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क्या भारत में फ्रॅक्शनल शेयर में इन्वेस्टमेंट की जा सकती है?

June 13, 2022
हमारे यंग इन्वेस्टर्स जिनकी संख्या इंटरनेट पर काफी ज्यादा है और बढ़ती ही जा रही है उन्होंने हमसे पूछा था कि US की तरह भारत में फ्रॅक्शनल शेयर्स पर ट्रेडिंग क्यों नहीं की जा सकती है। हमने एक स्टार्ट अप के साथ, SEBI में SEBI रेगुलेटरी सैंडबॉक्स के अंदर फ्रॅक्शनल शेयर्स में ट्रेडिंग को शुरू करने की अनुमति के लिए रिक्वेस्ट डाला था,  लेकिन हमारा एप्लीकेशन रिजेक्ट हो गया था।यह रिक्वेस्ट सैंडबॉक्स के अंदर स्टॉक ब्रोकर्स के लिए SEBI मास्टर सर्कुलर  के क्लॉज़ 25.1 और 25.3 के अंदर क्लाइंट के पैसे और शेयर्स को इंटरमीडीयरीस के द्वारा हैंडल किये जाने से सम्बंधित थी। इसके बाद हमें इस बारे में जो बातें पता चली वह हम आपके साथ शेयर करना चाहते हैं।  
रॉबिनहुड और 0 ब्रोकरेज की रेस 
2015 में जब रॉबिनहुड ने फ्री में इन्वेस्टमेंट और ट्रेडिंग देना शुरू किया तब US के ब्रोकिंग बिज़नेस में काफी बदलाव आया। बाकी लोगों ने रियेक्ट करने में कुछ और समय लिया लेकिन 2019 में इंटरएक्टिव ब्रोकर्स (IB) और चार्ल्स श्वाब में US ब्रोकर्स के बीच में प्राइस कम करने का सिलसिला शुरू कर दिया। IB ने एक Lite प्लान लेने पर जीरो ब्रोकरेज देकर इसकी शुरुवात की। श्वाब ने भी तुरंत ही सभी सेगमेंट के लिए  0 ब्रोकरेज लेना शुरू कर दिया।  एक सप्ताह के अंदर सभी अच्छे ब्रोकर्स जैसे TD अमेरिट्रेड, ई*ट्रेड(E*Trade), और फिडेलिटी(Fidelity) ने भी ब्रोकरेज 0 कर दी। इसके बाद कुछ कंपनियों का कंसोलिडेशन हुआ जैसे श्वाब ने TD को एक्वायर किया और मॉर्गन स्टेनली ने ई*ट्रेड(E*trade) को एक्वायर किया।
US में जिस प्रकार का सिस्टम है, वहाँ हमेशा से फ्रॅक्शनल शेयर्स(शेयर् के एक भाग में) में इन्वेस्ट किया जा सकता था। लेकिन बहुत सारे ब्रोकर्स इसे ऑफर नहीं करते थे इसलिए रिटेल इन्वेस्टर इसे ज्यादा इस्तेमाल नहीं करते थे। लेकिन जब लगभग सभी ब्रोकर्स ने ब्रोकरेज को 0 कर दिया तो फ्रॅक्शनल शेयर में इन्वेस्टमेंट करना आसान हो गया क्योंकि अब इन्वेस्टर्स के  $5-$7 हर ट्रेड पर नहीं देना पड़ेगा। प्राइस कम होने के तुरंत बाद ही श्वाब, IB, रॉबिनहुड , फिडेलिटी और सभी ब्रोकरों ने फ्रॅक्शनल शेयर्स में इन्वेस्टमेंट को ऑफर करना शुरू कर दिया। यह अच्छा साबित हुआ क्योंकि मिलेनियल्स के अकाउंट में बहुत पैसे नहीं होते थे। उदाहरण के लिए रॉबिनहुड में  लोगो का एवरेज बैलेंस $240 था और यह ब्रोकर के ऊपर भी निर्भर करता था।  लेकिन किसी और ब्रोकर का भी इससे बहुत ज्यादा नहीं हो सकता था।  
इससे अच्छा समय नहीं हो सकता था क्योंकि महामारी के बाद पूरे विश्व में नए ट्रेडर्स, इन्वेस्टर्स और ट्रेडिंग के वॉल्यूम ने सबसे ऊपर का रिकॉर्ड बनाया और फ्रॅक्शनल ट्रेडिंग मार्केट में आ गयी । अब जिनके पास $10 डॉलर है, वो लोग भी Amazon के एक हिस्से में इन्वेस्ट कर सकते हैं, जिसके शेयर का प्राइस $3200+ है।
भारत vs US के स्टॉकब्रोकर्स
