2.1 – रिस्क को समझने की शुरूआत

जब बाजार में एक ट्रेडर पैसे कमाता है तो दूसरा ट्रेडर पैसे गँवा रहा होता है। इसी को दूसरे तरीके से देखें तो, ट्रेडर्स का एक समूह अगर पैसे बनाता है तो ट्रेडर का एक दूसरा समूह जरूर पैसे गँवाता है। आमतौर पर देखा जाए तो लगातार पैसे कमाने वालों की संख्या कम होती है, उन लोगों के मुकाबले जो लगातार पैसे गँवा रहे होते हैं।

इन दोनों समूहों के बीच में जो अंतर होता है, वो है – रिस्क को ले कर उनकी समझ और उनका मनी मैनेजमेंट।  मार्क डगलस ने अपनी किताब द डिसिप्लिन्ड ट्रेडर (The Disciplined Trader )में कहा है कि सफल ट्रेडिंग के पीछे 80% मनी मैनेजमेंट है और 20% स्ट्रैटेजी होती है। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं। 

मनी मैनेजमेंट और इससे जुड़े हुए दूसरे विषय ज्यादातर रिस्क को पहचानने से ही जुड़े होते हैं। इसीलिए इस जगह रिस्क और इसके अलग-अलग प्रकार को समझना बहुत ही ज्यादा जरूरी हो जाता है। इसके लिए पहले रिस्क को अलगअलग मुख्य हिस्सों में बांटते हैं और फिर उनको समझते हैं। 

आम भाषा में कहें तो शेयर बाजार में रिस्क का मतलब है पैसे गँवाने की संभावना। जब आप बाजार में सौदा करते हैं तो आप एक रिस्क ले रहे होते हैं और हो सकता है कि आपके पैसे डूब जाएं।  उदाहरण के तौर पर जब आप किसी कंपनी का शेयर खरीदते हैं, तो आप चाहें या ना चाहें, आपने रिस्क ले लिया है। मोटे तौर पर देखें तो शेयर बाजार में रिस्क दो प्रकार होते हैं – सिस्टमैटिक रिस्क (Systematic Risk) और अनसिस्टमैटिक रिस्क (Unsystematic Risk) । जब आप कोई स्टॉक खरीदते हैं तो आप इन दोनों तरीके का रिस्क ले रहे होते हैं।

जरा सोचिए, आपके पैसे क्यों डूबते हैं? वो कौन सी चीजें हैं जो शेयर की कीमत को नीचे खींचती हैँ? आप इसके बहुत सारे कारण सोच सकते हैं, लेकिन मैं उनमें से कुछ को नीचे की लिस्ट में डाल रहा हूं – 

  1. बिजनेस का भविष्य खराब होनाDeteriorating business prospects
  2. बिजनेस की कमाई घटनाDeclining business margins
  3. मैनेजमेंट की गलतियांManagement misconduct
  4. कंपीटीशन यानी प्रतियोगिता की वजह से कमाई घटनाCompetition eating margins

यह सब अलग-अलग तरीके से रिस्क को दिखाते हैं। इसी तरीके के कई और रिस्क भी हो सकते हैं। लेकिन अगर आप ध्यान से देखें तो आपको समझ में आएगा कि यह सारे रिस्क एक कंपनी से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के तौर पर अगर आप के पास 100,000 की पूंजी है और आपने उसे HCL टेक्नोलॉजी लिमिटेड में लगाने का फैसला किया। कुछ महीने बाद HCL ने कहा कि उनकी आमदनी में कमी हुई है। तय है कि इस वजह से HCL के शेयर कीमतों में गिरावट आएगी और इसका मतलब है कि आपने जो निवेश किया है उसमें से कुछ पैसे आप गँवा देंगे। लेकिन इस खबर की वजह से HCL के कंपीटीशन में चलने वाली कंपनियां (जैसे माइंडट्री या विप्रो) के शेयर कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसी तरीके से अगर HCL का मैनेजमेंट किसी गलत काम में फंसता है तो भी सिर्फ HCL के स्टॉक की कीमत नीचे जाएगी लेकिन उसकी प्रतियोगी कंपनियों के स्टॉक पर कोई असर नहीं पड़ेगा। साफ है कि इस तरह के रिस्क कंपनी से जुड़े हुए होते हैं और उसकी प्रतियोगी कंपनियों पर असर नहीं डालते हैं।

