13.1 डेट निवेश से जुड़े शब्दजाल/डेट निवेश की वृत्तिभाषा 

लॉकडाउन के दौरान कई लोग कुछ-कुछ नया सीख रहे हैं और वार्सिटी पर आने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ गई है। गुगल एनालिटिक्स से ये स्क्रीनशॉट आपके लिए इसके साथ ही लोगों के सवालों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। हम हर दिन कुछ घंटे निकाल कर सवालों के जवाब देते हैं।

तो अगर आपको ऐसा लगे कि नया अध्याय आने में वक्त लग रहा है तो समझ जाइएगा कि काम ज्यादा होने की वजह से ऐसा हो रहा है। 

 

पिछले अध्याय में हमने मकॉले ड्यूरेशन की बात की थी। मकॉले ड्यूरेशन निकालने से हमें ये पता चलता है कि बॉन्ड से होने वाले कैशफ्लो को देखते हुए, बॉन्डहोल्डर को निवेश का पैसा कितने समय़ में वापस मिलेगा। हमने हालांकि मकॉले ड्यूरेशन के पीछे की गणित के बारे में बात नहीं की थी, लेकिन मैंने ये ज़रूर कहा था कि अगला मॉड्यूल फिक्स्ड इनकम सिक्योरिटी (मिनी सीरीज) पर होगा जहां इस पर विस्तार से बात होगी। 

चलिए अभी आगे बढ़ते हैं। कुछ बॉन्ड से जुड़े रिश्ते आपको जानने की ज़रूरत है। 

  • बॉन्ड की यील्ड और बॉन्ड की कीमत व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) हैं। बॉन्ड की कीमत बढ़ती है, तो बॉन्ड की यील्ड कम होती है। बॉन्ड की कीमत घटती है तो यील्ड में बढ़ोतरी होती है। 
  • ब्याज दर और बॉन्ड की कीमत व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) हैं। ब्याज दर में बढ़ोतरी से बॉन्ड की कीमत घटती है, और ब्याज दर में कटौती से बॉन्ड की कीमत बढ़ती है। 

यहां पर मैं आपको एक नया टर्म बताता हूं – बॉन्ड का ‘मॉडिफायड ड्यूरेशन’। बॉन्ड का मॉडिफायड ड्यूरेशन इशारा करता है इंटरेस्ट रेट सेंसिटिविटी की तरफ। सरल शब्दों में कहें तो   इंटरेस्ट रेट यानी ब्याज दर के बदलाव का असर कैसे पड़ेगा बॉन्ड की कीमत पर – इसी को बताता है मॉडिफायड ड्यूरेशन। तो अगर मान लें कि किसी बॉन्ड का मॉडिफायड ड्यूरेशन 3.2 साल है तो

  • ब्याज दर में 1 परसेंट की बढ़ोतरी से बॉन्ड की कीमत 3.2 परसेंट गिरेगी। ब्याज दर में 1.5 परसेंट की बढ़ोतरी से बॉन्ड की कीमत में 4.8 परसेंट की गिरावट होगी। 
  • ब्याज दर में 1 परसेंट की गिरावट से बॉन्ड की कीमत 3.2 परसेंट ऊपर जाएगी। ब्याज दर में 1.5 परसेंट की गिरावट से बॉन्ड की कीमत में 4.8 परसेंट की बढ़ोतरी होगी। 

हम कह सकते हैं कि ज्यादा ड्यूरेशन वाले फंड, इंट्रेस्ट रेट यानि ब्याज दर में बदलाव को लेकर ज्यादा सेंसिटिव होते हैं। मतलब ये कि ब्याज दर में 1 परसेंट का बदलाव से लंबे ड्यूरेशन वाले फंड की कीमत ज्यादा गिरावट देखने को मिलेगी और छोटे ड्यूरेशन वाले फंड की कीमत में कम।  

डेट म्यूचुअल फंड में मॉडिफायड ड्यूरेशन पूरे पोर्टफोलियो के लेवल पर देखते हैं। ऊपर के उदाहरण को देखें तो ब्याज दर में 1.5 परसेंट की बढ़ोतरी से डेट फंड के NAV में 4.8 परसेंट की गिरावट हो सकती है। उम्मीद करता हूं कि आपको ये समझ में आ गया होगा। 

