3.1 आप निवेशक हैं या ट्रेडर या दोनों?

अपना इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए सबसे पहले आपको ये बताना होता है कि आप एक ट्रेडर हैं या इंवेस्टर यानी निवेशक। इनकम टैक्स विभाग ने इस मामले में एक सर्कुलर निकाला है जिससे आपके लिए ये तय करना थोड़ा आसान हो जाए। 

इस सर्कुलर के मुताबिक एक व्यक्ति ये तय कर सकता है कि वो शेयरों में अपने निवेश से होने वाली आमदनी को कैपिटल गेन्स के तौर पर दिखाना चाहता है या फिर उसे एक बिजनेस इनकम (ट्रेडिंग) के तौर पर। वो जो भी फैसला करेगा, आने वाले सालों में उसे इस आमदनी को उसी तौर पर दिखाना होगा, भले ही उस स्टॉक का होल्डिंग पीरियड कुछ भी हो।   

तो इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के पहले आपको बताना होगा कि आप निवेशक हैं, ट्रेडर हैं या दोनों हैं। इस अध्याय में हम आपकी इसी काम में मदद करने की कोशिश करेंगे और ये भी ध्यान रखेंगे कि आपको ये बात इस नज़रिए से बताई जाए, जिस नज़रिए से आपका AO यानी असेसिंग ऑफिसर आपकी आमदनी को देखेगा। यहां आमदनी का मतलब मुनाफा और नुकसान दोनों से है। 

जब आप निवेश या ट्रेडिंग करते हैं तो आपको अपनी आमदनी को निम्न में से किसी एक शीर्षक के तहत रखना पड़ता है। 

  1. लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (Long Term Capital Gain- LTCG)
  2. शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (Short Term Capital Gain- STCG)
  3. सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी (Speculative Business Income)
  4. गैर सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी (Non Speculative Business Income)

आइए इनको एक- एक करके समझते हैं। 

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन (Long Term Capital Gain- LTCG)

मान लीजिए आपने आज 50,000 रुपये के शेयर या म्युचुअल फंड खरीदे और उनको 365 दिनों बाद 55,000 रुपये पर बेच दिया। आपका ये 5000 रुपये का मुनाफा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन माना जाएगा। आमतौर पर स्टॉक या इक्विटी म्युचुअल फंड में निवेश के एक साल बाद बेच कर कमाया गया मुनाफा लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन के तहत आता है। भारत में अभी वो हर आमदनी जिसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन के तहत दिखाया गया है (इक्विटी और इक्विटी म्युचुअल फंड से जुड़ी) पर 1 लाख तक का कोई टैक्स नहीं लगता और इस आमदनी के 1 लाख रुपये से ऊपर होने तक 10% का LTCG देना पड़ता है (FY2018-19 से )। यहां ध्यान रखें कि शेयर की खरीद और बिक्री एक मान्यता प्राप्त एक्सचेंज के ज़रिए होनी चाहिए। 

FY2017-18 तक – अगर आपने 10 साल पहले इंफोसिस के 1 लाख रुपये के शेयर खरीदे थे और आज उनको 1 करोड़ में बेचा तो आपको अपने 99 लाख रुपये के मुनाफे पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता। यानी 99 लाख रुपये की कमाई को टैक्स छूट मिलता। 

लेकिन अब 1 लाख रुपये से ज्यादा की कमाई होने पर 10% का टैक्स देना पड़ेगा। ये सुनिश्चित करने के लिए कि ये टैक्स सिर्फ उस दिन के बाद लगे जब से ये नियम लागू हुआ है, एक ग्रैंडफादर क्लॉज लाया गया – 1 फरवरी के पहले किसी व्यक्ति के पास जितने शेयर थे, उसका कैपिटल गेन निकालने के लिए, उस शेयर की वास्तविक खरीद कीमत या 31 जनवरी को उस शेयर की अधिकतम कीमत में से जो भी ज्यादा होगा उसे लिया जाएगा। 

