12.1 – समीकरण का ट्रेड 

अब तक आप पेयर ट्रेडिंग के लिए जरूरी सारी बातों को जान चुके हैं। अब इन बातों को एक साथ इस्तेमाल करके हमें यह देखना है कि ये सिद्धांत वास्तविकता में कैसे काम करते हैं और इनसे पेयर ट्रेडिंग कैसे की जा सकती है। 

सबसे पहले शुरुआत करते हैं उस जरूरी इक्वेशन या समीकरण से। हमने इस समीकरण के बारे पर मॉड्यूल के शुरुआत में पढ़ा है, लेकिन अब इसको एक ट्रेडर के नजरिए से देखना है। आपको देखना है कि आप इस समीकरण के हिसाब से अपने ट्रेड के लिए मौके कैसे तलाश सकते हैं। जो कुछ आपने सीखा है उसका इस्तेमाल यहां करना होगा। 

                                                                              y = M*x + c

तो ये समीकरण हमें क्या बता रहा है, इसको आप दो नजरिए से देख सकते हैं –

  1. एक सांख्यिकीविद् (Statistician) के रूप में 
  2. एक ट्रेडर के रूप में 

क्योंकि हम यहां दो स्टॉक के साथ काम कर रहे हैं तो सांख्यिकीविद् इसे एक इक्वेशन (Equation) यानी समीकरण के नजरिए से देखेगा, जहां पर डिपेंडेंट स्टॉक Y की कीमत को इंडिपेंडेंट स्टॉक X की कीमत के आधार पर बताया जा रहा है। कीमत बताने की इस प्रक्रिया में हमें दो और वेरिएबल मिलते हैं जो कि स्लोप (या बीटा),M और इंटरसेप्ट,C हैं। 

तो सैद्धांतिक रूप में, स्टॉक Y की कीमत बराबर होगी स्टॉक X की कीमत का बीटा गुणा और इंटरसेप्ट के जोड़ के (Beta times X plus the intercept)

लेकिन हमें पता है कि यह सच नहीं है। इस समीकरण में हमेशा एक वेरिएशन या अंतर आता है जो कि हमें स्टॉक की वास्तविक कीमत और उसके अनुमानित कीमत के अंतर की ओर ले जाता है। इस अंतर को हम रेजिडुअल्स या एरर के हिसाब से बताते हैं। 

तो अगर हम इस समीकरण में रेजिडुअल्स को भी शामिल कर लें तो ये समीकरण ऐसा दिखाई देगा –

y = M*x + c + ε

यहां पर ε हमें एरर या रेजिडुअल्स को दिखा रहा है। अब तक आप रेजिडुअल्स की स्टेशनैरिटी को भी जान चुके हैं जो कि इस समय समीकरण को और बेहतर बना देता है। 

लेकिन अब, अगर इसी समीकरण को हमें एक ट्रेडर के नजरिए से देखना हो तो हम इसको कैसे देखेंगे, पहले एक बार समीकरण पर फिर से नजर डालिए –

y = M*x + c + ε

अब इस समीकरण को छोटे हिस्सों में बांटते हैं –

y = M*x, इसका मतलब है कि डिपेंडेंट स्टॉक Y की कीमत बराबर है इंडिपेंडेंट स्टॉक X में स्लोप यानी M से गुणा करके मिलने वाली संख्या के। यहां पर स्लोप या बीटा हमें बता रहा है कि स्टॉक X की कितनी संख्या स्टॉक Y के एक शेयर की कीमत के बराबर होगी।

उदाहरण के तौर पर, HDFC बैंक (Y) और ICICI बैंक (X)  के लीनियर रिग्रेशन का परिणाम यह है –

जबकि HDFC बैंक और ICICI बैंक की वास्तविक कीमत ये रही – 

तो इसका मतलब यह हुआ कि HDFC बैंक के शेयर की कीमत करीब-करीब बराबर है ICICI बैंक की कीमत और बीटा के गुणा करने से निकली हुई संख्या के। तो 1914 = 291 * 7.61 