आगे हम बात करेंगे कि भारत में फ्रैक्शनल ट्रेडिंग क्यों नहीं की जा सकती है लेकिन इससे पहले हम आपको यह बताते हैं कि भारत और US के ब्रोकर के काम करने में क्या अंतर है।  भारत में ब्रोकर्स क्लाइंट के एजेंट की तरह सिर्फ ऑर्डर डाल सकते हैं। सभी ऑर्डर्स एक्सचेंज को भेजे जाते है जहाँ उन्हें मैच और एक्सेक्यूटे किया जाता है। US में, ब्रोकर डीलर और ब्रोकर दोनों की तरह काम कर सकते हैं। उन्हें ब्रोकर-डीलर कहा जाता है। 
कोई भी व्यक्ति दूसरों के अकाउंट में सिक्योरिटीज में ट्रांसक्शन्स करने का बिज़नेस करता है उसे US में “ब्रोकर ” कहा जाता है।  
ब्रोकर जो कि एक एजेंट के जैसे काम करता है , डीलर प्रिंसिपल के जैसे काम करता है। एक व्यक्ति जो अपने खुद के अकाउंट में ब्रोकर के द्वारा या किसी और माध्यम से सिक्योरिटीज के खरीदने और बेचने के बिज़नेस को करता है, उसे डीलर कहा जाता है। 
US ब्रोकर-डीलर्स के पास काफी छूट है कि उनका ऑर्डर कहाँ और कैसे एक्सेक्यूटे किया जाता है। वह एक एजेंट/ब्रोकर की तरह ऑर्डर्स को स्टॉक एक्सचेंज पर भेज सकते है या प्रिंसिपल/दलेर की तरह कॉउंटरपार्टी हो सकते है या मार्केट मेकर को एक्सेक्यूशन के लिए भेज सकते हैं। US में मार्केट मेकर्स उनके द्वारा भेजे गए ऑर्डर्स के लिए ब्रोकर्स को कमिशन देते है – इस प्रैक्टिस को ऑर्डर फ्लो के लिए पेमेंट कहा जाता है(PFOF)।  लेकिन भारत में ऐसा नहीं हो सकता है। सभी ऑर्डर NSE, BSE और MCX जैसे स्टॉक एक्सचेंजों पर भेजे, मिलाये और एक्सेक्यूटे किए जाते हैं।
US के सभी बड़े ब्रोकर जैसे रॉबिनहुड, चार्ल्स श्वाब और इंटरएक्टिव ब्रोकर्स ब्रोकर-डीलर हैं।
बेनेफिशियल ओनरशिप और स्ट्रीट नेम का कांसेप्ट 
भारत में जब आप इन्वेस्ट करते है तो आप ट्रेडिंग और डीमैट दोनों अकाउंट खोलते हैं। ट्रेडिंग अकाउंट एक इंटरफ़ेस होता है, जिसके द्वारा आप ऑर्डर डालते हैं। डीमैट अकाउंट वह होता है जहाँ खरीदने के बाद आपके स्टॉक्स, बांड्स रखे जाते हैं। डीमैट सर्विसेज ऑफर करने के लिए , एक ट्रेडिंग मेंबर को CDSL और NSDL डेपोसिटोरिएस के साथ पार्टिसिपेंट बनना होता है। भारत में सभी शेयर्स डेपोसिटोरिएस के द्वारा रखे जाते है और इन्वेस्टर्स जिन शेयर्स को खरीदते है वह उनके बेनेफिशियल ओनर होते हैं और वह उनको ब्रोकर्स के अलावा डिपाजिटरी अकाउंट लॉगिन कर के देख सकते हैं।
US में थोड़ा अलग होता है और वहाँ डीमैट का कोई कांसेप्ट नहीं है। इसलिए, US में इन्वेस्टर्स सिर्फ ट्रेडिंग अकाउंट खोलते हैं। US में ख़रीदे हुए डीमैटरियलाइज्ड शेयर्स या तो इन्वेस्टर के नाम पर या ब्रोकर-डीलर(स्ट्रीट-नेम) के नाम पर रखे जाते हैं। स्ट्रीट नेम कॉन्सेप्ट का उपयोग करके ब्रोकर-डीलर इन्वेस्टर के शेयर्स अपने नाम पर रख सकते है और फिर एक बुक-एंट्री पास करके यह डाल सकते हैं कि वह शेयर्स किस क्लाइंट के नाम पर हैं।लगभग सभी बड़े ब्रोकर्स सिक्योरिटीज को होल्ड करते समय स्ट्रीट नेम मेथड को फॉलो करते हैं। 
स्ट्रीट नेम मेथड से सिक्योरिटी रखने मिलना एक कारण है कि ब्रोकर्स ने 0 ब्रोकरेज पर ट्रेडिंग करने देना शुरू किया।  सिक्योरिटीज को स्ट्रीट नेम पर रखा जाता है जिसके कारण ब्रोकर्स, शार्ट-सेलर्स को इन शेयर्स को उधार देकर आय जनरेट कर सकते है और ज्यादा मार्जिन दे सकते हैं। इन कारणों से आय जनरेट होने के कारण वह 0 ब्रोकरेज ऑफर कर पाए।  
फ्रॅक्शनल इन्वेस्टिंग कैसे काम करती हैं ?
