11.1 – कंपनियों की जानकारी
मुझे उम्मीद है कि पिछले अध्याय में आपको कच्चे तेल के मौजूदा फंडामेंटल के बारे में जानकारी मिल गई होगी। हो सकता है कि आप में से कुछ लोग यह भी जानना चाहते हैं कि कच्चा तेल कैसे निकाला जाता है और उसे रिफाइनरी तक कैसे पहुंचाया जाता है? यूट्यूब पर चल रहा ‘आयल एंड गैस वीडियो’ चैनल ये काम बहुत अच्छे तरीके से करता है, जिसमें छोटे-छोटे वीडियो के जरिए इस बारे में बताया जाता है। अगर आप सारे वीडियो नहीं देख सकते हैं तो कम से कम इस एक वीडियो को जरूर देखें। watch this one
इस एनिमेटेड वीडियो में बताया गया है कि कैसे कच्चे तेल को जमीन की नीचे या समुंदर के नीचे से निकाला जाता है। इस वीडियो को देख कर आपको समझ में आएगा कि आयल रिग किसे कहते हैं? ये वो बड़े-बड़े प्लेटफॉर्म होते हैं जो समंदर में तैरते रहते हैं और जिनकी चिमनी में से आग निकलती रहती है। अबन ऑफशोर, सेलन एक्सप्लोरेशन, केर्न इंडिया आदि कुछ ऐसी कंपनियां है जो इस तरीके के इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करती हैं। मुझे पता है कि बहुत सारे ट्रेडर और कई निवेशक इन कंपनियों में निवेश करते हैं जबकि उनको यह भी नहीं पता होता कि ये कंपनियां काम क्या करती हैं। मुझे लगता है कि यह अच्छा तरीका नहीं है। आपको हमेशा ऐसी कंपनियों में निवेश करना चाहिए जिनके बारे में आप जानते हों। इसीलिए मैं यह कोशिश करूंगा कि कच्चे तेल से जुड़ी लिस्टेड कंपनियों के बारे में आप जान लें और इसी उद्देश्य से मैं यहां पर इस इंडस्ट्री के ढांचे के बारे में भी बात करूंगा।
11.2 – अपस्ट्रीम, डाउनस्ट्रीम और मिडस्ट्रीम
मैं यहां एक बात साफ कर दूं कि मैं ऑयल और गैस सेक्टर का एक्सपर्ट नहीं हूं, मेरी जानकारी बहुत सीमित है। लेकिन कच्चे तेल के एक ट्रेडर के तौर पर मुझे इस इंडस्ट्री के कामकाज को समझना जरूरी लगता है, क्योंकि इसे समझूंगा तभी मुझे इसमें ट्रेड के सही मौके मिल सकते हैं। उदाहरण के तौर पर- हो सकता है कि कच्चे तेल के कारोबार में कुछ बड़े बदलाव हो रहे हों और उनका कच्चे तेल के कारोबार पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ रहा हो, लेकिन डाउनस्ट्रीम कंपनियों पर उसका असर पड़ सकता है और उनमें ट्रेडिंग का एक अच्छा मौका मिल जाए। इसीलिए यह जरूरी है कि आप इस इंडस्ट्री के ढांचे को समझें और इसमें कहां-कहां ट्रेडिंग के मौके बन सकते हैं उसको पहचानें। मैं इसी बात की कोशिश करूंगा कि आप इस इंडस्ट्री के बारे में ज्यादा से ज्यादा जान सकें और इस सेक्टर से जुड़ी कंपनियों को पहचान सकें और पूरे ऑयल और गैस सेक्टर में वो कंपनियों कैसे फिट बैठती हैं, उसकी समझ आपको आ जाए।
तो आइए शुरू करते हैं
ऑयल एंड गैस इंडस्ट्री को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है
- अपस्ट्रीम इंडस्ट्री
- डाउनस्ट्रीम इंडस्ट्री
- मिडस्ट्रीम इंडस्ट्री
आइए अब इन तीनों के बारे में बारी-बारी से जान लेते हैं सबसे पहले शुरू करते हैं अपस्ट्रीम कंपनी से
अपस्ट्रीम कंपनियां
