15.1 – मॉनसून का असर

एक समय था, जब मैं ICICI डायरेक्ट के जरिए शेयरों की ट्रेडिंग करता था। उसी समय MCX ने अपना कामकाज शुरू किया था और ICICI डायरेक्ट उनके पहले कुछ ब्रोकर में से एक था। MCX काफी जोर-शोर से अपने प्रचार-प्रसार में लगा था और कोशिश कर रहा था कि बाजार से जुड़े लोग उनके बारे में जान जाएं, जिससे उनके एक्सचेंज पर कारोबार बढ़ सके। मैं भी उस समय बाजार के मौकों को समझ रहा था और यह जानने की कोशिश कर रहा था कि भारत में कितने तरीके की ट्रेडिंग हो सकती है। कुछ जाँच पड़ताल के बाद मुझे लगा कि मैं कमोडिटी जैसे ऐसेट क्लास में ज्यादा अच्छे से  ट्रेडिंग कर सकता हूं। 

कमोडिटी में ट्रेडिंग शुरू करने के लिए अपने ब्रोकर के पास मैंने सारे कागजात जमा कर दिए और अपना ट्रेडिंग अकाउंट खोलने को कहा। मैं बेंगलुरु से MCX पर ट्रेडिंग अकाउंट खोलने वाले पहले कुछ लोगों में से एक था। MCX पर अकाउंट खोलने में मुझे 12 दिन लग गए। 

फिर एक दिन मेरे ब्रोकर का फोन आया और उसने बताया कि मैं अगले दिन से MCX पर ट्रेडिंग कर सकता हूं। मैं इतना अधिक उत्तेजित था कि मैंने ट्रेडिंग शुरू के लिए एक दिन की छुट्टी ले ली। 

मैंने अपने सबसे पहला कमोडिटी ट्रेड काली मिर्च के फ्यूचर (Pepper Futures) में किया। मैंने काली मिर्च को क्यों चुना यह तो मुझे याद नहीं है लेकिन मैंने काली मिर्च को ही चुना।

तो मैंने काली मिर्च में लॉन्ग ट्रेड किया। मैंने 10 लॉट खरीदे (शायद वो एक मिट्रिक टन का कॉन्ट्रैक्ट था)। कीमत मुझे पूरी तरह से याद नहीं है लेकिन यह करीब 7500 प्रति क्विंटल थी। मैंने अपने ट्रेडिंग अकाउंट के सारे पैसे इस सौदे पर लगा दिए। 

इसके बाद वही हुआ जो आमतौर पर हमेशा होता है, काली मिर्च अगले 2 दिनों में अपने 52 हफ्तों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। मैंने और पैसे लगाए, लेकिन काली मिर्च नीचे गिरती रही और धीरे-धीरे मैंने अपने सारे पैसे इस पर लगा दिए। 

निराश हो कर मैंने यह पता करने की कोशिश की कि आखिर ऐसा क्यों हुआ। तब मुझे पता चला कि कोच्चि के आसपास अच्छा मॉनसून होने की संभावना थी जिसकी वजह से काली मिर्च की फसल काफी अच्छा होने की उम्मीद थी जिसकी वजह से कीमतें गिर रही थीं। 

अब जा कर मुझे समझ में आया कि किसी भी एग्री कमोडिटी में ट्रेडिंग करने के पहले हमें मॉनसून और उस फसल पर मॉनसून के असर को समझना जरूरी होता है। मेरे लिए यह समझना काफी महंगा पड़ा। इसीलिए मुझे वह दिन आज तक याद है।

इसी वजह से हम शुरूआत में कुछ समय इस विषय को समझने में लगाएंगे ताकि कोई भी व्यक्ति वो गलती ना दोहराए जो मैंने की थी। 

यहां पर आपको यह भी बता दूं कि जब मेरा ट्रेडिंग अकाउंट खाली हो गया था और कमोडिटी के पहले सौदे में मैंने अपने हाथ जलाए उसके बाद काली मिर्च का फ्यूचर तेजी से ऊपर भागा और 12500 प्रति क्विंटल तक पहुंच गया था।

