Home » Posts » Hindi » ऑप्शन खरीदना: सबसे जोखिम भरा ट्रेड

ऑप्शन खरीदना: सबसे जोखिम भरा ट्रेड

May 31, 2022

मार्केट में पिछले 20 सालों में, मैंने कई ट्रेडर्स से बातचीत की है और एक चीज जो मैंने देखी है, वह यह है की रिटेल इन्वेस्टर्स जब भी ऑप्शन खरीदतें हैं वे हमेशा ही पैसे गँवा देतें हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि आमतौर पर ट्रेडर्स स्टॉक्स या फ्यूचर्स में ना ट्रेड करके, अब ऑप्शन में ट्रेड करतें है। और इसलिए, वे ऑप्शन में उसी तरह ट्रेड करतें हैं जैसे स्टॉक में ट्रेड करतें थे। यह ज़रूर नाकामयाब होगा। 

पिछले वर्ष के दौरान, हमने देखा है कि रिटेल ट्रेडर्स स्टॉक और फ्यूचर्स में ना ट्रेड करके अब वे ऑप्शन में ट्रेड करतें हैं। जो रेस्ट्रिक्शन स्टॉक और फ्यूचर्स के इंट्राडे लेवरेज पर है उससे और भी बढ़ावा मिल सकता है, इस नए पीक मार्जिन नियमों के तहत। युवा ट्रेडर्स जो बहुत ही आक्रामक होते हैं, इसे और मज़बूत करतें है। Zerodha के लिए यह चिंताजनक है।

हमारी हमेशा से यही कोशिश रही है कि हम अपने कस्टमर्स को ऑप्शन ट्रेडिंग के बारें में Varsity के द्वारा शिक्षित करतें रहे। हालाँकि, हमें और अधिक करने की ज़रूरत है। इस पोस्ट में, मैं इस बारे में बात करूँगा कि ज़्यादातर लोग जो ऑप्शन खरीदतें है वो क्यों पैसे खो देतें हैं। जब भी ऑप्शन को बाय करतें हैं तब कैसे रिस्क को कम कर सकतें है और साथ ही कैसे प्रॉफिट को बनाया जा सकता है। आपको बेहतर ट्रेडर बनाने के लिए, हम क्या कर रहे हैं।

ऑप्शंस, लेवरेज, और रिस्क मैनेजमेंट

लेवरेज है जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। लेवरेज यानी कम पैसे से बड़े ट्रेडिंग पोज़ीशन के लिए एक्सपोज़र प्राप्त करना। ऐसा लगता है कि इसमें जल्दी से आप पैसा कमा सकते हैं और लालची बन जातें हैं। 

उदाहरण के लिए, मान लिजिए कि Nifty इंडेक्स 16000 पर ट्रेड कर रहा है, और 16000 कॉल 100 रुपये (लॉट साइज = 75) पर हैं। 7500 रुपये (75 x 100) प्रीमियम के साथ, आप 12 लाख रुपये (16000 x 75) के वैल्यू वाले कॉन्ट्रैक्ट या 160 गुना के लेवरेज के लिए एक्सपोज़र प्राप्त कर सकते हैं। अगर आप इसकी तुलना इंट्राडे स्टॉक या फ्यूचर्स ट्रेडिंग से करते हैं, जो सबसे अच्छा 8 गुना लेवरेज (Nifty फ्यूचर्स मार्जिन लगभग 12%) देता है, तब आप समझेंगे कि ऑप्शन को खरीदना कितना आकर्षित होता है। 

लेवरेज, जैसा कि कहा जाता हैं, सामूहिक विनाश के हथियार की तरह है जब तक कि सावधानी से उपयोग ना किया जाए। लेवरेज के साथ एक्टिव रूप से ट्रेड करते समय सबसे फंडामेंटल रिस्क मैनेजमेंट नियम यह सुनिश्चित करना है कि आप इतनी बड़ी पोज़ीशन ना लें जिससे की आपकी ट्रेडिंग कैपिटल का 5% से अधिक का नुकसान हो जाएं। ऑप्शन बाय करते समय, हो सकता है की पूरा वैल्यू शून्य हो जाएं। इसका मतलब है कि आपको किसी भी समय अपने कैपिटल के कम प्रतिशत (<5%) से अधिक के लिए ऑप्शन नहीं खरीदना चाहिए।

