दूसरे लोगों के पैसे के साथ ट्रेडिंग करना

May 31, 2022

लालच और पैसे जल्द कमाने का लालच के कारण मार्केट में काफ़ी ट्रेडिंग एक्टिविटी देखने को मिलती है। जो लोग हमेशा ट्रेड करते है, वे अपने ट्रेडिंग कैपिटल को बढ़ाकर उसे ज़्यादा बनाने की कोशिश करते हैं। और जो लोग लालची नहीं होते हैं, वे हमेशा किसी की तलाश करते रहतें है, जो उनकी ओर से ट्रेड कर सकें या उनके पैसे को मैनेज कर सकें। 

जीवन में हर चीज की तरह, ट्रेडिंग में भी अगर ज़्यादा फ़ायदा चाहिए तब ज़्यादा रिस्क लेना पड़ता है। एक महत्वपूर्ण बात जिसे लोग नज़र अंदाज करते हैं, वह यह है कि कैपिटल खोने का रिस्क हमेशा किसी भी एसेट यानि सम्पति के साथ होता है, जिसमें आप गवर्नमेंट सिक्युरटीज़ या बैंक FDs से ज़्यादा कमाते है। कोई रिस्क-फ्री ट्रेडिंग नहीं होता है। मेरा अनुभव मार्केट में जो भी है उसके अनुसार, लंबे समय में 1% से भी कम एक्टिव ट्रेडर्स, बैंक FD रिटर्न से ज़्यादा कमाते हैं। जबकि यह 1% बहुत कम है, ट्रेडिंग में सफल होने की संभावना उन लोगों के समान होता है, जो लोग बिज़नेस शुरू करने की कोशिश करते हैं।  

ट्रेडर्स अपने कैपिटल का साइज तब तक बढ़ा सकते हैं जब तक कि उनका अपना कैपिटल समय के साथ बड़ी ना हो जाए अगर वे प्रॉफिट कमाते हैं। लेकिन जैसा कि मैंने कहा, लालच ट्रेडिंग को बढ़ावा देता है। अक्सर, ट्रेडर्स पैसे उधार लेकर या फिर दूसरों के लिए ट्रेडिंग करके, जल्द पैसा बनाने के लिए शॉर्टकट खोजने की कोशिश करते हैं। आमतौर पर, आसान तरीका शॉर्ट टर्म के परफॉरमेंस से प्रभावित हो जाना और पैसे उधार लेकर या फिर लोन लेकर, यह उम्मीद करना कि उधर लेने में जो ख़र्च होगा उससे ज़्यादा ट्रेडिंग प्रॉफिट होगा। लेकिन कर्ज़ के बढ़ते डर के कारण, उधार के पैसे पर ट्रेड करते समय सफ़लता प्राप्त हो उसकी संभावना काफ़ी कम हो जाती है। दूसरा तरीका दूसरों के पैसे के साथ ट्रेडिंग करना होता है। जहाँ आमतौर पर, एसेट अंडर मैनेजमेंट के फिक्स्ड % के लिए फ़ीस और/या प्रॉफिट-शेयरिंग के रूप में ट्रेडिंग किया जाता है। जबकि इरादा हमेशा प्रॉफिट ही होता है, इसके ख़िलाफ़ हमेशा बाधाएं खड़ी हो जाती हैं। ज़्यादातर ट्रेडर्स लंबे समय में पैसा खो देते हैं। कहना का मतलब है कि ऐसे ट्रेडर्स को कैपिटल निर्धारित करने वाले ज़्यादातर लोग भी पैसा खो देते हैं। रेगुलेटर्स के पास दर्ज होने वाली सभी शिकायतों में से 80% से अधिक अनऑथराइज़्ड ट्रेडिंग के कारण हुए नुकसान के लिए ही होता हैं। इनमें से कई ऐसे कस्टमर्स हैं जो रिस्क को बिना समझे लालच के ओर चले जाते हैं। ट्रेडिंग के लिए कैपिटल एलोकेशन करते हैं, और फिर रेगुलेटर से शिकायत करके नुकसान जब होता है उस केस में कैपिटल वापस पाने की कोशिश करते हैं।