अगर अभी तक कही गई बातें आपको समझ आ गई है या पता है तो फिर ठीक है। इनके साथ ही आपको कुछ और बातें भी ध्यान में रखनी चाहिए। 

  • क्रेडिट रिस्क – रिस्क कि डेट फंड के पोर्टफोलियो में जो बॉन्ड है उनकी रेटिंग डाउनग्रेड हो सकती है
  • डिफॉल्ट रिस्क-  रिस्क कि बॉन्ड इश्यू करने वाली कंपनी कूपन पेमेंट या प्रिंसिपल पेमेंट ना दे (जिसे हम बोल चाल की भाषा में कहते हैं – कंपनी डिफॉल्ट कर दे)

और इसके अलावा आपको पता ही है कि बॉन्ड के साथ इंट्रेस्ट रेट रिस्क तो है ही, लेकिन इस वक्त ये मान लें कि फंड मैनेजर इंट्रेस्ट रेट रिस्क को हेज कर सकता है। 

खैर, अभी हम वापस चलते हैं डेट फंड कैटेगरी के अलग-अलग डेट फंड की तरफ। शुरूआत करते हैं लो ड्यूरेशन, मनी मार्केट और शॉर्ट ड्यूरेशन फंड से।

13.2 – लो ड्यूरेशन और मनी मार्केट

पिछले अध्याय में हमने अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन बॉन्ड फंड के बारे में जाना था। अल्ट्रा शॉर्ड ड्यूरेशन फंड को  पोर्टफोलियो के मकॉले ड्यूरेशन के आधार पर पहचान सकते हैं। सेबी क्लासिफिकेशन या वर्गीकरण के मुताबिक पोर्टफोलियो लेवल पर अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड का मकॉले ड्यूरेशन 3-6 महीने के बीच होना चाहिए। 

अब आता है लो ड्यूरेशन फंड। लो ड्यूरेशन फंड भी कमोबेश अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड की तरह ही है बस फर्क इतना है कि लो ड्यूरेशन फंड का मकॉले ड्यूरेशन 6-12 महीने तक होता है।  

लो ड्यूरेशन फंड में क्रेडिट रिस्क, अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड के समान ही होता है। इसलिए निवेश के लिए ज़रूरी है कि फंड की एसेट क्वालिटी, मतलब जिस इंस्ट्रूमेंट में निवेश किया गया है, उसकी रेटिंग/क्वालिटी देख लिया करें

एक नजर डालते हैं IDFC AMC के लो ड्यूरेशन फंड के पोर्टफोलियो पर-

जैसा कि आप देख सकते हैं कि IDFC ने पोर्टफोलियो में 100 परसेंट निवेश अलग-अलग AAA पेपर में किया है। लेकिन ये नहीं कह सकते हैं कि क्योंकि पूरा निवेश AAA  पेपर में है तो फंड में क्रेडिट रिस्क नहीं है। याद है, हमने पिछले अध्याय में वोडाफोन केस के बारे में बात की थी। तो क्रेडिट रिस्क तो है लेकिन लो ड्यूरेशन फंड में इंट्रेस्ट रेट रिस्क कम होता है। नजर डालिए IDFC के लो ड्यूरेशन फंड के मॉडिफायड ड्यूरेशन पर (फंड की फैक्टशीट में ये छपा था)

मॉडिफायड ड्यूरेशन है 289 दिन। इसे साल में बदलने के लिए 360 से विभाजित करेंगे तो-

= 289/360

= 0.802

इसका मतलब ये है कि ब्याज दर में हर 1 परसेंट गिरावट या बढ़ोतरी से NAV 0.802% बढ़ेगी या घटेगी, जो बहुत ज्यादा नहीं है। 

वैसे सभी फंड मॉडिफायड ड्यूरेशन को दिन में नहीं दिखाते हैं। मॉडिफायड ड्यूरेशन साल में बताया जाता है। 

उदाहरण के तौर पर, निप्पॉन इंडिया लो ड्यूरेशन फंड अपना मॉडिफायड ड्यूरेशन साल में बताता है  जो कि है 0.94 साल। 

तो अगर फंड ने मॉडिफायड ड्यूरेशन साल में दिखाया है तो उसे 360 से विभाजित करने की ज़रूरत नहीं है। 

क्योंकि बात हो ही रही है तो ये बताएं कि इन दोनों लो ड्यूरेशन फंड में मॉडिफायड ड्यूरेशन के लिहाज से ज्यादा रिस्की कौन सा है? 0.802 के साथ IDFC का लो ड्यूरेशन फंड या फिर 0.94 मॉडिफायड ड्यूरेशन वाला निप्पॉन का लो ड्यूरेशन फंड?  

