30.1 क्यों मैक्रोइकोनॉमिक्स

पर्सनल फाइनेंस में 30 अध्याय हो चुके हैं और मैं आसानी से इसमें 10-15 अध्याय और जोड़ सकता हूं लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा।

हमने पर्सनल फाइनेंस का बहुत बड़ा हिस्सा कवर कर लिया है, जैसे म्यूचुअल फंड के ज़रिए निवेश वगैरह, और इसके साथ साथ हमने बहुत सारी जानकारी भी जुटा ली है। उम्मीद है कि ये मॉड्यूल आपके काम आएगा। 

मैं इस मॉड्यूल को मैक्रो इकोनॉमिक्स के अध्याय से समाप्त करना चाहता हूं।

आप सोचेंगे कि पर्सनल फाइनेंस में मैक्रो इकोनॉमिक्स का अध्याय क्यों? पर्सनल फाइनेंस तो किसी एक इंसान या परिवार के फाइनेंस से जुड़ा होता है, और मैक्रो इकोनॉमिक्स किसी देश की आर्थिक सेहत से। तो दोनों में कनेक्शन क्या है?

अब आपको ये बात अच्छी लगे या ना लगे, लेकिन आपका वित्तीय भविष्य इस बात पर बहुत ज्यादा निर्भर करता है कि देश कैसा कर रहा है, खासकर उस मामले में जहां आप लंबे वक्त के लिए निवेश करते हैं, जैसे रिटायरमेंट वगैरह के लिए।

मान लीजिए आपका वित्तीय लक्ष्य है – रिटायरमेंट। इसके लिए आप अपनी तरफ से हर चीज करते हैं, जैसे ध्यान से म्यूचुअल फंड चुनते हैं, निवेश करते हैं, हर साल निवेश की रकम बढ़ाते हैं, और तो और सालों साल ये करते हुए आप लालच या डर कर निवेश की वजह से पैसे बीच में नहीं निकालते हैं। 

लेकिन, जिस देश में आप रहते हैं, वो देश अपने कर्ज नहीं चुका पाता, डिफॉल्ट करता है और इसकी वजह से वहां भूराजनैतिक और बाकी तरह की अस्थिरता आ जाती है। अब ऐसे हाल में आपको क्या लगता है, क्या आपका निवेश सही रिटर्न देगा?

अब मान लें कि आप ऐसे वक्त में निवेश कर रहे हैं जब आपके देश में बड़े-बड़े आर्थिक सुधार होने वाले हैं, देश की जनसांख्यिकीय प्रोफाइल बढ़िया है और सरकार अत्यंत सक्षम है। लेकिन आप ये सब देख और समझ नहीं पाएं और ना के बराबर रिस्क लेते हुए आपने अपने मेहनत की कमाई सोने में निवेश कर दी।

क्या आपको लगता है कि आपने निवेश का सही फैसला लिया? इसलिए मुझे लगता है कि किसी भी इंसान के लिए अपने देश की मैक्रोइकोनॉमिक प्रोफाइल की मूलभूत जानकारी अवश्य होनी चाहिए। 

इस अध्याय में बेसिक बातें होंगी और मैक्रो इकोनॉमिक के सबसे जरूरी बातों को ही बताया जाएगा। अगर ये टॉपिक आपको पसंद आता है तो आप अंडरग्रैजुएशन की मैक्रो इकोनॉमिक्स पर कोई अच्छी किताब पढ़ कर अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं। 

30.2 सकल घरेलू उत्पाद – Gross Domestic Produce (GDP)

हालांकि यह एकदम बेसिक मेट्रिक है लेकिन मैं शुरूआत इसी से करूंगा क्योंकि ये बेसिक यानी मूलभूत है। आपमें से बहुतों को इसकी ठीक-ठाक जानकारी होगी, तो आप चाहें तो इस पार्ट को छोड़कर आगे बढ़ सकते हैं। जिन्हे जीडीपी की जानकारी नहीं है, उनके लिए एक कहानी। 