जल्द से जल्द अमीर बनने की कोशिश में यह नियम शौकिया ट्रेडर्स द्वारा अक्सर तोड़े जातें है। यह ऐसा भाग्य है जिससे हम बहक जातें हैं। अगर आप लेवरेज के साथ आक्रामक होकर किसी तरह भाग्यशाली हो गए हैं, तब यदि आप उसी स्ट्रेटेजी का पालन करते हैं, तो हो सकता है की आप लंबे समय में इसे खो दें। ज़्यादातर ट्रेडर अच्छी जीत वाले ट्रेड के बाद अपनी ट्रेडिंग आदतों को नहीं बदलते हैं। पैसा कमाना केवल इस विचार को पुष्ट करेगा कि आप जो कर रहे हैं, वह हो सकता है की ट्रेड करने का सही तरीका है।

मुझे तुरंत ही उतार-चढ़ाव की एक विशेष रूप से शानदार घटना का वर्णन करना चाहिए, जिनमें से ऐसी कई हैं।

2009 में जब मैं रिलायंस मनी (Reliance Money) के साथ एक सब-ब्रोकर था, हमारा एक कस्टमर मई 2009 में भारतीय जनरल इलेक्शन से पहले उसके पास जितने भी पैसे थे वह उसके साथ डीप आउट ऑफ़ द  मनी कॉल ऑप्शन को खरीद लिया था। यह उसके लिए बहुत ही ज़्यादा लकी साबित हुआ क्योंकि Nifty दो  दिनों में 40% से ऊपर चला गया और यह 2L रुपये 2 करोड़ रुपये हो गया था। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई, वे बहुत ही आक्रामक तरीके से ट्रेड करतें रहे, और अगले 6 महीनों में ना केवल पूरे 2 करोड़ बल्कि अपनी प्रारंभिक पूंजी से ज़्यादा का नुक्सान हो गया।

अगर रिस्क के बारें में जानना है तब जो भी ऑप्शन को खरीदतें है उन्हें यह देखना चाहिए कि कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू के संदर्भ में कितना एक्सपोज़र मिल रहा है, और ना कि प्रीमियम। इसलिए, अगर आपके ट्रेडिंग अकाउंट में 1 लाख रुपये थे और आपने Nifty 16000 कॉल के 4 लॉट 100 रुपये में खरीदे हैं, तब इसे 30,000 रुपये का प्रीमियम ना समझें, बल्कि 48 लाख रुपये का एक्सपोज़र (टोटल कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू) = 12 रुपये x 4) समझें। Varsity के इस मॉडल को देखें और पोज़ीशन सिज़िंग के बारें में जानिए।

ऑप्शन प्रीमियम समय के साथ पैसा खो देता है

ट्रेडर्स जब कॉल बाय करतें हैं तब वे सबसे ज़्यादा पैसे खोतें है। ऐसा इसिलिए करतें है क्योंकि उन्हें लगता है कि बाजार में तेजी (bullish) है और जब उन्हें लगता है कि बाजार में मंदी है (bearish) तो पुट खरीदतें हैं। अधिक बार नहीं की तुलना में, वे OTM ऑप्शन खरीदते हैं। जो समस्या इसके साथ है :

मान लीजिए कि Nifty 15800 पर है, और आप 16000 स्ट्राइक का Nifty वीकली कॉल ऑप्शन खरीदते हैं, तब ऑप्शन का प्रीमियम लगभग 100 रुपये होगा। इसका मतलब है कि जब ऑप्शन 16000 है, तब यह पैसा बनाना शुरू कर देता है। लेकिन आप केवल 16000 +100 = 16100 पर ब्रेक ईवन (यदि आप एक्सपायरी तक इसे होल्ड करने का इरादा रखते हैं) शुरू करते हैं, क्योंकि आपको ऑप्शन के लिए 100 रुपये के प्रीमियम की वसूली करनी होगी जिसे आपने भरें हैं। इसका मतलब है कि आपका ब्रेक ईवन 300 पॉइंट दूर है। 

इसका मतलब है कि:

  • आपको सही दिशा में होना होगा।
  • आपको बड़े पैमाने पर सही होना होगा – सिर्फ ब्रेक ईवन के लिए 300 पॉइंट।
  • आपको थोड़े समय के अंदर सही होना होगा।

