13.1 – अपना रास्ता चुनिए

पिछले अध्याय में हमने एक बहुत ही महत्वपूर्ण सिद्धांत पर चर्चा की थी। हमने देखा था कि इक्विटी कैपिटल निकालने के लिए कैसे तीन अलग-अलग मॉडल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन तीनों में से किसी भी मॉडल का इस्तेमाल करने पर आपको पोजीशन साइजिंग करने का एक अलग अनुशासन पैदा हो जाता है, लेकिन यह काफी नहीं है। हमें पोजीशन साइजिंग करने के लि एक अलग प्रणाली की जरूरत अभी भी है। इसीलिए इस अध्याय में हम आगे बढ़ेंगे और वैन थार्प की पोजीशन साइजिंग की तकनीक पर नजर डालेंगे। 

अभी हम पोजीशन साइजिंग की इन तीन मुख्य तकनीकों पर नजर डालेंगे 

  1. यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट (Unit per fixed amount)
  2. मार्जिन का प्रतिशत या परसेंटेज मार्जिन (Percentage Margin)
  3. वोलैटिलिटी का प्रतिशत या परसेंटेज वोलैटिलिटी  (Percentage Volatility)

ध्यान रखिए कि इन तीनों मॉडल में एसेट या समय से कोई अंतर नहीं पड़ता। मतलब इस बात का कोई असर नहीं पड़ता कि इनका इस्तेमाल किस तरह के एसेट पर किया जा रहा है या कितने समय के लिए किया जा रहा है। पोजीशन साइजिंग की इन तकनीकों को आप किसी भी एसेट के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं, चाहे स्टॉक हो, स्टॉक फ्यूचर हो, कमोडिटी फ्यूचर हो या करेंसी फ्यूचर हो। इसी तरीके से आप इन को किसी भी समय सीमा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं- इंट्राडे, कुछ ट्रेडिंग सेशन के लिए, लंबे ट्रेडिंग सेशन के लिए या कुछ महीनों के लिए।

इसको ज्यादा अच्छे से समझने के लिए पहले एक ट्रेडिंग सिस्टम को चुनना पड़ेगा। उदाहरण के तौर पर, मूविंग एवरेज क्रॉसओवर सिस्टम का चुनाव किया जा सकता है। एंट्री और एग्जिट के लिए अपने नियम तय करें किसी तय समय अवधि में मिलने वाले अपने रिटर्न को तय करें। इसके बाद पोजीशन साइजिंग की एक तकनीक लें, उसमें इन सब डाटा को डालें और फिर उससे मिलने वाले नतीजों का आकलन करें। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इसके बाद आपको ना सिर्फ अपने P&L  में सुधार दिखेगा बल्कि अपने सिस्टम की स्थिरता में भी सुधार दिखाई पड़ेगा। 

देखते हैं कि यह कैसे काम करता है 

– मान लीजिए आपके पास एक बहुत साधारण ट्रेडिंग सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं जैसे कि एक सिंपल मूविंग एवरेज क्रॉसओवर सिस्टम। 

– जब भी इस सिस्टम से सिग्नल यानी संकेत मिलेगा तब आप इस सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए अपने पैसे लगाएंगे और ट्रेडिंग करेंगे 

– इक्विटी कैपिटल का अनुमान लगाने के लिए तीन मॉडल है और इसी तरह से पोजीशन साइजिंग की तकनीक के भी 3 मॉडल हैं 

– इसका मतलब है कि आप अपनी पोजीशन साइजिंग को 3 X 3 यानी 9 अलग अलग तरीके से कर सकते हैं और अपने पैसे लगा सकते हैं 

– इनमें से हर एक तरीके में P&L  अलग-अलग होगा 

हालांकि मैं अपने अनुभव से आपको सलाह दूंगा कि आप इक्विटी निकालने के लिए किसी एक ही मॉडल का इस्तेमाल करें और पोजीशन साइजिंग के लिए एक या दो तकनीकों का इस्तेमाल करें। इससे ज्यादा आपके लिए ठीक नहीं होगा क्योंकि वह चीजों को और जटिल बनाएगा और जटिलता हमेशा अच्छी नहीं होती है। 