यदि ये निवेश या उसकी बिक्री ऑफ मार्केट सौदे में की गई है तो 

  1. गैर लिस्टेड स्टॉक – LTCG 20% लगेगा (उदाहरण के लिए स्टार्टअप कंपनी में वेंचर कैपिटलिस्ट द्वारा खरीदे गए शेयर)
  2. लिस्टेड स्टॉक- पहले 1 लाख रुपये तक कोई टैक्स नहीं। 1 लाख के बाद 10% का LTCG

शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन (Short Term Capital Gain- STCG)

मान लीजिए कि आपने कोई लिस्टेड स्टॉक या इक्विटी म्युचुअल फंड आज 50,000 रुपये में खरीदा है और उस अगले 12 महीने के अंदर 55,000 रुपये पर बेच दिया है तो 5000 रुपये की इस कमाई पर शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगेगा। 

आमतौर पर स्टॉक और इक्विटी म्युचुअल फंड में किया गया वो निवेश जो कि एक दिन से ज्यादा रखा गया हो (डिलीवरी वाले स्टॉक) और 12 महीने के अंदर उन्हे बेच दिया गया हो, उसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन माना जाता है।

अभी भारत में शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन 15% है जो कि उस आमदनी पर लगता है जो शेयर या इक्विटी म्युचुअल फंड की बिक्री से होती है। 

इसलिए अगर आप आज 1 लाख रुपये के इंफोसिस के शेयर खरीदें और उसे 10 दिन बाद 1 लाख 20 हजार पर बेच दें तो आपको उस 20,000 पर 15% STCG यानी 3,000 रुपये का टैक्स देना होगा। 

सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी (Speculative Business Income)

इनकम टैक्स एक्ट 1961की धारा 43 (5) के अनुसार इक्विटी या स्टॉक में इंट्राडे या नॉन (गैर) डिलीवरी ट्रेडिंग से होने वाली आमदनी को सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी माना जाता है। मुद्रा बाज़ार में होने वाली ट्रेडिंग को भी सट्टा व्यवसाय ही माना जाता है  क्योंकि वहां STT नहीं होता (यदि आप हेजिंग के लिए करेंसी में डेरिवेटिव ट्रेड कर रहे हैं, तब ऐसा नहीं होता)। 

कैपिटल गेन्स की तरह यहां पर बिजनेस या व्यवसाय आमदनी के लिए टैक्स की फिक्स यानी तय दर नहीं होती। ये बिजनेस इनकम आपकी दूसरी आमदनी में जुड़ती है और आप इनकम टैक्स के जिस  स्लैब में आते हैं, उस हिसाब से इस आमदनी पर टैक्स लगता है। 

उदाहरण के लिए, मान लीजिए किसी वित्त वर्ष में इंट्राडे ट्रेडिंग से मेरी आमदनी 1 लाख रुपये की है और मेरी तनख्वाह 4 लाख रुपये है तो मेरी कुल आमदनी हुई 5 लाख रुपये और मुझे अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से 25,000 रुपये का टैक्स देना होगा जैसा नीचे के टेबल में दिखाया गया है।   

क्रमांक स्लैब टैक्स योग्य रकम कर दर कर की रकम
1 0-2,50,000 2,50,000 0% शून्य
2 2,50,000-5,00,000 2,50,000 5% 12500
    कुल टैक्स                                                                                                    12,500

तो मुद्दे की बात यहां ये है कि आपको अपने सट्टा व्यवसाय की आमदनी को दूसरे स्त्रोतों से होने वाली आमदनी में जोड़ना होता है और अपने लिए टैक्स की रकम निकालनी होती है और अपने टैक्स स्लैब के आधार पर टैक्स देना होता है। 

गैर सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी (Non Speculative Business Income)

अगर आप किसी मान्यता प्राप्त एक्सचेंज में फ्यूचर और ऑप्शन का ट्रेड करते हैं (इक्विटी और कमॉडिटी में) तो उससे होने वाली कमाई को इनकम टैक्स एक्ट 1961 की धारा 43 (5) के तहत गैर सट्टा व्यवसाय आमदनी माना जाता है। 

