2.1 शेयर बाज़ार क्या है?
हमने पहले अध्याय में पढ़ा था कि इक्विटी निवेश का एक ऐसा विकल्प है जिसमें महंगाई दर से कहीं ज्यादा रिटर्न देने की क्षमता है। अब सवाल ये आता है कि इसमें निवेश करे कैसे? इसका जवाब जानने से पहले ये जानना ज़रूरी है कि इक्विटी में निवेश कौन कौन से लोग करते हैं और ये पूरा सिस्टम कैसे काम करता है।
जैसे हम अपने बगल के किराना दुकान जा कर ज़रूरत की चीजें खरीदते हैं, वैसे ही हम इक्विटी में निवेश, या खरीद बिक्री स्टॉक मार्केट या शेयर बाज़ार में करते हैं। इक्विटी में निवेश करते वक्त एक शब्द – ट्रांजैक्ट (Transact) आप बार बार सुनेंगे। ट्रांजैक्ट का मतलब है खरीद-बिक्री करना। और इक्विटी की ये खरीद-बिक्री आप बिना स्टॉक मार्केट के नहीं कर सकते।
स्टॉक मार्केट इक्विटी खरीदने वाले और बेचने वाले को मिलाता है। लेकिन ये स्टॉक मार्केट किसी दुकान या इमारत के रूप में नहीं दिखता, जैसा कि आपके किराने के दुकान दिखते हैं। स्टॉक मार्केट इलेक्ट्रॉनिक रूप में होता है। आप कंप्यूटर के ज़रिए इस पर जाते हैं और वहाँ खरीद बिक्री का काम करते हैं। एक बात का यहाँ ध्यान रखें कि ये शेयरों की खरीद बिक्री का काम आप बिना स्टॉक ब्रोकर के नहीं कर सकते। स्टॉक ब्रोकर एक रजिस्टर्ड मध्यस्थ होता है, जिसके बारे में हम आगे विस्तार से बताएंगे।
भारत देश में दो मुख्य स्टॉक एक्सचेंज हैं- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ( Bombay Stock Exchange- BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (National Stock Exchange- NSE) । इसके अलावा कुछ क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंज भी हैं जैसे बैंगलोर स्टॉक एक्सचेंज, मद्रास स्टॉक एक्सचेंज। क्षेत्रीय स्टॉक एक्सचेंज पर अब ना के बराबर लोग हिस्सा लेते हैं।
2.2 शेयर बाज़ार में कौन लोग हिस्सा लेते हैं और उन्हें रेगुलेट करने की ज़रूरत क्यों है?
शेयर बाज़ार में एक व्यक्ति से लेकर कंपनियाँ तक निवेश करती हैं। जो लोग भी शेयर बाज़ार में खरीद बिक्री करते हैं उन्हे मार्केट पार्टिसिपेंट्स (Market Participants) कहा जाता है। इन मार्केट पार्टिसिपेंट्स को कई कैटेगरी या वर्ग में बाँटा गया है। कुछ कैटेगरी की जानकारी नीचे दी गई है।
- डोमेस्टिक रिटेल पार्टिसिपेंट्स – भारतीय मूल के नागरिक जो भारत में ही रहते हैं, जैसे हम और आप।
- NRI’s और OCI – भारतीय मूल के नागरिक जो विदेशों में बसे हैं।
- घरेलू संस्थागत निवेशक (Domestic Institutions) – इसके तहत बड़ी भारतीय कंपनियाँ आती हैं, जैसे भारतीय जीवन बीमा निगम ( Life Insurance Company of India- LIC)।
- घरेलू ऐसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ ( Asset Management Companies) – इस वर्ग में आमतौर पर घरेलू म्युचुअल फंड कंपनियाँ होती हैं जैसे SBI म्युचुअल फंड, DSP ब्लैक रॉक, फिडेलटी इंवेस्टमेंट्स, HDFC AMC वगैरह।
- विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional Investors) – इसमें विदेशी कंपनियाँ, विदेशी ऐसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ, हेज फंड्स वगैरह आते हैं।