अपस्ट्रीम कंपनी वह कंपनी होती है जो कच्चा तेल खोजने के लिए जियोलॉजिकल सर्वे करती हैं, जगह–जगह बोरवेल से कुआं खोदती है और देखती है कि वहां पर जमीन के नीचे क्या मिल रहा है। अगर उनको तेल मिलता है तो वह फिर तेल की खुदाई और उसको निकालने का काम शुरू करती हैं। कई बार अपस्ट्रीम कंपनियों को कच्चा तेल खोजने और एक अच्छा मुनाफे वाला तेल का कुआं बनाने में सालों लग जाते हैं। तेल निकालना और कच्चे तेल को जमा करके बैरल में रखना ही इन कंपनियों का काम होता है (पूरी दुनिया में हर दिन लाखों या मिलियन बैरल कच्चे तेल का उत्पादन होता है)। यह कंपनी R&D करती हैं, इंजीनियरिंग के बड़े बड़े काम करती हैं और इनके पास बड़े-बड़े ऐसेट होते हैं। इसीलिए इन कंपनियों का खर्च बहुत ज्यादा होता है।
लेकिन इन कंपनियों का कच्चा तेल किस कीमत पर बिकेगा, यह उन कंपनियों के हाथ में नहीं होता। कच्चे तेल की कीमतें बाजार में तय होती है और बाजार के खिलाड़ी जैसे मैं और आप भी इस कीमत पर असर डालते हैं। हर अपस्ट्रीम कंपनी के लिए खुद का एक ब्रेक इवन प्वाइंट होता है जो कि उनके प्रति बैरल कच्चा तेल निकालने की कीमत के बराबर होता है। कई बार ब्रेक इवन प्वाइंट को फुल साइकिल कॉस्ट (Full cycle cost) भी कहते हैं। अपस्ट्रीम कंपनियां यह कोशिश करती हैं कि उनके खर्च कम हो और वह अपने फुल साइकिल कॉस्ट को नीचे ला सकें।
ओएनजीसी, केर्न इंडिया, रिलायंस इंडस्ट्रीज, ऑयल इंडिया आदि कुछ ऐसी कंपनियां हैं जो अपस्ट्रीम कंपनियां हैं। इसी तरीके से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शेल, बीपी शेवरान भी इसी तरीके की कंपनियां हैं।
यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि कच्चे तेल की कीमत में कमी अपस्ट्रीम कंपनियों के लिए फायदे की बात नहीं है, खासकर उन कंपनियों के लिए जिनका फुल साइकिल कॉस्ट ज्यादा हो। साफ है कि इन कंपनियों के लिए फायदा तब होता है जब कच्चे तेल की कीमत बढ़ती है क्योंकि इनके तेल निकालने का खर्चा तो एक जैसा ही रहता है लेकिन कीमत बढ़ने पर उनकी मार्जिन बढ़ जाती है।
डाउनस्ट्रीम कंपनियां
अब बात करते हैं डाउनस्ट्रीम कंपनियों की। अपस्ट्रीम कंपनियों का काम सिर्फ कच्चा तेल निकालने का होता है। आपको पता है कि कच्चा तेल कच्चा ही होता है, अगर उससे पेट्रोल या डीजल बनाना है तो उस कच्चे तेल को रिफाइन करना पड़ता है। डाउनस्ट्रीम इंडस्ट्री यही काम करती हैं। ये कंपनियां अपस्ट्रीम कंपनी से कच्चा तेल खरीदती हैं, उसको रिफाइन करती हैं और पेट्रोल, डीजल, एविएशन फ्यूल, मरीन ऑयल, केरोसिन, लुब्रिकेंट, वैक्स और एलपीजी जैसी चीजें बनाती हैं।
इस सेक्टर की कंपनियां अपने उत्पादों के वितरण का भी काम करती हैं। चाहे उन्हें अपना माल दूसरी कंपनियों को बेचना हो यानी B2B वितरण करना हो या फिर अपना माल को उपभोक्ता यानी कंजूमर को बेचना हो मतलब B2C डिस्ट्रीब्यूशन करना, ये कंपनियां सब करती हैं। पेट्रोल पंप इस काम का एक सही उदाहरण है। पेट्रोल पंप इन कंपनियों के रिटेल आउटलेट होते हैं जहां पर ये कंपनियां अपना माल बेचती है।
भारत में डाउनस्ट्रीम कंपनियों के उदाहरण हैं – बीपीसीएल, एचपीसीएल, इंडियन ऑयल आदि। कई कंपनियां अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम दोनों काम करती हैं। जो कंपनियां यह दोनों काम करती हैं उन्हें आमतौर पर सुपर मेजर कहा जाता है। ऐसी कंपनियों का उदाहरण है अमेरिका की एक्सॉन मोबिल कॉरपोरेशन। ये कंपनी चार मिलियन बैरल तेल हर दिन निकालती है और 21 देशों में फैली 40 ऑयल रिफायनरी चलाती है। इस तरीके का पूरा ऑपरेशन चलाना काफी बड़ा काम होता है और यह सबके बस की बात नहीं होती।