एक ट्रेडर के तौर पर आपको ये खुद तय करना है कि इनमे से कौन सा रास्ता आपके लिए सही है और आप किसे चुनेंगे। तो आइए पोजीशन साइजिंग की तकनीकों के बारे में जानना शुरू करते हैं

13.2 – यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट 

सबसे पहले नजर डालते हैं यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट (Unit per fixed amount) मॉडल पर। यह काफी सीधा और सरल मॉडल है। कोई भी ट्रेडर जिसने कभी भी पोजीशन साइजिंग की शुरुआत की हो उसने इस मॉडल पर नजर जरूर डाली होगी। अपनी सरलता की वजह से यह मॉडल मुझे पसंद भी है और इसी वजह से नापसंद भी है। 

इस मॉडल में आपको सिर्फ यह बताना होता है कि आपकी दी हुई रकम से कितने शेयर खरीदना चाहते हैं या फ्यूचर में कितने लॉट खरीदना चाहते हैं। उदाहरण के तौर पर, मान लीजिए आपके ट्रेडिंग अकाउंट में ₹200,000 हैं और आपके पास पांच ऐसे एसेट हैं जिनमें आप निवेश कर सकते हैं। (मौके का समूह या opportunity universe)

  1. निफ्टी
  2. SBI
  3. HDFC
  4. टाटा मोटर्स
  5. इन्फोसिस

अब यह कह सकते हैं कि आप एक बार में, किसी भी एसेट के फ्यूचर के एक लॉट के लिए 100,000 रूपए से अधिक नहीं खर्च करेंगे। अब ऐसे में मान लीजिए कि आपके सिस्टम से आपको निफ्टी को खरीदने का सिग्नल मिल रहा है, अब क्योंकि आपके पास सिर्फ ₹200,000 हैं तो आप निफ्टी के सिर्फ एक या 2 लॉट खरीद सकते हैं। 

इस मॉडल (तकनीक) में फैसला करना बहुत ही आसान है। लेकिन इसमें कुछ दिक्कतें भी हैं।

मान लीजिए अगर आपको एक ही समय में निफ्टी फ्यूचर्स और टाटा मोटर्स दोनों को खरीदने का सिग्नल मिल रहा हो तो आप क्या करेंगे? चूंकि आपके पास ₹200,000 हैं आप एक लॉट निफ्टी का और एक टाटा मोटर्स का खरीदेंगे। ध्यान में रखिए कि जब मैं इसे लिख रहा हूं उस समय निफ़्टी फ्यूचर में ₹60,000 की मार्जिन लगती है और टाटा मोटर्स में करीब ₹72,000 की मार्जिन देनी पड़ती है।

मार्जिन चाहे कुछ भी हो, लेकिन इस मॉडल का नियम यह है कि एक लाख पर आपको एक लॉट ही खरीदना है। इसका मतलब यह है कि पोजीशन साइजिंग का यह मॉडल दोनों कॉन्ट्रैक्ट यानी निफ्टी और टाटा मोटर्स एक ही समान वजन दे रहा है और इस बात पर नजर नहीं डाल रहा कि दोनों एसेट से जुड़े रिस्क अलग हैं। आपको समझाने के लिए बता देता हूं कि निफ्टी फ्यूचर का एनुअलाइज्ड (वार्षिक) वोलैटिलिटी करीब 14% है जबकि टाटा मोटर्स की एनुअलाइज्ड (वार्षिक) वोलैटिलिटी करीब 40% है। इसका मतलब है कि आप पोर्टफोलियो के स्तर पर ज्यादा रिस्क लेने जा रहे हैं। 

अब यह बात अच्छी भी है और बुरी भी। अच्छी इसलिए है कि यह मॉडल रिस्क के आधार पर आपको कोई ट्रेड करने से रोक नहीं रहा है और बुरी इसलिए है कि यह रिस्क को नजरअंदाज कर रहा है। 