15.2 – बारिश को समझिए 

भारतीय अर्थव्यवस्था की कृषि पर निर्भरता अब पहले के मुकाबले कम हो गई है। कुछ दशकों पहले तक भारत की GDP का 30% कृषि से आता था। लेकिन अब कृषि, GDP का, सिर्फ 10% हिस्सा ही है। लेकिन कृषि और इससे जुड़ी सेवाओं में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है। शायद यही वजह है कि केंद्र सरकार जब भी कोई बड़ा लोकप्रिय फैसला या सुधार करना चाहती है तो वह इसी सेक्टर में होता है। 

नीचे के चित्र पर नजर डालिए। इससे आपको यह पता चलेगा कि कौन सा सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था में किस तरह से योगदान करता है। 

इस डेटा/डाटा का प्रकाशन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी RBI 1950 से लगातार करता आ रहा है और मैंने इसे उसकी वेबसाइट से लिया है। मैंने इस डेटा/डाटा में सिर्फ थोड़ा सा बदलाव किया है, जिससे कि मैं आप को प्रतिशत में हर सेक्टर का योगदान दिखा सकूं। जैसा कि आप देख सकते हैं कि कुछ सालों में कृषि का योगदान प्रतिशत तौर पर घटा है जबकि सर्विसेज यानी सेवाओं (सॉफ्टवेयर और उससे जुड़ी सेवाएं) का योगदान लगातार बढ़ा है। 

लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा है कि कृषि क्षेत्र में अभी भी सबसे ज्यादा रोजगार मिलता है। कृषि उद्योग और इससे जुड़े सारे लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण ये जानना होता है कि इस बार बारिश कैसी होगी। बारिश इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत में कृषि योग्य भूमि का 2/3 हिस्सा बारिश से ही सींचा जाता है। 

भारत में बारिश (मॉनसून) के दो मौसम होते हैं –

  1. दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून (बारिश का मुख्य मौसम) और 
  2. उत्तर पूर्वी मॉनसून

बारिश के इन दो मौसमों के बारे में जानने योग्य मुख्य बातें हैं – 

  1. दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून दक्षिण भारत में शुरू होता है और मध्य भारत के पूरे हिस्से में इसका प्रभाव होता है। इस मौसम की बारिश जून या जुलाई में शुरू होती है और सितंबर-अक्टूबर तक चलती है। 
  2. उत्तर पूर्वी मॉनसून भारत के उत्तर और पूर्वी हिस्से में प्रभाव दिखाता है। उत्तर भारत, हिमालय के आसपास, पश्चिमी हिस्से और तमिलनाडु का एक बड़ा हिस्सा इसके प्रभाव में रहता है। यह बारिश दिसंबर से शुरू होती है और मार्च तक चलती है। 

मॉनसून के इन दोनों मौसमों में बीज बोए जाते हैं और फिर बाद में फसल काटी जाती है। बारिश अच्छी होगी या बुरी इसके आधार पर फसल का अनुमान लगाया जाता है। 

  • दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून के समय जिस फसल की बुवाई होती है उसे खरीफ की फसल कहते हैं। इसमें खासतौर पर अलग-अलग किस्म की दालें, उड़द दाल, मूंग दाल, चावल और कपास आदि की फसल होती है। फसल की बुआई करीब मई या जून के शुरु में होती है (दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून के शुरू होने के ठीक पहले) और इस फसल की कटाई मॉनसून के बाद अक्टूबर के महीने में होती है। 
  • उत्तर पूर्वी मॉनसून के समय होने वाली फसल को रबी की फसल कहा जाता है। रबी में आमतौर पर गेहूं, चना, धनिया और सरसों आदि पैदा होता है। रबी की बुआई सर्दी के मौसम के शुरू में होती है और इसकी कटाई अप्रैल के महीने में होती है। 