तो अगर कच्चे तेल की कीमतें नीचे आती है तो इसका मतलब है कि डाउनस्ट्रीम कंपनियां कच्चा तेल अपस्ट्रीम कंपनी से कम कीमत पर खरीद सकेंगी (ऐसा होना अपस्ट्रीम कंपनियों के लिए अच्छा नहीं होता है क्योंकि तेल निकालने में उनकी मेहनत तो पहले जितनी ही होती है)। आमतौर पर कच्चे तेल की कीमत में गिरावट का फायदा अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में उपभोक्ता को तुरंत मिल जाता है क्योंकि डाउनस्ट्रीम कंपनियां इस गिरावट को ग्राहकों तक पहुंचा देती हैं लेकिन इस तरीके का फायदा विकासशील देशों के ग्राहकों जैसे हमें और आपको तुरंत नहीं मिलता।
यहां पर आपके ध्यान देने वाली कुछ बाते हैं
- अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम कंपनियों के बीच में विपरीत संबंध होता है
- कच्चे तेल की कम कीमत अपस्ट्रीम कंपनियों के लिए बुरी होती है लेकिन डाउनस्ट्रीम कंपनियों के लिए फायदेमंद होती है
- कच्चे तेल की ऊंची कीमत अपस्ट्रीम के की कंपनियों के लिए फायदेमंद होती है लेकिन डाउनस्ट्रीम कंपनियों के लिए नुकसानदायक होती है
अगली बार जब आप कच्चे तेल की कीमतों को नीचे जाता जाता देखें तो ओएनजीसी और बीपीसीएल को शॉर्ट करने की कोशिश ना करें बल्कि पहले समझें कि वह कंपनी डाउनस्ट्रीम है या अपस्ट्रीम और उस हिसाब से तय करें कि तेल की कीमतों का उस कंपनी पर क्या असर पड़ेगा। इसको समझने के बाद ही ट्रेडिंग का सही फैसला करें।
मिडस्ट्रीम कंपनियां
अब हम मिडस्ट्रीम कंपनियों के बारे में समझते हैं।
मिडस्ट्रीम कंपनियां वह होती है जो अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम कंपनियों के बीच में एक तरह से कूरियर का काम करती हैं। यह वह कंपनियां है जो कच्चे तेल को तेल के कुएं से रिफाइनरी तक पहुंचाती हैं। इसके लिए वह तेल पाइपलाइन लगाती हैं, ऑयल टैंकर से कच्चा तेल पहुंचाती हैं और कई बार कच्चे तेल को बड़े-बड़े जहाजों में भरकर समुद्र के रास्ते से एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाती हैं। आप इन्हें कच्चे तेल का होलसेलर भी मान सकते हैं। कुछ मिडस्ट्रीम कंपनियां कच्चे तेल को कुछ हद तक रिफाइन भी करती हैं, जिससे वह इसमें कुछ वैल्यू एडिशन कर सकें। इस तरीके से वह डाउनस्ट्रीम कंपनियों का कुछ काम भी खुद कर देती है क्योंकि मिडस्ट्रीम कंपनियां अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम दोनों तरीके की कंपनियों के लिए काम करती हैं इसलिए वह कच्चे तेल की कीमतों में बदलाव को बहुत ज्यादा पसंद नहीं करतीं। उनके लिए कच्चे तेल की कीमत को बढ़ना या घटना दोनों ही अच्छा नहीं होता। अगर कच्चे तेल की कीमत बढ़ती है तो डाउनस्ट्रीम कंपनियों को नुकसान होता है और कच्चे तेल की कीमत घटती है तो अपस्ट्रीम कंपनियों का नुकसान होता है और दोनों ही स्थितियां मिडस्ट्रीम कंपनियों के लिए अच्छी नहीं होतीं।
मिडस्ट्रीम कंपनियों के उदाहरण हैं Trans-Canada, स्पेक्ट्रा एनर्जी, विलियम एंड कंपनी आदि।