मेरी बहन की शादी 2002 में हुआ थी, और उस वक्त मेरी उम्र 20 साल से ऊपर थी। शादी के बाद बहन कोयम्बटूर शिफ्ट हो गई और मैं कई बार शनिवार और रविवार को उसके पास चला जाया करता था। मेरी बहन के पड़ोसी बहुत दिलचस्प थे और बहन कई बार उनकी कहानियां मुझे सुनाया करती थी। एक बार ऐसे ही ट्रिप पर मुझे उन पड़ोसी से मिलने का मौका भी मिला। पड़ोसी के परिवार में 3 सदस्य थे – पति, पत्नी और उनकी बेटी। पति-पत्नी की उम्र 50 साल से ऊपर थी। पति की स्टील के बर्तनों की दुकान थी। पत्नी घर के बने पापड़ और अचार का छोटा सा बिजनेस चलाती थी, और बेटी पड़ोसियों के बच्चों को क्लासिकल नृत्य सिखाती थी। 

घर के तीनों सदस्यों का घर में आर्थिक योगदान था। मुझे ये जानने की उत्सुकता थी कि हर एक सदस्य कितना कमाता है। मुझे पक्के तौर पर तो याद नहीं लेकिन इतना याद कि कि

  • पति हर महीने दो से ढ़ाई लाख का सामान बेचता था
  • पत्नी हर महीने 25 हजार का सामान बेचती थी
  • बेटी एक बच्चे से 500 हर महीने लेती थी, और उसके पास 10 बच्चे थे तो हर महीने 5 हजार की कमाई होती थी

तो मोटे तौर पर इस घर की कमाई 2.3-2.8 लाख/महीना थी या फिर कह लें कि सकल रूप ( ग्रॉस – gross) से 34 लाख हर साल। इस परिवार के पास आमदनी का कोई और ज़रिया नहीं था, मतलब ये कि इस परिवार का कुल आर्थिक उत्पादन 34 लाख था। 

तो एक तरीके से यह कह सकते हैं कि इस परिवार का कुल/सकल घरेलू उत्पाद (GDP – Gross Domestic Produce) 34 लाख सालाना था। अगर आप देखें तो आपको समझ में आएगा कि यहां GDP का मतलब परिवार के आर्थिक उत्पाद की कुल वैल्यू से है, जिसमें बेचे के गए रसोई के सामान, पापर और अचार-पापड़ की बिक्री और नृत्य सीखाने जैसी सर्विस शामिल है। 

अब आगे बढ़ते हुए पूरे देश के बारे में सोचिए। देश में कई कंपनियां, फैक्ट्री, कई तरह की सर्विस यूनिट हैं। इन सबका का आर्थिक उत्पाद होता है जिसे अंग्रेजी में इकोनॉमिक आउटपुट (Economic Output) कहते हैं। अब इन सबका जो कुल आर्थिक वैल्यू होगा, वही देश का GDP होगा। अगर कंपनियां अच्छा करेंगी तो जाहिर सी बात है कि देश की जीडीपी भी बढ़ेगी। 

दूसरे शब्दों यह कह सकते हैं कि बढ़ती हुई जीडीपी देश की अच्छी आर्थिक स्थिती का संकेत है। हम सब चाहते हैं कि देश की जीडीपी बढ़े। 

भारत की जीडीपी रैंकिंग पर एक नज़र डालते हैं

ये डेटा 2020 के जीडीपी रैंक को दिखाता है। मैंने ये डेटा वीकिपीडिया से लिया है

2.6 -2.9 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ भारत, जीडीपी रैंकिंग में पांचवे या छठे नंबर पर है। रैंकिंग में भारत, चीन, जापान, यूके और जर्मनी से ही पीछे है। 

ये जानकर अच्छा तो बहुत लगता है कि हम दुनिया के टॉप 5 जीडीपी में हैं लेकिन ये जानना भी ज़रूरी है कि हमारी जीडीपी बढ़ती कैसे है?

देश की जीडीपी की ग्रोथ को मापने के लिए, हमें ग्रोथ रेट की आवश्यकता होगी। इसे आमतौर पर परसेंट में लिखा जाता है। तो अगर यह परसेंट 5% है तो ये बताता है कि कि देश की जीडीपी 5% की रफ्तार से बढ़ रही है। 

जीडीपी ग्रोथ रेट को कैसे कैलकुलेट किया जाता है, उसे हम यहां नहीं समझेंगे। बस इससे जुड़े दो शब्दावली को आप ध्यान में रखें

  • नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ रेट (The nominal GDP growth rate)
  • रीयल जीडीपी ग्रोथ रेट (The real GDP growth rate)

ये दोनों रेट जीडीपी की ग्रोथ की रफ्तार मापने में काम आती है। ये रेट जीडीपी का CAGR होती है। हमने इस मॉड्यूल में CAGR के बारे में काफी बार बात की है। 

