2.1 सट्टेबाज या ट्रेडर या निवेशक (Speculator Vs Trader Vs Investor)
शेयर बाजार में आप निवेश कर सकते हैं, ट्रेड कर सकते हैं या सट्टा लगा सकते हैं। यह आप पर निर्भर करता है कि आप इन तीनों में से कौन सा रास्ता अपनाना चाहते हैं। इसी फैसले पर निर्भर करेगा कि आपको बाजार में कितना मुनाफा होगा या कितना नुकसान होगा।
इसको ठीक से समझने के लिए हम एक उदाहरण देखते हैं।
RBI यानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया अगले 2 दिनों में अपनी मुद्रा नीति (Monetary Policy) की घोषणा करने वाला है। मुद्रास्फीति (Inflation) की दर का ज्यादा होने की वजह से RBI पिछली चार बार मुद्रा नीतियों में ब्याज दरें बढ़ा चुका है। जैसा कि हमें पता है कि ब्याज दरें बढ़ने से कंपनियों के लिए मुश्किल पैदा होती है और उनकी कमाई पर असर पड़ता है।
अब मान लीजिए कि 3 लोग बाजार में हिस्सा लेना चाहते हैं सुनील, तरुण और गिरीश। तीनों इस होने वाली घटना को अलग–अलग तरीके से देखते हैं, इसीलिए तीनों अलग–अलग तरीके के कदम उठाते हैं। आइए उनकी सोच को समझते हैं।
यहां मैं ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के बारे में भी बात करूंगा लेकिन आप को समझाने के लिए इस पर विस्तार से चर्चा आगे के मॉड्यूल में की जाएगी।
सुनील की पूरे माहौल अपनी राय है। उसका मानना है कि:
- ब्याज दरें पहले से ही बहुत ऊपर हैं और ये अब और ऊपर नहीं जा सकतीं।
- ऊंची ब्याज दरें कॉरपोरेट इंडिया की विकास दर को कम कर सकती हैं।
- सुनील को लगता है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने ब्याज दरें पहले ही इतनी ज्यादा बढ़ा दी हैं कि अब RBI के लिए ब्याज दरें और बढ़ाना मुश्किल होगा।
- वह टीवी पर आने वाले दूसरे एनालिस्ट को ध्यान से सुनता है और यह जानकर खुश होता है कि उन लोगों के विचार उसके विचार से मिलते हैं।
- वह मान लेता है कि RBI अब ब्याज दरें कम करेगा।
- और इस वजह से बाजार ऊपर जाएगा।
इन विचारों के आधार पर वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का कॉल ऑप्शन खरीदता है।
तरुण की विचार प्रक्रिया थोड़ी अलग है, तरुण मानता है कि:
- RBI से रेट कट करने की उम्मीद करना सही नहीं है। उसे ये भी लगता है कि RBI क्या करेगा यह बताना थोड़ा मुश्किल काम है।
- तरुण यह भी देखता है कि बाजार में बहुत ज्यादा उठापटक हो रही है और उसकी राय में ऑप्शन कांट्रैक्ट बाजार में बहुत ही ऊंचे प्रीमियम पर बिक रहे हैं।
- अपने पिछले अनुभव के आधार पर वह जानता है कि जैसे ही RBI अपने ब्याज दरों की घोषणा करेगा बाजार की उठापटक (वोलैटिलिटी) कम हो जाएगी।
अपने इन विचारों के आधार पर वो निफ्टी कॉल ऑप्शन के पाँच लॉट खरीदता है और जैसे ही RBI घोषणा करेगी, वो इस लॉट बेचने का इरादा रखता है।