इस पूरे कारोबार को ठीक से समझने के लिए नीचे के चित्र पर नजर डालिए
11.3 – WTI और ब्रेंट कच्चा तेल (Brent Crude) का अंतर
बहुत सारे लोगों को लगता है कि कच्चा तेल एक ही तरीके का होता है जैसे कि सोना। लेकिन यह सच नहीं है। क्या आपको पता है कि कच्चे तेल की अलग-अलग किस्में होती हैं? इन अलग-अलग किस्मों के अलग-अलग लक्षण होते हैं और यह इस पर निर्भर करता है कि वो कच्चा तेल कहां से निकल रहा है। जगह का असर इतना ज्यादा होता है कि कच्चे तेल का रंग (हल्का पीला,सुनहरा,काला), वो कितना गाढ़ा है, उसमें सल्फर कितना है या वोलैटिलिटी कैसी है, यह सब बदल जाता है।
इन सब वजहों से कच्चे तेल की कई किस्में होती हैं। मैं इन सब के बारे में पूरा नहीं जानता इसलिए उन सब के बारे में बात नहीं कर सकता। लेकिन वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट यानी WTI और ब्रेंट-इन दोनों के बीच के अंतर को मैं जानता हूं और किसी कच्चे तेल के ट्रेडर के लिए इसी अंतर को जानना जरूरी है। इसीलिए हम इस पर बात करेंगे।
हम इस अंतर के बारे में जानना शुरू करें उसके पहले कच्चे तेल के उन दो जरूरी लक्षणों पर बात कर लेते हैं, जिनकी वजह से कच्चे तेल की अलग-अलग किस्में पैदा होती हैं।
API ग्रैविटी – API का मतलब है अमेरिकन पैट्रोलियम इंस्टीट्यूट। यह एक तरीके का पैमाना है जिससे क्रूड यानी कच्चे तेल के वजन (लाइटनेस-lightness) को पानी के मुकाबले नापा जाता है। अगर किसी तरीके के कच्चे तेल की API ग्रेविटी 10 से ज्यादा है तो इसका मतलब है कि यह कच्चा तेल पानी से भी हल्का है और यह पानी के ऊपर तैर सकता है। अगर API ग्रेविटी 10 से कम है तो इसका मतलब है कि यह तेल पानी से भारी है और यह पानी में डूब जाएगा।
स्वीटनेस यानी मीठापन – किसी भी तरीके का कच्चा तेल हो उसमें सल्फर जरूर होता है। जिस तेल में जितना कम सल्फर (0.5% से कम) होता है, उसको उतना ही मीठा यानी स्वीट माना जाता है। जब सल्फर की मात्रा ज्यादा होती है तो यह कहा जाता है कि यह तेल कम मीठा है।
WTI और ब्रेंट के बीच का अंतर मुख्य तौर पर API ग्रैविटी और स्वीटनेस यानी मीठापन से आता है।
वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट (WTI) – यह ज्यादा अच्छी क्वालिटी का कच्चा तेल माना जाता है और इसीलिए इसके निकले हुए रिफाइंड उत्पादों को भी ज्यादा अच्छा माना जाता है। इसकी API ग्रेविटी 39.6 है (याद रखिए कि 10 से ज्यादा होने पर यह तेल पानी से हल्का माना जाता है) इसलिए WTI को काफी हल्का तेल माना जाता है। इस में सल्फर की मात्रा 0.26% है इसलिए इसे काफी मीठा कच्चा तेल भी माना जाता है।
ब्रेंट ब्लेंड (Brent Blend) – ब्लेंडेड स्कॉच की तरह कच्चे तेल को भी ब्लेंड किया जा सकता है जिससे उसकी अलग-अलग किस्में बनाई जा सकें। कहा जाता है कि ब्रेंट ब्लेंड को 15 अलग-अलग कुओं के तेल को मिलाकर बनाया जाता है। ब्रेंट ब्लेंड में सल्फर की मात्रा 0.37% होती है इसलिए इसे मीठा तो माना जाता है लेकिन WTI जितना मीठा नहीं। इसकी API ग्रेविटी 38.06 है जो कि इसे काफी हल्का तेल बनाती है।
अपनी अलग-अलग विशेषताओं की वजह से ही यह दोनों तेल अलग-अलग कीमत पर बिकते हैं। इन दोनों तरह की तेलों की कीमतों पर नजर डालिए
