4.1 संक्षिप्त विवरण

शुरूआत के 3 अध्याय में वो सभी आधारभूत जानकारी दी गई है जो किसी भी निवेशक को शेयर बाज़ार के बारे में होनी चाहिए। अब इस पड़ाव पर एक सवाल का जवाब देना/जानना ज़रूरी हो जाता है, और वो सवाल है – आखिर कंपनियाँ IPO क्यों लाती हैं?

इस सवाल के जवाब को सही तरीके से समझने पर आगे के विषयों को समझना काफी आसान हो जाएगा। इस अध्याय में हम कुछ नए वित्तिय अवधारणाओं (फाइनेंशियल कॉन्सेप्ट्स- Financial Concepts) के बारे में जानेंगे। 

4.2 बिजनेस की शुरूआत

इसके पहले कि हम इस सवाल का जवाब दें कि कंपनियाँ IPO क्यों लाती हैं, हमें कुछ मूलभूत अवधारणाओं को जानना और समझना होगा, जैसे किसी भी कंपनी की शुरूआत कैसे होती है। इसको एक कहानी के ज़रिए समझते हैं, और इस कहानी को कुछ अलग अलग सीन में बाँटते है, ताकि बिजनेस यानी कारोबार और फंडिंग यानी पूंजी जुटाने का सिस्टम कैसे काम करता है, कैसे बनता और बढ़ता है, ये सब सही तरीके से समझ में आ जाए। 

 

सीन 1 – एंजेल्स (The Angels)

मान लीजिए कि एक व्यवसायी या उद्यमी है, जिसके पास बहुत ही बढ़िया बिजनेस आइडिया है। वो बिजनेस आइडिया है –  जैविक कपास यानी ऑरगैनिक कॉटन (Organic Cotton) के फैशनेबल टी-शर्ट्स बना कर बेचने का। इन टी-शर्ट्स के डिजाइन सबसे अलग होंगे, इनके दाम भी ग्राहकों के लिए लुभावने होंगे और इनके उत्पादन में सबसे बढ़िया क्वालिटी का कॉटन इस्तेमाल किया जाएगा। उस उद्यमी को यकीन है कि ये कारोबार सफल होगा और वो इस आइडिया को कारोबार में बदलने के लिए बहुत उत्साहित भी है। 

जैसा कि बाकी उद्यमियों के साथ होता है, कुछ भी करने से पहले उसके पास भी एक सवाल होगा- कि इस कारोबार के लिए पैसे कहाँ से आएंगे। मान लीजिए कि उसके पास बिजनेस चलाने का अनुभव भी नहीं है। ऐसे में किसी ऐसे इंसान को ढूंढ़ना बहुत मुश्किल है, जो उसके आइडिया में पैसे लगाए। तो वो क्या करेगा? वो अपने परिवार, रिश्तेदार या फिर दोस्तों से मदद लेगा। वो बैंक में लोन के लिए भी अर्जी दे सकता है लेकिन इस पड़ाव पर ये अच्छा विकल्प नहीं होगा। 

फिर मान लेते हैं कि वो अपनी जमा-पूंजी लगाता है और साथ ही अपने दो दोस्तों को कारोबार में पैसा लगाने के लिए मना लेता है। ये दोनों दोस्त कारोबार में कमाई शुरू होने से पहले ही पैसा लगा रहे हैं और उद्यमी पर एक तरह से दांव लगा रहे हैं। ऐसे हालात में इन दोनों दोस्तों को एंजेल इंवेस्टर्स (Angel Investors) कहा जाएगा। यहाँ पर आप ध्यान दें कि जो पैसा एंजेल इंवेस्टर्स लगाते हैं वो कर्ज नहीं होता बल्कि कारोबार में निवेश होता है।

अब मान लें कि प्रमोटर ( जिसका बिजनेस आइडिया है) और एंजेल इवेंस्टर्स ने मिल कर 5 करोड़ रुपये पूंजी जोड़ी। इस पूंजी को कहेंगे “सीड फंड” (Seed Fund)। ये सीड फंड प्रमोटर के बैंक अकाउंट में नहीं बल्कि कंपनी के बैंक अकाउंट में रखी जाती है। जैसे ही ये सीड फंड कंपनी के बैंक अकाउंट में जमा की जाती है, इस पैसे को कंपनी के प्रारंभिक शेयर कैपिटल (Initial Share Capital) के नाम से जाना जाता है।

इस सीड निवेश के बदले तीनों हिस्सेदार ( प्रमोटर और 2 एंजेल इंवेस्टर्स) को कंपनी के शेयर सर्टिफिकेट्स इश्यू किए जाते है, जो ये दर्शाता है कि तीनों कंपनी के मालिक है या फिर मालिकाना हक (ownership) रखते हैं

