसी -कोटेशन करेंसी कि वह करेंसी है जिसकी कीमत को दूसरी करेंसी के मुकाबले बताया जाता है। यह करेंसी यानी मुद्रा, बेस करेंसी के अलावा कोई भी करेंसी हो सकती है।
कीमत – कीमत वह है जो कि बेस करेंसी के मुकाबले कोटेशन करेंसी की होती है।
इसे एक उदाहरण से समझते हैं, मान लीजिए अमेरिकी डॉलर USD/ भारतीय रुपया INR = 67
यहां पर बेस करेंसी अमेरिकी डॉलर है। मैंने पहले कहा है कि बेस करेंसी की यूनिट हमेशा एक होती है इसलिए यह $1 होगा।
कोटेशन करेंसी भारतीय रुपया है। इसकी कीमत 67 है मतलब बेस करेंसी की एक यूनिट यानी एक डॉलर की कीमत भारतीय मुद्रा में 67 है यानी $1 = 67 INR
दुनिया भर में किन जोड़ों में सबसे ज्यादा सौदे होते हैं और उनकी कीमत 3 जून 2016 को क्या थी, इसे नीचे के चार्ट में देख सकते हैं-
क्रमांक | बेस करेंसी | कोटेशन करेंसी | जोड़ा/Pair | जोड़े की वैल्यू |
---|---|---|---|---|
1 | Euro यूरो | US डॉलर | EUR/USD | 1.11 |
2 | US डॉलर | Japanese Yen जापानी येन | USD/JPY | 108.94 |
3 | Great Britain Pound ग्रेटब्रिटेन पाउंड | US डॉलर | GBP/USD | 1.44 |
4 | ऑस्ट्रेलियन डॉलरAustralian Dollar | US डॉलर | AUD/USD | 0.72 |
5 | UD डॉलर | कनैडियन डॉलर Canadian Dollar | USD/CAD | 1.31 |
6 | US डॉलर | स्विस फ्रैंक Swiss Franc | USD/CHF | 0.99 |
अब अगला बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह जोड़े ऊपर या नीचे क्यों होते हैं, और कौन सी चीज है इन पर प्रभाव डालती है
इस पर हम अगले अध्याय में चर्चा करेंगे।
इस अध्याय की मुख्य बातें
- मुद्रा को सोने के मुकाबले मापने की गोल्ड स्टैंडर्ड प्रणाली काफी लंबे समय तक चली, लेकिन अंत में उसे खत्म कर दिया गया।
- दो मुद्राओं की कीमत में अंतर उन देशों की राजनीतिक और आर्थिक स्थिति की वजह से होती है।
- वॉल्यूम के हिसाब से करेंसी यानी मुद्रा बाजार दुनिया का सबसे बड़ा बाजार माना जाता है।
- करेंसी या मुद्रा बाजार हफ्ते के 6 दिन 24 घंटे खुला रहता है।
- करेंसी को हमेशा जोड़ों में ट्रेड किया जाता है।
- करेंसी के जोड़ों का एक फार्मूला होता है जिसमें बेस करेंसी और कोटेशन करेंसी होती है।
- बेस करेंसी को हमेशा एक यूनिट के तौर पर दिखाया जाता है।
sir aapka dhayawad kaise de ye samajh nhi aa raha leki aapne jo hindi module kiya hain ooshke liye dhanyawad
great sir/madam
Special Thanks : Team Zerodha
आपका धन्यवाद, अपने दोस्तों में भी यह बात फैलाएं। 🙂
Sir, aapko bahut bahut dhanyabad hindi version k liye. Aisi study materials free me milna impossible hai, mai aapka sadaiv aabhari rahunga.mai aap k sabhi hindi materials ko bahut achhe se study kiya hai, ab mijhe bahut profit ho raha hai. Again Thank u sir.
Happy Learning Manjit, ऐसे ही सपोर्ट करते रहें।
lekin is module me chapter 4 translate ya upload nhi ho paya hain
सूचित करने के लिए धन्यवाद, हमने उस अध्याय को अपडेट करदिया है।
Is it legally to trade on forex in india ?
No, not if you are trading it on NSE.
फोरेक्स ट्रेडिंग इंडिया में लीगल है जब बेस करेंसी सिर्फ INR हो।
Sir ng,crude,base matel ko us dollar ki kimat se indian rs me kese convert karte hai uska farmula bataye
आप इस अध्याय को पढ़ें आपको समझ आजायेगा।