निवेशक किसी भी कैटेगरी या वर्ग का हो, शेयर बाज़ार में भाग लेने वाली हर एंटिटी मुनाफा कमाना चाहती है। और जब पैसे की बात आती है, तो इंसान के अंदर लालच और डर दोनों बहुत ज्यादा होता है। कोई भी इंसान बड़े आराम से लालच और डर के चक्कर में पड़ कर गलत काम कर सकता है। भारत में इस तरह के घोटाले भी हुए हैं, जैसे हर्षद मेहता घोटाला वगैरह। इसलिए ज़रूरी है कि एक ऐसी बॉडी हो, जो नियम कानून बनाए और ये सुनिश्चित करे कि किसी तरह की गलत हरकतें बाज़ार में न हो, और सभी को पैसा कमाने का सही मौका मिले। इसीलिए रेगुलेटर की ज़रूरत होती है।
2.3 रेगुलेटर
भारत में शेयर बाज़ार का रेगुलेटर है भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड ( The Securities and Exchange Board of India- SEBI) जिसे हम सेबी के नाम से जानते हैं। सेबी का उद्देश्य है प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज़) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना, प्रतिभूति बाजार (सिक्योरिटीज़ मार्केट) के विकास का उन्नयन करना तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना । सेबी ये सुनिश्चित करती है कि
- दोनों स्टॉक एक्सचेंज – NSE और BSE, अपना काम सही तरीके से करें
- स्टॉक ब्रोकर्स और सब ब्रोकर्स नियमानुसार काम करें
- शेयर बाज़ार में हिस्सा लेने वाली कोई एंटिटी गलत काम न करे
- कंपनियाँ शेयर बाज़ार का इस्तेमाल सिर्फ खुद के फायदे के लिए न करें – जैसा सत्यम कम्प्यूटर्स ने किया था
- छोटे निवेशकों के हित की रक्षा हो
- बड़े निवेशक, जिनके पास बहुत पूंजी है, वो अपने हिसाब से बाजार में हेर-फेर न करें
- पूरे शेयर बाज़ार का विकास हो
इन उद्देश्यों को देखते हुए ये ज़रूरी है कि सेबी सभी एंटिटी को रेगुलेट करे। नीचे दिए गए सभी एंटिटी शेयर बाजर से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। किसी एक की गलत हरकत से शेयर बाज़ार में उठा पटक मच सकती है।
सेबी ने इन एंटिटी के लिए अलग अलग नियम और कानून बनाए है। सभी को इन नियम कानून के दायरे में रह कर काम करना होता है। इन नियम कानून की विस्तार में जानकारी सेबी के वेबसाइट पर “कानूनी ढाँचा” सेक्शन में आपको मिल जाएगी।
एंटिटी | कंपनियों के उदाहरण | क्या करती हैं ये कंपनियाँ | आसान शब्दों में समझिए |
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क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (Credit Rating Agency- CRA) | CRISIL, ICRA, CARE | कॉरपोरेट्स और सरकार के उधार लेने की योग्यता को रेट करती है | अगर सरकार या कोई कंपनी लोन लेना चाहती है, तो ये कंपनियाँ चेक करती हैं कि सरकार या कंपनी के पास लोन चुकाने की क्षमता है या नहीं। |
डिबेंचर ट्रस्टीज ( Debenture Trustees) | तकरीबन सारे बैंक | कॉरपोरेट डिबेंचर के ट्रस्टी की तरह काम करते हैं | जब किसी कंपनी को पैसे की ज़रूरत होती है तो वो डिबेंचर इश्यू कर सकती हैं, जिस पर वो तय ब्याज देने की बात करते हैं। निवेशक ये डिबेंचर खरीद सकते हैं। डिबेंचर ट्रस्टी ये सुनिश्चित करता है कि कंपनी ने जो ब्याज देने की बात की थी, वो वक्त पर दे। |