अभी कंपनी के पास सिर्फ 5 करोड़ रुपये हैं, ये ही कंपनी की परिसंपत्ति यानी ऐसेट (Asset) है। इसलिए कंपनी की वैल्यू भी 5 करोड़ रुपये है। इसे कंपनी की वैल्यूएशन (Valuation) कहते हैं। 

शेयर इश्यू करना बहुत आसान है। कंपनी ये मानती है कि हर शेयर की कीमत 10 रुपये है और क्योंकि 5 करोड़ रुपये का शेयर कैपिटल है, तो 50 लाख शेयर होंगे और शेयर की कीमत 10 रुपये होगी। यहाँ पर ये जो शेयर की कीमत 10 रुपये है, उसे शेयर का फेस वैल्यू (Face Value) कहते हैं। फेस वैल्यू ज़रूरी नहीं है कि 10 रुपये ही हो, ये कम या ज्यादा भी हो सकती है। अगर फेस वैल्यू 5 रुपये है, तो शेयरों की संख्या 1 करोड़ हो जाएगी। 

ऊपर जो 50 लाख शेयर इश्यू किए गए, उसे कंपनी का ऑथराइज्ड शेयर (Authorized Shares) कहते हैं। इनमें से कुछ  हिस्सा तीनों यानी प्रमोटर और 2 एंजेल इंवेस्टर्स में बाँटा जाता है, साथ ही भविष्य को ध्यान में रखते हुए कुछ शेयर्स कंपनी के पास रखे जाते हैं। 

अब मान लें कि प्रमोटर को 40 परसेंट शेयर मिले, और दोनों एंजेल इंवेस्टर्स को 5-5 परसेंट। कंपनी के पास 50 परसेंट शेयर रखे गए। जो शेयर प्रमोटर और एंजेल इंवेस्टर्स को मिले, उसे इश्यूड शेयर (Issued Share) कहते हैं। 

कंपनी का शेयर होल्डिंग पैटर्न कुछ इस तरह का होगा…

क्रमांक शेयर होल्डर का नाम शेयरों की संख्या होल्डिंग (% में)
1 प्रमोटर 2,000,000 40
2 एंजेल 1 250,000 5
3 एंजेल 2 250,000 5
कुल 2,500,000 50%

य़ाद रखें कि बचे हुए 50 परसेंट शेयर कंपनी के पास है। ये ऑथराइज्ड शेयर हैं, लेकिन अलॉट (allot) यानी किसी को दिए नहीं गए हैं।

अब प्रमोटर के पास कंपनी है, और एक बढ़िया सीड फंड भी। प्रमोटर कारोबार शुरू करता है, लेकिन वो थोड़ा संभल कर आगे बढ़ता है और अपने प्रोडक्ट को बनाने और बेचने के लिए एक छोटी सी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट और सिर्फ एक रिटेल स्टोर खोलता है। 

 

सीन 2- वेंचर कैपिटलिस्ट ( The Venture Capitalist)

प्रमोटर की मेहनत रंग लाती है और दूसरे साल के अंत तक कंपनी के खर्च और आय बराबर हो जाते हैं। जब कंपनी के खर्च और आय बराबर हो जाए, तो कहते हैं कि कपंनी ब्रेक इवेन कर रही है। प्रमोटर के पास भी अब कंपनी चलाने का अनुभव है और पहले से कहीं ज्यादा आत्मविश्वास भी। अब प्रमोटर कारोबार थोड़ा फैलाना चाहता है। वह एक और मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट और कुछ नए रिटेल स्टोर खोलना चाहता है। एक बिजनेस प्लान बनाने के बाद उसे पता चलता है कि इस पूरे काम में 7 करोड़ रुपये की पूंजी लगेगी। 

प्रमोटर की हालत अब पहले से काफी अलग है।  कारोबार में लगातार कमाई हो रही है। इसलिए प्रमोटर उन निवेशकों के पास जा सकता है जो नए बिजनेस में पैसा लगाते हैं। मान लें, कि उसने एक ऐसे ही निवेशक से बात की, जो उसे कंपनी में 14% हिस्सेदारी के बदले 7 करोड़ रुपये देने को तैयार हो गया। 

ऐसे निवेशक जो कारोबार के शुरूआती सालों या फेज (phase) में पैसे निवेश करते हैं, उन्हें वेंचर कैपिटलिस्ट (Venture Capitalist- VC) कहा जाता है। कंपनी को जो पैसा इस फेज में मिलता है उसे सीरीज ए फंडिंग ( Series A funding) कहते हैं। 