US ब्रोकर-डीलर क्लाइंट्स के साथ प्रिंसिपल के आधार पर लेन-देन करके फ्रॅक्शनल ट्रांसक्शन्स को इनेबल करते हैं, शेयर्स के ओनरशिप को डिफ़ॉल्ट रूप से स्ट्रीट नेम पर रखते हैं। यह उन्हें शेयरों के ओनरशिप को बनाए रखने और अपने क्लाइंट्स के साथ ट्रांसक्शन करने के लिए (प्रिंसिपल आधार पर) शेयरों के एक पार्ट या कई हिस्सों के मालिक प्रत्येक क्लाइंट के लिए बुक एंट्रीज बनाकर फ्रॅक्शनल यूनिट्स बनाने की अनुमति देता है ।
इस बारे में आप ऐसा सोच सकते हैं।  जब US के इन्वेस्टर्स शेयर्स खरीदते हैं , तो उन्हें ब्रोकर्स के नाम पर रखा जाता है और ब्रोकर इंडिविजुअल क्लाइंट का लेजर मेन्टेन करते है और शेयर्स असाइन करते हैं। 
ब्रोकर्स ने स्टॉक का ओनरशिप रिकॉर्ड करने के उसी लेजर मैकेनिज्म को फ्रॅक्शनल इन्वेस्टिंग ऑफर करने के लिए उपयोग किया।  जब इन्वेस्टर स्टॉक का एक फ्रैक्शन खरीदता है, ब्रोकर– डीलर स्टॉक को खरीदता है और इन्वेस्टर्स के बीच में बाँट देता है, और स्टॉक को अपने बुक्स में रखता है।  फ्रॅक्शनल शेयर्स को उसी ब्रोकर-डीलर को बेचा जाता है जिससे ख़रीदा गया था। आपको शायद लगा होगा कि जिस प्राइस पर फ्रॅक्शनल शेयर को एक्सेक्यूटे किया गया है वह एक इशू हो सकता है। लेकिन SEC ने फिडुसरी नियमों को परिभाषित किया है कि ब्रोकर-डीलरों को इस बात का पालन करना चाहिए कि यह मुख्य रूप से अपने क्लाइंट्स के साथ किस प्राइस पर लेन-देन करता है, जिसे नेशनल बिड एंड बेस्ट ऑफर गाइडलाइन्स कहा जाता है। गाइडलाइन्स यह सुनिश्चित करते हैं कि फ्रॅक्शनल ऑर्डर्स मार्केट प्राइस से ज्यादा प्राइस पर एक्सेक्यूटे नहीं होते हैं।
ब्रोकर-डीलर या मार्केट पार्टिसिपेंट्स, किसी को भी फ्रॅक्शनल को ऑफर करने में ज्यादा रिस्क नहीं है। पूरे समय के ब्रोकर-डीलर को सिर्फ 1 स्टॉक जिसे वो फ्रॅक्शनल के रूप में देते हैं, उस पर रिस्क सहने की जरुरत है। ब्रोकर-डीलर एक पूरे शेयर की इन्वेंटरी और फ्रॅक्शनल ऑर्डर की पास बुक एंट्री क्लाइंट के अनुसार अपने पास रखते हैं। सामान्य रूप से ब्रोकर- डीलर कुछ इंटरनल पालिसी फॉलो करते है जिससे वह कुछ शेयर के फ्रैक्शन उपलब्ध करवा सकें जैसे की किसी शेयर का 0.1% और सभी आर्डर इसी मल्टीप्ल के फ्रैक्शन में उपलब्ध हों। 
उदाहरण के लिए, यदि स्टॉक X का मार्केट प्राइस $1000 है, तो ब्रोकर-डीलर क्लाइंट्स को 1$ (यानी 0.1%) के मल्टीपल्स  पर स्टॉक का ट्रांसक्शन करने की अनुमति देगा। ब्रोकर-डीलर स्टॉक X के 1 शेयर की एक लिस्ट अपनी 1000 डॉलर की बुक्स पर रखेगा। अगर अब 3 क्लाइंट हैं जो $200, $350 और $150 के ऑर्डर देते हैं, तो ब्रोकर-डीलर क्लाइंट A, क्लाइंट B और क्लाइंट C के लिए अलग-अलग बुक एंट्री पास करेगा, और उसकी बुक्स में अपने नाम के अंदर $300 की इन्वेंट्री बची होगी। इस मामले में ब्रोकर-डीलर स्टॉक प्राइस के लिए मैक्सिमम मार्केट रिस्क $300 की ओर ले जाएगा। इस केस में हर स्तिथि में एक शेयर का प्राइस $1000 होगा।
क्या भारत में फ्रॅक्शनल इन्वेस्टिंग की जरुरत है ?