पिछले कुछ दशकों में, दूसरों के पैसे को संभालना के लिए रेगुलेशंस में लगातार अमेंडमेंटस (संशोधन) हुए हैं। हम सोशल मीडिया और TradingQ&A पर ट्रेडर्स से यह सवाल मिलते रहते हैं कि दूसरों के पैसे को संभालना के लिए बिज़नेस कैसे बनाया जाए। यह पोस्ट कानूनी रूप से उचित तरीके, ग्रे तरीके और वे जो ब्लैक हैं या मौजूदा नियमों के तहत अनुमति नहीं है, के बारें में बात करेंगे।

SEBI के साथ AMC, PMS, AIF, या RIA के रूप में रेजिस्टर किया जा सकता है, जिसे कानून भी इजाज़त देता है। नीचे एक विवरण है (और यहां एक डॉक्यूमेंट है जो अधिक डिटेल्स प्रदान करता है)।

एसेट मैनेजमेंट (AMC) लाइसेंस या म्यूचुअल फंड सेट अप करना

म्यूचुअल फंड दूसरों के पैसे को मैनेज करने का सबसे लोकप्रिय माध्यम है। लेकिन, AMC सेट अप करना बहुत मुश्किल होता है। कहा जाए तो शुरू करने के लिए 50 करोड़ रुपये का नेट वर्थ होना चाहिए। म्यूचुअल फंड के पास स्पष्ट गाइड्लाइन्ज़ होते हैं। फंड मैनेजर को पोर्टफोलियो कैसे बनाना है उसके बारें में इसमें साफ़ साफ़ बताया गया है। इसमें फ्रीडम की भी अनुमति नहीं है। लिमिटेड लेवरेज की अनुमति है, लेकिन इंट्राडे ट्रेडिंग की नहीं है। F&O का इस्तेमाल केवल हेज के लिए किया जा सकता है। चूंकि म्युचुअल फंड शायद सबसे अधिक रेगुलेटेड इक्विटी प्रोडक्ट हैं, आप उन कस्टमर्स को स्वीकार कर सकते हैं जो कम से कम 100 रुपये का इन्वेस्टमेंट करना चाहते हो। एसेट अंडर मैनेजमेंट के% के रूप में फ़ीस कलेक्ट किया जा सकता है।

पोर्टफोलियो मैनेजमेंट (PMS) लाइसेंस

AMC की तुलना में इसे सेट अप करना आसान है। पोर्टफोलियो बनाने के लिए 5 करोड़ रुपये का नेट वर्थ और फ्लेक्सीबिलटी की ज़रूरत होती है। लेकिन इसका भी मतलब ज़्यादा रिस्क है और इसलिए ये केवल उन कस्टमर्स को ऑफर किया जा सकता है जो कम से कम 50 लाख रुपये का इन्वेस्टमेंट कर सकते हैं। लेवरेज या इंट्राडे ट्रेडिंग की अनुमति नहीं है, और F&O का इस्तेमाल केवल हेज के लिए किया जा सकता है। AUM के% या प्रॉफिट का % के रूप में फ़ीस की अनुमति है। PMS आपको कस्टमर्स से फंड जमा करने की अनुमति नहीं देता है और इसलिए इसे अपने अनुसार बनाना होता है, जिससे इसे चलाना कठिन हो जाता है। MFs और AIFs में ऐसा नहीं होता है।  

ऑल्टर्नट इन्वेस्टमेंट फंड (AIF कैट 3) या हेज फंड

AMC की तुलना में इसे सेट अप करना आसान है और लॉ ऑफ़ कॉन्ट्रैक्ट पर छोड़ दिया गया है। फंड शुरू करने का मिनिमम साइज 20 करोड़ रुपये है। पोर्टफोलियो बनाने का कोई नियम नहीं; अंदाज़ (speculate) लगाना के लिए F&O का इस्तेमाल कर सकते हैं, 1 बार तक लेवरेज, इंट्राडे और शॉर्ट सेलिंग की अनुमति है। चूंकि इसमें ज़्यादा रिस्क होता है, इसलिए कस्टमर्स से जो मिनिमम इन्वेस्टमेंट अमाउंट लिया जा सकता है वह अमाउंट 1 करोड़ रुपये सेट किया गया है। फ़ीस AUM के% या प्रॉफिट का % के रूप में लिया जा सकता है।

रेजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट ऐड्वाइज़र (RIA)