भारत में सबसे ज्यादा खपत वाले खाद्यान्न चावल और गेहूं हैं और हमारे खाद्यान्न उत्पादन का 40% इन्हीं दोनों में होता है। इसलिए भारतीय अर्थव्यवस्था में और भारतीय खाद्यान्न सुरक्षा में इनकी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। ध्यान रखिए कि इनकी कटाई और बुआई खरीफ और रबी मौसम में होती है। 

फसल की बुआई और कटाई पर लगातार नजर रखी जाती है और इसके बारे में अलग-अलग समय पर रिपोर्ट भी आती रहती हैं। एक नजर डालिए रबी की रिपोर्ट पर – 

ये है खरीफ की रिपोर्ट – 

अब तक दी गयी जानकारी को देखते हुए मुझे लगता है कि आपको इस समाचार को पढ़ना चाहिए।  news piece.

मुझे लगता है कि इससे हमारी अब तक की चर्चा को समझने में आसानी होगी और आप ये समझ सकेंगे कि ये समाचार इससे किस तरह से जुड़ा हुआ है। अगर आप एग्री कमोडिटी में ट्रेडिंग करने के बारे में गंभीर हैं तो आपको इस तरह की समाचारों पर नजर रखनी चाहिए और इनकी आधार पर अपनी रणनीति बनानी चाहिए। 

MCX पर जिन एग्री कमोडिटी में ट्रेड होता है, वो हैं 

  1. इलायची यानी कार्डमम (Cardamom) 
  2. कैस्टर सीड 
  3. कॉटन 
  4. क्रूड पाम ऑयल 
  5. कपास
  6. मेंथा ऑयल 

इनमें से मेरी सलाह यह होगी कि आप इलायची और मेंथा आयल में ट्रेड करें क्योंकि यहां पर लिक्विडिटी अच्छी होती है। 

आइए इन दोनों कमोडिटी पर चर्चा करते हैं, यहां यह भी ध्यान रखिए कि एग्री कमोडिटी में ट्रेडिंग 5:00 बजे तक चलती है।

15.3 – इलायची

इलायची मुख्य तौर पर दक्षिण भारत में (कर्नाटक और केरल में) पैदा होती है। भारत में पैदा होने वाली इलायची को स्मॉल कार्डमम यानी छोटी इलायची कहते हैं। भारत दुनिया में इसका दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि खपत के मामले में भारत दुनिया में नंबर 1 है। दुनिया में इलायची का सबसे बड़ा उत्पादक ग्वाटेमाला (Guatemala) है। ग्वाटेमाला में होने पैदा होने वाली इलायची मुख्य तौर पर निर्यात ही होती है। 

जैसा कि आप जानते हैं कि इलायची का इस्तेमाल कई तरह की भारतीय मिठाइयों में होता है। इसके अलावा कुछ इसकी औषधियों में भी इसकी जरूरत पड़ती है, खासकर त्वचा और दांत के इलाज में इसका इस्तेमाल किया जाता है। 

इलायची खरीफ की फसल है। इसकी मांग और सप्लाई निम्न चीजों पर निर्भर करती है 

  1. दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून 
  2. इसकी गुणवत्ता यानी महक, रंग, आकार और फसल की खुशबू 
  3. फसल की स्थिति – जैसे कीड़ों का असर 
  4. भारत और ग्वाटेमाला में इसके मौजूदा स्टॉक 
  5. भारत में इसकी खपत का चलन (हालांकि इसमें सालों से कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया है) 

एक नजर डालते हैं इसके कॉन्ट्रैक्ट से जुड़ी जानकारी पर। दूसरी कई कमोडिटी की तरह MCX पर इलायची के दो तरह के कॉन्ट्रैक्ट नहीं होते हैं। 

इलायची की डिमांड और सप्लाई करीब-करीब स्थिर है। इलायची से जुड़ी एक खबर मैं आपको यहां पढ़ाना चाहता हूं 