जैसा कि हम पहले बता चुके हैं कि व्यवसाय से होनेवाली आमदनी पर तय दर से टैक्स नहीं लगता, इसे आपको अपनी बाकी सारी आमदनी में जोड़ना होता है और उसके बाद अपने स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होता है। 

उदाहरण के तौर पर, होटल व्यापार से जुड़ा एक व्यवसायी जो कि ट्रेडिंग भी करता है, F&O ट्रेडिंग से 5 लाख रुपये कमाता है, जबकि होटल व्यवसाय से उसे 20 लाख की कमाई होती है। इस तरह से उसकी कुल आमदनी हो जाती है 25 लाख रुपये, और उसका टैक्स बनता है….

क्रमांक स्लैब टैक्स योग्य रकम कर दर कर की रकम
1 0-2,50,000 2,50,000 0 शून्य
2 2,50,000-5,00,000 2,50,000 5% 12500
3 5,00,000-10,00,000 5,00,000 20% 1,00,000
4 10,00,000-25,00,000 15,00,000 30% 4,50,00
कुल टैक्स                                                     5,62,000 रुपये

आप देख सकते हैं कि ये व्यवसायी अपने F&O से होने वाले मुनाफे पर 30% का टैक्स दे रहा है। 

आपके दिमाग में ये सवाल उठ सकता है कि इक्विटी में इंट्राडे ट्रेडिंग को सट्टा क्यों माना जाता है और F&O को गैर सट्टा क्यों माना जाता है। 

जब आप इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं तो आपका इरादा डिलीवरी लेने का नहीं होता, इसलिए इसे सट्टा माना जाता है। F&O को सरकार ने गैर सट्टा माना है, शायद इसलिए क्योंकि इसका इस्तेमाल हेजिंग के लिए हो सकता है और साथ ही अंडरलाइंग कॉन्ट्रैक्ट की डिलीवरी लेने या देने के लिए हो सकता है (वैसे भारत में अभी इक्विटी और करेंसी डेरिवेटिव का सेटलमेंट कैश में होता है लेकिन डेरिवेटिव की परिभाषा के आधार पर इसे डिलीवरी लेने और देने का जरिया माना जाता है। भारत में सोने जैसी कुछ कमोडिटी के F&O कॉन्ट्रैक्ट में डिलीवरी का ऑप्शन होता है)

