11.1 वैल्यूएशन रेश्यो (The Valuation Ratio)

किसी चीज की कीमत निकालने को उस चीज का वैल्यूएशन करना कहते हैंशेयर बाजार में जब किसी शेयर की कीमत को निकाला जाता है तो उसको शेयर का वैल्यूएशन करना कहते हैं। किसी भी बिजनेस में निवेश करने के पहले यह देखा जाता है उसकी वैल्यूएशन कितनी होनी चाहिए। किसी बिजनेस को खरीदने के लिए भी उसकी वैल्यूएशन को देखा जाता है। कई बार कम वैल्यूएशन पर एक साधारण बिजनेस में ज्यादा अच्छा निवेश माना जाता है बजाय इसके एक बहुत अच्छा बिजनेस को बहुत ऊंचे वैल्यूएशन पर खरीदा जाए।

वैल्यूएशन रेश्यो हमें यही बताता है कि किसी भी शेयर की कीमत को बाजार कैसे देख रहा है? यानी उसकी कितनी वैल्यूएशन कर रहा है। इससे हमें पता चलता है कि निवेश के लिए अच्छा शेयर कौन सा हैये रेश्यो हमें बताता है कि इस शेयर को इस कीमत पर खरीदने पर हमें किस तरह का फायदा हो सकता है। बाकी सारे रेश्यो की तरह इसमें रेश्यो की दूसरी कंपनी के रेश्यो से तुलना करनी चाहिए।

वैल्यूएशन रेश्यो में आमतौर पर किसी बिजनेस के किसी खास हिस्से की तुलना उसके शेयर की कीमत से करते हैं। हम यहां पर इन 3 वैल्यूएशन रेश्यो को देखेंगे

  1. प्राइस टू सेल्स रेश्यो (Price to Sales – P/S ratio)
  2. प्राइस टू बुक वैल्यू रेश्यो (Price to Book Value – P/BV Ratio)
  3. प्राइस टू अर्निंग रेश्यो (Price to Earnings – P/E Ratio)

हम फिर से अमारा राजा बैटरीज लिमिटेड का उपयोग उदाहरण के तौर पर करेंगे और उसमें इन तीनों रेश्यो को देखेंगे। इस उदाहरण में अमारा राजा बैटरी के शेयरों की कीमत का बहुत महत्व है। यहां मैं 28 अक्टूबर 2014 के शेयर कीमत को लूंगा जो कि ₹661 है।

हमें यह रेश्यो निकालने के लिए ARBL के कुल आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या को भी जानना होगा। हमने अध्याय 6 में शेयरों की आउटस्टैंडिंग शेयरों की संख्या निकाली थी। यह संख्या थी 17,08,12,500 यानी 17.08 करोड़।

प्राइस टू सेल्स रेश्यो (P/S ratio)

कई बार निवेशक अपने निवेश के लिए कंपनी चुनते वक्त कंपनी की कमाई से ज्यादा कंपनी की बिक्री पर ध्यान देते हैं। क्योंकि कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कंपनी की कमाई में किसी खास वजह से कमी आ गई हो। कई बार किसी के एकाउंटिंग फैसले की वजह से भी कंपनी के मुनाफे या कमाई में कमी दिखाई पड़ती है, जैसे किसी बड़े भुगतान की वजह से या किसी दूसरी वजह से। ऐसे में कंपनी की बिक्री पर ध्यान देना निवेशक के लिए बेहतर होता है। इस रेश्यो के तहत कंपनी की बिक्री और कंपनी के शेयरों की कीमत के बीच का अनुपात देखा जाता है प्राइस टू सेल्स रेश्यो को निकालने का फार्मूला है।

प्राइस टू सेल्स रेश्यो = शेयर की मौजूदा कीमत / प्रति शेयर सेल्स या बिक्री

अब ARBL के लिए उसका प्राइस टू सेल्स रेश्यो निकालते हैं। इसके लिए हमें पहले विभाजक/हर (denominator) को निकालना होगा। 