मुझे पता है कि यह परिणाम सही नहीं निकलेगा। 

लेकिन कुछ समय के लिए मान लीजिए कि यह समीकरण सही है। तो इसका मतलब यह हुआ कि ICICI के 7.61 शेयर बराबर हैं HDFC के एक शेयर के। यह एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष है। 

इसका यह भी मतलब है कि अगर मैं HDFC के एक शेयर पर लॉन्ग जा रहा हूं तो मुझे ICICI के 7.61 शेयर को शॉर्ट करना होगा। तभी मैं एक ही समय पर लॉन्ग और शार्ट बराबरी से हो पाऊंगा और डायरेक्शन से जुड़े अपने रिस्क को काफी हद तक हेज (hedge) कर पाऊंगा। यहां पर यह याद रखना जरूरी है कि हम इन दोनों स्टॉक को इसलिए चुन रहे हैं क्योंकि यह दोनों आपस में को-इन्टीग्रेटेड हैं। 

एक बार फिर से समीकरण को देखिए – 

y = M*x + c + ε

अगर यह समीकरण सही है तो Y और X पर लॉन्ग और शॉर्ट जा कर आप डायरेक्शन के रिस्क को ठीक तरीके से हेज कर पाएंगे। 

अब बचा इस समीकरण का दूसरा हिस्सा – c + ε

जैसा कि आप जानते हैं कि C इंटरसेप्ट है। आपको यहां पर मैं एरर रेश्यो के बारे में याद दिलाना चाहूंगा जिस पर हमने अध्याय 10 में चर्चा की थी।

एरर रेश्यो = इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर / स्टैंडर्ड एरर 

हमने ये भी चर्चा की थी कि एरर रेश्यो जितना कम हो उतना बेहतर होता है। गणित के हिसाब से देखें तो इसका मतलब यह है कि हम ऐसे पेयर की तलाश में हैं जिसका इंटरसेप्ट कम हो। 

यह एक बहुत महत्वपूर्ण बात है, जो आपको याद रखनी चाहिए। हम ऐसे पेयर चुन रहे हैं जहां पर इंटरसेप्ट का स्टैंडर्ड एरर कम हो। 

याद रखिए कि इस समीकरण  y = M*x + c + ε के हर हिस्से से हम एक ट्रेड (या हेज) पाने की कोशिश कर रहे हैं। हम Y को Mx से हेज कर रहे हैं। हम C या इंटरसेप्ट को कम करने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि हम इसको ना तो ट्रेड कर रहे हैं और ना ही हेज  कर रहे हैं। इसीलिए यह जितना कम हो हमारे लिए उतना बेहतर है। 

अब इसके बाद हमारे पास बचता है रेजिडुअल्स या ε

आपको याद ही होगा कि रेजिडुअल्स एक टाइम सीरीज है। हमने इस सीरीज की स्टेशनैरिटी को भी जांच लिया है। तो अब अगर रेजिडुअल्स एक स्टेशनरी टाइम सीरीज है तो फिर ये नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन का बहुत अच्छे तरीके से पालन करेगा। इसका मतलब है कि हमें अब केवल रेजिडुअल्स को ट्रैक करना है और जब यह स्टैंडर्ड डेविएशन के ऊपरी स्तर को या निचले स्तर को छूता है तो ट्रेड को शुरू करना है।

तो इसका मतलब यह हुआ कि हम एक ट्रेड तब शुरू करेंगे जब –

  1. पेयर पर लॉन्ग (Y को खरीदना और X को बेचना) तब करना है रेजिडुअल्स – 2 स्टैंडर्ड डेविएशन (-2 SD) तक पहुंच जाए 
  2. पेयर पर शॉर्ट (X को खरीदना और Y को बेचना) तब करना है रेजिडुअल्स + 2 स्टैंडर्ड डेविएशन (+2 SD) तक पहुंच जाए