गिरीश: गिरीश के पास 12 स्टॉक्स का एक पोर्टफोलियो है जिसको उसने 2 साल से होल्ड कर रखा है। हालांकि वह अर्थव्यवस्था पर करीबी नजर रखता है लेकिन RBI क्या करेगा इस पर उसका कोई विचार नहीं है। वो इसको ले कर चिंतित नहीं है कि पॉलिसी से क्या निकलता है क्योंकि वह जानता है कि वह अपने स्टॉक्स को लंबे समय के लिए रखने का इरादा रखता है। उसको लगता है कि मुद्रा नीति एक छोटे समय की घटना है लंबे समय में बाजार पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा और अगर उसके पोर्टफोलियो पर कोई असर पड़ता भी है तो उसके पास समय भी है और धीरज भी। वह अपने शेयर को होल्ड करेगा।
ऐसे में गिरीश तय करता है कि अगर RBI के फैसले के बाद बाजार कोई बड़ी प्रतिक्रिया देता है और उसके पोर्टफोलियो वाले शेयर गिरते हैं तो वो उन शेयरों में और खरीदारी करेगा।
यहां पर हम इस पर ध्यान नहीं दे रहे हैं कि RBI का फैसला क्या आता है और तीनों में कौन पैसे बनाता है। यहां हम पहचानने की कोशिश कर रहे हैं कि कौन ट्रेडर है, कौन निवेशक है और कौन सट्टेबाजी कर रहा है। तीनों के अपने-अपने तर्क हैं और उसके आधार पर वह बाजार में अपने फैसले करते हैं। ध्यान दें कि कुछ ना करने का गिरीश का फैसला भी एक बाजार से जुड़ा हुआ फैसला है।
सुनील लगभग निश्चित है कि RBI क्या करेगा और वो रेट कम होने के आधार पर अपना फैसला करता है। लेकिन सच्चाई तो यह है कि कोई भी रेगुलेटर क्या करेगा और खासकर इस मामले में RBI क्या करेगा इसको बता पाना एक मुश्किल काम है। RBI के काम काज की एनालिसिस करना इतना आसान नहीं है। ऐसे में बिना किसी तर्क के यह फैसला करना कि रेट कट होगा सिर्फ सट्टेबाजी है। सुनील यही कर रहा है।
तरुण एक योजना के तहत काम कर रहा है। उसे दिख रहा है कि ऑप्शन बाजार में मिल रहे हाई ऑप्शन प्रीमियम का फायदा उठा कर एक ट्रेड किया जा सकता है। वो इस पर कोई दांव नहीं लगा रहा कि RBI क्या करेगा और उसे इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता। उसका इरादा साफ है कि बाजार में वोलैटिलिटी काफी है और ऑप्शन सेलर को प्रीमियम अच्छे मिल रहे हैं। उसे उम्मीद है कि RBI के फैसले के बाद वोलैटिलिटी में कमी आएगी।
क्या वह इस पर सट्टा नहीं लगा रहा कि वाला वोलैटिलिटी गिरेगी?? नहीं, बिल्कुल नहीं। वह अपने पुराने अनुभव के आधार पर यह मान रहा है कि ऐसा होगा। एक ट्रेडर अपने ट्रेड को योजनाबद्ध तरीके से करता है और सट्टा नहीं करता।
दूसरी तरफ गिरीश एक निवेशक है। वो इससे जरा भी प्रभावित नहीं होता कि RBI क्या करेगा? उसके लिए यह बाजार में छोटे समय के लिए शोर मचाने वाली घटना है, जिसका उसके पोर्टफोलियो पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा और अगर असर पड़ेगा भी तो उसका मानना है कि आने वाले समय में उसका पोर्टफोलियो इस झटके से उबर जाएगा। बाजार में सिर्फ एक चीज फायदा दिलाती है और वह है– समय और गिरीश इसका पूरा फायदा उठाने की तैयारी में है। वास्तव में अगर बाजार गिरता है तो वह अपने पोर्टफोलियो शेयर और खरीदारी के लिए इच्छुक है। उसका इरादा है कि बाजार में वह लंबे समय तक टिका रहेगा और छोटे से समय के उठापटक से प्रभावित नहीं होगा।