 

जब कंपनी ऑथराइज्ड कैपिटल में से 14% शेयर VC को अलॉट कर देती है, तो शेयर होल्डिंग पैटर्न अब ऐसा होगा…

 

क्रमांक शेयर होल्डर का नाम शेयरों की संख्या होल्डिंग (% में)
1 प्रोमोटर 2,000,000 40
2 एंजेल 1 250,000 5
3 एंजेल 2 250,000 5
4 वेंचर कैपिटलिस्ट 700,000 14
कुल 3,200,000 64

 

याद रखिए कि बचे हुए 36 परसेंट शेयर अभी भी कंपनी के पास है और जारी यानी इश्यू नहीं किए गए हैं। 

अब कारोबार में VC का पैसा आने के बाद एक नई चीज हो रही है। VC  ने अपने 14 परसेंट हिस्सेदारी या शेयर के लिए 7 करोड़ देकर पूरी कंपनी को 50 करोड़ का वैल्यूएशन दे दिया है। शुरूआती 5 करोड़ के वैल्यूएशन से ये 10 गुना ज्यादा है। एक अच्छा बिजनेस प्लान और अच्छी आमदनी का फायदा कारोबार को ऐसे ही मिलता है। कारोबार इस तरह से ही बड़ा होता जाता है। कंपनी का वैल्यूएशन बढ़ने के साथ शुरूआती निवेशकों के निवेश पर भी असर पड़ता है, जिसको आप नीचे की सारणी से समझ सकते हैं। 

क्रमांक शेयर होल्डर का नाम शुरूआती शेयरहोल्डिंग शुरूआती वैल्यूएशन 2 साल के बाद शेयरहोल्डिंग 2 साल के बाद वैल्यूएशन संपत्ति निर्माण
1 प्रमोटर 40% 2 करोड़ 40% 20 करोड़ 10 गुना
2 एंजेल 1 5% 25 लाख 5% 2.5 करोड़ 10 गुना
3 एंजेल 2 5% 25 लाख 5% 2.5 करोड़ 10 गुना
4 वेंचर कैपिटलिस्ट 0% NA 14% 07 करोड़ NA
कुल 50% 2.5 करोड़ 64% 32 करोड़

 

कहानी के साथ आगे बढ़ें। प्रमोटर के पास अब वो अतिरिक्त पूंजी है जो उसे कारोबार बढ़ाने के लिए चाहिए थी। कंपनी को एक नया मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट और कुछ रिटेल आउटलेट मिल गए। सब कुछ बढ़िया चल रहा है। प्रोडक्ट की लोकप्रियता बढ़ रही है जिससे ज्यादा आमदनी हो रही है। मैनेजमेंट टीम और बेहतर हो रही है जिससे कामकाज में सुधार हो रहा है और कंपनी का मुनाफा बढ़ रहा है। 

सीन 3: बैंकर (The Banker)

3 साल और बीत गए । कंपनी सफलता के नए आयाम छू रही है। इस पड़ाव पर कंपनी तय करती है कि 3 और शहरों में रिटेल स्टोर्स शुरू किए जाए। और जाहिर सी बात है कि इसके लिए कंपनी को प्रोडक्शन कैपेसिटी भी बढ़ानी होगी और नए लोग भी भर्ती करने होंगे। इस तरह के खर्च, जो कंपनी बिजनेस बढ़ाने और बेहतर बनाने के लिए करती है उसे कैपिटल एक्सपेंडिचर या कैपेक्स कहते हैं। 

 

मैनेजमेंट को लगता है कि इस काम के लिए 40 करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी। तो सवाल ये उठता है कि कंपनी इस ज़रूरत को पूरा कैसे करेगी? 

कंपनी के सामने इस पूंजी को जोड़ने के लिए कुछ विकल्प हैं

  1. कंपनी ने पिछले कुछ सालों में जो मुनाफा कमाया है उस पैसे से कैपेक्स की ज़रूरत को पूरा किया जा सकता है। इस रास्ते को Internal accruals या आंतरिक स्त्रोतों से पैसा जुटाना कहते हैं। 
  2. कंपनी किसी दूसरे VC के पास जा सकती है और फिर से VC फंडिंग माँग सकती है। इसके लिए उसे VC को शेयर देने होंगे। इसे सीरीज बी फंडिंग कहते हैं। 
  3. कंपनी किसी बैंक के पास जाकर कर्ज माँग सकती है। चूँकि कंपनी अच्छा कारोबार कर रही है, इसलिए कर्ज मिलने में कंपनी को मुश्किल नहीं होगी। 

