12.1 – इक्विटी कैपिटल क्या है

पिछले अध्याय में हमने पोजीशन साइजिंग के बारे में बात की थी और यह बताया था कि उसकी जरूरत क्यों पड़ती है। पोजीशन साइजिंग के जरिए आप पता कर सकते हैं कि अपनी कुल पूंजी का कितना हिस्सा हर सौदे में लगाना चाहिए। इस अध्याय में हम उसी बातचीत को आगे बढ़ाएंगे और यह देखेंगे कि पोजीशन साइजिंग कैसे की जाती है। 

लेकिन पहले एक बार फिर से दोहरा लेते हैं कि पोजीशन साइजिंग क्या होती है 

पोजीशन साइजिंग से आपको इस बात का जवाब मिलता है कि अगर आपके पास एक निश्चित रकम– X है, तो उस रकम का कितना हिस्सा एक खास ट्रेड में लगाना चाहिए। पोजीशन साइजिंग का एक आम नियम जिसे आमतौर पर लोग इस्तेमाल करते हैं वो है -पूंजी का 5% हिस्सा। इस नियम का मतलब यह है कि किसी भी एक सौदे में आप अपनी कुल पूंजी के 5% से ज्यादा हिस्से पर रिस्क पर नहीं लेगें। मतलब अगर आपके पास ₹100000 की पूंजी है तो आप किसी एक सौदे में ₹5000 से ज्यादा की पोजीशन नहीं लेंगे। 

यहां पर ₹100000 आपकी इक्विटी कैपिटल या कुल पूंजी है और ₹5000 एक सौदे में आपका निवेश है। आपने पोजीशन साइजिंग के नियम के मुताबिक ₹5000 का सौदा करने का फैसला किया है।

पोजीशन साइजिंग के कई अलग-अलग तरीके होते हैं। इसका मतलब यह भी है कि कोई एक निश्चित तकनीक नहीं है जिसके जरिए पोजीशन को साइज किया जा सके। ट्रेडर के तौर पर आपको कई बार अलग-अलग प्रयोग करने होते हैं और देखना होता है कि आपके लिए कौन सा तरीका सही है। लेकिन चिंता मत कीजिए जल्दी ही मैं पोजीशन साइजिंग की कुछ तकनीक के बारे में चर्चा करूंगा। 

आप पोजीशन साइजिंग की कोई भी तकनीक अपनाएं, कभी ना कभी आपको अपने इक्विटी कैपिटल का अनुमान जरूर लगाना होगा, हर निवेश के पहले ये देखना होगा कि आपके पास कुल कितनी पूंजी है और आप उसमें से कितना एक बार में निवेश कर सकते हैं। इसीलिए पहले हम एक ऐसी तकनीक के बारे में चर्चा करेंगे जो आपकी कुल पूंजी का अनुमान लगाए और इसके बाद हम पोजीशन साइजिंग की तकनीक को सीखेंगे। 

आप सोच रहे होंगे कि यहां पर मैं पूंजी की बात क्यों कर रहा हूं, आज इसका क्या मतलब है। 

इक्विटी कैपिटल वास्तव में वह रकम है जो कि आपके ट्रेडिंग अकाउंट में रहती है और आप उसके बाद यह फैसला करते हैं कि हर ट्रेड में उसमें से कितने पैसे लगाए जाने हैं। आपको ये बहुत मामूली बात लग रही होगी, लेकिन मैं आपको दिखाता हूं कि क्यों यह एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।

मान लीजिए कि आपके पास ₹500,000 की पूंजी है। आप यह फैसला करते हैं कि किसी भी एक सौदे में आप इसका 10% से ज्यादा हिस्सा नहीं लगाएंगे। इसका मतलब है कि आप एक बार में ₹50,000 तक की पोजीशन ले सकते हैं। 

तो अब अगले ट्रेड के समय आपकी इक्विटी कैपिटल क्या होगी,

  1. क्या ये ₹450,000 है 
  2. या फिर यह अभी भी ₹500,000 है और आप जानते हैं कि आपने ₹50,000 एक ट्रेड में लगा रखे हैं 
  3. या फिर ये ₹450,000 + ₹50,000  ± इस पोजीशन के P&L के बराबर है। 