जबकि ऊपर बताये गए तीनों आपको कस्टमर्स से कैपिटल कलेक्ट करने और AUM से फ़ीस लेने के लिए फ्लेक्सीबिलटी की अनुमति देते हैं, प्रवेश बाधा काफ़ी ज़्यादा होता है। दूसरी ओर, RIA केवल सलाह दे सकता है, और कस्टमर को ट्रेड एक्सेक्यूट करने की ज़रूरत होती है। दूसरों की तुलना में RIA बनना बहुत आसान है। नेटवर्थ की आवश्यकता 5 लाख रुपये है, और आप किसी भी कस्टमर को सलाह दे सकते हैं (मिनिमम AUM की ज़रूरत नहीं)। लेकिन RIA कस्टमर की ओर से ट्रेड नहीं कर सकता है। फ़ीस को कस्टमर्स से अलग से एक फिक्स्ड फ़ीस के रूप में या AUM के% के रूप में कलेक्ट किया जाता है। प्रॉफिट-शेयरिंग की अनुमति नहीं है।

सोशल मीडिया या पब्लिक प्लेटफॉर्म पर इंडिविजुअल स्टॉक या मार्केट की दिशा पर अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति तब तक है जब तक आप खुद को इन्वेस्टमेंट ऐड्वाइज़र के रूप में नहीं मानते हैं। अगर आप सलाह के लिए फ़ीस कलेक्ट करना शुरू करते हैं या खुद को एक मानते हैं तब आपको लाइसेंस प्राप्त करने की ज़रूरत होगी। RA लाइसेंस अगर सलाह ख़ास तौर पर किसी व्यक्ति के लिए बनाई जाती है, और RA (रिसर्च एनालिस्ट) अगर वही सलाह लोगों के समूह को दी जाती है जिससे फ़ीस कलेक्ट किया जाता है।

रेगुलेटरी ब्लैक एंड ग्रे तरीके

जबकि ऊपर बताये गए तरीके से दूसरों के पैसे को मैनेज करने के लिए अनुमति दी गई है, इसके लिए ऑल्टर्नटिव स्ट्रक्चर इस्तेमाल किया गया हैं; जिनमें से कुछ एक ग्रे क्षेत्र में हैं (इस्तेमाल में लाने के लिए मुश्किल या मौजूदा रेगुलेशन के आसपास एक बचाव का रास्ता) और कुछ जो काले हैं (मौजूदा रेगुलेशन के तहत अनुमति नहीं है)। कुछ ये हैं।

क्लाइंट लॉगिन क्रेडेंशियल का इस्तेमाल करके ट्रेडिंग करना 

कस्टमर खुद ही किसी ट्रेडर या ऐड्वाइज़र के साथ अपना ट्रेडिंग अकाउंट के लॉगिन क्रेडेंशियल को शेयर करता हो। आम तौर पर प्रॉफिट-शेयरिंग व्यवस्था होती है, और कुछ मामलों में, ट्रेडर/ऐड्वाइज़र जो भी नुकसान होता है, उसका पूरा या कुछ हिस्सा का गारंटी देतें है। नियमों के अनुसार इस तरह की व्यवस्था की अनुमति नहीं है लेकिन इसे लागू करना लगभग असंभव है। जैसे ही ऐड्वाइज़र फ़ीस कलेक्ट करता है, उन्हें RIA के रूप में रेजिस्टर करना पड़ता है। और एक RIA के रूप में, आपको कस्टमर की ओर से ट्रेड्स एक्सेक्यूट करने की अनुमति नहीं है। यह व्यवस्था बेहद सामान्य है। ऐसे कई मामले भी हैं जहाँ कस्टमर सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की तलाश करते हैं जो अपने अकाउंट को मैनेज करने के लिए ट्रेडिंग प्रॉफिट जेनेरेट कर रहे हैं।