 3.2 ट्रेडिंग की आमदनी को बिजनेस आमदनी बताने के फायदे और नुकसान 

पहले ट्रेडिंग को बिजनेस इनकम बताने के फायदों पर नज़र डाल लेते हैं। 

  1. कम टैक्स– अगर कुल आमदनी (ट्रेडिंग और अन्य स्त्रोत) 2,50,000 से कम है तब कोई टैक्स नहीं देना पड़ता और अगर ये आमदनी 5,00,000 से कम है तो आपको सिर्फ 5% का इनकम टैक्स देना पड़ता है। 
  2. खर्चों का क्लेम– आप अपने ट्रेडिंग बिजनेस के सभी खर्चों को दिखा कर उस पर मिलने वाले छूट का फायदा ले सकते हैं (जबकि कैपिटल गेन में आपको सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट नोट में लगने वाले चार्ज और STT का क्लेम कर सकते हैं)। उदाहरण के लिए, ब्रोकरेज, STT, ट्रेडिंग के वक्त लगने वाले दूसरे टैक्स, इंटरनेट, फोन, न्यूज़पेपर, कंप्यूटर और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक के डेप्रिसिएशन, रिसर्च रिपोर्ट, किताबें और बिजनेस से जुड़ी सलाह आदि। 
  3. अपने नुकसान को फायदे के साथ ऑफसेट कर सकते हैं– अगर आपको F&O ट्रेडिंग में यानी गैर सट्टा में नुकसान होता है, तो आप इसे तनख्वाह के अलावा किसी दूसरी आमदनी से ऑफसेट कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर मुझे F&O ट्रेडिंग में 5 लाख रुपये का नुकसान होता है और मेरी दूसरी आमदनी (जैसे किराया, ब्याज, वेतन के अलावा कुछ भी) 10 लाख रुपये है तो मुझे सिर्फ 5 लाख रुपये पर ही टैक्स देना होगा। 
  4. F&O नुकसान को कैरी फॉरवर्ड करना – अगर किसी साल में आपको नुकसान होता है (F&O के गैर सट्टा कारोबार+वेतन के अलावा कोई और आमदनी) और इनकम टैक्स रिटर्न निर्धारित तारीख के पहले फाइल कर दिया जाता है तो आप इस नुकसान को अगले 8 साल तक कैरी फॉरवर्ड कर सकते हैं। अगले 8 सालों में व्यवसाय से होने वाले किसी फायदे (गैर सट्टा व्यवसाय आमदनी) से इस नुकसान को ऑफसेट कर सकते हैं। उदाहरण के तौर पर अगर F&O ट्रेडिंग से आपको 5 लाख का कुल नुकसान हुआ और आपने सही समय पर रिटर्न फाइल करके इसे डिक्लेयर कर दिया और मान लीजिए अगले साल आपको 20 लाख रुपये का फायदा हुआ तो उस साल आप पिछले साल के 5 लाख के नुकसान को इसके सामने ऑफसेट कर सकते हैं और तब आपको सिर्फ 15 लाख पर ही टैक्स देना होगा। 
  5. इंट्राडे इक्विटी के नुकसान को कैरी फॉरवर्ड करना – इंट्राडे इक्विटी ट्रेडिंग यानी सट्टे से जुड़े किसी भी नुकसान को सिर्फ सट्टा व्यवसाय से होने वाले फायदे के साथ ही ऑफसेट किया जा सकता है (आप इंट्राडे इक्विटी ट्रेडिंग से होने वाले नुकसान को F&O ट्रेडिंग से होनेवाले फायदे के साथ ऑफसेट नहीं कर सकते क्योंकि एक सट्टा व्यवसाय आमदनी है और दूसरी गैर सट्टा व्यवसाय आमदनी)। सट्टा व्यवसाय से होने वाले नुकसान को 4 साल तक कैरी फॉरवर्ड किया जा सकता है। इसके लिए आपको सिर्फ सही समय पर रिटर्न फाइल करना होता है। मान लीजिए कि एक इक्विटी ट्रेडर इस साल 1 लाख रुपये का नुकसान करता है। वो इसे किसी और दूसरी व्यवसायिक आमदनी से ऑफसेट नहीं कर सकता, लेकिन वो इसे अगले साल या 4 साल तक कैरी फॉरवर्ड कर सकता है। मान लीजिए अगले साल वो इक्विटी इंट्राडे ट्रेडिंग से 50,000 रुपये का मुनाफा कमाता है तो वो इसको पिछले साल के 1 लाख रुपये के नुकसान से ऑफसेट कर सकता है और बाकी बचे 50,000 के नुकसान को अगले 3 साल के लिए अभी भी कैरी फॉरवर्ड कर सकता है। ध्यान दीजिए कि नुकसान का एक हिस्सा भी ऑफसेट करना भी संभव है। नीचे की टेबल में इन बिंदुओं को संक्षेप में दिखाया गया है। 
जिस कमाई में घाटा हुआ है क्या घाटा उसी साल सेट-ऑफ हो सकता है   क्या घाटा कैरी फॉरवर्ड हो सकता है और आने वाले साल में सेट-ऑफ हो सकता है कैरी फॉरवर्ड और नुकसान सेट-ऑफ करने की समय-सीमा
उसी हेड/वर्ग के तहत दूसरे हेड/वर्ग के तहत उसी हेड/वर्ग के तहत दूसरे हेड/वर्ग के तहत
हाँ हाँ हाँ  नहीं  8 साल
सट्टा व्यवसाय हाँ नहीं हाँ नहीं  4 साल
कैपिटल गेन (शॉर्ट टर्म) हाँ नहीं हाँ नहीं 8 साल