इस तरह की कई अलग-अलग परिस्थितियों हो सकती हैं। इसी वजह से यह तय करना कि हर सौदे के लिए कितनी रकम लगानी है या इक्विटी कैपिटल का अनुमान लगाना आसान नहीं होता। इसीलिए हर बार इक्विटी कैपिटल अनुमान लगाना जरूरी है क्योंकि तभी आप पोजीशन साइजिंग को ठीक से समझ सकते हैं।

12.2 – इक्विटी कैपिटल का अनुमान 

अब मैं कुछ ऐसी तकनीक बताऊंगा जिसका इस्तेमाल वैन थार्प (Van Tharp) करते थे। वो इसके जरिए इक्विटी कैपिटल का अनुमान लगाते थे। मेरे हिसाब से दूसरी उपलब्ध तकनीकों के मुकाबले यह ज्यादा बेहतर तकनीक हैं। वैन थार्प के मुताबिक इसकी 3 तकनीक या मॉडल हैं –

  1. कोर इक्विटी मॉडल – Core Equity Model
  2. टोटल इक्विटी मॉडल – Total Equity Model
  3. रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल  – Reduced Total Equity Model

कोर इक्विटी मॉडल में आप उस रकम को कुल पूंजी में से हटा देते हैं जिसे आपने किसी दूसरे ट्रेड में लगा दिया है। इस तरह से हर ट्रेड में आपका एक्स्पोज़र यानी आपकी लगने वाली पूंजी घटती जाती है। इसको एक उदाहरण से समझते हैं – मान लीजिए आपके पास ₹50,000 की इक्विटी कैपिटल यानी पूंजी है और आप 10% की पोजीशन साइजिंग के फार्मूले का इस्तेमाल कर रहे हैं। 10% के नियम के मुताबिक आप किसी भी एक सौदे में अपनी कुल पूंजी का 10% से ज्यादा हिस्सा नहीं लगाएंगे। तो आप पहले ट्रेड में ₹5000 तक की पोजीशन ले सकते हैं। लेकिन अब कुल पूंजी यानी कोर इक्विटी घटकर ₹45,000 रह गई। नीचे के टेबल पर एक नजर डालिए –

एक्सेल शीट को आप यहां से डाउनलोड कर सकते हैं।  here

तो पहले ट्रेड में यह अनुमान है कि आपकी कुल पूंजी करीब ₹50,000 है और इसका 10% पहले ट्रेड में लग सकता है यानी ₹5000। कोर इक्विटी मॉडल में आपको इस पैसे को कुल पूंजी में से घटाना होता है और अगली बार के लिए कोर इक्विटी मॉडल को फिर बनाना पड़ता है। तो अब कोर इक्विटी में आपके पास बचेगा ₹45000 । इसका मतलब है कि दूसरे ट्रेड के लिए इतनी ही पूंजी उपलब्ध है।

तो दूसरे सौदे में हम कुल उपलब्ध पूंजी का 10% यानी ₹45000 का 10% लगा सकते हैं जो कि ₹4500 होगा। इसके बाद हम इस रकम को घटा कर अपनी कोर इक्विटी की रकम फिर से निकालेंगे जो कि अब ₹40,500 होगी। अब अगले ट्रेड के लिए यही पूंजी उपलब्ध होगी। इस तरह से तीसरे ट्रेड में ₹4050 तक की ही पोजीशन ले पाएंगे। उसके बाद हमारी कोर इक्विटी बच जाएगी ₹36,450 और ये इसी तरह से चलता रहता है। मुझे उम्मीद है कि अब आपको यह बात समझ में आ गई होगी कि कोर इक्विटी मॉडल क्या होता है।