 

कंपनी ने ऊपर के तीनों रास्ते अपनाए- आंतरिक स्त्रोतों से 15 करोड़, सीरीज बी में 5 परसेंट इक्विटी दे कर 10 करोड़ और एक बैंक से 15 करोड़ का कर्ज लिया। 

ध्यान दीजिए कि 5 परसेंट इक्विटी के बदले 10 करोड़ मिलने से कंपनी का वैल्यूएशन 200 करोड़ दिख रहा है। हो सकता है ये थोड़ा ज्यादा हो, लेकिन अभी हम कहानी के लिए इसको सही मान लेते हैं। 

अब कंपनी की शेयरहोल्डिंग और वैल्यूएशन कुछ ऐसी नज़र आएगी…

क्रमांक शेयर होल्डर का नाम शेयरों की संख्या होल्डिंग (% में) वैल्यूएशन (करोड़ रु में)
1 प्रमोटर 2,000,000 40 80
2 एंजेल 1 250,000 5 10
3 एंजेल 2 250,000 5 10
4 VC सीरीज A 700,000 14 28
5 VC सीरीज B 250,000 5 10

 

आप देखेंगे कि कंपनी ने 31 परसेंट शेयर अभी किसी शेयरहोल्डर को अलॉट नहीं किए हैं। इन शेयरों की कीमत अभी 62 करोड़ रुपए हैं। कंपनी की पूंजी इसी तरीके से बढ़ती है, खासकर तब जब किसी उद्यमी के पास अच्छा बिजनेस आइडिया हो और एक अच्छी मैनेजमेंट टीम। 

इस तरह के उदाहरण आपको इंफोसिस, पेज इंडस्ट्रीज, आयशर मोटर्स और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गूगल, फेसबुक, ट्वीटर और व्हाट्सऐप आदि में दिखेंगे। 

 

सीन 4- प्राइवेट इक्विटी (The Private Equity- PE)

कुछ साल बीतते हैं और कंपनी सफलता की नई ऊंचाई पर पहुंच जाती है। सफलता के साथ ये 8 साल पुरानी 200 करोड़ की कंपनी और उत्साह से भर जाती है। कंपनी अब पूरे देश में अपना कारोबार फैलाना चाहती है। कंपनी अब खुद अपना कारखाना बनाने और फैशन एक्सेसरीज, डिजायनर कॉस्मेटिक्स और परफ्यूम बेचना चाहती है। 

इस नए काम के लिए कंपनी को 60 करोड़ के कैपेक्स की जरूरत दिखती है। कंपनी कर्ज नहीं लेना चाहती, क्योंकि ब्याज अदा करने से उसका मुनाफा घटेगा। 

कंपनी VC को कुछ और शेयर दे कर सीरीज सी फंडिंग लेना चाहती है। लेकिन वो किसी नॉरमल या आम VC के पास नहीं जा सकती क्योंकि VC फंडिंग कुछ करोड़ की ही मिल पाती है। इसलिए, अब कंपनी को एक प्राइवेट इक्विटी इंवेस्टर के पास जाना पड़ेगा। 

PE इंवेस्टर काफी जानकार होते हैं। उनका एक लंबा चौड़ा अनुभव होता है। वो बड़ी रकम निवेश करते हैं और साथ ही कंपनी के बोर्ड पर अपने लोग भी बिठा देते हैं, जिससे कंपनी एक निश्चित दिशा की ओर बढ़े। मान लीजिए कि वो 15 परसेंट हिस्सा लेते हैं और उसके लिए 60 करोड़ रुपये देते हैं। इस तरह से अब कंपनी की वैल्यूएशन 400 करोड़ तक पहुँच जाएगी। अब कंपनी की शेयर होल्डिंग और वैल्यूएशन पर नज़र डालते हैं…

क्रमांक शेयर होल्डर का नाम शेयरों की संख्या होल्डिंग (% में) वैल्यूएशन (करोड़ रु में)
1 प्रमोटर 2,000,000 40 160
2 एंजेल 1 250,000 5 20
3 एंजेल 2 250,000 5 20
4 VC A 700,000 14 56
5 VC B 250,000 5 20
6 PE सीरीज C 7,50,000 15 60
कुल 4,200,000 84 336

 

याद रखिए कि कंपनी ने अभी भी 16 परसेंट हिस्सा ऐसा रखा है जो किसी को एलॉट नहीं किया है। इसकी कीमत अब 64 करोड़ है। 