इन तीनों को एक साथ होना मुश्किल है। भले ही मार्केट फ्लैट और आपके पक्ष में हो, जैसे-जैसे एक्सपायरी के करीब कॉन्ट्रैक्ट पहुँचता है, प्रीमियम टाइम वैल्यू के साथ गिरता है। ऑप्शन प्रीमियम = इन्ट्रिन्सिक वैल्यू+टाइम वैल्यू। एक निश्चित चीज जो लगातार कम होता जाता है, वह है टाइम वैल्यू। यही वजह है कि ऑप्शन जो खरीदतें है वो पैसे खो देते हैं – वे लगातार समय से लड़ रहे हैं।

यह ट्रेडिंग स्टॉक या फ्यूचर्स के तरह नहीं होता है, जहाँ आप संभावित रूप से स्टॉक को हमेशा के लिए होल्ड कर सकते हैं या फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स को रोलओवर कर सकते हैं, भले ही क्यों ना कम अमाउंट देना पड़े। ऊपर बताए गए टाइम वैल्यू का असर बढ़ने लगता है क्योंकि ज़्यादातर जो ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट ट्रेड होते है वो ATM (एट द मनी) या OTM (आउट ऑफ द मनी) हैं जिनका कोई इन्ट्रिंसिक वैल्यू नहीं होता है। तो अगर Nifty 16000 पर है, तब 16000 वाला कॉल्स सबसे ज़्यादा ट्रेड करने वाला कॉन्ट्रैक्ट होगा। लेकिन इस कॉन्ट्रैक्ट का केवल टाइम वैल्यू है और कोई इन्ट्रिंसिक वैल्यू नहीं होता है। इसलिए, अगर ट्रेड अंडरलाइंग Nifty इंडेक्स के खिलाफ नहीं भी जाता है, तब भी पैसे खोने की संभावना ज़्यादा होती है।

यह भी याद रखें कि, यदि आप मंथली एक्सपायरी की तुलना में वीकली एक्सपायरी खरीदते हैं, तब टाइम वैल्यू बहुत तेज़ी से कम हो जाता है। अगर आप डायरेक्शनल व्यू के साथ ऑप्शन को खरीद रहे है तब हमेशा मंथली एक्सपायरी में ट्रेड करें। आपके पास बहुत ही ज़्यादा टाइम वैल्यू होगा और इसलिए हो सकता है कि वीकली ट्रेडिंग की तुलना में प्रॉफिट ज़्यादा होगा। 

बाय ऑप्शन पोज़ीशन को एवरेज करना एक बुरा विचार है

मैंने इसे कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर शेयर किया था, एवरेज करना या फिर अगर प्राइस आपके खिलाफ चली जाती है तब ज़्यादा स्टॉक खरीदना शायद निवेशक के सम्पति को तबाह कर देती है। जबकि एवरेज करना कभी-कभी काम कर सकता है, मुसीबत सिर्फ एक स्टॉक दूर हो सकती है। उदाहरण के लिए, Yes बैंक के मामले में, जैसा कि कुछ साल पहले हमने देखा था कि स्टॉक 400 रुपये से गिरकर 10 रुपये पर आ गया था, कई रिटेल इन्वेस्टर जिन्होंने Yes बैंक को ज़्यादा दाम पर खरीदें थे, वे एवरेज करने की कोशिश कर रहे थे। यहाँ तक ​​​​कि अन्य शेयरों को भी बेच रहे थे ताकि Yes बैंक के शेयर्स को और खरीद सकें। पैसों कि बरबादी बहुत हुई थी।

लेकिन जब आप स्टॉक खरीदते हैं और मार्केट लॉन्ग-टर्म के बुल मार्केट में होते हैं तब कभी-कभी एवरेज डाउन काम कर सकता है। ऐसा इसीलिए होता है क्योंकि आपके पास अपने पक्ष में समय होता है या पोज़ीशन को हमेशा के लिए होल्ड करने की क्षमता होती है। जब समय लगातार आपके खिलाफ टिक रहा हो तो लॉन्ग/बाय ऑप्शन के साथ ऐसा करने के बारे में सोचना हंसने के योग्य है।