मुझे लगता है कि कोर इक्विटी यानी पूंजी का अनुमान करने का यह मॉडल एक सुरक्षित रास्ता अपनाता है क्योंकि आप हर बार अपनी कुल लगाए जाने वाली पूंजी को घटाते जा रहे हैं जबकि आप के मौके बढ़ते जा रहे हैं। हो सकता है कि आप का पांचवा सौदा (जिसमें आपने कम पैसे लगाए हैं), एक बहुत अच्छा सौदा साबित हो और आप उसमें एक अच्छी कमाई कर लें। लेकिन यह भी हो सकता है कि पांचवा सौदा पिछले सौदों से भी बुरा हो और आप उसमें पूंजी गंवा बैठें। लेकिन क्योंकि कम पूंजी लगाई है इसलिए नुकसान कम हो। 

लेकिन कुल मिलाकर यह मॉडल मुझे इसलिए पसंद है क्योंकि यह बहुत सीधा है। जब आप एक बार कुछ पूंजी किसी ट्रेड में लगा देते हैं तो आप उस पूंजी को भूल कर आगे जितनी पूंजी बची है उस पर ध्यान दे सकते हैं।

टोटल इक्विटी मॉडल में बाजार में ली गई आपकी हर पोजीशन और उस पोजीशन पर होने वाले मुनाफे और नुकसान यानी P&L और कुल बचे हुए नगद, सबको पूंजी के तौर पर साथ जोड़ा जाता है। एक उदाहरण से इसको समझते हैं –

कुल उपलब्ध नगद – ₹50,000 

पहले ट्रेड के लिए ब्लॉक की गई मार्जिन = ₹75,000 

पहले ट्रेड का P&L = + ₹2,000

दूसरे ट्रेड के लिए ब्लॉक की गई मार्जिन = ₹115,000

दूसरे ट्रेड का P&L = + ₹7,000

तीसरे ट्रेड के लिए ब्लॉक की गई मार्जिन = ₹55,000

तीसरे ट्रेड का P&L = ₹4,000

कुल इक्विटी =  50,000 + 7000 + 2000 + 115,000 + 7500 + 55000 – 4000

=  300,000

 

तो जैसा आप देख सकते हैं कि टोटल इक्विटी मॉडल में कुल उपलब्ध नगद, ब्लॉक की हुई मार्जिन, पोजीशन पर होने वाला P&L इन सब को एक साथ देखा जाता है। अगर मेरी पोजीशन साइजिंग की रणनीति मुझे 10% रकम ही एक नई पोजीशन में लगाने की अनुमति देती है तो मैं ₹30,000 तक की पोजीशन किसी नए ट्रेड पर ले सकता हूं। लेकिन अगर मेरे अकाउंट में ₹30,000 नगद नहीं है तो मैं यह पोजीशन नहीं ले सकता और मुझे किसी मौजूदा पोजीशन को बंद करने के बाद ही नई पोजीशन लेनी होगी। 

इस मॉडल में हर मौजूदा पोजीशन और उनके P&L को देखा जाता है और फिर कुल इक्विटी का अनुमान लगाया जाता है। इसीलिए यह मॉडल थोड़ा रिस्की मॉडल है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि इक्विटी का अनुमान लगाने का यह मॉडल अच्छा नहीं है क्योंकि इसमें कमाई होने के पहले ही उस रकम को अपनी रकम मान लिया जाता है।

मुझे अनुमान लगाने का तीसरा मॉडल पसंद है जिसे रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल कहते हैं। 

इस मॉडल में कोर इक्विटी मॉडल और टोटल इक्विटी मॉडल दोनों की अच्छी बातों को एक साथ शामिल किया गया है। इसमें हर बार एक नए सौदे के साथ अगले सौदे यानी ट्रेड के लिए लगाई जा सकने वाली पूंजी घटती जाती है (जैसा कि कोर इक्विटी मॉडल में भी होता है), लेकिन साथ ही, इसमें हर ट्रेड पोजीशन के P&L को भी शामिल किया जाता है (जैसा कि टोटल इक्विटी मॉडल में होता है)। लेकिन P&L में सिर्फ लॉक्ड प्रॉफिट यानी निश्चित मुनाफे को ही जोड़ा जाता है।

इसको भी एक उदाहरण से समझते हैं, मान लीजिए मेरे पास ₹500,000 की पूंजी है और मेरी पोजीशन साइजिंग रणनीति मुझे एक ट्रेड में 20% तक रकम निवेश करने की अनुमति देती है जो कि यहां पर ₹100,000 होगी। 