अब शेयर ट्रेडिंग से होने वाली आमदनी को बिजनेस आमदनी दिखलाने से होने वाले नुकसान पर भी नज़र डाल लेते हैं। 

  1. टैक्स की संभावित ऊंची दरें- अगर आप 30% के टैक्स स्लैब में हैं, तो आपको शेयर ट्रेडिंग से होने वाले हर मुनाफे पर 30% तक टैक्स देना पड़ सकता है। 
  2. ITR फॉर्म- इस आमदनी को बिजनेस आमदनी दिखाने पर आपको ITR 3 (2016 तक ITR 4) या ITR 4 (2016 तक ITR 4S) का इस्तेमाल करना पड़ेगा जिसके लिए आपको चार्टर्ड अकाउंटेंट की मदद लेनी पड़ सकती है। उन लोगों के लिए जो वेतन पाते हैं और अभी तक आसानी से ITR 1  या ITR 2 का इस्तेमाल करते हैं उनके लिए ये थोड़ी ज्यादा मेहनत और ज्यादा महंगा काम हो सकता है। 
  3. ऑडिट – इसके लिए आपको अपने अकाउंट को हमेशा तैयार रखना पड़ेगा और अगर आपका टर्नओवर 5 करोड़ के ऊपर जाता है (FY 19-20 तक 2 करोड़) या आपका मुनाफा आपके टर्नओवर का 6 परसेंट से कम हो तो आपके खातों का ऑडिट हो सकता है।  

3.3 आप कौन हैं? ट्रेडर, निवेशक या दोनों?

CBDT के अनुसार

निवेशक: जो भी व्यक्ति डिविडेंड कमाने की नीयत से निवेश करता है, वो निवेशक है।

ट्रेडर: जो भी व्यक्ति इस नीयत से खरीद-बिक्री करता है कि दाम बढ़े तो मुनाफा कमाया जाए, वो ट्रेडर है। 

निवेशक के तौर पर इक्विटी से हुए सारे मुनाफे (डिलीवरी वाले) को कैपिटल गेन्स के तौर पर दिखा सकते हैं। लेकिन एक ट्रेडर के लिए ये बिजनेस इनकम यानी कारोबार से हुई आमदनी होगी, जिसके अपने फायदे-नुकसान हैं, जिसकी चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं। 

F&O ट्रेडिंग, और इक्विटी इंट्राडे ट्रेडिंग को लेकर नियम बहुत साफ है। F&O ट्रेडिंग को गैर सट्टा व्यवसाय माना जाएगा और इक्विटी इंट्राडे ट्रेडिंग को सट्टा व्यवसाय माना जाएगा। तो अगर आप इनमें ट्रेड करते हैं तो आपको आई-टी रिटर्न फाइल करने के लिए ITR 3 फॉर्म इस्तेमाल करना होगा। तो भले ही आप नौकरी कर रहे हो और आपको हर महीने सैलरी आती हो, F&O और इक्विटी इंट्राडे ट्रेडिंग से होने वाली आमदनी (कमाई या नुकसान) को डिक्लेयर करने के लिए ITR 3 का इस्तेमाल करना होगा। 

बहुत से लोग ये जानते नहीं हैं लेकिन हम आपको बता दें कि जो नुकसान आपको होता है, उसे भी डिक्लेयर करना होता है। एक्सचेंज पर हुए किसी भी ट्रेडिंग गतिविधि को IT विभाग से छिपाना मतलब मुसीबत बुलाना, खासकर तब जब IT जांच होती है। ( जब IT असेसिंग ऑफिसर आपसे मिलकर आपके IT रिटर्न पर स्पष्टीकरण मांगता है, तो उसे IT जांच [IT Scrutiny] कहते हैं।) इस तरह के जांच के आदेश आने की संभावना तब बढ़ जाती है जब IT विभाग का सिस्टम आपके PAN के आधार पर ट्रेडिंग गतिविधि को पकड़ लेता है लेकिन वो आपके ITR में दिखाई नहीं गई हो।