अब कॉन्ट्रैक्ट से जुड़ी जानकारियों पर एक नजर डालते हैं। 

कीमत-प्राइस कaट (Price Quote) – प्रति किलोग्राम 

लॉट साइज – 100 किलोग्राम

टिक साइज – 0.10 

प्रति टिक P&L 10

एक्सपायरी – महीने की 15 तारीख 

डिलीवरी यूनिट – 100 किलोग्राम

फरवरी 2017 में एक्सपायर हो रहे इलायची के कॉन्ट्रैक्ट के कोट (Quote) पर नजर डालते हैं

यहां पर कीमत 1564 प्रति किलो दिख रही है। इसलिए कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू होगी –

लॉट साइज * कीमत

= 100 * 1564

Rs.156,400/-

NRML ट्रेड की मार्जिन को नीचे दिखाया गया है –

जैसा कि आप देख सकते हैं कि NRML ट्रेड (ओवरनाइट पोजीशन) के लिए मार्जिन 16,237 रुपये है, यानी NRML ट्रेड का मार्जिन करीब 10% है। 

जैसा कि आप को दिख रहा होगा कि इलायची में MIS मार्जिन उपलब्ध नहीं है। वास्तव में MCX पर किसी भी एग्री कमोडिटी के लिए MIS मार्जिन नहीं होता है। इसकी वजह यह है कि एग्री कमोडिटी में काफी ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है और यह आसानी से सर्किट के स्तर तक पहुंच जाती हैं। इसलिए इनमें उसी दिन पोजीशन लेना और उससे बाहर निकलना आसान नहीं होता। इसीलिए किसी भी ट्रेडर के लिए अच्छा यह है कि वह अगर डे ट्रेडिंग भी कर रहा है तो वह NRML में इंट्राडे पोजीशन ले। 

इलायची के कॉन्ट्रैक्ट जारी होने से जुड़ी जानकारी पर एक नजर डालिए

जैसा कि आप देख सकते हैं कि हर महीने एक 6 महीने का फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट जारी किया जाता है। उदाहरण के तौर पर जनवरी में जून का फ्यूचर जारी होता है। जून का फ्यूचर 15 जून तक चलेगा (याद रखें की एक्सपायरी हर महीने के 15 तारीख को होती है)। जैसा कि आपको पता ही है कि यह हमेशा अच्छा होता है कि मौजूदा महीने के कॉन्ट्रैक्ट में ही ट्रेड करना बेहतर होता है क्योंकि वहां पर लिक्विडिटी ज्यादा होती है। 

उदाहरण के तौर पर जब मैं इस अध्याय को लिख रहा हूं (17 जनवरी 2017 को) और अगर मुझे इलायची में ट्रेड करना है तो मैं फरवरी 2017 के इलायची कॉन्ट्रैक्ट में ट्रेड करूंगा (जनवरी 2017 का कॉन्ट्रैक्ट 15 जनवरी को एक्सपायर हो चुका है)

15.4 – मेंथा ऑयल – Mentha Oil

मेंथा एक तरीके का पौधा है जिसका इस्तेमाल भारतीय रसोई में होता है। इसमें से मेंथा आयल निकाला जाता है। मेंथा आयल MCX पर ट्रेड होता है। मेंथा ऑयल का इस्तेमाल खाने की चीजों, दवाओं, खुशबू और परफ्यूम में होता है। 

मेंथा ऑयल का एक्सपोर्ट चीन, अमेरिका और सिंगापुर जैसे देशों को भी किया जाता है। और यही वजह है कि मेंथा आयल के कॉन्ट्रैक्ट पर USD INR के रेट का असर पड़ता है। इसके अलावा बारिश, फसल में कीड़े लगना, कितनी जमीन पर फसल लगाई गई है, इनका असर भी इसके कॉन्ट्रैक्ट पर पड़ता है।