यहां पर एक और बात है – देखिए, आप एक ऐसा ट्रेडिंग सिस्टम अपना रहे हैं जिसमें 100,000 पर आपको एक लॉट ही खरीदना है। मान लीजिए कि आपके पास ₹200,000 की पूंजी है और आपका सिस्टम आपको हर बार अच्छे सिग्नल दे रहा है और आप लगातार अच्छी कमाई वाले सौदे कर रहे हैं। लेकिन इसके हर सिग्नल पर आप सिर्फ दो लॉट ही खरीद सकते हैं। अब आपको अगर एक या दो लॉट ज्यादा खरीदने हैं तो आपको अपने कैपिटल को बढ़ाना पड़ेगा या फिर अपने मुनाफे को वहां तक पहुंचने का इंतजार करना होगा कि आपका कैपिटल दोगुना हो जाए। इस तरह से पोजीशन साइजिंग की यह तकनीक आपके सौदों को बढ़ाने में रुकावट बनती है। इससे बचने का एक ही रास्ता होता है कि आपको अपने अकाउंट का आकार यानी अपने कैपिटल को बढ़ाना होगा। 

इन्हीं वजहों से मैं यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट नाम की पोजीशन साइजिंग की इस तकनीक का इस्तेमाल नहीं करना चाहता हूं। लेकिन मेरी सलाह यह होगी कि आप अपने हिसाब से एक रकम चुनें और फिर इस तकनीक का इस्तेमाल करके देखें। उसके बाद ही फैसला करें कि ये आपके लिए सही है या नहीं।

13.3 – मार्जिन का प्रतिशत या परसेंटेज मार्जिन 

परसेंटेज मार्जिन पोजीशन साइजिंग तकनीक काफी रोचक है। व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि यह तकनीक यूनिट पर फिक्स्ड अमाउंट तकनीक के मुकाबले ज्यादा अच्छे तरीके से बनाई गई है, खासकर इंट्राडे ट्रेडर के लिए यह ज्यादा अच्छे से काम करती है। परसेंटेज मार्जिन तकनीक में आपको अपने पोजीशन की साइज अपने मार्जिन के आधार पर तय करनी होती है। 

इस तकनीक में आप अपने कैपिटल के एक निश्चित प्रतिशत को ट्रेड के मार्जिन के लिए तय कर देते हैं। आइए एक उदाहरण से समझते हैं 

मान लीजिए आपके पास ₹500,000 की पूंजी है और आप यह तय करते हैं कि इसमें से 20% से ज्यादा पूंजी किसी एक ट्रेड के मार्जिन में नहीं लगाएंगे। इसका मतलब है कि किसी भी एक ट्रेड में ₹100,000 से ज्यादा की पूंजी नहीं लगाई जाएगी। 

अब ऐसे में, मान लीजिए कि आपको निफ़्टी फ्यूचर्स में ट्रेड करने का एक मौका दिखाई देता है, आपको पता है कि आप यह पोजीशन आसानी से ले सकते हैं क्योंकि इसके लिए आपको करीब ₹60,000 की मार्जिन देनी पड़ेगी। लेकिन मान लीजिए उसी समय आपको ICICI में भी ट्रेड का मौका दिखाई देता है जहां पर आपको ₹105,000 तक की मार्जिन देनी पड़ेगी। मार्जिन की रकम पोजीशन साइजिंग से ज्यादा होने की वजह से यह ट्रेड आपकी पहुंचकर बाहर होगा। अब ऐसे में आपको अपनी पूंजी बढ़ानी पड़ेगी, लेकिन इसी तरह से हर बार तो मौके का फायदा उठाने के लिए आप पूंजी नहीं बढ़ा सकते । पूंजी तब बढ़ती है जब आपको काफी मुनाफा हो रहा हो और वो मुनाफा आपके अकाउंट में जमा हो रहा हो।

खैर, अभी आगे बढ़ते हैं। मान लीजिए निफ्टी में पोजीशन लेने के बाद आपके सामने ACC में एक मौका आता है जिसके लिए मार्जिन ₹90,000 का है 

क्या आप यह पोजीशन लेंगे?

इसका जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि आप अपनी इक्विटी का अनुमान कैसे लगा रहे हैं? 