एक अखबार की हेडलाइन के ज़रिए इसके संदर्भ को समझते हैं – 

यहां पर मुख्य मुद्दा नॉमिनल वृद्धि दर है नॉमिनल वृद्धि दर ही कुल यानी एबसॉल्यूट वृद्धि दर है। वैसे नॉमिनल वृद्धि दर का इस्तेमाल गलत नहीं है लेकिन ये जमीनी हकीकत को नहीं बताता है।

मैं समझाता हूं…

मान लें कि एक स्टॉक में 100 रुपये निवेश कर रहे हैं। 5 साल में 10 परसेंट की ग्रोथ रेट से 100 रुपया हो जाएगा 161 रुपये। लेकिन 5 साल बाद 161 रुपये की वैल्यू या मूल्य क्या वही रहेगा जो आज है? नहीं ना? हमें पता है कि महंगाई या मुद्रास्फीति की वजह से पैसे की क्रय शक्ति, जिसे अंग्रेजी में परचेजिंग पावर (purchasing power)  कहते हैं, वो कम हो जाती है। 

सही तस्वीर के लिए हमें विकास दर को मुद्रा स्फीति के परिप्रेक्ष्य में देखना होगा। जब हम नॉमिनल जीडीपी वृद्धि को जीडीपी में मुद्रास्फीति के हिसाब से देखते हैं तो हमें जीडीपी की सही वृद्धि दर पता चलती है।

वास्तविक/रीयल जीडीपी ग्रोथ= अंकित/नाममात्र/ नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ – मुद्रास्फीति

Real GDP growth = Nominal GDP growth – Inflation.

मान लें कि मुद्रास्फीति करीब 4.5% है(दायरा 4.5%- 5% का है), तो देश की वास्तविक/रीयल जीडीपी होगी 

10% – 4.5%

= 5.5%

नीचे देखें। चित्र में रीयल/वास्तविक जीडीपी 5% होने का अनुमान लगाया गया है। 

ये स्नैपशॉट डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स से हैं। आप पूरा पेपर इस लिंक पर क्लिक कर के पढ़ सकते हैं। – https://dea.gov.in/sites/default/files/March%202020.pdf.

उसी पेपर में मुझे ये दिलचस्प चार्ट मिला, जो मैं आपके साथ शेयर कर रहा हूं, इसे देखें- 

2020 में कोविड की वजह से ज्यादार देशों की अर्थव्यवस्था (जीडीपी के नजरिए से) को धक्का लगा है। लेकिन 2021 और 2022 में हालात ठीक होने की संभावना है। अब ये हमारे अनुमान के मुताबिक होगा या नहीं ये तो नहीं कह सकते लेकिन स्टॉक मार्केट इससे उबर चुका है। 

खैर इस वक्त आप ज़रा इस बारे में सोचें- 

  • जीडीपी क्या है, ये आपको समझ आ चुका हैYou understood what GDP is
  • नॉमिनल और रीयल जीडीपी ग्रोथ रेट भी आप समझते हैं 

ये दोनों पर्सनल फाइनेंस में क्या मायने रखते हैं? 

30.3 – जीडीपी और मार्केट कैप – GDP and Market cap 

मार्केट कैप के बारे में हमने पहले भी बात की है। जिनको नहीं पता है कि मार्केट कैप क्या होता है, उन्हें तुरंत बता देते हैं – 

मान लें कि किसी कंपनी के स्टॉक की कीमत 75 रु प्रति शेयर है। ये भी मान लें कि कंपनी के 1000 शेयर बाजार में है। तो कंपनी का मार्केट कैप होगा –

स्टॉक की कीमत (Stock Price) × कुल बकाया शेयर ( total outstanding shares)

= 75 x 1000

= Rs.75,000/-

कंपनी के कुल बकाया शेयर की संख्या तो एक समान रहती है लेकिन स्टॉक प्राइस हर दिन बदलता रहता है। जितनी अधिक स्टॉक की कीमत होगी, मार्केट कैप उतना ही ज्यादा होगा। 

अब माने लें कि एक और कंपनी है जिसके 2000 शेयर हैं और स्टॉक की कीमत है 105 रुपये प्रति शेयर। इस कंपनी का मार्केट कैप होगा –

= 105 x 2000

=2,10,000/-

अब मानिए कि पूरे शेयर बाजार में बस यही दो कंपनियां हैं। तो बाजार का मार्केट कैप होगा – 