चलिए आपको एक काम देते हैं- निप्पॉन के लो ड्यूरेशन फंड के पोर्टफोलियो (अप्रैल 2020) को देखें और पता करें कि मॉडिफायड ड्यूरेशन ज्यादा क्यों है?

अगर आसानी से जवाब दे पाते हैं आप तो आप सही दिशा में जा रहे हैं। 

तो किसे लो ड्यूरेशन फंड में निवेश करना चाहिए? अगर आपके पास कुछ पैसे हैं जिसे आगे किसी वित्तीय लक्ष्य के लिए इस्तेमाल करना है और आप उस पैसे को छोटे वक्त के लिए पैसे कहीं रखना चाहते हैं तो वो लोग लो ड्यूरेशन फंड में निवेश कर सकते हैं। 

अब बारी है मनी मार्केट फंड की!

मनी मार्केट फंड भी कुछ हद तक लो ड्यूरेशन फंड की तरह ही है। सेबी के हिसाब से मनी मार्केट फंड के ये फीचर हैं

जैसा कि आप देख सकते हैं कि लो ड्यूरेशन फंड की तरही यहां भी मैच्योरिटी 1 साल तक के लिए रखी गई है लेकिन फर्क है पोर्टफोलियो के इंस्ट्रूमेंट्स का। 

लो ड्यूरेशन फंड मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स और बॉन्ड दोनों में निवेश कर सकता है लेकिन ये सुनिश्चित करना होता है कि पोर्टफोलियो का मकॉले ड्यूरेशन 6-12 महीने के बीच रहे। मनी मार्केट फंड सिर्फ मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट में निवेश कर सकता है। मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स में शामिल है-

  • कंपनियों द्वारा जारी किए गए कमर्शियल पेपर – Commercial Paper या CP।  ये Unsecured – यानी असुरक्षित होते हैं। 
  • सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट्स – Certificate of Deposits जिसे बोलचाल की भाषा में CDs कहते हैं.  CDs बैंक इश्यू करते हैं 
  • सरकार द्वारा जारी किए गए T-Bills

तो लो ड्यूरेशन का फंड मैनेजर CPs, CDs और 2 साल की मैच्योरिटी वाले बॉन्ड में भी निवेश कर सकता है, लेकिन मनी मार्केट का फंड मैनेजर सिर्फ CDs और CPs में निवेश कर सकता है। 

अब मैं आपसे 2 सवाल पूछता हूं–

  • मनी मार्केट फंड में निवेश करने पर रिस्क क्या है?
  • मनी मार्केट फंड में मॉडिफायड ड्यूरेशन क्या होगा? क्या ये 1 होगा या उससे कम या ज्यादा? 

कुछ वक्त इस पर सोचें और जवाब देने की कोशिश करें। 

UTI के मनी मार्केट फंड की फैक्टशीट पर एक नज़र डालते हैं-

आपको दोनों सवाल के जवाब यहां मिल जाएंगे। 

मनी मार्केट फंड में क्रेडिट रिस्क होने की संभावना है। जैसा कि आप देख कते हैं कि पोर्टफोलियो का 9.39% हिस्सा एक ही कंपनी के CP या CD  में निवेशित है। हालांकि कंपनी की रेटिंग बढ़िया है लेकिन आपको याद होना चाहिए कि रेटिंग कभी भी बदल सकती है। तो ये तय है कि मनी मार्केट फंड में क्रेडिट रिस्क होता है। 

जैसी कि आपने पता लगा लिया होगा कि मनी मार्केट फंड में मॉडिफायड ड्यूरेशन 1 साल से कम है, तो इसका मतलब ये हुआ कि इसमें इंट्रेस्ट रेट रिस्क लो यानी कम है। निवेश की फिलॉसफी लो ड्यूरेशन फंड और मनी मार्केट फंड बहुत हद तक समान है। 

13.3 – शॉर्ट डूयूरेशन फंड और मीडियम ड्यूरेशन फंड 

चलिए सबसे पलले शॉर्ट ड्यूरेशन फंड की सेबी की परिभाषा पर नजर डालते हैं-

शॉर्ट ड्यूरेशन फंड का मकॉले ड्यूरेशन 1-3 साल होना ज़रूरी है। आप ये बताएं कि सेबी की परिभाषा पढ़ने के बाद आपके ज़हन में सबसे पहले क्या बात आई? 