मार्केट में ट्रेड करने का सही तरीका यह है कि किसी भी ऐसे ट्रेड के लिए कभी भी अधिक रिस्क ना लें जो आपकी ट्रेडिंग कैपिटल के 5% से ज़्यादा का हो । अगर आपके संभावित नुकसान सीमित हैं, तो जब कोई ट्रेड आपके विरुद्ध चला जाता है तब हो सकता है की आप अक्लमंदी से काम ले। ट्रेडर्स जो अपने नुकसान को स्वीकार नहीं करना चाहते हैं, वे अपने पोज़िशंस के एवरेज करते हैं। ऐसा तब सबसे ज़्यादा देखा जाता है, जब नुकसान बहुत बड़ा है और जिसे स्वीकारना मुश्किल होता है। 

अपने नुकसान को जल्द रोकें

जैसा कि मैंने अभी बताया, जब नुकसान कम होता है तब उसे स्वीकारना आसान है। जैसे-जैसे वे ज़्यादा हो जाते हैं, इससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। अगर आप कैपिटल के 1% से भी ज़्यादा के साथ ऑप्शन में ट्रेडिंग करते हैं, तब स्टॉप लॉस को रखना बहुत ज़रूरी है। कई रिटेल ट्रेडर्स उम्मीद के इस दुष्चक्र (बुरा साइकिल) में फंस जाते हैं जब कोई नुकसान होता है जिसे स्वीकारना मुश्किल हो जाता है। शॉर्ट टर्म या इंट्राडे ट्रेड सिर्फ नुकसान के कारण लॉन्ग टर्म पोज़ीशन में बदल जाते हैं। जब आप ऑप्शन खरीदते हैं, तब ओवरनाइट इंट्राडे पोज़ीशन खोने का यह निर्णय केवल नुकसान को बढ़ाता है। जैसा कि मैंने पहले भी बताया है, जब आप ऑप्शन खरीदते हैं, तब टाइम वैल्यू और प्रीमियम दोनों का वैल्यू लगातार कम हो जाता है। हर अतिरिक्त दिन और वीकेंड में आप बाय ऑप्शन पोज़ीशन जो होल्ड करते हैं, उससे प्रीमियम काफ़ी कम हो जाता है।

ऑप्शन में ट्रेड करने का इम्पैक्ट कॉस्ट

इम्पैक्ट कॉस्ट वह पैसा है जिसे ट्रेडिंग करते समय आप बिड-आस्क स्प्रेड के कारण खो देते हैं। अगर Nifty 16000 कॉल का बिड 100 है और 100.5 आस्क हैं, तब 0.5 रुपये जो इनके बीच का अंतर है, वह इम्पैक्ट कॉस्ट है। जभी भी आप इस कॉन्ट्रैक्ट को खरीदतें और बेचते हैं तब आपको यह इम्पैक्ट कॉस्ट देना होगा। जब आप इस इम्पैक्ट कॉस्ट से बचने के लिए ऑप्शन में एंटर करने के लिए लिमिट आर्डर प्लेस करते हैं, तब लिमिट आर्डर एक्सेक्यूशन की गारंटी नहीं देते हैं। खासकर ट्रेड करते समय अंडरलाइंग स्टॉक या फ्यूचर की तुलना में ऑप्शन प्रीमियम में ज़्यादा उतार चढ़ाव देखा जा सकता है। अगर ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट 100 रुपये पर ट्रेड हो रहा है तब यह उसी दिन ये 200 रुपये या 0 रुपये तक जा सकता है।  

इम्पैक्ट कॉस्ट एक अनदेखा कॉस्ट होता है जो समय के साथ ट्रेडर्स के प्रदर्शन को प्रभावित करती है। मान लिजिए कि आप 1.5 लाख का मार्जिन देकर Nifty फ्यूचर्स के 1 लॉट में ट्रेड करते है और इम्पैक्ट कॉस्ट या बिड-आस्क स्प्रेड 0.5 रुपये था। इसका मतलब है कि 75 (Nifty लॉट size) x 0.5 = ~ 40 रुपये। अब मान लिजिए कि किसी दूसरे ट्रेडर के अकाउंट में रु 7500 हैं। इसका इस्तेमाल वह रु 7500 भर के Nifty कॉल का 1 लॉट, रु100 में खरीदतें है। इस ट्रेड पर इम्पैक्ट कॉस्ट अब Nifty कॉल के 0.5 पॉइंट्स या वही रु 40 होगी। लेकिन यह रु 40 ट्रेडिंग कैपिटल के रु 7500 पर एक भारी 0.5% है।