डिलीवरी वाले इक्विटी निवेश में, अगर आप स्टॉक को 1 साल से ज्यादा वक्त के लिए होल्ड करते हैं, तो आपको किसी न किसी तरह का डिविडेंड मिला होगा और अगर नहीं भी मिला तो आप इन सबको निवेश के तौर पर दिखा सकते हैं और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स के तहत छूट क्लेम कर सकते हैं। अगर आप कम वक्त में बार-बार, लगातार स्टॉक की खरीद-बेच रहे हैं, तो बेहतर होगा कि इसे STCG के बजाए गैर सट्टा व्यवसाय से होने वाली आमदनी के तौर पर दिखाया जाए। 

एक बात आपको यहां ध्यान में रखनी है। अगर बाज़ार में निवेश/ट्रेडिंग ही आपकी कमाई का इकलौता ज़रिया है तो ऐसे में भले ही आपकी ट्रेडिंग गतिविधि ना कम ना ज्यादा हो, बेहतर होगा कि इक्विटी ट्रेडिंग से हुए सभी आय को बिजनेस इनकम के तौर पर बताया जाए। वहीं, अगर आप नौकरीपेशा हैं, या कोई और कारोबार आपकी आय का प्रमुख स्त्रोत है तो ऐसे में इक्विटी ट्रेडिंग से हुई कमाई को कैपिटल गेन्स के तौर पर दिखाना ज्यादा आसान होगा, भले ही आप थोड़ा ज्यादा और जल्दी-जल्दी ट्रेड कर रहे हों। 

अच्छी बात ये हुई कि सर्कुलर में ये साफ कर दिया गया कि आप एक ही वक्त में ट्रेडर और निवेशक दोनों हो सकते हैं। तो आपके पास ऐसे स्टॉक भी हो सकते हैं जो लंबे वक्त के निवेश के लिए हो और कुछ शेयर शॉर्ट टर्म में ट्रेड के लिए भी हो सकते हैं। सिर्फ इसलिए कि आप शॉर्ट टर्म ट्रेड बहुत करते हैं, ये कतई ज़रूरी नहीं है आपके लॉन्ग टर्म निवेश को भी ट्रेडिंग की तरह देखा जाएगा और लॉन्ग टर्म गेन्स को बिजनेस इनकम के तहत रखा जाएगा। लेकिन ये ज़रूरी है कि आप रिटर्न फाइल करते वक्त ट्रेडिंग और निवेश के पोर्टफोलियो को अलग- अलग दिखाएं। 

इसी तरह, अगर आप F&O ट्रेडिंग या इक्विटी इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं तो आपको खुद को ट्रेडर की श्रेणी में रखना ज़रूरी है, लेकिन तब भी औप अपने लॉन्ग टर्म निवेश की कमाई को कैपिटल गेन्स के तहत दिखा सकते हैं। 

तो आप एक निवेशक भी हो सकते हैं, एक ट्रेडर भी हो सकते हैं या फिर दोनों हो सकते हैं। बस इस बात का ध्यान रखें कि रिटर्न फाइल करते वक्त एक चार्टर्ड अकाउंटेंट से परामर्श ज़रूर लें। 

एक बात ख्याल रखिए कि जब तक कि आपकी नीयत सही है, आप रिटर्न फाइल करते वक्त बेसिक नियमों का पालन करते हैं, सब बहुत आसान है। लेकिन आप अपने को जिस भी श्रेणी में रखते हैं, उस श्रेणी में ही खुद को बनाए रखें। हर बार स्विच ना करें यानी बदले नहीं। 

अगर आप इन आसान नियमों का पालन करेंगे तो टैक्स अधिकारी से डरने की कोई ज़रूरत नहीं होगी। 

इस अध्याय को समाप्त करने से पहले कुछ लिंक नीचे दे रहा हूं जिसे पढ़ना आपके लिए फायदेमंद होगा।  

CBDT circular on distinction between trades and investments.