अगर आपने टोटल इक्विटी मॉडल लिया है, तब आप अपनी कुल इक्विटी को 500,000 मानेंगे उसमें से 20% जो कि 100,000 होता है। तो आप ACC पोजीशन आसानी से ले सकते हैं। 

लेकिन अगर आपने रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मॉडल लिया है तब यह इस तरह से काम करेगा (20% पोजीशन साइजिंग के साथ) –

शुरुआती इक्विटी कैपिटल – 5 लाख

ब्लॉक की गयी मार्जिन – 60 हजार

नई इक्विटी कैपिटल – 4.4 लाख

20% पर मार्जिन – 88 हजार

तो इसका मतलब है कि अब आपको 90000 की पोजीशन लेने के लिए ₹2000 की कमी पड़ेगी। इस वजह से आपको यह ट्रेड छोड़ना पड़ेगा। तो अब आपको समझ में आ गया होगा कि इक्विटी का अनुमान लगाना कितनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। 

अब, मान लीजिए कि आपने कोई ऐसा मौके देखा है जहां पर ₹40,000 की मार्जिन देनी है और आपके पास ₹88,000 हैं तो आप बहुत आसानी से दो लॉट तक की पोजीशन ले सकते हैं। 

परसेंटेज मार्जिन का नियम यह सुनिश्चित करता है कि आप हर पोजीशन के लिए करीब एक बराबर मार्जिन ही दें। लेकिन हर पोजीशन के लिए वोलैटिलिटी अलग होती है। इस वजह से अंत में ऐसा हो सकता है कि आप कुछ ज्यादा रिस्क वाले ट्रेड कर बैठें। इस वजह से आपका पूरा रिस्क प्रोफाइल बदल सकता है। 

रिस्क की इस संभावना से बचने के लिए ही पोजीशन साइजिंग का अगला मॉडल आपकी मदद करता है

13.4 – वोलैटिलिटी का प्रतिशत या परसेंटेज वोलैटिलिटी 

पोजीशन साइजिंग का परसेंटेज वोलैटिलिटी मॉडल आपके एसेट की वोलैटिलिटी का भी ध्यान रखता है। इस तकनीक में स्टैंडर्ड डेविएशन वाली आम वोलैटिलिटी का इस्तेमाल नहीं होता है बल्कि हर दिन उस एसेट में आने वाले उतार-चढ़ाव का ध्यान रखा जाता है। 

उदाहरण के तौर पर अगर SBI का OHLC 276, 279, 274 और 278 है, तो फिर इस मॉडल में उस दिन के लो (low) और हाई (high) के बीच के अंतर को वोलैटिलिटी माना जाता है। जैसे यहां पर

279 – 274

=

इस तरह से वोलैटिलिटी निकालने का सबसे आसान तरीका यह है कि आप कुछ दिनों के लिए लो और हाई के बीच में अंतर निकाल लें और फिर उसका औसत देख लें। यहां पर बस एक दिक्कत आएगी, वह यह कि अगर गैप अप या गैप डाउन ओपनिंग हुई तो वह इसमें शामिल नहीं होती है। इसी वजह से वैन थार्प ने एवरेज ट्रू रेंज (average true range) का सिद्धांत सामने रखा था जिसके जरिए स्टॉक की वोलैटिलिटी को नापा जा सकता है।  

पोजीशन साइजिंग के परसेंटेज वोलैटिलिटी तरीके में हमें तय करना होता है कि किसी स्टॉक के लिए हम कितनी वोलैटिलिटी लेने को तैयार हैं और उसके हिसाब से अपने कैपिटल का अनुमान लगाना होता है। 

उदाहरण के तौर पर अगर इक्विटी कैपिटल 500,000 है, तो मैं एक नियम बना सकता हूं कि मैं किसी भी हालत में 2% से ज्यादा की वोलैटिलिटी नहीं सहना चाहूंगा। 

इसको एक उदाहरण से समझते हैं नीचे पिरामल एंटरप्राइजेज (PEL) का एक चार्ट दिया गया है

इसका 14 दिन का ATR 76 है। जिसका मतलब है कि PEL का हर एक शेयर मेरे इक्विटी कैपिटल पर 76 रूपए तक की वोलैटिलिटी ला सकता है।

अब मान लीजिए कि मैं PEL में ट्रेड का एक मौका देखता हूं, अब मैं 500,000 के अपने कैपिटल में से इसके कितने शेयर खरीद सकता हूं क्योंकि हमने 2% से ज्यादा की वोलैटिलिटी ना लेने की सीमा तय कर रखी है।