75000 + 210000

=2,85,000/-

उम्मीद करता हूं कि इस आसान से उदाहरण से आपको मार्केट कैप क्या होता है- ये समझ आ गया होगा। जनवरी 2021 में भारत की सभी लिस्टेड कंपनियों का मार्केट कैप है करीब 2.5 ट्रिलियन डॉलर।

एक सबसे माना हुआ को-रिलेशन ये है कि अगर देश की जीडीपी बढ़ती है, तो मार्केट कैप में भी बढ़ोतरी दिखती है। अगर मार्केट कैप में तेजी दिखती है तो इक्विटी निवेश भी बढ़िया करेगा। हमने ये सब पहले होते देखा है। 

इसलिए जब आप जीडीपी डेटा देखते हैं तो ज़रूर आज के संदर्भ में इसे देखें और ये भी समझने की कोशिश करें कि अगल 5 से 10 साल में ये किस दिशा में जा सकता है।

उदाहरण के लिए, भारत की जीडीपी पर मेरा ख्याल ये है 

  • भारत की जीडीपी 2.6 ट्रिलियन डॉलर है (2021) 
  • वास्तविक जीडीपी ग्रोथ रेट 5.5% है
  • जीडीपी रैंकिंग में हमसे ऊपर ये देश हैं – जापान, जर्मनी, यूके। लेकिन इनके वास्तविक ग्रोथ रेट हमसे कम है। 

आने वाले वक्त में अगर भारत कुछ खास नहीं भी करता है तो ठीक-ठाक जीडीपी ग्रोथ रेट से ( और विकसित देशों में स्लोडाउन से) हमारी जीडीपी रैंकिंग के ऊपर जाने की संभावना है। 

अब सोचिए आप – बढ़ती हुई जीडीपी और सबसे बड़ा लोकतंत्र, और उस पर एक बड़ा तबका कार्य करने वाली जनसंख्या का! 

ये सारे फैक्टर देश में निवेश आकर्षित करते हैं। निवेश आएगा तो कॉरपोरेट अच्छा करेंगे और उससे देश का मार्केट कैप बढ़ेगा। 

क्या ये सब एक रात में हो जाएगा? कतई नहीं 

क्या ये अगले 1-2 साल में होगा? शायद नहीं 

क्या ये अगल 8-10 साल में हो सकता है? संभावना है

और इसलिए लंबे वक्त तक निवेश में बने रहने की ज़रूरत है। 

30.4 – इंडिया इनकॉरपोरेटेड – India Inc 

किसी कॉरपोरेट एंटिटी या संस्था या कंपनी के बारे में सोचें। किसी भी कंपनी के पास आय के कुछ स्त्रोत होते हैं और कुछ खर्चे होते हैं। कमाई और खर्च का फर्क अगर पॉजिटिव है कंपनी मुनाफा बना रही है, अगर ये फर्क निगेटिव है तो कंपनी नुकसान में है। 

अब अपने देश को एक कंपनी के तौर पर देखें। कंपनी के मैनेजमेंट के तौर पर हमारे पास सरकार है, जिसे हम चुनते हैं। इस कंपनी के पास भी आय के कुछ स्त्रोत हैं जैसे की टैक्स, और कुछ खर्च है जिसे हम पूंजीगत व्यय और राजस्व व्यय कहते हैं। अगर यहां भी कमाई और खर्च का फर्क पॉजिटिव में है तो देश के पास सरप्लस है, अगर ये फर्क निगेटिव में है तो हम कहते हैं डेफिसिट है यानी घाटा है। 

नीचे दिए गए स्नैपशॉट को देखें। मैंने ये कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट की वेबसाइट से लिया है। लिंक भी नीचे दिया है। 

http://www.cga.nic.in/GlanceReport/Published/2018-2019.asp

ये जो डेटा आप ऊपर देख रहे हैं वो वित्तीय साल 2018-19 का है और करोड़ रु में दिखाया गया है। इन नंबर को ज़रा विस्तार में समझते हैं।

पहली पंक्ति में भारत के रेवेन्यू यानी राजस्व की जानकारी दी गई है, इसे अंग्रेजी में रेवेन्यू रिसीट – Revenue Receipt और हिंदी में राजस्व प्राप्तियां कहते हैं। ये प्राप्तियां सरकार के लिए राजस्व के स्त्रोत की तरह काम करती हैं। सरकार के राजस्व/रेवेन्यू के दो कैटेगरी है – कर और गैर-कर राजस्व (Tax & Non-tax revenue)