इन तीनों की अपनी अलग-अलग विचारधाराएं हैं जो उनको अलग-अलग फैसले लेने के लिए प्रभावित करती हैं। इस अध्याय में हम समझेंगे कि गिरीश जो कि एक लंबे समय का निवेशक है वह छोटे समय के उठापटक से क्यों नहीं प्रभावित होता है।
2.2 – कम्पाउंडिंग का असर (The compounding effect)
गिरीश ने अपने निवेश में बने रहने का फैसला क्यों किया और छोटे समय के मार्केट में उठापटक के बावजूद उसने कोई कदम क्यों नहीं उठाया? यह समझने के लिए हमें समझना होगा कि पैसा कंपाउंड कैसे होता है? सरल भाषा में कंपाउंडिंग का अर्थ यह होता है कि पहले साल की कमाई को अगर दूसरे साल में फिर से निवेश कर दिया जाए तो पैसा तेजी से बढ़ता है।
उदाहरण के तौर पर यह मान लीजिए कि आप ने ₹100 निवेश किए हैं जो कि 20% की रफ्तार से हर साल बढ़ने हैं। (याद रखें कि इसे सीएजीआर- CAGR भी कहते हैं)। पहले साल के अंत में आपके पास ₹120 हो जाएंगे। अब आपके पास दो विकल्प हैं:
- ₹20 के अपने मुनाफे को निवेशित रहने दें और अपने अपने ₹100 के प्राथमिक निवेश के साथ उसको भी बढ़ने दें
- ₹20 के मुनाफे को निकाल लें
अगर आपने अपने ₹20 का मुनाफा उस निवेश के साथ रहने दिया तो दूसरे साल के अंत तक आपका ₹120 बढ़कर ₹144 हो जाएगा और तीसरे साल के अंत तक ₹144 बढ़कर ₹173 और यह इसी तरीके से बढ़ता जाएगा। अब इसकी तुलना कीजिए ₹20 का मुनाफा निकाल लेने की स्थिती से। अगर आपने ₹20 का मुनाफा निकाल लिया होता और हर साल भी आप इसे निकालते रहते तो तीसरे साल तक आपको ₹60 मिलते हैं, जबकि निवेशक रहकर तीसरे साल के अंत में आपके पास ₹173 होते हैं, यानी आपको कुल ₹13 का फायदा हो रहा था जो 60 के मुकाबले 21.7% ज्यादा होता। ऐसा सिर्फ इसलिए होता कि आपने अपना पैसा वहां निवेश करने के लिए छोड़ दिया था। इसी को कंपाउंडिंग का असर कहते हैं अब इसको और थोड़ा समझने के लिए नीचे के चार्ट को देखते हैं
ये चार्ट दिखाता है कि ₹100 का निवेश 20% की दर से 10 साल में बढ़ कर कितना होता है। आप देखेंगे कि ₹100, 6 साल में ₹300 हो जाता है जबकि 300 से 600 तक पहुंचने में से सिर्फ 4 साल लगे हैं। यह कंपाउंडिंग की सबसे महत्वपूर्ण बात है आप जितने ज्यादा समय के लिए निवेश करेंगे आपका पैसा उतनी ही ज्यादा तेजी से बढ़ेगा। गिरीश ने इसलिए निवेशक रहने का फैसला किया था और समय के इस फायदे को उठाने की कोशिश की थी। फंडामेंटल एनालिसिस के आधार पर किया गया हर निवेश लंबे समय के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। एक निवेशक को यह विचारधारा अपनानी चाहिए।
2.3 क्या निवेश से फायदा होता है? (Does investing work?)