ब्रेंट क्रूड की कीमत WTI से ज्यादा है। आपके लिए यह जानना भी जरूरी है कि MCX पर कच्चे तेल का ट्रेड ब्रेंट के आधार पर होता है, WTI के आधार पर नहीं। वास्तव में ब्रेंट कच्चा तेल ही दुनिया भर में कच्चे तेल की कीमतों का बेंचमार्क माना जाता है।
11.3 – कच्चे तेल की इन्वेन्टरी का स्तर (Crude Oil Inventory Levels)
कच्चे तेल की सप्लाई और डिमांड का असर इसकी कीमत पर पड़ता है और इस वजह से इस धंधे से जुड़ी कई कंपनियों के मुनाफे पर भी असर पड़ता है। इसीलिए कच्चे तेल की इन्वेन्टरी कितनी है इस पर नजर रखना बहुत जरूरी होता है। आप इस जानकारी का इस्तेमाल ना सिर्फ MCX पर कच्चे तेल में ट्रेडिंग के लिए कर सकते हैं बल्कि आप बीपीसीएल, एचपीसीएल, इंडियन ऑयल जैसी कंपनियों के शेयर में ट्रेडिंग करने के लिए भी इस जानकारी का इस्तेमाल कर सकते हैं। दुनिया भर में इन्वेन्टरी कितनी है इसकी जानकारी देने वाले दो संगठन हैं
- यूएस एनर्जी इनफार्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन (US EIA) – यह हर हफ्ते कच्चे तेल की इन्वेन्टरी की रिपोर्ट निकालते हैं। आप इस जानकारी को यहां – information here -देख सकते हैं। ध्यान रखिए कि इन्वेन्टरी में बढ़ोतरी तब होती है जब मांग में कमी हो या फिर सप्लाई ज्यादा हो। इन्वेन्टरी का बढ़ना कच्चे तेल की कीमतों के लिए बुरा होता है इसकी वजह से अपस्ट्रीम कंपनियों पर भी इसका बुरा असर पड़ता है दूसरी तरफ इन्वेन्टरी का कम होना यह बताता है कि मांग काफी ज्यादा है या फिर उत्पादन कम हो रहा है दोनों ही स्थितियों में कच्चे तेल की कीमतों पर अच्छा असर पड़ता है यानी वह ऊपर जाती है और यह अपस्ट्रीम कंपनियों के लिए बेहतर होता है।
- OECD क्रूड आयल इन्वेन्टरी – OECD का मतलब होता है ऑर्गेनाइजेशन आफ इकोनामिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट। OECD भी कच्चे तेल की इन्वेन्टरी का हाल बताता है लेकिन यह US EIA की तरह हर हफ्ते ये अनुमान नहीं देता। तेल की इन्वेन्टरी का हाल जानने के लिए आप OECD की वेबसाइट पर जा सकते हैं।
11.4 – अमेरिकी डॉलर और कच्चे तेल में संबंध
कच्चा तेल और अमेरिकी डॉलर में विपरीत संबंध होता है। अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने का मतलब है कि कच्चे तेल की कीमतें नीचे जाएंगी, इसी तरीके से अगर अमेरिकी डॉलर कमजोर होता है तो कच्चे तेल की कीमतें ऊपर जाती हैं। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह है कि इन दोनों ऐसेट की अपनी अलग-अलग सप्लाई और डिमांड की स्थितियां होती हैं जो उनकी कीमतों को तय करती हैं। लेकिन फिर भी यह दोनों ऐसेट आपस में जुड़े हुए हैं।
अगर आप क्रूड ऑयल Vs डॉलर के चित्र को सर्च करेंगे तो ऐसे कई चार्ट मिल जाएंगे जो इस विपरीत संबंध को दिखाते हैं। यहां एक उदाहरण देखिए
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि इस चार्ट में अमेरिकी डॉलर का जो रेट दिखाया गया है वह अमेरिकी डॉलर का स्पॉट रेट नहीं है बल्कि डॉलर इंडेक्स है जोकि दुनिया भर की कई करेंसी के मुकाबले डॉलर को दिखाता है। ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि कच्चा तेल एक इंटरनेशनल कमोडिटी है और इस बात का कच्चे तेल पर कोई असर नहीं पड़ता कि इसे कहां खरीदा जा रहा है। इसका पेमेंट हमेशा अमेरिकी डॉलर में ही होता है।