इसका मतलब यह है कि यदि आप अपने पुरे ट्रेडिंग कैपिटल का इस्तेमाल ऑप्शन खरीदने के लिए करते हैं, और आप दिन में केवल एक ही बार ट्रेड कर रहे हैं, तब हो सकता है की हर महीने आप 10% (0.5% x 20) गवां दें या फिर अपने ट्रेडिंग कैपिटल का केवल इम्पैक्ट कॉस्ट को खो दें। लाभ में बने रहने के लिए 20 से अधिक ट्रेडों के इम्पैक्ट कॉस्ट में हर महीने 10% खर्च होने दें। बेशक, आपके पास कुछ अच्छे महीने हो सकते हैं जहाँ आप 10% से अधिक कमा सकते हैं, लेकिन लंबे समय में, इतना ज़्यादा इम्पैक्ट कॉस्ट के साथ ऊपर आने की संभावना काफी कम हो जाती है। 

आपके अकाउंट के प्रदर्शन पर इस इम्पैक्ट कॉस्ट को कम करने का एकमात्र तरीका यह है कि आप ऑप्शन खरीदते समय हर ट्रेड पर अपने सम्पूर्ण ट्रेडिंग कैपिटल का इस्तेमाल ना करें। नहीं तो फिर, इम्पैक्ट कॉस्ट का असर आप पर बहुत ज़्यादा हो सकता है। इसलिए, ज़्यादा लेवरेज के साथ ट्रेड करते समय रिस्क मैनेजमेंट के अलावा, आपके अकाउंट पर इम्पैक्ट कॉस्ट का प्रभाव के चलते ही आपको किसी भी समय अपनी ट्रेडिंग कैपिटल के 5% से ज़्यादा के लिए ऑप्शन को खरीदना नहीं चाहिए।

ऑप्शन राइटिंग या फ्यूचर्स भी सुरक्षित नहीं हैं

वैसे, मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि आपको ऑप्शन बेचना (राइटिंग) चाहिए या फ्यूचर में ट्रेड करना चाहिए। सभी लेवरेजेड प्रोडक्ट में बहुत ही ज़्यादा रिस्क होता है। लेकिन चूंकि फ्यूचर्स या ऑप्शन राइटिंग ट्रेडिंग करते समय पहले से ही लेवरेज कम होता है और आपको लगातार टाइम वैल्यू से संघर्ष नहीं करना पड़ता है इसलिए भी रिस्क कम होता है। रिस्क जितना कम होगा, प्रॉफिट कमाने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। 

Zerodha में, आम तौर पर दिन के आख़री में,

~सभी ओपन बाय ऑप्शन पोज़ीशन में से 80% नुकसान में होता हैं।

~सभी ओपन शॉर्ट ऑप्शन पोज़ीशन में से 25% नुकसान में होता हैं।

हाई लेवरेज या रिस्क के कारण हमें ये देखना होगा की उन राइटिंग ऑप्शन की तुलना में ऑप्शन जो खरीदतें है उन्हें कितना नुक्सान होता है। इसका कारण यह भी है कि ज़्यादातर लोग ऑप्शन को शॉर्ट करते हैं, या तो नेकेड या फिर किसी स्ट्रेटेजी का हिस्सा होते हैं। आमतौर पर इसे लॉन्ग-टर्म ट्रेड के रूप में सोचते हैं। इसके विपरीत, ज़्यादातर लोग जो बाय ऑप्शन पोज़ीशन होल्ड करतें हैं, आम तौर पर वे होते हैं जिन्होंने इंट्राडे ट्रेड पोज़ीशन लिया था, लेकिन नुकसान की बुकिंग से बचने के लिए इसे ओवरनाइट रखने का फैसला किया।

Zerodha इस बारे में क्या कर रहे हैं ?

जबकि हम Varsity के माध्यम से ट्रेडर्स को शिक्षित करते रहेंगे, हमारा मानना ​​है कि हम एक ब्रोकर के रूप में अपने टूल जैसे Nudge के साथ और अधिक कर सकते हैं। हम कोशिश कर रहे हैं कि क्या हम ऑप्शन खरीदते समय ट्रेडर्स को सावधान रहने के लिए अलर्ट कर सकते हैं। यहाँ उन चीजों की लिस्ट है जो हम करते हैं:

ऑप्शन खरीदते समय स्टॉपलॉस (SL) लगाने के लिए Nudge

हमने अब यूज़र को ऑप्शन खरीदते समय GTT (गुड टिल ट्रिगर) स्टॉपलॉस लगाने के लिए प्रेरित करतें है (शुरू करने के लिए इंडेक्स ऑप्शन)। यदि आप 100 रुपये पर Nifty कॉल खरीदतें हैं, तो ऑर्डर विंडो आपको ऑर्डर देते समय GTT SL प्राइस एंटर करने के लिए प्रोम्प्ट करेगा।

Set a GTT stoploss when buying an index option

बेशक, बिना कोई SL ऑर्डर प्लेस किये ऑप्शन को बाय करना चाहतें हैं तब आप GTT SL ऑप्शन को अनचेक कर सकतें हैं। लेकिन मुझे उम्मीद है कि ज़्यादातर यूज़र SL प्राइस एंटर करेंगे। अगर आपको कोई संदेह हैं कि कितना स्टॉपलॉस% रखना है, तब जो अच्छी संख्या होती है वह 5 से 10% के बीच है। नुकसान जिसे स्वीकारा ना जा सके और जब ये बहुत बड़ा हो जाए, उससे पहले अगर आप पोज़ीशन से बहार निकल सकतें हैं, तब आप एवरेज करने से बच सकते हैं। यह पूरी तरह से कैपिटल का विनाश है जैसा कि मैंने पहले बताया था।

यह SL पुराना है और जब तब कैंसिल नहीं हो जाता ये वैलिड रहता है। हमने इसे Kite वेब पर शुरू किया है और जल्द ही Kite मोबाइल पर भी उपलब्ध कराया जाएगा। GTT का इस्तेमाल करके स्टॉपलॉस कैसे प्लेस किया जा सकता है उसके बारे में अधिक जानने के लिए इसे पढ़ें। GTT के साथ आपको यह सुनिश्चित करना है की अगर कोई भी खुले SL आर्डर है तब उसे कैंसिल कर दें या फिर GTT ऑर्डर से एग्जिट कर जाएं। ऐसा तब करें जब आप आपने पोज़ीशन से सीधे बाहर निकलते हैं ताकि जो भी एक्स्ट्रा पोज़ीशन हैं आपके अकाउंट में उससे बच सकें। 

आउट ऑफ द मनी (OTM) ऑप्शन खरीदने पर रेस्ट्रिक्शन 

जैसा कि मैंने पहले बताया था, केवल टाइम वैल्यू के साथ OTM ऑप्शन खरीदना बहुत बड़ा रिस्क है। OTM ऑप्शन को खरीदा नहीं जा सकता है। आम तौर पर हम इंडेक्स ऑप्शंस को खरीदने की अनुमति देते हैं जो 1% से अधिक OTM होता हैं, यदि इसका इस्तेमाल हेज (hedge) करने के लिए किया जाता है या फिर ऑप्शन स्ट्रेटेजी का हिस्सा हो जहाँ रिस्क बहुत कम होता है। नहीं तो, हम नेकेड OTM ऑप्शन खरीदने की अनुमति नहीं देते हैं।

यह जानबूझकर शुरू करने के लिए नहीं था। हमें OTM इंडेक्स ऑप्शंस खरीदने पर रेस्ट्रिक्शन लगाने के लिए मजबूर किया गया है क्योंकि एक ब्रोकरेज फर्म के रूप में हम किसी भी F&O में कुल मार्केटवाइड OI के 15% ओपन इंटरेस्ट (OI) की नियामक सीमा को पार कर रहे थे।

हालांकि इससे ट्रेडर्स के कुछ समूहों में नाराजगी और एक बिज़नेस के रूप में हमारे लिए रेवेनुए लोस्स हुई है। हम जानते हैं कि ऐसा होने से हमारे कस्टमर्स को OTM ऑप्शन खरीदने पर जो रेस्ट्रिक्शन लगे हैं, उससे बहुत फ़ायदा हुआ है। 