तो पेयर ट्रेड के पहले तरीके की तरह यहां भी हम ट्रेड तब शुरू करेंगे जब वह 2nd स्टैंडर्ड डेविएशन पर पहुंच जाए और ट्रेड को तब तक होल्ड करेंगे जब तक रेजिडुअल्स वापस अपने मीन तक ना पहुंच जाए। इन दोनों ट्रेड में स्टॉप लॉस 3rd स्टैंडर्ड डेविएशन का होगा। अगले अध्याय में हम इस पर विस्तार से चर्चा करेंगे। 

अब मैं इस अध्याय को यहां खत्म कर रहा हूं क्योंकि मैं नहीं चाहता कि आपके दिमाग में बहुत सारी बातें एक साथ डाली जाएं। 

यह जरूरी है कि आप इस समीकरण को ट्रेडर के नजरिए से समझ जाएं और यह देख लें कि आपको क्या ट्रेड करना है। हम यहां पर सिर्फ रेजिडुअल्स के हिसाब से ट्रेड कर रहे हैं। हम स्टॉक Y की कीमत को स्टॉक X से हेज कर रहे हैं। इंटरसेप्ट को नीचे या कम रख रहे हैं और रेजिडुअल्स पर ट्रेड कर रहे हैं। 

रेजिडुअल्स पर ट्रेड इसलिए कर रहे हैं क्योंकि यह स्टेशनरी है और इसलिए हम यह उम्मीद करते हैं कि हम इसके बर्ताव या व्यवहार का अनुमान लगा सकते हैं। अगले अध्याय में हम एक वास्तविक ट्रेड को लेंगे और देखेंगे कि वास्तविकता में इसमें क्या होता है।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. पेयर ट्रेडिंग इक्वेशन या समीकरण ही वास्तव में वह समीकरण है जिसको हम ट्रेड करते हैं। 
  2. इस समीकरण के हर हिस्से को देखा जाता है।
  3. हम स्टॉक Y की कीमत को स्टॉक X से हेज करते हैं। X का बीटा हमें बताता है कि स्टॉक Y को पूरी तरह से हेज करने के लिए स्टॉक X के कितने शेयरों की जरूरत होगी।  
  4. एरर रेश्यो को देख कर हम यह सुनिश्चित करते हैं कि इंटरसेप्ट नीचे यानी कम रहे । याद रखें कि हम इंटरसेप्ट को ट्रेड नहीं कर रहे हैं इसलिए इसका कम रहना जरूरी है। 
  5. हम रेजिडुअल्स को ट्रेड करते हैं क्योंकि यह स्टेशनरी है और यह नॉर्मल डिस्ट्रीब्यूशन का अच्छे से पालन करता है। 
  6. जब रेजीडुअल -2 स्टैंडर्ड डेविएशन तक पहुंचता है तो एक लॉन्ग ट्रेड शुरू किया जाता है। इसी तरह से, जब रेजीडुअल +2 स्टैंडर्ड डेविएशन पर पहुंचता है तो एक शॉर्ट ट्रेड शुरू किया जाता है।
  7. एक पेयर पर लॉन्ग जाने का मतलब है कि हम Y पर लॉन्ग जा रहे हैं और X पर शॉर्ट जा रहे हैं।
  8. पेयर पर शॉर्ट जाने का मतलब यह है कि हम Y पर शॉर्ट हैं और X पर लॉन्ग हैं।
  9. जब हम पेयर ट्रेड की शुरुआत करते हैं तो हम उम्मीद करते हैं कि रेजिडुअल्स वापस मीन पर जाएगा और हम तब तक ट्रेड को होल्ड करते हैं।
  10. लॉन्ग और शॉर्ट दोनों ट्रेड का स्टॉप लॉस 3rd स्टैंडर्ड डेविएशन होता है।



3 comments

  1. Negan says:

    It’s great

  2. Really awesome. Sir says:

    Reaally awesome sir………..^……,h$
    ….$$$$i

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