अब मेंथा ऑयल के कॉन्ट्रैक्ट से जुड़ी जानकारियों पर एक नजर डालते हैं। 

कीमत-प्राइस क्वोट (Price Quote) – प्रति किलोग्राम 

लॉट साइज – 360 किलोग्राम

टिक साइज – 0.10 

प्रति टिक P&L 36

एक्सपायरी – महीने की 15 तारीख 

डिलीवरी यूनिट – 360 किलोग्राम

मेंथा ऑयल शायद अकेली लिस्टेड वस्तु है जिसका प्रति टिक P&L 36 है।

जनवरी 2017 में एक्सपायर हो रहे मेंथा ऑयल के कॉन्ट्रैक्ट के कोट (Quote) पर नजर डालते हैं

यहां पर कीमत 1023.2 प्रति किलो दिख रही है। इसलिए कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू होगी –

लॉट साइज * कीमत

= 360 * 1023.2 

Rs.368,352/-

NRML ट्रेड की मार्जिन को नीचे दिखाया गया है –

जैसा कि आप देख सकते हैं कि NRML ट्रेड (ओवरनाइट पोजीशन) के लिए मार्जिन 29,893 रुपये है, यानी NRML ट्रेड का मार्जिन करीब 8.5% है। मेंथा ऑयल में भी उपर बताई गई वजहों से MIS मार्जिन नहीं होता है।

हर महीने 5 महीने का एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट जारी किया जाता है। आपको पता ही है कि यह हमेशा अच्छा होता है कि मौजूदा महीने के कॉन्ट्रैक्ट में ही ट्रेड करना बेहतर होता है क्योंकि वहां पर लिक्विडिटी ज्यादा होती है। 

इस अध्याय की मुख्य बातें 

  1. कृषि उद्योग भारत की अर्थव्यवस्था में 10% का योगदान करता है लेकिन इस उद्योग में सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है। 
  2. कृषि के मामले में भारत अभी भी बहुत हद तक बारिश पर निर्भर है।
  3. भारत में बारिश के दो मुख्य मौसम होते हैं- दक्षिण पश्चिमी मॉनसून (मुख्य मॉनसून) और उत्तर पूर्वी मॉनसून।
  4. दक्षिण पश्चिमी मॉनसून में बुआई और कटाई वाली फसल को खरीफ की फसल कहा जाता है। खरीफ की सबसे महत्वपूर्ण फसल चावल है।
  5. उत्तर पूर्वी मॉनसून में बोई और काटी गई फसल को रबी की फसल कहा जाता है। रबी की मुख्य फसल गेहूं है। 
  6. MCX पर एग्री कमोडिटी का ट्रेड शाम 5:00 बजे तक चलता है। 
  7. भारत में इलायची की सबसे ज्यादा खपत होती है और भारत दुनिया में इलायची का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। दुनिया का पहले नंबर का उत्पादक देश ग्वाटेमाला है। 
  8. इलायची की डिमांड और सप्लाई काफी समय से स्थिर है। 
  9. एग्री कमोडिटी में MIS मार्जिन नहीं होता। 
  10. मेंथा ऑयल को मेंथा की पत्तियों से निकाला जाता है।



9 comments

View all comments →
  1. super learner says:

    rice aur wheat prtading nhi hoti h kya

  2. Sahil Khan says:

    मैंथा के रेट बढ़ने की उम्मीद है किया

    • Kulsum Khan says:

      मार्किट वोलैटिलिटी किसी को पता कहाँ होती है। 🙂

  3. rakesh dhameja says:

    Very well guidance
    Thank u

  4. Amit says:

    @ kusum , ha magar trends to dekh ker to pata laga sakte hai , aur hum kisi aisi chiz pe paisa kyu lagaayenge jiski umeed hi na ho , umeed hogi tabhi lagaayenge ,

  5. Ganga Ram says:

    Sir Mentha oil itna sasta kiyon hai

    • Kulsum Khan says:

      यह आपको मार्किट फिनान्सिअल्स पढ़ कर समझ आएगा।

View all comments →
Post a comment