इसी वजह से अगर अमेरिकी डॉलर किसी भी वजह से बढ़ता है तो दुनिया भर के देश ज्यादा कच्चा तेल खरीदना शुरू कर देते हैं क्योंकि तब उन्हें उतने ही डॉलर में ज्यादा तेल मिल जाता है। इससे इन्वेन्टरी का स्तर कम होता है और फिर तेल की कीमत बढ़ जाती है।
अगर लंबी अवधि के लिए देखें तो ऊपर दिया गया तर्क हमेशा सच साबित होता है। लेकिन याद रखिए कि दोनों ऐसेट के अपने खुद के फंडामेंटल होते हैं इसलिए कभी ऐसी स्थिति भी हो सकती है कि डॉलर और कच्चे तेल के बीच का विपरीत संबंध टूट जाए और दोनों एक ही दिशा में बढ़ने लगें। याद रखिए कि विपरीत संबंध केवल यह बताता है कि यह दोनों अलग-अलग दिशाओं में चलेंगे, लेकिन यह नहीं बताता कि दोनों में बदलाव कितना होगा। उदाहरण के लिए अगर डॉलर 10% गिरता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि कच्चा तेल भी 10% ही गिरेगा।
अगले अध्याय में हम MCX पर क्रूड ऑयल के अलग-अलग कॉन्ट्रैक्ट के बारे में जानेंगे।
इस अध्याय की मुख्य बातें
- ऑयल और गैस इंडस्ट्री के ढांचे को समझना और इसमें कौन सी कंपनी किस जगह फिट होती है इसे समझना काफी महत्वपूर्ण है।
- अपस्ट्रीम कंपनियों को ज्यादा ऐसेट की जरूरत पड़ती है और वो तेल की खुदाई का काम करती हैं।
- कच्चे तेल की कीमत का बढ़ना अपस्ट्रीम कंपनियों के लिए अच्छ होता है और कीमत का घटना बुरा।
- डाउनस्ट्रीम कंपनियां मुख्य तौर पर रिफाइनरी होती हैं। कच्चे तेल की कीमत का बढ़ना उनके लिए अच्छा नहीं होता है, जबकि कीमत का घटना उनके लिए अच्छा होता है क्योंकि उनका मार्जिन बढ़ता है।
- मिडस्ट्रीम कंपनियां लॉजिस्टिक्स का काम करती हैं। ये कंपनियां तेल की कीमत में स्थिरता पसंद करती हैं, क्योंकि वो अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम कंपनियों दोनों के लिए काम करती हैं।
- WTI और ब्रेंट, कच्चे तेल की दो किस्में होती हैं। इनके बीच मुख्य तौर पर API ग्रैविटी औऱ स्वीटनेस का अंतर होता है।
- ब्रेंट क्रूड को कच्चे तेल की कीमत का बेंचमार्क माना जाता है।
- इन्वेन्टरी का स्तर जानना बहुत जरूरी होता है। इन्वेन्टरी का स्तर बढ़ना बताता है कि कच्चे तेल की कीमत गिरेगी और इन्वेन्टरी का स्तर घटने का मतलब है कि कीमत बढ़ेगी।
- लंबे समय के लिए USD इंडेक्स और कच्चे तेल में विपरीत संबंध होता है लेकिन छोटी अवधि में कभी-कभी ये संबंध टूट भी जाता है क्योंकि दोनों के अपने डिमांड-सप्लाई फैक्टर काम करने लगते हैं।
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हम उन पर काम कर रहे हैं, वे भी जल्द ही उपलब्ध कराये जाएंगे।
मैं यहां एक बार साफ कर दूं
सर यहाँ एक बार के स्थान पर बात होना चाहिए।
सूचित करने के लिए धन्यवाद हमने इसको सही करदिया है।
कच्चा तेल किस रेट में मिलता है और वह कहां कहां से किस किस प्रक्रिया से गुजरता हुआ ग्राहक के पास आता है व उसपर कहाँ कहाँ कितना कितना टैक्स लग कर आता है जिससे वह महंगा होता जाता है?
कृपया उचित जानकारी उपलब्ध कराएं।
आपका हृदय से धन्यवाद।
हमने इसको इसी अध्याय में समझाया है, कृपया इसको पूरा पढ़ें।
RAMRAMG