आमतौर पर जब एक PE इंवेस्ट करता है, तो वो कैपेक्स की बड़ी ज़रूरत के लिए रकम देता है। PE कभी भी बिजनेस की शुरूआती दौर में पैसे नहीं लगाता है बल्कि वो ऐसी कंपनियों में  पैसे लगाता है, जो कुछ सालों से काम कर रहीं हैं और जिनको आमदनी हो रही है। PE से पैसे लेना और उस पैसे को कैपेक्स में डालना एक लंबे समय का काम है और इसमें कुछ साल लग जाते हैं। 

 

सीन 5- आईपीओ (The IPO)

PE इंवेस्टमेंट के 5 साल के बाद कंपनी का कारोबार काफी बढ़ चुका है। उन्होंने कई प्रोडक्ट जोड़ लिए हैं और देश के कई बड़े शहरों में मौजूद है। आमदनी अच्छी हो रही है, मुनाफा स्थिर है और इंवेस्टर्स खुश हैं। लेकिन प्रमोटर इससे संतुष्ट नहीं है। प्रमोटर अब विदेशों में भी कारोबार फैलाना चाहता है। वो चाहता है कि दुनिया के सभी बड़े शहरों में उसके कम से कम दो आउटलेट या दुकानें हों।

इसका मतलब है कि अब कंपनी को अलग अलग देशों के बाज़ारों का रिसर्च करना पड़ेगा कि वहाँ के लोगों की पसंद क्या है। कंपनी को नए लोग नौकरी पर रखने पड़ेंगे और अपना उत्पादन भी बढ़ाना पड़ेगा। साथ ही पूरी दुनिया में रियल एस्टेट पर भी पैसे खर्च करने पड़ेंगे। 

इस बार कैपेक्स की ज़रूरत काफी बड़ी है और मैनेजमेंट का अनुमान है कि उसे 200 करोड़ रुपए चाहिए। कंपनी के सामने जो रास्ते हैं

  1. इंटरनल अक्रुअल्स (Internal Accruals)- आंतरिक स्त्रोत
  2. PE फंड से सीरीज डी (D) फंडिंग
  3. बैंक से और कर्ज 
  4. बॉन्ड इश्यू करना ( कर्ज का एक और तरीका)
  5. आईपीओ के ज़रिए शेयर जारी करना
  6. ऊपर के सभी रास्तों का मिश्रण

मान लीजिए कि कंपनी ने कैपेक्स का कुछ हिस्सा आंतरिक स्त्रोतों से और बाकी आईपीओ से जुटाने का फैसला किया। जब कंपनी आईपीओ लाती है तो वो अपने शेयर आम पब्लिक (जनता) को बेचती है। चूंकि कंपनी  अपने शेयर पब्लिक को पहली बार बेच रही है, इसलिए इसे Initial public Offer या आईपीओ कहते हैं। अब कुछ सवाल उठना लाजिमी है

  1. कंपनी ने आईपीओ लाने का फैसला क्यों किया और कंपनी ये रास्ता क्यों लेती हैं? 
  2. कंपनी ने पहले सीरीज ए, बी और सी के समय आईपीओ का रास्ता क्यों नहीं चुना?
  3. आईपीओ आने के बाद मौजूदा शेयरहोल्डर्स का क्या होगा? 
  4. आम जनता आईपीओ में पैसा लगाने के पहले क्या देखती है? 
  5. आईपीओ की ये पूरी प्रक्रिया कैसे आगे बढ़ती है?
  6. आईपीओ मार्केट में कौन सी फाइनेंशियल इंटरमीडियरीज काम करती हैं?
  7. जब कंपनी पब्लिक इश्यू लाती है, तो क्या होता है? 

अगले अध्याय में हम इन सवालों का जवाब देंगे और आईपीओ मार्केट से जुड़ी कुछ और बातें भी बताएंगे। उम्मीद है कि कंपनी के आईपीओ लाने के पहले तक का सफर आपको समझ में आ गया होगा।  


इस अध्याय की ज़रूरी बातें: 