फ्रॅक्शनल इन्वेस्टिंग US में अच्छा है क्योंकि वहाँ बहुत सारे स्टॉक्स का प्राइस बहुत ज्यादा हैं। 
Companies at current market prices of stocks – US vs India
India
US
Share Price (in Rs.)
Number of companies
Share Price (in $USD)
Number of companies
0-100
2483
0-10 (upto ~Rs. 750)
2956
100-500
1028
10-50 (upto ~Rs. 3,750)
3712
500-1,000
289
50-100 (upto ~Rs. 7,500)
752
1,000-5,000
278
100-500 (upto ~Rs. 37,500)
661
5,000-10,000
20
500-2,000 (upto ~Rs. 1,50,000)
58
> 10,000
16
> 2,000 (> Rs. 1,50,000)
8
भारत में , इक्विटी में डाइवर्सिफाइड एक्सपोज़र पाने के लिए म्यूच्यूअल फण्ड और ETF’s इन्वेस्ट करना सबसे अच्छा है।आप ऐसे केसेस देख सकते हैं जहाँ फ्रॅक्शनल इन्वेस्टिंग नए और कम उम्र के इन्वेस्टर को कम पैसे में इक्विटी मार्किट में इन्वेस्ट करने देता है। 
भारत में, सिर्फ 17 कंपनीज़ हैं जिसका मार्केट प्राइस  >Rs. 10,000 से ज्यादा है और 300+ कंपनीज़ है जिसका मार्केट प्राइस >Rs. 1000 है। एबसल्यूट(absolute)  बेसिस में US की प्रति व्यक्ति आय $ 52,000 और भारत में $ 2,000 है , इसलिए ऐसे इकोसिस्टम को लाने की जरुरत आगे पड़ सकती है।
फ्रैक्शन का एक उपयोग इंडेक्सिंग को डायरेक्ट करना भी है।  डायरेक्टिंग इंडेक्सिंग मतलब एक ही वेट के सभी स्टॉक को एक एक करके इंडेक्स बनाना होता है। इसका फायदा यह है कि यह आपको बड़े इंडाइसेस(indices) जैसे निफ़्टी 100 की शुरुवात करने और इसे बनाने देता है। उदाहरण के लिए , किसी इंडेक्स के शेयर्स को सीधे होल्ड करना आपको टैक्स-लोस्स हार्वेस्टिंग करने देता है जो कि निफ्टी 100 इंडेक्स फंड को रखने पर संभव नहीं होगा।
यह कुछ विशेष मामलों के लिए कस्टमाइजेशन की भी अनुमति देता है जैसे कि यदि कोई निफ्टी 100 माइनस TCS का मालिक होना चाहता है, उदाहरण के लिए, क्योंकि उनके पास TCS ESOPs है। यह एडवाइजर्स और इन्वेस्टर्स को उनके वैल्यू के आधार पर सिन स्टॉक, तेल और गैस स्टॉक जैसे शेयरों की जांच करके निफ्टी 100 पर ESG स्ट्रेटेजी को लगाने देता है। स्मॉलकेस, जिसके साथ हमने रेनमैटर के साथ पार्टनरशिप की है, US में एक चीज़ बनने से पहले 2017 से डायरेक्ट इंडेक्सिंग की अनुमति दे रहा था। आप अपना खुद का स्मॉलकेस बना सकते हैं और कम से कम 1 शेयर में इन्वेस्ट कर सकते हैं, लेकिन फिर भी आपको एक स्मॉलकेस खरीदने के लिए कुछ हज़ार रुपये की आवश्यकता होगी जिसे फ्रॅक्शनल शेयरों का उपयोग करके कम किया जा सकता है।
भारतीय ब्रोकर केवल क्लाइंट्स के एजेंट के रूप में काम कर सकते हैं, न कि प्रिंसिपल के रूप में, इसलिए फ्रॅक्शनल इन्वेस्टिंग नहीं दी जा सकती है। भारत में, ब्रोकर केवल एजेंट होते हैं जो ऑर्डर लेते हैं और उन्हें एक्सचेंजों को भेजते हैं। एक बार ऑर्डर एक्सेक्यूटे होने के बाद, शेयर CDSL और NSDL जैसे डिपॉजिटरी के साथ एक डीमैट अकाउंट में क्लाइंट के नाम पर रखे जाते हैं। यदि भारत में फ्रॅक्शनल इन्वेस्टिंग को लेकर आना है तो बहुत सारे नियमों को बदलने की जरुरत है।
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