ब्रोकर/सब-ब्रोकर/AP – क्लाइंट रिलेशनशिप का इस्तेमाल करना

रिवाज के अनुसार, स्टॉकब्रोकर भी ऐड्वाइज़र के रूप में दोगुने हो गए हैं। ब्रोकिंग बिज़नेस का हिस्सा होने के कारण किसी भी इन्सिडेन्टल सलाह के लिए ब्रोकर को RIA रेजिस्ट्रशन से एक्सेम्पट किया गया है। रास्ते में कहीं न कहीं कुछ ब्रोकर्स ने भी कस्टमर्स की ओर से ट्रेडिंग शुरू करने के लिए इस एडवाइज़री को बढ़ावा दिया है। अक्सर, ब्रोकरेज रेवन्यू टारगेट वाले ब्रोकर्स के लिए काम करने वाले रिलेशनशिप मैनेजर्स ने अपने टारगेट को पूरा करने के लिए कस्टमर्स को “low risk-high return” स्ट्रैटजीज़ का इस्तेमाल करके गलत सेल्लिंग किया है। कस्टमर्स की ओर से यह ट्रेडिंग आसान है क्योंकि ब्रोकर्स और उनके रिलेशनशिप मैनेजर्स के पास डीलिंग टर्मिनलों का एक्सेस होता है जहाँ क्लाइंट लॉगिन क्रेडेंशियल के बिना ऑर्डर प्लेस किया जा सकता हैं। इस प्रकार की व्यवस्था में आमतौर पर प्रॉफिट शेयर नहीं होता है क्योंकि ब्रोकर्स को कस्टमर से ब्रोकरेज के अलावा कोई दूसरा अमाउंट लेने की अनुमति नहीं होती है। लेकिन कमाने के लिए, अकाउंट को चर्न किया जाता है, और ब्रोकरेज रेवन्यू जेनेरेट होता है। और जैसा कि आप सोचे होंगे, जितना अधिक चर्न होगा, पैसा खोने का रिस्क उतना ही अधिक होगा।

रेगुलेशंस के अनुसार ब्रोकर्स जो quasi-wealth मैनेजर्स के रूप में काम करते है उन्हें अनुमति नहीं है। इसीलिए अभी के वर्षों में कई ब्रोकर्स के bankrupt होने का ये मुख्य कारण है। ब्रोकर्स ने काफ़ी पैसे खोए है जब वे कस्टमर्स जिनके बड़े अकाउंट होते हे उनके अकाउंट को मैनेज करते थे। इस नुकसान को कवर करने के लिए, एक कस्टमर का मार्जिन दूसरे के लिए इस्तेमाल करना या फिर ब्रोकर के खुद के अकाउंट में इस्तेमाल करना। क्लाइंट्स के बीच सिक्युरटीज़ को ट्रांसफर करना और ये तब तक करना जब तक की इसे छिपाना असंभव हो जाए, सख़्त रेगुलेशन के कारण। 

लेकिन, ब्रोकर बनना आसान नहीं है। ब्रोकर अपने बिज़नेस को बढ़ाने के लिए फ्रेंचाइजी या सब-ब्रोकर या ऑथराइज़्ड पर्सन (AP) को अप्पॉइंट कर सकता हैं। कई ब्रोकर फ्रेंचाइजी को उनके द्वारा शुरू किए गए बिज़नेस को सपोर्ट करने के लिए डीलिंग टर्मिनल भी प्रदान करता हैं। इनमें से कई फ्रेंचाइजी पैसे को मैनेज करने के लिए डीलिंग टर्मिनलों का इस्तेमाल करते हैं। कमाई ब्रोकरेज दोनों रेवन्यू जेनेरेट और/या फिर संभावित प्रॉफिट शेयर करने के लिए भी हो सकती है।

रिलेशनशिप मैनेजर्स, ब्रोकर्स, या सब-ब्रोकर/AP द्वारा लाइसेंस के बिना कस्टमर्स की ओर से एक निश्चित रिटर्न का वादा करके ट्रेड करने वाले इस quasi wealth मैनेजमेंट ने कस्टमर्स को ऐतिहासिक रूप से बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचाया है। SEBI ने सब-ब्रोकर के कांसेप्ट को भी हटा दिया क्योंकि मुख्य ब्रोकर आसानी से सब-ब्रोकर को पैसा दे सकते थे, जिनके पास अनऑथराइज़्ड ट्रेडिंग के बारे में शिकायतों के मामले में अपना अलग SEBI रेजिस्ट्रशन था। आज एक ब्रोकर केवल एक ऑथराइज़्ड पर्सन (AP) को अप्पॉइंट कर सकता है, जहाँ AP के पास SEBI रेजिस्ट्रशन नहीं है, और ब्रोकर को AP के लायबिलिटी को देखना पड़ता है। 

FYI: Zerodha में, कोई रिलेशनशिप मैनेजर कांसेप्ट नहीं है, किसी भी AP को डीलिंग टर्मिनल नहीं दिए गए हैं, और हमारे पेरोल पर किसी का कोई रेवन्यू टारगेट नहीं होता है।