कर राजस्व/Taxes Revenue –  कर राजस्व में वो हर तरह के कर शामिल है जो सरकार वसूलती है। कर को मोटे तौर पर दो कैटेगरी में बांटा जा सकता है – प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर (Direct and Indirect Tax). प्रत्यक्ष कर में वो कर शामिल है जो आप और हम देते हैं, जिसे व्यक्तिगत आयकर कहते हैं और वो कर जो कॉरपोरेट भरते हैं, जिसे कॉरपोरेट आयकर कहते हैं।

अप्रत्यक्ष कर में मोटे तौर पर GST के तौर पर वसूला गया कर होता है। जैसा कि आप देख सकते हैं कि इंडिया इनकॉरपोरेटेड (India Inc) ने 2018-19 में 14.8 लाख करोड़ कर वसूला। इसमें प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर शामिल है। 

याद रखें कि जब GST लिया जाता है तो उसका एक हिस्सा राज्य सरकार और एक हिस्सा केंद्र सरकार के पास जाता है। ये जो 14.8 लाख करोड़ आप देख रहे हैं, वो सिर्फ केंद्र का हिस्सा है, मतलब ये कि असल में कर वसूली और ज्यादा हुई है। 

गैर कर राजस्व/Non-tax revenue –  कर राजस्व के अलावा सरकार के पास आय के स्त्रोत के तौर पर गैर-कर राजस्व भी है। इसमें आमतौर पर PSU कंपनियों द्वारा दिए गए डिविडेंड शामिल है। इन कंपनियों में सरकार की अच्छी खासी हिस्सेदारी है। डिविडेंड इनकम के अलावा सरकार को इन कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेच कर भी राजस्व प्राप्त होता है, इस प्रक्रिया को डिसइन्वेस्टमेंट प्रोग्राम कहते हैं। 2018-19 में गैर राजस्व कर करीब 2.4 लाख करोड़ था। 

दोनों तरह के राजस्व मिलाकर करीब 18.2 लाख करोड़ जमा हुआ था। 

सरकार के खर्चे भी होते हैं जिसे दो हिस्सों में बांटा जा सकता है – राजस्व खर्च या व्यय (Revenue Expenditure) और पूंजीगत खर्च या व्यय (Capital expenditure)

राजस्व व्यय/Revenue Expenditure – इस व्यय में सरकारी स्कीमों के तहत दी जाने वाली सब्सिडी, सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह, ब्याज के पेमेंट वगैरह शामिल है। अगर आप स्नैपशॉट देखेंगे तो पता चलेगा कि राजस्व व्यय 21.4 लाख करोड़ है,  जो कि अच्छी खासी रकम है।

पूंजीगत खर्च/Capital Expenditure –  पूंजीगत खर्च वो खर्च होता है जो सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे रोड, पुल, अस्पताल, इलेक्ट्रिकल ग्रिड, परिवहन वगैरह पर करती है। ऊपर की तस्वीर में आप देख सकते हैं कि पूंजीगत खर्च 3.1 लाख करोड़ है।

ज़रा सोचिए, पूंजीगत खर्च 3.1 लाख करोड़ है और राजस्व खर्च करीब सात गुना ज्यादा – 21 लाख करोड़। अगर सरकार पूंजीगत खर्च ज्यादा करे तो इससे आधारभूत ढांचा कितना बेहतर होगा, कारोबार की तरक्की होगी, नई नौकरियों के मौके बनेंगे, और इनसे बेहतर टैक्स कलेक्शन होगा। 

लंबे वक्त के निवेशक के तौर पर आपको इन खर्चों के पैटर्न को ट्रैक करते रहना चाहिए। इससे आपको ये पता चलेगा कि देश किस दिशा में फोकस कर रहा है। 

राजस्व और पूंजीगत व्यय को जोड़ने पर सरकार के कुल व्यय निकलेगा जो कि करीब 24.57 करोड़ है। 

तो एक तरफ सरकार ने 18.2 लाख करोड़ की कमाई की और 24.57 लाख करोड़ खर्च किए। ज़ाहिर सी बात है कि खर्च, कमाई से ज्यादा है और दोनों में निगेटिव फर्क 6.3 लाख करोड़ है, इसे ही फिस्कल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटा कहते हैं। 