MIS (इंट्राडे) को NRML पोज़ीशन में कन्वर्ट करने पर रेस्ट्रिक्शन 

जैसा कि मैंने पहले बताया है, यदि ट्रेड अच्छा नहीं जाता है, तब कई बार इंट्राडे ट्रेड को ओवरनाइट होल्ड किए जाते हैं। यह लॉन्ग (बाय) ऑप्शन पोज़ीशन के साथ और भी खराब हो जाता है। अब पोज़ीशन कन्वर्शन पर रेस्ट्रिक्शन डाल दिया गया है जहाँ MIS (इंट्राडे) से NRML (ओवरनाइट) में कन्वर्ट नहीं किया जा सकता है। अगर आपने  MIS प्रोडक्ट टाइप को इस्तेमाल करके ऑप्शन खरीदें हैं, तब इसे एक इंट्राडे ट्रेड मन जायेगा। हमने इसे इंडेक्स ऑप्शंस के साथ शुरू किया है और जल्द ही स्टॉक ऑप्शन में भी लागू करेंगे। हम उम्मीद कर रहे हैं कि यह ट्रेडिंग प्लैटफॉर्म में बनाया गया एक एकीकृत रिस्क मैनेजमेंट स्ट्रेटेजी की तरह काम करेगा। इसके साथ, अब हम MIS प्रोडक्ट टाइप का इस्तेमाल करके इंडेक्स ऑप्शन खरीदने की अनुमति देते हैं जहाँ ऑप्शन स्ट्राइक के बहुत सारे रेंज मौजूद हैं। यदि आप इंट्राडे के लिए ऑप्शन ट्रेड ले रहे हैं, तो सुनिश्चित करें कि इस जबरदस्ती रिस्क मैनेजमेंट को शुरू करने के लिए MIS प्रोडक्ट टाइप का इस्तेमाल करें।

कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू के संदर्भ में एक्सपोज़र को दिखाना

 फिलहाल, सभी ट्रेडिंग प्लैटफॉर्म आमतौर पर ट्रेडिंग अकाउंट में उपलब्ध मार्जिन और उपयोग किए गए मार्जिन को दिखाते हैं, लेकिन संपूर्ण एक्सपोजर को नहीं। उदाहरण के लिए, अगर आप 1.5 लाख रुपये का उपयोग करके Nifty फ्यूचर्स का 1 लॉट खरीदते हैं, तब एक्सपोजर 12 लाख रुपये होता है जबकि आपका मार्जिन 1.5 लाख रुपये होता है। इसी तरह, अगर आप प्रीमियम के तौर पर 7500 रुपये के साथ Nifty कॉल के 1 लॉट को खरीदते हैं, तब Nifty में एक्सपोज़र 12 लाख रुपये होता है, ना कि केवल 7500 रुपये।

हम आपको Kite और Console दोनों पर पोज़ीशन पेज पर सम्पूर्ण एक्सपोजर वैल्यू दिखाना शुरू करेंगे ताकि आप अपने अकाउंट में कितना रिस्क ले रहे है उसको अच्छे से समझ सके।

ऑप्शन स्ट्रैटजीज़ बनाम नेकेड (naked) ऑप्शन खरीदना

ट्रेडिंग ऑप्शन स्ट्रैटजीज़ (कॉल और पुट का मिश्रण, खरीदारी और शॉर्टिंग) को जब केवल नेकेड कॉल या पुट से तुलना करते हैं तब ये रिस्क को काफी कम कर सकतीं हैं। जब ऐसा होता है तब जीत की संभावना बढ़ जाती हैं। Sensibull के साथ हमने साझेदारी इसलिए की है ताकि हम उन तरीकों का पता लगा सकें जिसमें हम कस्टमर्स को नेकेड ऑप्शन को खरीदने से लेकर कम रिस्क वाले ऑप्शन स्ट्रैटजीज़ में ट्रेडिंग करने के लिए प्रेरित कर सकें। हमने Kite पोज़ीशन पेज पर analyse options risk button से परिचय कराया है। हम जल्द ही Kite बास्केट के माध्यम से ऑप्शन स्ट्रेटेजी सुझाव लॉन्च करेंगे, दोनों Sensibull द्वारा संचालित हैं।

_____________________________

यह एक लंबी पोस्ट थी। यदि आप ऊपर बताए गए बातों के अलावा कुछ और भी जानतें हैं, जिससे ऑप्शन ट्रेडिंग में मदद मिलेगी तब हमें ज़रूर बताएं। ट्रेड सुझाव जिससे जीत पक्की हो, उसको छोड़कर कुछ और पूछ सकतें हैं क्योंकि ये मुमकिन नहीं है।🙂

Tags:


Content writer at Zerodha


Post a comment




2 comments
  1. Jignesh says:

    Nifty option buy me Risk management mens Risk Or revord kaya mention kare?

  2. Manoj gupta says:

    If I hold stock in the cash and write call option then is it compulsory to maintain margins in account
    Or my holding sale out automatically on the expiry date