  1. ये समझने से पहले कि कंपनी शेयर बाजार में क्यों आती है, ये समझना ज्यादा ज़रूरी है कि कंपनियां कैसे बनती हैं, उनकी शुरूआत कहाँ से और कैसे होती है।
  2. रेवेन्यू या आय आने से पहले जो लोग बिजनेस में निवेश करते हैं, उन्हें एंजेल निवेशक या इंवेस्टर्स (Angel Investors) कहा जाता है। 
  3. एंजेल इंवेस्टर्स सबसे ज्यादा जोखिम उठाते हैं। कह सकते हैं कि प्रोमोटर और एंजेल इंवेस्टर्स बराबर जोखिम उठाते हैं। 
  4. एंजेल इंवेस्टर्स बिजनेस शुरू करने के लिए जो पूंजी देते हैं, उसे सीड फंड (Seed Fund) कहते हैं। 
  5.  एंजेल इंवेस्टर्स बाकियों की तुलना में कम पैसे निवेश करते हैं।
  6. कंपनी की वैल्यूएशन ये बताती है कि कंपनी की कीमत कितनी आंकी जा रही है। कंपनी की एसेट और लायबलिटिज को ध्यान में रख कर कंपनी की कीमत निकाली जाती है। 
  7. फेस वैल्यू शेयर का वास्तविक मूल्य दर्शाता है। 
  8. कंपनी के पास जितने भी शेयर होते हैं, वो ऑथराइज्ड शेयर कहलाते हैं। 
  9. ऑथराइज्ड शेयर में से दिए गए शेयर इश्यूड शेयर कहलाते हैं। 
  10. कंपनी का शेयर होल्डिंग पैटर्न हमें बताता है कि कंपनी में किसका कितना हिस्सा है। 
  11. वेंचर कैपिटलिस्ट कंपनी के शुरूआती फेज में निवेश करता है, तो उनके द्वारा लिया गया जोखिम एंजेल इंवेस्टर्स से कम होता है।VC द्वारा निवेश की गई रकम आमतौर पर एंजेल और प्राइवेट इक्विटी निवेश के बीच में होता है। 
  12. जो पैसे कंपनी बिजनेस को बढ़ाने या फैलाने में करती है, उसे कैपिटल एक्सपेंडिचर या कैपेक्स कहते हैं। 
  13. जैसे जैसे कंपनी आगे बढ़ती है, वैसे वैसे उसे सीरीज ए, बी, सी इत्यादि फंडिंग की ज़रूरत होती है। आमतौर पर जितनी ऊँची सीरीज, उतनी ज्यादा बड़ी रकम की ज़रूरत
  14. एक सीमा के बाद VC कंपनी में निवेश नहीं कर सकते। ऐसे में कपंनी को प्राइवेट इक्विटी फर्म के पास जाना पड़ता है। 
  15. प्राइवेट इक्विटी फर्म बड़ी पूँजी निवेश करते हैं और वो आमतौर पर बिजनेस के शुरूआती फेज के बाद निवेश करते हैं, जब बिजनेस थोड़ा स्थिर हो जाता है। 
  16. जोखिम या रिस्क के मामले में प्राइवेट इक्विटी फर्म की जोखिम लेने की क्षमता, VC या एंजेल इंवेस्टर्स से कम होती है। 
  17. प्राइवेट इक्विटी फर्म जिस कंपनी में निवेश करते हैं, उसके बोर्ड में वो अपने लोग बैठाना चाहते हैं, ताकि बिजनेस सही दिशा में चले। 
  18. कंपनी की वैल्यूएशन उसके बिजनेस, आय और मुनाफे में बढ़ोतरी के साथ बढ़ती है।
  19. आईपीओ की प्रक्रिया के जरिए कंपनी पूंजी जुटा सकती है। इस पूंजी का इस्तेमाल कंपनी अलग अलग कामों में कर सकती है, जैसे – कैपेक्स, कर्ज का पुनर्गठन वगैरह। 




103 comments
  1. Kaushalendra kumar says:

    Very helpful information.

  2. Shiv Pandey says:

    Hello Sir

    Can I get pdf of this complete hindi course?

  3. Sanjay yadav says:

    Bhai jisko starting se stock market sikhna ho to main yhi jagah h

  4. Shubham Sagar says:

    very helpful for beginners thanks for shear with us .
    I can\’t able to watch the video via my mobile phone. kindlly do the needful.

  5. Amar Rajpoot says:

    Isse badiya maine virtual teacher aj tak nahi dekha kya gajab tarika hai samjhane ka,10th satanderd ka bachha bhi badi asani se sikh le,ab india me bhi share market me nives karne balo ki sankhya badegi.

  6. Kuldeep says:

    Hi
    I run a company of 800 lakh revenue already but company have debt of bank and I want to free this company from debt so I want fund .Please guide me how I raise fund in my company …

  7. Prem Singh Tanwar says:

    very advanced knowledge sir thank you so much sir

  8. Suraj Jaiswal says:

    Best information I happy😊😊

  9. Indrajeet says:

    Good knowledge

  10. Sachin shirke says:

    Very gressfull information…

  11. Anil Chauhan says:

    Thanks a lot for covering this topic so beautifully. You guys are playing a very important role in making this country financially literate. Keep doing this good job. Wish you all a successful and peaceful life ahead.