मैं ये उम्मीद करता हूं कि पहली बात रिस्क के बारे में आई होगी। क्योंकि ड्यूरेशन यहां बढ़ गया है तो मॉडिफायड ड्यूरेशन भी बढ़ गया है – मतलब ये कि इंट्रेस्ट रेट यानी ब्याज दर से जुड़ा रिस्क शॉर्ट ड्यूरेशन फंड ( और मीडियम ड्यूरेशन फंड) में ज्यादा है। 

और क्रेडिट रिस्क शॉर्ट ड्यूरेशन फंड में भी होता है। नज़र डालिए Mirae Asset Short Term Fund के रेटिंग प्रोफाइल पर- 

जैसा कि आप देख सकते हैं कि फंड के पोर्टफोलियो में AAA, AA और A1+  का मिश्रण है। इसी फंड का मॉडिफायड ड्यूरेशन देख लें-

यहां पर मॉडिफायड ड्यूरेशन 2.67 साल है, मतलब ये कि ब्याज दर में हर 1 परसेंट बढ़ोतरी पर फंड की NAV 2.67% गिरेगी। तो अभी तक हमने जितने भी डेट फंड की बात की है उसमें शॉर्ट टर्म फंड में इंट्रेस्ट रेट रिस्क सबसे ज्यादा है। 

यहां ये भी ध्यान दें कि सेबी की परिभाषा के अनुसार, फंड का मकॉले ड्यूरेशन 3 साल से कम है।  

तो यहां जिस तरह का रिस्क है उसे देखते हुए आपको इनमें निवेश करते वक्त निवेश का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। इस फंड में निवेश तभी करें जब आपके निवेश की अवधि कम से कम 3 साल हो। अब क्योंकि रिस्क ज्यादा है तो रिटर्न की उम्मीद भी ज्यादा होगी। मुझे लगता है शॉर्ट ड्यूरेशन फंड से 7 परसेंट के आस-पास के रिटर्न की उम्मीद की जा सकती है। 

मुझे लगता है कि अब तक आपको डेट फंड की बेसिक या मूलभूत जानकारी मिल गई होगी। अब देखिए सेबी के वर्गीकरण के हिसाब से मीडियम ड्यूरेशन की परिभाषा- 

आपको एक टास्क देता हूं। क्यों ना आप एक मीडियम ड्यूरेशन फंड का फैक्टशीट देखें और इन सवालों के जवाब दें। 

  • पोर्टफोलियो का संघटन कैसा है? पोर्टफोलियो में क्या-क्या इंस्ट्रूमेंट है? पोर्टपोलियो के पेपर की रेटिंग कैसी है? 
  • क्या इसमें क्रेडिट रिस्क है?
  • मकॉले ड्यूरेशन क्या है? क्या ये सेबी के आदेश/अधिदेश के मुताबिक है? 
  • यहां मॉडिफायड ड्यूरेशन क्या है और इंट्रेस्ट रेट रिस्क कितना है?
  • अगर मीडियम ड्यूरेशन फंड में निवेश करना हो तो समय अवधि कितनी होनी चाहिए?

मुझे पता है कि आप इन सवालों के जवाब आसानी से दे देंगे। अगर जवाब ढूंढ़ने में कोई दिक्कत होती है तो अध्याय के अंत में कमेंट करें। मैं पूरी कोशिश करूंगा जवाब देने की। 

13.4-  फ्रैंकलीन इंडिया डेट फंड की कहानी 

23 अप्रैल 2020 को फ्रैंकलीन टेम्पल्टन (इंडिया) फंड हाउस ने एक घोषणा की जिससे डेट मार्केट हिल गया।

फ्रैंकलीन ने एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए अपने 6 डेट फंड्स बंद कर दिए जिसमें उनका लो ड्यूरेशन फंड और अल्ट्रा शॉर्ट ड्यूरेशन फंड भी शामिल थे। इन 6 डेट फंड का AUM  27,000 करोड़ है। 