आप एक पौधे के बारे में सोचिए। अगर आप उसे पानी, खाद और समय देंगे तो क्या वह बढ़ेगा? बिल्कुल बढ़ेगा! इसी तरीके से एक अच्छे बिजनेस के बारे में सोचना चाहिए। अगर उसकी बिक्री अच्छी हो रही हो, मुनाफा अच्छा हो रहा हो, नए प्रोडक्ट आ रहे हो और मैनेजमेंट अच्छा हो तो उस कंपनी का शेयर भी जरूर बढ़ेगा। कुछ मामलों में इस बढ़ोतरी में देरी हो सकती है (याद कीजिए आयशर मोटर्स का चार्ट जो हमने पिछले अध्याय में दिखाया था) लेकिन फिर भी ये बढ़ेगा जरूर। भारत ही नहीं दुनिया भर के बाजारों में यह चीज बार-बार हुई है।
किसी एक अच्छी कंपनी में, जिसमें निवेश करने वाले गुण हैं, निवेश करना हमेशा फायदे का सौदा होता है। बस यह ध्यान रखिए कि आपको छोटी-मोटी उथल-पुथल से यह कुछ समय की उथल-पुथल से घबराना नहीं है।
2.4 कंपनी के निवेश करने लायक गुण क्या होते हैं?(Investible grade attributes? What does that mean)
जैसा कि हमने पिछले अध्याय में भी कहा था कि निवेश करने लायक हर कंपनी के कुछ गुण होते हैं, जो दिखाई देते हैं। इन गुणों को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। कंपनी की गुणवत्ता के हिसाब से और आंकड़ों के हिसाब से। फंडामेंटल एनालिसिस में इन दोनों का अध्ययन किया जाता है। वैसे मैं अपने निवेश के लिए आंकड़ों से ज्यादा कंपनी की क्वालिटी पर भरोसा करता हूं।
क्वालिटी या गुणवत्ता से जुड़े गुण बिजनेस का वह हिस्सा होते हैं, जहां आंकड़े नहीं होते जैसे:
- मैनेजमेंट की पृष्ठभूमि – वो लोग कौन हैं जो कंपनी को चला रहे हैं? उनका बैकग्राउंड क्या है, अनुभव क्या है, उन्होंने पढ़ाई लिखाई क्या की है, उन्हें बिजनेस चलाना आता है या नहीं ,उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला है या नहीं? आदि
- बिजनेस नीतियां (ethics) कैसी हैं – कंपनी की बिजनेस नीति कैसी है? क्या मैनेजमेंट किसी तरीके के घोटाले में, घूसखोरी में या ऐसी बिजनेस नीतियों से जुड़ा है जो कि नैतिक रूप से गलत है।
- कॉरपोरेट गवर्नेंस (Corporate Governance) – डायरेक्टर्स की नियुक्ति, कंपनी का ढांचा, पारदर्शिता जैसी चीजें।
- माइनॉरिटी शेयर होल्डर (Minority Share Holders) – कंपनी अपने माइनॉरिटी शेयरहोल्डर्स से किस तरह का बर्ताव करती है? क्या कंपनी उनके हितों का ख्याल रखती है?
- अपने शेयरों की खरीद-फरोख्त– क्या कंपनी के प्रमोटर छुप-छुपकर अपने ही शेयर खरीदने बेचने में जुटे हैं?
- रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शन (Related party transactions) – क्या कंपनी अपने निवेशकों को नुकसान देते हुए अपने करीबी लोगों और अपने जानने वालों को वित्तीय फायदा पहुंचाने के लिए काम कर रही है जैसे प्रमोटर के रिश्तेदार, दोस्त, या वो दूसरे लोग जो कंपनी के करीब हैं।
- प्रमोटर्स का वेतन– क्या मैनेजमेंट अपने आप को एक मोटी तनख्वाह दे रहा है और साथ में मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा भी?
- शेयर में ऑपरेटर की मौजूदगी – क्या कंपनी के शेयर में असाधारण उतार-चढ़ाव आता है, खासकर तब जब मैनेजमेंट खुद शेयर बाजार में खरीद बिक्री कर रहा हो?
- शेयरधारक (Shareholders)- कंपनी के बड़े शेयरहोल्डर कौन है? किन लोगों के पास कंपनी के 1% से ज्यादा शेयर हैं?
- राजनीतिक नजदीकियां– क्या कंपनी और इसके प्रमोटर किसी खास राजनीतिक पार्टी के करीब हैं? क्या यह बिजनेस राजनीतिक मदद की वजह से चल रहा है?
- प्रमोटर्स का रहन-सहन– क्या प्रमोटर बहुत दिखावे वाली जिंदगी जी रहे हैं? क्या वह हर जगह अपनी दौलत का दिखावा करते हैं?