सेल्स (बिक्री) प्रति शेयर = कुल आमदनी /शेयरों की कुल संख्या

ARBL की बैलेंसशीट के मुताबिक

कुल आमदनी = 3482 करोड़

शेयरों की कुल संख्या = 17.08 करोड़

सेल्स (बिक्री) प्रति शेयर = 3482/ 17.081

= 203.86 रूपये

इससे पता चलता है कि प्रति शेयर कंपनी 203.86 रूपये की बिक्री कर रही है।

प्राइस टू सेल्स रेश्यो = 661 / 203.86

= 3.24x या 3.24 गुना

3.24 का प्राइस टू सेल्स रेश्यो बताता है कि हर एक रूपये की बिक्री के सामने शेयर की कीमत 3.24 गुना ज्यादा है। प्राइस टू सेल्स रेश्यो जितना ज्यादा होगा कंपनी की वैल्यूएशन उतनी ज्यादा होगी। इस इंडस्ट्री की दूसरी कंपनियों के प्राइस टू सेल्स रेश्यो से मुकाबला करने पर हमें पता चलेगा कि यह शेयर महंगा है या सस्ता।

प्राइस टू सेल्स रेश्यो की तुलना करके कंपनी के बारे में निवेश करने का फैसला कैसे करते हैं, इसको एक उदाहरण से समझते हैं। मान लीजिए दो कंपनियां A और B एक ही तरीके का उत्पाद बाजार में बेचती हैं। दोनों कंपनियों की आमदनी भी मान लीजिए 1000 रूपये है। कंपनी A 250 रूपये  PAT के तौर पर कमाती है जबकि कंपनी B का PAT 150 रूपये है। इसका मतलब साफ है कि कंपनी A का प्रॉफिट मार्जिन 25 परसेंट है जबकि कंपनी B का प्रॉफिट मार्जिन 15 परसेंट है। इसका ये भी मतलब है कि कंपनी A की सेल्स या बिक्री कंपनी B की बिक्री के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसलिए कंपनी A का प्राइस टू सेल्स रेश्यो ऊपर है और उसका वैल्यूएशन भी ऊपर है क्योंकि कंपनी A हर रूपये की बिक्री के लिए ज्यादा मुनाफा कमा कर दे रही है।

अगर कभी आपको लगे कि किसी कंपनी के शेयर की कीमत उसके प्राइस टू सेल्स रेश्यो के नजरिए से ज्यादा ऊंची दिख रही है तो कंपनी का मुनाफा या प्रॉफिट मार्जिन जरूर चेक कीजिए।

प्राइस टू बुक वैल्यू रेश्यो ( P/BV ratio)

 प्राइस टू बुक वैल्यू रेश्यो समझने के पहले हमें यह जानना होगा कि बुक वैल्यू क्या होती है।

मान लीजिए एक कंपनी को बंद करना पड़ा है और उसे अपने सारे एसेट बेचने पड़ते हैं। सारे एसेट बेचने पर कंपनी को कम से कम जितने पैसे मिलेंगे, उसे उस कंपनी की बुक वैल्यू माना जाता है।

साधारण भाषा में कहें तो सब कुछ बेच देने के और अपनी देनदारियों को पूरा करने के बाद कंपनी के पास जितने पैसे बचेंगे उसे उसकी बुक वैल्यू माना जाता है। अगर कंपनी की बुक वैल्यू 200 करोड़ रूपये है, तो इसका मतलब है कि कंपनी को सब कुछ बेचने पर जो पैसे मिले और उसमें से कंपनी ने अपनी सभी देनदारियां पूरी कर दी, तो यह बची हुई रकम है। आमतौर पर बुक वैल्यू को प्रति शेयर के तौर पर बताया जाता है। यदि किसी कंपनी की बुक वैल्यू प्रति शेयर 60 रूपये है तो इसका मतलब है कि कंपनी के हर शेयर धारक को कंपनी के बिकने की स्थिति में 60 रूपये की उम्मीद रखनी चाहिए। बुक वैल्यू को निकालने का फार्मूला है:

बुक वैल्यू (BV)= शेयर कैपिटल + रिजर्व्स (रिवैल्युएशन रिजर्व्स निकालने के बाद)/ शेयरों की कुल संख्या 

अब इसे ARBL के लिए निकालते हैं:

ARBL की बैलेंस शीट से हमें पता है:

शेयर कैपिटल = 17.1 करोड़ रूपये

रिजर्व्स = 1345.6 करोड़ रूपये

रिवैल्युएशन रिजर्व्स = 0

शेयरों की संख्या = 17.081 करोड़ रूपये

प्रति शेयर बुक वैल्यू  = [17.1+1345.6-0] /17.081

= Rs 79.8 प्रति शेयर

इसका मतलब है कि अगर ARBL को अपना सब कुछ बेचना पड़े तो और कर्ज चुका देने के बाद कंपनी के हर शेयर धारक को हर शेयर पर 79.8 रूपये मिलने की उम्मीद रखनी चाहिए। यदि हम कंपनी के मौजूदा शेयर कीमत को कंपनी की बुक वैल्यू से विभाजित करेंगे तो हमें प्राइस टू बुक वैल्यू पता चल जाएगी इससे पता चलता है कि कंपनी के शेयर अपने बुक वैल्यू के कितने गुना पर बिक रहे हैं। प्राइस टू बुक वैल्यू जितना ऊपर होगा कंपनी के शेयर उतने ही महंगे माने जाएंगे।

अब ARBL के लिए प्राइस टू बुक वैल्यू निकालते हैं :

ARBL के शेयर की कीमत = 661 रूपये प्रति शेयर

ARBL की बुक वैल्यू (BV) = 79.8

प्राइस टू बुक वैल्यू (P/BV) = 661/79.8

=8.3 गुना

इसका मतलब है कि ARBL के शेयर अपनी बुक वैल्यू की 8.3 गुना पर बिक रहे हैं।

एक ऊंची प्राइस टू बुक वैल्यू का मतलब है कि कंपनी के शेयर अपनी बुक वैल्यू के मुकाबले महंगे हैं और एक कम प्राइस टू बुक वैल्यू होने का मतलब है कि कंपनी के शेयर अपने बुक वैल्यू के मुकाबले सस्ते में मिल रहे हैं।

प्राइस टू अर्निंग रेश्यो (P/E ratio)

प्राइस टू अर्निंग रेश्यो शायद सबसे ज्यादा प्रचलित फाइनेंशियल रेश्यो है। हर कोई कंपनी के प्राइस टू अर्निंग रेश्यो को जानना चाहता है। इसे फाइनेंशियल रेश्यो का सुपरस्टार भी कहा जाता है।

प्राइस टू अर्निंग रेश्यो निकालने के लिए कंपनी की मौजूदा शेयर कीमत को उसके EPS यानी अर्निंग प्रति शेयर से विभाजित किया जाता है। आगे बढ़ने के पहले हम एक बार यह जान लेते हैं कि EPS क्या होता है। 

कंपनी के मुनाफे को अगर प्रति शेयर के हिसाब से बांटा जाए तो जो आंकड़ा मिलेगा, उसे कंपनी का ईपीएस (EPS) कहते हैं। उदाहरण के तौर पर मान लीजिए कंपनी के पास 1000 शेयर हैं और कंपनी 200000 रूपये का मुनाफा कमाती है। अब इस कंपनी का EPS यानी अर्निंग प्रति शेयर होगा

200,000 /1000

=200 प्रति शेयर  

EPS हमें बताता है कि कंपनी हर शेयर के लिए कितना मुनाफा कमा रही है। कंपनी का EPS जितना ज्यादा होगा  शेयरधारकों के लिए उतना ही अच्छा होगा। अगर आप कंपनी के मौजूदा शेयर कीमत को कंपनी के EPS से विभाजित करेंगे तो आपको P/E रेश्यो मिलेगा। इस रेश्यो से पता चलता है कि बाजार के खिलाड़ी कंपनी के मुनाफे के मुकाबले उसकी शेयर कीमत पर कितना गुना प्रीमियम देने को तैयार हैं। उदाहरण के तौर पर 15 की P/E रेश्यो का मतलब है कि कंपनी के मुनाफे की 15 गुना कीमत उसके शेयर को देने के लिए बाजार के खिलाड़ी तैयार हैं। कंपनी का P/E रेश्यो जितना ज्यादा होगा वह शेयर उतना ही ज्यादा महंगा होगा।

ARBL का P/E रेश्यो निकालते हैं: 

ARBL की वार्षिक रिपोर्ट से हमें पता है: 

PAT = 367 करोड़ रूपये 

शेयरों की कुल संख्या = 17.081 करोड़

EPS = PAT / शेयरों की कुल संख्या

= 367 / 17.081

= Rs 21.49

ARBL के शेयरों का मौजूदा कीमत = 661 रूपये  

इसलिए P/E रेश्यो = 661 / 21.49

= 30.76

इसका मतलब है कि ARBL जितना मुनाफा कमा रही है उसके हर एक हिस्से पर बाजार के खिलाड़ी 30.76 रूपये दे कर शेयर लेने को तैयार हैं। अब मान लीजिए कि कि शेयर की कीमत 750 रूपये हो जाती है जबकि EPS 21.49 ही रहता है। अब नया P/E होगा:

= 750 / 21.49

= 34.9 

अगर EPS 21.49 प्रति शेयर रहा और शेयर का P/E ऊपर चला गया है तो आपको क्या लगता है क्या हुआ होगा?