चार्ट देख कर मैं यह फैसला करता हूं कि ACC के फ्यूचर में 1800 पर लॉन्ग पोजीशन लूंगा, इसके लिए मुझे ₹90,000 की मार्जिन रकम लगानी पड़ेगी जो कि मेरे एक लाख की पोजीशन साइज के अंदर है। 

मैंने पोजीशन ले ली और बाजार के चलने का इंतजार करने लगा। ऐसी स्थिति में रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल के हिसाब से मेरे पास दूसरे ट्रेड के लिए पूंजी बचेगी –

20%*( 500,000 – 90,000)

=  Rs.410,000/- का  20% 

= Rs. 82,000/-

यहां ध्यान दीजिए कि मौजूदा पोजीशन में पैसे लगाए जाने के कारण हमारी नई पूंजी एक लाख से घटकर 82,000 हो गई है। यानी यहां तक यह कोर इक्विटी कैपिटल मॉडल की तरह काम कर रहा है। 

लेकिन मान लिया कि अब ACC का स्टॉक ऊपर चलता है और 25 प्वाइंट बढ़कर 1850 पर पहुंच जाता है। इसका लॉट साइज 400 का है इसलिए अब मैं मुनाफे पर बैठा हूं।

400*50

= Rs.20,000/-

अब मैं ट्रेलिंग स्टॉप लॉस लगाऊंगा और इस तरह से अब मैं 50 प्वाइंट में से 25 प्वाइंट निकालकर उसे रुपए में बदल लूंगा। जिसका मतलब मुझे ₹10,000 का मुनाफा अपने पास रखने का रास्ता मिल  सकता है। 

इसका मतलब है कि ACC की 1800 की पोजीशन पर अब मैंने स्टॉप लॉस 1825 का रखा है और ₹10,000 का मुनाफा लॉक कर लिया है। 

मुनाफे की इस लॉक्ड रकम को अब मैं अपनी कुल यानी टोटल इक्विटी में वापस लाऊंगा और मेरी टोटल इक्विटी अब होगी 

410,000 +10,000

=420,000/-

इसका मतलब है कि अगले ट्रेड के लिए इस कुल रकम का 20% मैं लगा सकता हूं

=20% * 420000

= Rs.84,000/-

जैसा कि आप देख सकते हैं कि मेरी लगाने वाली पूंजी अब ₹2000 से बढ़ जाती है। 

मैं इस रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल को पसंद करता हूं। अगर आप इस मॉडल का इस्तेमाल करते हैं तो धीरे-धीरे आपको एक स्टॉप लॉस लगाने की आदत पड़ जाएगी जो कि मेरे हिसाब से बहुत अच्छी चीज है। 

इस अध्याय को यहीं खत्म करते हैं। अगले अध्याय में हम ऊपर बताए गए तरीकों में से एक का इस्तेमाल करके इक्विटी निकालेंगे और पोजीशन साइजिंग की कुछ तकनीकों को देखेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. पोजीशन साइजिंग के लिए अपने इक्विटी कैपिटल का अनुमान लगाना जरूरी होता है। 
  2. कोर इक्विटी मॉडल में आपने जिस पूंजी को ट्रेड में लगा रखा है उसको घटाया जाता है और उसके हिसाब से फिर से नई मौजूद पूंजी का अनुमान लगाया जाता है। 
  3. टोटल इक्विटी मॉडल में आपको अपने पास मौजूद नगद रकम, कुल जमा की गई मार्जिन और उस पोजीशन पर हो रहे P&L, इन सभी को एक साथ जोड़ कर इक्विटी कैपिटल का अनुमान लगाना होता है।
  4. रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल में आपको अपने पास मौजूद नगद रकम और पोजीशन के लॉक किए गए प्रॉफिट को एक साथ जोड़ कर देखना होता है।

 




1 comment

View all comments →
  1. Rajendra lodhi says:

    Hindi me pdf available karo

View all comments →
Post a comment