ऊपर दी गई चीजों में से कोई भी चीज अगर सही नहीं है तो यह एक खतरे की निशानी है। उदाहरण के लिए अगर एक कंपनी बार-बार रिलेटेड पार्टी ट्रांजैक्शन कर रही है तो यह साफ दिखाता है कि कंपनी पक्षपात कर रही है और बुरी नीतियां अपना रही है। यह कंपनी के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। भले ही कंपनी अच्छा और मोटा मुनाफा कमा रही हो, लेकिन जिस दिन बाजार को कंपनी की इन हरकतों के बारे में पता चलेगा, उस दिन लोग शेयर बेचेंगे और कंपनी के शेयर के भाव काफी नीचे आ सकते हैं। इसलिए यह जरूरी है कि निवेशक केवल मुनाफे की ओर ध्यान ना दें बल्कि यह भी देखें कि कंपनी की कॉरपोरेट गवर्नेंस या बाकी चीजें कैसी हैं।
वैसे गुणवत्ता से जुड़ी चीजें को जानना आसान नहीं होता, लेकिन एक अच्छा निवेशक कंपनी की वार्षिक रिपोर्ट को पढ़कर, मैनेजमेंट के इंटरव्यू को देखकर, खबरों को जानकर इन चीजों के बारे में पता कर सकता है। हम इस मॉड्यूल में आगे इन चीजों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
आंकड़ों से जुड़े मुद्दे कंपनी के वित्तीय नतीजों में दिखते हैं। कुछ आंकड़े आपके सामने होते हैं और कुछ आपको ढूंढने पड़ते हैं। जैसे इन्वेंटरी में कैश/नकद कितना है यह आपको पता चल जाएगा लेकिन “इन्वेंटरी नंबर ऑफ डेज” आपको नहीं दिखेगा। लेकिन इसकी गणना करना जरूरी होता है। शेयर बाजार आंकड़ों को बहुत महत्व देता है इन आंकड़ों में जो जरूरी चीजें हैं, वह हैं:
- मुनाफा और इसकी वृद्धि
- मार्जिन और इसकी वृद्धि
- कमाई और इसकी बढ़ोतरी
- खर्चे
- कामकाज की कुशलता
- कीमत तय करने की स्वतंत्रता
- टैक्स से जुड़े मामले
- डिविडेंड
- कैश फ्लो
- शॉर्ट टर्म और लांग टर्म कर्ज़
- वर्किंग कैपिटल
- एसेट में वृद्धि
- नया निवेश
- फाइनेंशियल रेश्यो
यह लिस्ट और भी लंबी है। वास्तव में हर सेक्टर की अपनी अलग लिस्ट होती है। उदाहरण के लिए
रीटेल इंडस्ट्री के लिए: |
ऑयल और गैस इंडस्ट्री के लिए: |
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अगले कुछ अध्याय में हम वार्षिक रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों को, वित्तीय यानी फाइनेंशियल स्टेटमेंट से पढ़ने और समझने की कोशिश करेंगे। आपको पता ही होगा कि फाइनेंशियल स्टेटमेंट ही सारे आंकड़ों का मुख्य स्त्रोत है और यहीं से निकले आंकड़ों की एनालसिस की जाती है।
इस अध्याय की मुख्य बातें
- एक ट्रेडर और एक निवेशक की विचारधारा अलग-अलग होती है।
- एक निवेशक को अपनी विचारधारा निवेशक वाली बनानी होगी तभी वह अच्छे से निवेश कर सकता है।
- एक निवेशक को बाजार में लंबे समय तक निवेशित रहना चाहिए तभी वह कंपाउंडिंग का फायदा उठा सकता है।
- पैसे दोगुने होने की रफ्तार निवेशित रहने की अवधि के साथ ज्यादा तेजी से बढ़ती है। आप जितने समय तक निवेशित रहते हैं उतना ही कंपाउंडिंग का फायदा पाते हैं।
- हर निवेश को कंपनी की गुणवत्ता और आंकड़ों के हिसाब से आंकना चाहिए।
- गुणवत्ता से जुड़े मुद्दों की जांच के लिए आंकड़ों की जरूरत नहीं होती है बल्कि कंपनी की जानकारी जुटानी होती है।
- आंकड़ों से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए कंपनी के उपलब्ध आंकड़ों की जांच करनी पड़ती है। फाइनेंशियल स्टेटमेंट यानी वित्तीय स्टेटमेंट्स इसका सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत है।
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