इसको जरा विस्तार से समझते हैं – मुझे नहीं पता कि 7 जनवरी 2009 की सुबह जब सत्यम घोटाला सामने आया तो आप में से कितने लोग बाजार में ट्रेडिंग कर रहे थे, लेकिन मैं उस दिन ट्रेड कर रहा था और मुझे वह दिन अच्छे से याद है। सत्यम कंप्यूटर्स लिमिटेड अपने खातों में गड़बड़ी कर रहा था, आंकड़े बढ़ा चढ़ा कर दिखा रहा था, पैसों की हेरा फेरी कर रहा था और अपने निवेशकों के साथ धोखा कर रहा था। जो आंकड़े दिखाए जाते थे वो असली आंकड़ों से काफी अधिक होते थे, बहुत सारे इन्टर्नल पार्टी ट्रांजैक्शन यानी अंदरूनी सौदे होते थे। इन सबकी वजह से शेयर की कीमत ऊपर दिखाई देती थी। घोटाला तब सामने आया जब कंपनी के चेयरमैन रामालिंगा राजू ने एक पत्र लिखकर निवेशकों, ग्राहकों, कंपनी के कर्मचारियों और एक्सचेंज के सामने इस वित्तीय घोटाले का खुलासा किया। रामलिंगा राजू की इस बात के लिए तो सराहना की जानी चाहिए कि उसने इतना साहस दिखाया और इतने बड़े अपराध का गुनाह कबूल किया जबकि उसे पता था कि गुनाह कबूल करने पर उसके साथ क्या होगा। 

मुझे याद है कि मैंने इसको TV पर देखा तो मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ उदयन मुखर्जी ने इस पत्र को दर्शकों के सामने लाइव पढ़ा और शेयर की कीमत धड़ाम से नीचे गिरी। मेरे लिए शेयर बाजार में यह सबसे ज्यादा दिल दहलाने वाली घटनाओं में से एक थी। इस वीडियो को देखिए – 

https://youtu.be/K8jUkKmm-cg  

मैं चाहता हूं कि इस वीडियो में आप निम्न चीजों पर ध्यान दें –

  1. शेयर की कीमत गिरने की रफ्तार पर ध्यान दें। (कीमत गिरते हुए शायद 7 या 8 तक पहुंच गई थी) 
  2. नीचे चलने वाले टिकर पर ध्यान दीजिए आपको दिखेगा कि बाकी किसी भी कंपनी के शेयर पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा था। 
  3. ध्यान दीजिए कि दोनों इंडेक्स यानी सेंसेक्स और निफ्टी में भी इतनी गिरावट नहीं आ रही थी जितना सत्यम गिरा था। 

मैं यहां सिर्फ यह बताने की कोशिश कर रहा हूं कि स्टॉक की कीमत में कंपनी के अंदर की वजह से गिरावट आई है। इसमें बाहर की कोई वजह नहीं थी। कहने का मतलब यह है कि शेयर की कीमत में गिरावट सिर्फ कंपनी के अंदर हो रही कुछ घटनाओं की वजह से हुई थी। जब इस तरह की किसी घटना की वजह यानी कंपनी से जुड़ी किसी खास वजह के कारण आप नुकसान उठाते हैं तो इस को अनसिस्टमैटिक रिस्क – unsystematic Risk कहते हैं।