  12. S K SINGH says:

    Very informative contents… Thanks…

  13. Rishabh agrahari says:

    Hi ma\’am, starting me valuation 5 cr thi to 7 cr milne pr valuation 50cr kaisi ho gyi.can u explain please?

    • Kulsum Khan says:

      हमने इसको इसी अध्याय में समझाया है कृपया इसको पूरा पढ़ें।

  14. Ankit Tiwari says:

    Biggners ke liye bahut jayada achha hai

  15. Manoj Kumar Chaudhary says:

    आज कल बैंक लोन देने के वक़्त कोलेटरल के रूप में प्रॉपर्टी के दस्तावेज माँगते हैं। अगर कोई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी जो 2 साल पुरानी है और प्रॉफिट में है तो ऐसी स्थिति में अपने शेयर को कोलेटरल के रूप में बैंक में मॉर्गेज रख कर लोन ले सकती है? मेरा मतलब बैंक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के शेयर को मॉर्गेज(गिरवी) के लिए स्वीकार करते हैं या नहीं?

  16. Shubham says:

    still confused that vc just invest 7 cr in business. तो वो पचास करोड़ की वैल्यूएशन केसे दे सकता हे व्यापार को ??

    • Kulsum Khan says:

      हमने इसको इसी अध्याय में समझाया है कृपया इसको पूरा पढ़ें।

  17. NUTAN KUMAR LALAN says:

    Very well news sir

  18. Nasir Hussain khokhar says:

    बहुत अच्छा मार्गदर्शन

  19. Ashish Sharma says:

    And one more question…..
    Ye kese calculate hoga ki after changing valuation of company, share ka naya value kitna hoga?
    Please explain it
    And thanks to team for explaining this concept in easiest way 🙏

    • Kulsum Khan says:

      हमने इसका कैलकुलेशन इसी अध्याय में समझाया है कृपया इसको पूरा पढ़ें।

  20. Ashish Sharma says:

    Kya company valuation ke badlne ke sath share value bhi badalti rehati hai?
    Ya fir share price same hi rehti hai

    • Kulsum Khan says:

      शेयर प्राइस का बदलना पूरा मार्किट मूवमेंट पर निर्भर करता है।

  21. Aniruddha Gupta अनिरुद्ध गुप्ता says:

    समझाने का ढँग बहुत अच्छा है ,धन्यवाद बहुत सारा!!

  22. HRK says:

    Interesting

  23. Akash Ghagare says:

    Life time knowledge
    Thanks zeerodha

  24. DILIP KUMAR RAI says:

    बहुत अच्छे से समझाया गया है।नव सिखीए के लिए सहायक व उपयोगी है।
    बहुत बहुत धन्यवाद।

  25. Shailendra Sharma says:

    2 साल बाद वल्युएशन 2 करोड़ से 20 करोड़ कैसे हो गया?

  26. MOHD SHARIQ SAMI says:

    Very good information for beginners
    Thank you so much:-)

  27. Varun says:

    Dear Karthik and Kulsum,
    First, I want to thank you guys from the bottom of my heart. I was looking to buy some books which can cover all the aspects of capital markets, but in vain. Your reading material is par excellence because it is actually teaching us from the vary basics, just like a good teacher (in the real sense of the word). I hope it will be available always and kept updated timely.
    Second, I have a small query regarding first/initial shareholding pattern depicted in IPO-1 chapter. Angel Investors are issued 5% equity, does it mean they have only invested 5% of 5 Cr and rest is arranged by the promoter himself. Also, the 50% share (authorised capital) of company is funded out of promoter only?

    Keep up the good work.
    Best Regards
    Varun

  28. Anil Jain says:

    Very good information in very simple language.
    Want to read more articles
    Please send link

  29. Pradeep Kumar says:

    Excellent way to define the terminology of market related terms,I have no words to pay gratitude to Zerodha

  30. RAJESH OGANIYA says:

    पीछले तीन अध्यायो में शानदार तरीके से समजाया गया है। और इसे मैंने कुछ हद तक समज भी लीया है। मगर इस चौथे अध्याय मे कंपनी की मार्केट वेल्यू \”5\”करोड से \”400\”करोड पहुंचने का हिसाब समज में नहिं आया। कृपया विस्तार से समजाये की कंपनी कीसी से कुछ करोड लेती है तो उसका वेल्यू \”400\”करोड कैसे बनता है ? thank you

    • Kulsum Khan says:

      इसके हमने इसी अध्याय में समझाया है, कृपया इस मॉड्यूल को पूरा पढ़ें आपको समझ आजायेगा।

  31. Basant says:

    Very helpful for beginners like me. Lot of thanks ❤️😊🙂

    हिंदी माध्यम वालों को काफी सहायता मिलेगी।👍

  32. Girish Surve says:

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  33. Buta singh says:

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  34. dhiren kumar says:

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    Thank you

  35. Saurabh Singh says:

    Isse acha to YouTube par bhi koi nahi bata paya Sab kuch ek baar me hi clear ho gaya thank you zerodha team

  36. Shashikant More says:

    Excellent Information… abt IPO,VC etc.. I wholly understood all concepts… Thx to all Team members..