फंड हाउस ने कहा कि अर्थव्यवस्था की जो हालत है उसकी वजह से रिडेम्पशन बहुत ज्यादा आने लगा जिससे लिक्विडिटी की संकट हो गई। 

आपको बता दें कि मार्च 2020 में फ्रैंकलीन ने 9000 करोड़ का रिडेम्पशन देखा था जोकि कुल AUM का एक तिहाई था। 

अफसोस की बात है कि भारत में सेकेंडरी बॉन्ड मार्केट में लिक्विडिटी बहुत ज्यादा नहीं होती। मतलब बॉन्ड के खरीदार-विक्रेता बहुत नहीं होते। फंड मैनेजर के लिए पोर्टफोलियो के बॉन्ड जल्दी बेचना मुश्किल होता है। इसी वजह से ज्यादातर बॉन्ड मैच्योकिटी तक रखे जाते हैं। हालांकि फंड हाउस अपने पास पर्याप्त कैश रखने की प्लानिंग करते हैं ताकि हर दिन आने वाले रिडेम्पशन रिक्वेस्ट को पूरा कर सके।  ये कई तरीकों से किया जाता है, जिसमें एक तकनीक है लैडरिंग (Laddering), जिसके तहत उनके पास कई अलग-अलग मैच्योरिटी वाले पेपर होते हैं। इस तरह का लिक्विडिटी प्लानिंग उस वक्त तो काम करता है जब सब ठीक चल रहा हो, लोकिन जब हालात बिगड़ते हैं तो क्या होता है, ये हमने फ्रैंकलीन वाले केस में देखा। 

कोई भी फंड हाउस इस तरह के भारी-भरकम रिडेम्पशन के लिए तैयार नहीं होता। तो हालात सुधारने के लिए फ्रैंकलीन ने तय किया 6 स्कीम बंद कर दिए जाए, मतलब इन फंड्स में जिसने भी निवेश किया है वो अपने पैसे निकाल नहीं सकता। 

यहां पर नोट करें कि फंड हाउस ने क्रेडिट या इंट्रेस्ट रेट रिस्क की वजह से स्कीम बंद नहीं की। इसलिए जब भी डेट फंड में निवेश करते हैं तो क्रेडिट रिस्क और इंट्रेस्ट रेट रिस्क के साथ साथ एक और रिस्क को ध्यान में रखें – वो है – लिक्विडिटी रिस्क। 

यहां पर सवाल ये उठता है कि आप लिक्विडिटी रिस्क को असल ज़िंदगी में कैसे आंकेंगे? अभी इसका जवाब मेरे पास नहीं है लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं है कि आप डेट फंड में एकदम ही निवेश ना करें। डेट फंड एसेट अलोकेशन में अहम भूमिका निभाता है। कोविड 19 के दौर ने कुछ नहीं तो कम से कम हमें एसेट अलोकेशन कि महत्ता ज़रूर याद दिला दी है।  

इस अध्याय में फिलहाल इतना ही। 

इस अध्याय की महत्वपूर्ण बातें

  • बॉन्ड की यील्ड और बॉन्ड की कीमत व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) हैं।
  • ब्याज दर और बॉन्ड की कीमत व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) हैं।
  • मॉडिफायड ड्यूरेशन यह बताता है कि इंटरेस्ट रेट यानी ब्याज दर में हर 1 परसेंट बदलाव का असर,फंड की NAV पर कैसे पड़ेगा।
  • लो ड्यूरेशन फंड में क्रेडिट रिस्क है, लेकिन इंट्रेस्ट रेट रिस्क कम है।
  • मनी मार्केट फंड में क्रेडिट रिस्क है, लेकिन इंट्रेस्ट रेट रिस्क कम है।
  • शॉर्ट और मीडियम ड्यूरेशन फंड में क्रेडिट रिस्क भी है और इंट्रेस्ट रेट रिस्क भी।
  • डेट फंड निवेशकों को क्रेडिट रिस्क और इंट्रेस्ट रेट रिस्क के साथ-साख लिक्विडिटी रिस्क को भी ध्यान में रखना चाहिए।



1 comment

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  1. Aman kaushik says:

    Nippon low duration fund की अप्रैल 2020 की मॉडिफाइड duration 0.82 year थी

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