अनसिस्टमैटिक रिस्क से बचने के लिए डायवर्सिफाई (diversify) किया जा सकता है। मतलब एक कंपनी में सारे पैसे लगाने के बजाय आप इसको दो तीन अलग-अलग कंपनियों में या अलग-अलग सेक्टर की कंपनियों में भी लगा सकते हैं। इसे डायवर्सिफिकेशन (Diversification) कहा जाता है। जब आप अपने निवेश को डायवर्सिफाई करते हैं तो अनसिस्टमैटिक रिस्क काफी कम हो जाता है। अगर ऊपर के उदाहरण से देखें तो HCL में सारा पैसा लगाने के बजाय अगर आप आधे हिस्से यानी 50,000 से HCL और बाकी 50,000 कर्नाटक बैंक लिमिटेड में लगाते तो ऐसी स्थिति में अगर HCL के स्टॉक की कीमत गिर भी जाती तो भी आपके सिर्फ आधे निवेश पर ही असर पड़ता और आधा निवेश सुरक्षित रहता क्योंकि वह हिस्सा दूसरी कंपनी में निवेशित है। वास्तव में अगर दो स्टॉक की जगह आप 5 या 10 स्टॉक लें या फिर 20 स्टॉक का पोर्टफोलियो बनाएं तो आपका डायवर्सिफिकेशन ज्यादा अच्छा होगा। आपके पोर्टफोलियो में जितने स्टॉक होंगे उतना ही ज्यादा डायवर्सिफिकेशन होगा और अनसिस्टमैटिक रिस्क उतना ही कम होगा। 

इससे एक बहुत महत्वपूर्ण सवाल उठता है – एक अच्छे पोर्टफोलियो में कितने स्टॉक रखने चाहिए जिससे कि अनसिस्टमैटिक रिस्क पूरी तरीके से डायवर्सिफाई हो जाए। रिसर्च से पता चलता है कि अगर आप अपने पोर्टफोलियो 21 स्टॉक तक रखें तो आपके लिए डायवर्सिफिकेशन सबसे अच्छा होता है। अगर आपने 21 स्टॉक से ज्यादा रखे हैं तो उससे डायवर्सिफिकेशन का कोई ज्यादा फायदा नहीं होता। नीचे के ग्राफ से आपसे आपको पता चलेगा कि डायवर्सिफिकेशन किस तरह से काम करता है।

 

जैसा कि आप ग्राफ में देख सकते हैं कि जब आप डायवर्सिफाई करते हैं और ज्यादा स्टॉक जोड़ते हैं तो अनसिस्टमैटिक रिस्क काफी तेजी से कम हो जाता है। लेकिन 20 स्टॉक जोड़ने के बाद अनसिस्टमैटिक रिस्क कम नहीं होता चाहे आप जितना भी डायवर्सिफाई करते रहें। आप ग्राफ में भी देख सकते हैं कि 20 स्टॉक के बाद ग्राफ की लाइन सीधी हो जाती है। लेकिन वास्तव में डायवर्सिफिकेशन के बाद भी एक रिस्क बना रहता है जिसको सिस्टमैटिक रिस्क – Systematic Risk कहते हैं। 

सिस्टमैटिक रिस्क वो है जो बाजार के सभी स्टॉक यानी शेयरों पर असर डालता है। सिस्टमैटिक रिस्क बाजार पर सामूहिक तौर पर असर डालने वाली चीजों से निकलता है जैसे राजनीतिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, भौगोलिक स्थिरता, मौद्रिक स्थिति आदि। कुछ ऐसे सिस्टमैटिक रिस्क जो स्टॉक की कीमतों को नीचे खींच सकते हैं – 

  1. जीडीपी में गिरावट De-growth in GDP
  2. ब्याज दरों में कमी Interest rate tightening
  3. मुद्रास्फीति या महंगाईInflation
  4. फिस्कल डेफिसिट या मौद्रिक घाटाFiscal deficit
  5. भू राजनीतिक रिस्क Geopolitical risk

यह लिस्ट और भी लंबी हो सकती है लेकिन मुझे लगता है कि इससे आपको यह समझ में आ गया होगा कि कौन सी चीजें सिस्टमैटिक रिस्क में आती हैं। सिस्टमैटिक रिस्क सभी स्टॉक पर असर डालता है। अगर आपके पास 20 स्टॉक का एक पोर्टफोलियो है तो GDP में गिरावट इन सभी पर असर डालेगी और सभी स्टॉक की कीमत नीचे जाएंगी। सिस्टमैटिक रिस्क सिस्टम में होता है इसलिए डायवर्सिफिकेशन से उससे नहीं बचा जा सकता है। लेकिन सिस्टमैटिक रिस्क से बचने का एक रास्ता है – हेज (Hedge) करना। हेजिंग (Hedging) का इस्तेमाल करके आप सिस्टमैटिक रिस्क से बच सकते हैं। आप हेजिंग को एक छतरी की तरह मान सकते हैं जिसे आप अपने पास तब रखते हैं जब आसमान में बादल लगे हों और जैसे ही बारिश होने लगे आप अपनी छतरी तान लेते हैं और अपने को भीगने से बचा लेते हैं।