डेपोसिटोरीज़ ( Depositories) | NSDL, CDSL | डेपोसिटोरीज़ निवेशकों की सेक्यूरिटीज़ को सुरक्षित रखती हैं और इसकी रिपोर्टिंग और सेटलमेंट करती हैं | जब आप शेयर खरीदते हैं, तो वो आपके डिपॉजिटरी अकाउंट में आ जाते हैं, जिसे डीमैट अकाउंट भी कहते है। इन डीमैट अकाउंट को मैनेज करने का काम ये दो कंपनियाँ करती हैं। |
विदेशी संस्थागत निवेशक ( Foreign Institutional Investors- FII) | विदेशी कंपनियाँ, फंड्स और विदेशी नागरिक | भारत में निवेश करना | ये विदेशी एंटिटी होते हैं, जो भारत मे निवेश करना चाहते हैं। ये निवेश के लिए काफी बड़ी रकम लगाते हैं और इनके निवेश का असर भारतीय शेयर बाज़ार की चाल पर साफ-साफ दिखता है। |
मर्चेंट बैंकर्स | कार्वी, एक्सिस बैंक, एडलवाइज कैपिटल | कंपनियों की मदद करना प्राइमरी मार्केट से पैसा जुटाने में | अगर कंपनी आईपीओ IPO के ज़रिए पैसा जुटाना चाहती है, तो मर्चेंट बैंकर इस पूरी प्रक्रिया में कंपनियों की मदद करते हैं। |
ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी- Asset Management companies -AMC | HDFC AMC, रिलायंस कैपिटल, SBI कैपिटल | म्युचुअल फंड स्कीम्स बेचती हैं | AMC लोगों से पैसे लेता है, उसे एक अकाउंट में डालता है, और उस पैसे को शेयर बाज़ार में निवेश करता है। उद्देश्य ये होता है कि ज्यादा से ज्यादा मुनाफा बना कर निवेशकों को फायदा पहुंचाया जाए। |
पोर्टफोलियो मैनेजर्स, पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सिस्टम (Portfolio management system- PMS) | रेलिगेयर वेल्थ मैनेजमेंट, पराग पारिख PMS | PMS स्कीम्स बेचती हैं | ये है तो म्युचअल फंड की तरह लेकिन यहाँ आपको कम से कम 25 लाख रुपये का निवेश करना होता है। म्युचुअल फंड में ऐसी कोई शर्त नहीं होती। |
स्टॉक ब्रोकर्स और सब ब्रोकर्स | Zerodha, शेयरखान, ICICI डायरेक्ट | निवेशक और स्टॉक एक्सचेंज के बीच मध्यस्थ का काम | आप शेयर की खरीद-बिक्री रजिस्टर्ड ब्रोकर के ज़रिए ही कर सकते हैं। सब-ब्रोकर, ब्रोकर के लिए एजेंट की तरह काम करता है। |
इस अध्याय की ज़रूरी बातें
- अगर आपको शेयर खरीदना-बेचना है तो शेयर बाज़ार या स्टॉक मार्केट के ज़रिए करना होगा।
- शेयर बाजार में शेयर खरीदना-बेचना इलेक्ट्रॉनिक तरीके से होता है और आप किसी स्टॉक ब्रोकर के ज़रिए ये काम कर सकते हैं।
- शेयर बाज़ार में कई भागीदार/खिलाड़ी या पार्टिसिपेंट्स (participants) होते हैं।
- शेयर बाज़ार में भाग लेने या ऑपरेट करने वाले सभी एंटिटी को रेगुलेट करना ज़रूरी है और सबको रेगुलेटर द्वारा बनाए गए नियमों को पालन करना होता है।
- SEBI – सेबी सिक्योरिटी बाज़ार का रेगुलेरटर है। वो नियम- कानून बना कर शेयर बाज़ार में हिस्सा लेने वाले सभी एंटिटी को रेगुलेट करता है।
- सबसे ज़रूरी बात- सेबी को पता होता है कि आप शेयर बाज़ार में क्या कर रहे हैं, अगर आपने कुछ भी गैर-कानूनी किया तो आपके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा।
बोहोत अछि जानकारी हैं। नए लोगों के लिए शेरमार्केट के बारेमें जान्ने के लिए।
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