5 लाख का 2% होता है 10,000 जिसका मतलब है कि मैं सिर्फ उतने ही शेयर खरीद सकता हूं जिससे PEL की वोलैटिलिटी का असर 10,000 से अधिक ना हो।

यहां पर मैं कितने शेयर खरीद सकता हूं ये जानने के लिए मुझे 10,000 को 76 से विभाजित करना होगा

10,000/76

= 131.57 यानी करीब 131 शेयर

PEL के शेयर की मौजूदा कीमत करीब 2700 है तो आप कुल निवेश करेंगे

131*2700

= 353,700 रूपए

अब अगर रिड्यूस्ड टोटल इक्विटी मटडल का इस्तेमाल करें तो अगले ट्रेड के लिए पूंजी बचेगी – 

500,000 – 353,700

= 146,300

अब 2% की वोलैटिलिटी की सीमा के मुताबिक सिर्फ 2929 की वोलैटिलिटी ली जा सकती है। जिसका मतलब है कि अगले ट्रेड के लिए पूंजी कम है लेकिन वोलैटिलिटी लेने का स्तर उतना ही रहता है यानी 2%।

यहां पर एक सलाह (वैन थार्प की तरफ से)- अगर आप पोजीशन साइजिंग के परसेंटेज वोलैटिलिटी तरीके का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो आपको वोलैटिलिटी के उस स्तर को तय  करना होगा जिसे आप पोर्टफोलियो पर लेना चाहते हैं। मान लीजिए कि आपने पोर्टफोलियो पर 15% की वोलैटिलिटी की सीमा तय की तो 5 लाख के कैपिटल पर ये रकम होगी 75,000 रूपए।

तो जरा सोचिए, अगर आप की ली हुई हर पोजीशन नुकसान करती है तो आप अपने 5 लाख के कैपिटल पर एक दिन में 75,000 तक गंवा सकते हैं। बुरा लग रहा है ना? अगर ये बहुत ज्यादा लग रहा है तो फिर 15% की सीमा आपके लिए नहीं है।

अगले अध्याय में हम कुछ और सिद्धांतों को समझेंगे और फिर trading biases पर नजर डालेंगे।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. इक्विटी कैपिटल का सही अनुमान लगाना पोजीशन साइजिंग के लिए बहुत महत्वपूर्ण है
  2. अगर इक्विटी का अनुमान लगाने के 3 तरीके हैं और पोजीशन साइजिंग के 4 तरीके तो आप अपनी पोजीशन साइजिंग को 4 X 3 यानी 12 अलग अलग तरीके से कर सकते हैं 
  3. यूनिट पर फिक्स्ड मॉडल में आपको ये बताना होता है कि आप दी हुई रकम से कितने शेयर खरीदना चाहते हैं या फ्यूचर के कितने लॉट खरीदना चाहते हैं।
  4. यूनिट पर फिक्स्ड मॉडल- रिस्क पर ध्यान नहीं देता है
  5. परसेंटेज मार्जिन तकनीक में आपको ये बताना होता है कि अपने पोजीशन का कितना हिस्सा मार्जिन के तौर पर लगाना चाहते हैं।
  6. परसेंटेज वोलैटिलिटी तकनीक में वोलैटिलिटी को ATR में नापा जाता है
  7. परसेंटेज वोलैटिलिटी तकनीक में हर पोजीशन की वोलैटिलिटी को एक बराबर माना जाता है।



6 comments

View all comments →
  1. YASHPAL KEWAT says:

    परसेंटेज मार्जिन तकनीक जो आखिरी के बिंदु 6,7 मे है वहाँ पर परसेंटेज वोलैटिलिटी तकनीक होगा।
    ऐसे ही अदभुत कृपा बनाये रखिये धन्यवाद 🙏🏼

    • Kulsum Khan says:

      सूचित करने के लिए धन्यवाद हम इसको सही करदेंगे।

  2. super learner says:

    dhanywad

  3. VINOD KUMAR RAWAT says:

    आपका जितना आभार किया जाए उतना कम है। thanks a lot of seedha team

View all comments →
Post a comment