आपके लिए नीचे GDP डेटा दे रहा हूं –

2018-19 के डेटा के मुताबिक देश की जीडीपी 190.1 लाख करोड़ है। अगर आप इसमें फिस्कल डेफिसिट का प्रतिशत निकालें तो –

6.3L Cr / 190.1L Cr

= 3.3%

किसी भी मैक्रोइकोनॉमिक चर्चा में इस रेश्यो की सबसे ज्यादा बात की जाती है। सरकार इस बात की पूरी कोशिश करती है कि फिस्कल डेफिसिट-जीडीपी रेश्यो 4 परसेंट के नीचे रहे।

इसको एक संदर्भ देने के लिए विकिपीडिया से ली गई इस बात को पढ़ें- 

अमेरिका का फिस्कल डेफिसिट यानी वित्तीय घाटा वहां के जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का 4.7% है , ये घाटा बहुत ही बड़ा है। 

इसी को आगे बढाते हुए एक और डेटा प्वाइंट निकाल सकते हैं –  कुल वसूला गया टैक्स जीडीपी का कितना प्रतिशत है

= 17.3/190.1

= 9.1%

अगर हम इसमें राज्यों के हिस्से को भी शामिल कर लें तो ये रेश्यो करीब करीब 11-12 परसेंट होगा। जीडीपी में टैक्स कलेक्शन एक महत्वपूर्ण मेट्रिक है। याद रखिए, जितना ज्यादा टैक्स कलेक्शन, उतनी अधिक आय, इसका मतलब फिस्कल डेफिटसिट के कम होने की ज्यादा संभावना।

तो किन वजहों से टैक्स कलेक्शन ज्यादा होगा? नौकरी के नए मौके, कारोबार का विस्तार, कारोबार करने में आसानी, वगैरह से ज्यादा टैक्स कलेक्शन होता है। 

फिर से आपको याद दिला दूं कि आपको ये नंबर पता होने चाहिए ताकि आप ये समझ सकें कि देश चल कैसे रहा है। याद रखें कि जब आप लंबे वक्त के लिए निवेश करते हैं तो आपका भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि आपका निवेश कितना रिटर्न कमा कर देगा, और ये निर्भर करेगा इस बात पर कि हमारा देश भारत भविष्य में कैसा करेगा?

इन बेसिक जानकारी के बिना निवेश करना अंधेरे में तीर चलाने जैसा है।

इसके साथ इस मॉड्यूल को यही समाप्त करते हैं। उम्मीद करता हूं कि जितना मजा मुझे लिखने में आया, उतना ही मजा आपको पढ़ने में भी आया होगा। 

इस अध्याय की मुख्य बातें: 

  • देश की जीडीपी, देश की कुल आर्थिक उत्पाद को दर्शाता है। मतलब किसी भी देश के भौगोलिक सीमा के भीतर जिस भी गुड्स और सर्विस का उत्पादन हुआ है, सब इस आर्थिक उत्पाद में शामिल है। 
  • नॉमिनल (नाममात्र) जीडीपी ग्रोथ रेट, जीडीपी की कुल ग्रोथ रेट है। इसमें महंगाई शामिल नहीं होती।
  • रीयल (Real) जीडीपी ग्रोथ रेट में महंगाई दर का समायोजन होता है। 
  • 2.6 से 2.9 ट्रिलियन डॉलर के साथ, भारत की जीडीपी, विश्व के जीडीपी रैंकिंग में 5वें/6ठे स्थान पर है।
  • जब देश की GDP बढ़ती है, मार्केट कैप भी बढ़ता है।
  • भारत के रेवेन्यू में टैक्स और नॉन टैक्स रेवेन्यू शामिल है। 
  • भारत के खर्चे में रेवेन्यू और कैपिटल एक्सपेंडिचर शामिल है। 



11 comments

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  1. chandan kumar says:

    thanks a lot sir

  2. kksao says:

    sir, modules 12 & 13 ka hindi nahi aaya hai kya?

    • Kulsum Khan says:

      मॉडल 12 सिर्फ इंग्लिश में ही उपलब्ध होगा, मॉड्यूल 13 पर हम काम कर रहे हैं , जल्द ही उपलब्ध कराया जायेगा।

  3. Sumer singh says:

    Sir sare modules download karwa do plz

  4. Smita says:

    sir, thank you for this deep information.

  5. Roshan says:

    Thank you! please upload 12. 13. 14 and 15 Modules in Hindi

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