  37. Santosh Gaikwad says:

    Please example

  38. Santosh Gaikwad says:

    5 परसेंट इक्विटी के बदले 10 करोड़ मिलने से कंपनी का वैल्यूएशन 200 करोड़ दिख रहा है।
    *कृपया जरा विस्तार से बातये।*

    • Kulsum Khan says:

      कंपनी का वैल्यूएशन कंपनी के टोटल शेयर्स को उसके दाम से मल्टीप्लय करने पे मिलता है।

  39. Pradeep Kumar says:

    Nice way to teach . Even it is available in hindi also . Thank you so much

  40. ARIF SHEIKH says:

    बहुत सरल भाषा में रोचक तरीके से कठिन विषय को समझाने के लिए धन्यवाद

    • Kulsum Khan says:

      पढ़ते रहिये और हमें सपोर्ट करते रहिये 🙂

  41. Jigar says:

    Sir.. Aap ek dam easy language me sikhate ho…Ek baar me padhne vale ke dimag me beth jaata hai.. Aaisa to class me bhi nahi sikhate…..

    Thanks… your all team…😄😄😄

  42. Gopi kashyap says:

    बहुत बढ़िया जानकारी। आप लोगों के द्वारा किया जा रहा यह कार्य अति प्रशंशनीय है। कृपया सारी जानकारियां हिंदी भाषा में उपलब्ध करा दें तो काफी अच्छा हो जाएगा।

    • Kulsum Khan says:

      हम उस पर काम कर रहे हैं, वह भी जल्द ही उपलब्ध कराया जायेगा ।

  43. Imran Moazzam says:

    nice content 🥇🏆
    Keep it up 🙏🙏

  44. Shiwam Samrat says:

    Hindi Pdf kab tk aayegi please bataye

    • Kulsum Khan says:

      हम इस पर काम रहे हैं, वह भी जल्द ही उपलब्ध कराया जायेगा।

  45. Shiwam Samrat says:

    Thank you so much it\’s very helpful for beginners

  46. Shyam says:

    Knowledgeable

  47. Aditya says:

    Hello @rupakkuamrjha
    Let me clear this venture capitalist has invested 7 crore and he got stake around 14 percent.
    Company has left with 36 percent so value of that stake is around 18 crore..
    Promoter has 40 percent share so value of share is around 20 crore.
    And Angel\’s have around 10 percent of holding . So value is around 5 crore.
    Total value of share : 7+18+20+5= 50 crore.

  48. Sanjay Pandurang Jagadale says:

    Thank you sir
    Very helpful education

  49. Sumeet Gahire says:

    Sir वैल्यूएशन मतलब क्या ? और वो कैसे बढ़ता है ?

    • Kulsum Khan says:

      वैल्यूएशन कंपनी के शेयर प्राइस को प्रभावित करता है, कंपनी जब चाहे तब अपना वैल्यूएशन बढ़ा सकती है।

  50. Abhishek Prajapati says:

    Very good thing for beginner and thanks from my side also.

  51. Daku says:

    PDF kab milegaa ? 🙁

  52. vk says:

    Bahut hi achchhe tarike se explain kiya hai sir aapne.thanks sir.

  53. TARUN KUMAR GUPTA says:

    Mam total share bhi shi kr दीजिए।।।।।।wahan 4,200,000 hoga😁😁

  54. rupak kumar jha says:

    scene 2 me venture captalist ke 7 crore ke investment se company ka 50 crore ka valuation kaise ho gaya.
    kindly clear this doubt (mob:9971543407)

  55. राहुल राज says:

    बहुत बहुत धन्यवाद सर

  56. TARUN KUMAR GUPTA says:

    Hello kartik sir,….upar stage 4 me either glti hai……PE ne 15% hold Kiya hai tatal share kaa means out of 5,000,000 they get 750,000 but here misprint ho gya hai 1,000,000 ….please ise aap shi kr skten Hein……same problem English me bhi hai….😊

  57. Anil says:

    Very good information.

  58. ganesh barwal says:

    very helpful for beginners
    thanks for shear with us .

  59. Gogy singh says:

    Very helpful for beginners
    Thank\’s a lot

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