तो जब हम हेजिंग के बारे में बात करते हैं तो याद रखिए कि यह डायवर्सिफिकेशन जैसा नहीं है, इसका असर अलग होता है। कई बार, बाजार में लोग डायवर्सिफिकेशन और हेजिंग को एक ही मान लेते हैं। याद रखिए कि हम अनसिस्टमैटिक रिस्क से बचने के लिए डायवर्सिफिकेशन करते हैं और सिस्टमैटिक रिस्क को कम करने के लिए हेज करते हैं। ध्यान दीजिए कि यहां पर मैं यह कह रहा हूं कि – रिस्क को कम करने के लिए, मैं यह नहीं कह रहा हूं कि – रिस्क को खत्म करने के लिए। बाजार में जुड़ा हुआ कोई भी निवेश कभी भी पूरी तरीके से सुरक्षित नहीं माना जाना चाहिए। 

2.2 – एक्सपेक्टेड रिटर्न (अनुमानित रिटर्न, यानी ये पता करना कि निवेश से कितनी कमाई होगी) 

हम रिस्क पर और आगे बात करें उसके पहले मैं एक और सिद्धांत आप को समझाना चाहता हूं- इसे एक्सपेक्टेड रिटर्न कहा जाता है। हर व्यक्ति अपने निवेश पर कमाई करना चाहता है। एक्सपेक्टेड रिटर्न वह रिटर्न है जिसकी आप इस निवेश से उम्मीद करते हैं। अगर आपने अपनी इंफोसिस में निवेश किया है और उससे 20% की कमाई की उम्मीद कर रहे हैं तो आपका एक्सपेक्टेड रिटर्न हुआ 20%।

फाइनेंस की दुनिया में एक्सपेक्टेड रिटर्न की एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। हर तरीके की गणना में इस आंकड़े का इस्तेमाल किया जाता है चाहे वह पोर्टफोलियो में सुधार की बात हो या फिर आपके इक्विटी कर्व का एस्टीमेट (अनुमान) हो। अगर आपने एक ऐसा एक्सपेक्टेड रिटर्न चुना है जिसके पूरे होने की संभावना ज्यादा है तो आपके निवेश का मैनेजमेंट आसान हो जाता है। इस विषय पर हम आगे विस्तार से बात करेंगे लेकिन अभी हम बेसिक समझने की कोशिश करते हैं।

ऊपर हमने जो उदाहरण लिया था, उसी के साथ आगे बढ़ते हैं – अगर आपने इंफोसिस में 1 साल के लिए 50,000 का निवेश किया है और आप उम्मीद कर रहे हैं कि आपको 20% का रिटर्न मिलेगा, तो आपका एक्सपेक्टेड रिटर्न हुआ 20%। अगर आपने इंफोसिस में सिर्फ 25000 ही निवेश किए होते और आपको 20% कमाई की उम्मीद होती और बाकी 25000 आपने रिलायंस इंडस्ट्रीज में निवेश किए होते और आपको वहां पर एक्सपेक्टेड रिटर्न 15% होता तो कुल मिलाकर आपका एक्सपेक्टेड रिटर्न कितना हुआ 20% या 15% या कुछ और? 