Business Standard – Is your return from stocks capital gains or business income?

Economic Times – Are you a stock trader or an investor?

Taxguru – Income from share trading – Business or capital gain?

Moneycontrol- Investor or trader: The argument continues

Economic Times – Budget 2014 clarifies that commodity trading on recognized exchanges is non-speculative

Economic times – New data mining tool may access PAN-based information of taxpayers, help check evasion

इस अध्याय की मुख्य बातें-

  1.  फ्यूचर और ऑप्शन (इक्विटी, करेंसी और कमॉडिटी में) ट्रेडिंग को गैर सट्टा व्यवसाय माना जाता है। 
  2. इक्विटी या स्टॉक में इंट्राडे या नॉन (गैर) डिलीवरी ट्रेडिंग  को सट्टा व्यवसाय माना जाता है।
  3. अगर इक्विटी में निवेश 1 साल से ऊपर है तो उससे होने वाली कमाई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स के तहत आएगी।
  4. इक्विटी अगर 1 दिन से 1 साल के बीच होल्ड किया है और ट्रेड कम बार किया गया है तो उससे हुई कमाई शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स के तहत रखी जाएगी। अगर ट्रेड बहुत ज्यादा बार किया गया है तो वो आमदनी गैर सट्टा व्यवसाय से हुई आमदनी मानी जाएगी। 

 

डिसक्लेमर– अपना रिटर्न फाइल करने के पहले एक चार्टर्ड अकाउंटेंट की सलाह ज़रूर लें। ऊपर दी गई जानकारियां सिर्फ आपको समझाने के लिए हैं।




18 comments

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  1. Bhavesh sharma says:

    जिस कमाई में घाटा हुआ है क्या घाटा उसी साल सेट-ऑफ हो सकता है क्या घाटा कैरी फॉरवर्ड हो सकता है और आने वाले साल में सेट-ऑफ हो सकता है कैरी फॉरवर्ड और नुकसान सेट-ऑफ करने की समय-सीमा
    उसी हेड/वर्ग के तहत दूसरे हेड/वर्ग के तहत उसी हेड/वर्ग के तहत दूसरे हेड/वर्ग के तहत
    हाँ हाँ हाँ नहीं 8 साल
    सट्टा व्यवसाय हाँ नहीं हाँ नहीं 4 साल
    कैपिटल गेन (शॉर्ट टर्म) हाँ नहीं हाँ नहीं 8 साल
    Mem yeah samaj me nhi aaya

  2. Mukesh says:

    STCG mei b kya koi limit hoti h kya LTCG ki trha .. jisme 1st one lakh pr koi tax nhi lgta ..kya STCG m b koi limit h .. please reply

  3. Khem Singh says:

    सर मैंने 110000 का इन्वेस्टमेंट किया है अलग अलग शेयर में । मै एक साल बाद उसे बेच देता हूं उस समय उसका current वैल्यू 150000 है । तो उसमें टैक्स कितना कटेगा

  4. Khem Singh says:

    सर मैंने 11 लाख का इन्वेस्टमेंट किया है अलग अलग शेयर में । मै एक साल बाद उसे बेच देता हूं उस समय उसका current वैल्यू 15 लाख़ है । तो उसमें टैक्स कितना कटेगा

    • Kulsum Khan says:

      यह तोह टैक्स स्लैब के हिसाब से कटेगा , हमने टैक्सेज के बारे में इस मॉड्यूल में सब समझाया है , कृपया इस मॉड्यूल को पूरा पढ़ें।

  5. Sunil kumar says:

    Mera STCG 500/- se kam hai to kya mujhe ITR File karna chahiye agar karna hai to ITR3 ya ITR4 KAUN sa form bharna hoga
    Thanks
    Sunil

    • Kulsum Khan says:

      यह हमने इसी अध्याय में समझाया है कृपया इसको पूरा पढ़ें 🙂

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