कंपनी की स्थापना और इन्वेस्टर के कैपिटल पर ट्रेडिंग 

एक कंपनी या लिमिटेड लायबिलिटी पार्टनरशिप  (LLP) उन लोगों के साथ बनाई जाती है जो चाहते हैं कि उनके पैसे को शेयरहोल्डर्स या पार्टनर्स बन कर मैनेज किया जाएं। उनके जमा किए गए फंड को तब ट्रेडिंग कैपिटल के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके साथ कुछ समस्या हैं।

सबसे पहले, इन्वेस्टमेंट या ट्रेडिंग के उद्देश्य से LLP की अनुमति नहीं है, इसलिए लोग LLP बनाने के लिए एक दूसरा उद्देश्य का इस्तेमाल करते हैं। यह MCA (मिनिस्ट्री ऑफ़ कॉर्पोरेट अफेयर्स) के नियमों का साफ़ तौर पर उल्लंघन है। प्राइवेट लिमिटेड या पब्लिक लिमिटेड कंपनी के मामले में, अगर 50% से अधिक का रेवेन्यू फाइनेंसियल इनकम (ट्रेडिंग) से आता है, तब कंपनी को RBI के साथ NBFC (नॉन –बैंकिंग फाइनेंसियल कारपोरेशन) के रूप में रेजिस्टर करना पड़ता है। स्टॉक ब्रोकर बन जाने से और SEBI के साथ रेजिस्टर करने से आप NBFC रेजिस्ट्रशन से बच सकतें हैं। ये दोनों रेजिस्ट्रशन उनकी जो कंप्लायंस ज़रूरतें होती हैं उनके साथ ये आते हैं, और एक स्टॉकब्रोकर के रूप में, एक पूर्ण ब्रोकिंग स्टैक चलाने की अलग से पेमेंट करना पड़ता है क्योंकि फर्म ट्रेडिंग के लिए अन्य ब्रोकरों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है।

इसे NBFC या SEBI रेजिस्ट्रशन से बचने के लिए एक पार्टनरशिप फर्म के रूप में भी स्थापित किया जा सकता है, लेकिन एक पार्टनरशिप फर्म के साथ समस्या यह है कि सभी पार्टनर्स के पास अनलिमिटेड लायबिलिटी होता है। ट्रेडिंग में, जहां संभावित रूप से अनलिमिटेड लॉस हो सकते हैं, पार्टनरशिप फर्म इन्वेस्टर के लिए सही संरचना यानि स्ट्रक्चर नहीं होगा।

इस तरह के एक सेटअप के माध्यम से बिज़नेस चलाने से ट्रेडिंग और फ़ीस कलेक्ट करने में फ्लेक्सिबिलिटी मिलता है। आप एक्टिव रूप से बिज़नेस में नए इन्वेस्टर्स की तलाश नहीं कर सकते हैं जो मार्केट्स में ट्रेडिंग से रिटर्न का वादा करते हों। यह एंटिटी को AIF के रूप में रेजिस्टर करने के लिए क्वालीफाई होंगे। LLP (AIF लाइसेंस के बिना) के रूप में शेयर मार्केट में एक्टिव रूप से कैपिटल इन्वेस्ट करने के लिए एंटिटी और प्रमोटरों पर प्रतिबंध (ban) लगाने वाले SEBI के इस आर्डर (पृष्ठ 14, पॉइंट ix) को चेक करें। तो सबसे अच्छा, अगर आपने एक कंपनी या पार्टनरशिप फर्म बनाई है, तब इसे केवल परिवार (सफेद या अलाउड) और दोस्तों (ग्रे) के साथ एक प्रोप्राइटरी ट्रेडिंग फर्म (ग्रे) के रूप में स्थापित किया जा सकता है। लेकिन आप एक्टिव रूप से बाहरी लोगों से (काले) मैनेज करने के लिए कैपिटल नहीं मांग सकते हैं।

उम्मीद है, आपको यह पोस्ट लाभदायक लगे। अगर आप ऊपर बताये गए पोस्ट में किसी भी बात के आधार पर काम करते हैं तब अपने चार्टर्ड एकाउंटेंट या वकील से कंसल्ट करें। 

अगर आपके कोई सवाल या कमैंट्स हैं, तब Trading Q&A पर बातचीत में शामिल हों

बेस्ट,

Content writer at Zerodha


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