आपने अनुमान लगा ही लिया होगा कि यहां पर एक्सपेक्टेड रिटर्न ना तो 20% होगा ना ही 15%। क्योंकि हमने दो अलग-अलग स्टॉक में निवेश किया है, इसलिए अब हमारा एक पोर्टफोलियो बन चुका है और इसलिए इस मामले में एक्सपेक्टेड रिटर्न पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न होगा और किसी एक स्टॉक या ऐसेट का नहीं। पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न निकालने के लिए इस फार्मूले का इस्तेमाल किया जाता है 

E(RP) = W1R1 + W2R2 + W3R3 + ———– + WnRn

यहां,

E(RP) = पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न

W = निवेश का वजन (weight)

R = अलग अलग ऐसेट का एक्सपेक्टेड रिटर्न

ऊपर के उदाहरण में हमने दो अलग-अलग स्टॉक में 25000 निवेश किया है इसलिए यहां पर हमारा वजन (weight) दोनों पर 50-50% है। हमारा एक्सपेक्टेड रिटर्न है एक पर 20% और दूसरे पर 15% इसलिए

E(RP) = 50% * 20% + 50% * 15%

= 10% + 7.5%

= 17.5%

हमने यहां इस फॉर्मूले का इस्तेमाल दो स्टॉक के लिए किया है, लेकिन आप इसका इस्तेमाल कितने भी निवेश के लिए कर सकते हैं। अलग-अलग ऐसेट के लिए भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। यह काफी सीधा-साधा है और मुझे उम्मीद है कि इसको समझने में आपको परेशानी नहीं हुई होगी। जो बात आपको याद रखनी चाहिए वह यह है कि एक्सपेक्टेड रिटर्न का मतलब होता है उम्मीद यानी आप इतने रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं लेकिन यह गारंटीड रिटर्न नहीं है मतलब इस रिटर्न की गारंटी नहीं है। 

चूंकि हमने अब एक्सपेक्टेड रिटर्न को समझ लिया है इसलिए अब हम वैरियंस और कोवैरियंस (variance and covariance) जैसे क्वान्टिटेटिव सिद्धांतों (quantitative concepts) को भी देखना शुरू सकते हैं, इन पर हम अगले अध्याय में चर्चा करेंगे 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. जब आप कोई स्टॉक खरीदते हैं तो आप अनसिस्टमैटिक और सिस्टमैटिक रिस्क ले रहे होते हैं 
  2. अनसिस्टमैटिक रिस्क किसी एक कंपनी के स्टॉक से जुड़ा हुआ होता है और यह कंपनी के अंदर होता है 
  3. अनसिस्टमैटिक रिस्क सिर्फ उस कंपनी के स्टॉक पर असर डालता है, उसकी प्रतियोगी कंपनियों पर नहीं 
  4. अनसिस्टमैटिक रिस्क से बचने के लिए आप डायवर्सिफिकेशन का इस्तेमाल कर सकते हैं 
  5. सिस्टमैटिक रिस्क वह होता है जो सिस्टम में होता है 
  6. सिस्टमैटिक रिस्क सभी स्टॉक पर एक तरह से असर डालता है 
  7. सिस्टमैटिक रिस्क से बचने के लिए आप हेजिंग का इस्तेमाल कर सकते हैं या हेज कर सकते हैं 
  8. कोई भी हेजिंग संपूर्ण नहीं होती। इसका मतलब है कि बाजार में निवेश करते समय किसी न किसी तरीके का रिस्क हमेशा बना रहता है 
  9. एक्सपेक्टेड रिटर्न वह कमाई है जो आप अपने निवेश से उम्मीद कर रहे हैं 
  10. एक्सपेक्टेड रिटर्न किसी तरीके से रिटर्न की गारंटी नहीं है 
  11. पोर्टफोलियो का एक्सपेक्टेड रिटर्न निकालने के लिए फार्मूला यह है – E(RP) = W1R1 + W2R2 + W3R3 + ———– + WnRn



22 comments

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  1. Mahesh Kumar Gupta says:

    Superb I obliged

  2. GOPAL RAM says:

    zerodha zindabad

  3. PRABHASHANKAR KUMAR says:

    Great work done by Team Zerodha

  4. Durga says:

    Nice Explained

    Thank you

  5. Balkrishna Kadam says:

    Very good and very informative article. Thanks very much sir for giving such knowledge in a very easy language. God bless you sir. Thanks.

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