P/E इसलिए ऊपर चला गया क्योंकि शेयर की कीमत बढ़ गयी। हमें पता है कि शेयर की कीमत तब बढ़ती है जबकि कंपनी से उम्मीदें बढ़ जाती हैं। 

याद रखिए कि P/E रेश्यो की गणना करते समय कंपनी के मुनाफे को विभाजक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। P/E रेश्यो को देखते समय इन चीजों का ध्यान रखिए:

  1. P/E रेश्यो हमें बताता है कि कोई शेयर कितने महंगे या सस्ते दामों पर मिल रहा है। बहुत ऊंचे वैल्यूएशन पर कभी भी शेयर मत खरीदें। व्यक्तिगत तौर पर मैं कभी भी 25 या 30 के P/E रेश्यो के ऊपर के शेयर नहीं खरीदता हूं, चाहे वह किसी भी कंपनी या सेक्टर के हों।
  2. P/E रेश्यो निकालते समय कमाई हमेशा विभाजक/हर (denominator) के तौर पर होती है और कमाई को कंपनी अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ सकती है।
  3. ध्यान दीजिए कि कंपनी अपनी अकाउंटिंग पॉलिसी को तो बार-बार नहीं बदल रही है अगर यह वह ऐसा कर रही है तो इसका मतलब है वह अपनी कमाई को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिश कर रही है| 
  4. कंपनी के डेप्रिसिएशन पर भी नजर रखिए। कई बार कंपनियां कम डिप्रेशिएशन दिखाकर अपनी कमाई ज्यादा दिखा लेती हैं। 
  5. अगर कंपनी की कमाई बढ़ रही है लेकिन उसका कैशफ्लो और बिक्री नहीं बढ़ रही है तो इसका मतलब है कहीं ना कहीं कुछ गड़बड़ है।

11.2 – इंडेक्स का वैल्युएशन

शेयरों की तरह स्टॉक मार्केट के इंडेक्स जैसे BSE सेंसेक्स और CNX निफ़्टी 50 का भी अपना वैल्यूएशन होता है। जिनको आप P/E, P/B, डिविडेंड यील्ड रेश्यो जैसी चीजों से नाप सकते हैं। आमतौर पर स्टॉक एक्सचेंज अपने इंडेक्स की वैल्यूएशन हर दिन बताते हैं। इंडेक्स की वैल्यूएशन से हमें पता चलता है कि बाजार इस समय महंगा है या सस्ता। CNX निफ़्टी 50 का P/E रेश्यो निकालने के लिए नेशनल स्टॉक एक्सचेंज अपने  इंडेक्स में शामिल 50 शेयरों के मार्केट कैपीटलाइजेशन को जोड़ता है और उसको सभी 50 कंपनियों की कमाई यानी मुनाफे से विभाजित करता है। इंडेक्स का P/E रेश्यो देखने से हमें पता चलता है कि बाजार के खिलाड़ी इस समय बाजार को किस तरह से देख रहे हैं। निफ़्टी 50 के P/E रेश्यो के चार्ट को देखिए:

* स्रोत– Creytheon

ऊपर के चार्ट को देखकर हमें कुछ जरूरी बातें पता चलती हैं:

  1. इंडेक्स का सबसे ऊंचा वैल्यूएशन 28 गुना था जो कि 2008 की शुरुआत में आया था। इसके बाद बाजार में तेज गिरावट आई थी।
  2. इस गिरावट के बाद बाजार की वैल्यूएशन करीब 11 गुना रह गई थी जो कि 2008 के अंत और 2009 की शुरुआत में थी। पिछले कुछ समय में भारतीय शेयर बाजार की ये सबसे कम वैल्यूएशन थी। 
  3. आम तौर पर भारतीय शेयर बाजार के इंडेक्स का P/E रेश्यो 16 से 20 गुना के बीच में होता है यानी औसतन 18 गुना। 
  4. 2014 में यह 22 गुना पर ट्रेड कर रहा था जो की औसत P/E से ऊपर है।

 इसके आधार पर हम कुछ निष्कर्ष निकाल सकते हैं।

  1. शेयर बाजार में 22 के P/E रेश्यो  के ऊपर निवेश करते समय हमें सावधानी बरतनी चाहिए।
  2. शेयर बाजार में निवेश का सबसे अच्छा समय तब होता है जब वैल्यूएशन 16 के आसपास हो।

इंडेक्स के P/E रेश्यो को पता करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि आप नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की वेबसाइट पर जाएं, जहां पर यह हर दिन बताया जाता है।

NSE के होम पेज पर प्रोडक्ट को क्लिक करें> इंडेक्स को क्लिक करें >हिस्टोरिकल डाटा को क्लिक करें>P/E, P/B & Div> search

(NSE’s home page click on Products > Indices > Historical Data > P/E, P/B & Div > Search)

सर्च के दायरे के तौर पर अपनी आज की तारीख को डालें और आप को सबसे ताजा P/E वैल्यूएशन दिख जाएगा| याद रखें कि NSE इसे हर दिन शाम को 6:00 बजे अपडेट करता है। सर्च रिजल्ट का एक चित्र देखें:  

यहां आपको दिखेगा कि शेयर बाजार का अपने सबसे ऊंचे P/E के आसपास ट्रेड कर रहा है। इस स्तर पर निवेश करने के पहले हमें ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत होती है।

इस अध्याय की मुख्य बातें

  1. वैल्यूएशन का आमतौर पर मतलब होता है किसी चीज की कीमत को पता करना।
  2. वैल्यूएशन रेश्यो निकालने के लिए हमें P&L स्टेटमेंट और बैलेंस शीट दोनों के आंकड़ों की जरूरत पड़ सकती है। 
  3. प्राइस टू सेल्स रेश्यो में कंपनी के शेयर कीमत की तुलना कंपनी के प्रति शेयर सेल्स से की जाती है।
    1. प्रति शेयर सेल्स का मतलब है कि कंपनी की कुल बिक्री के आंकड़े को शेयरों की संख्या से विभाजित कर दिया जाए।
  4. ज्यादा प्रॉफिट मार्जिन वाली कंपनी की सेल्स या बिक्री उस कंपनी के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण होती है जिसका प्रॉफिट मार्जिन कम हो। 
  5. बुक वैल्यू का मतलब है कि अगर कोई कंपनी दिवालिया हो गई है और उसने अपनी देनदारियां पूरी कर दी हैं तो उसके पास कुल कितने पैसे बचे हैं। 
  6. आमतौर पर बुक वैल्यू को प्रति शेयर के तौर पर बताया जाता है।
  7. प्राइस टू बुक वैल्यू रेश्यो यह बताता है कि कंपनी के शेयर अपने बुक वैल्यू के कितने गुना कीमत पर बिक रहे हैं। 
  8. EPS से कंपनी के मुनाफे को प्रति शेयर आधार पर नापते हैं। 
  9. P/E रेश्यो बताता है कि बाजार के खिलाड़ी कंपनी के मुनाफे के लिए प्रति शेयर कितनी कीमत देने को तैयार हैं। 
  10. P/E रेश्यो को देखते समय मुनाफे में फेरबदल की आशंका पर नज़र रखनी चाहिए।
  11. शेयर बाजार के इंडेक्स का वैल्यूएशन भी P/E, P/B  या डिविडेंड यील्ड रेश्यो से नापा जा सकता है। 
  12. जब इंडेक्स 22  गुना से ज्यादा की वैल्यूएशन पर हो तो निवेश करते समय थोड़ा सावधान रहना चाहिए।
  13. इंडेक्स की 16 गुना वैल्यूएशन निवेश के लिए काफी अच्छी होती है। 
  14. इंडेक्स की वैल्यूएशन हर दिन NSE अपनी वेबसाइट पर डालती है।



30 comments

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  1. Imran Moazzam says:

    Well done 👍
    Keep it up sir❤️

  2. SANJAY MAHADU MASKE says:

    Dear sir mayne bohat let kiya varsity ko padhana mujse bohat galtiya hue hai per mag use achha karunga 🙏

  3. VIVEK Tripathy says:

    Thanks Zerodha For such a Pleasent And Attractive Book. Please Bas Aap Log Hindi ko bhi PDF mai laa dijiye.

  4. Sunil says:

    Accounting policy kahan check karen?

  5. बबन यादव says:

    महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई

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