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रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए डायरेक्ट मार्केट एक्सेस (DMA)?

June 8, 2022

नेगेटिविटी के दवाब के कारण अच्छी ख़बर की तुलना में बुरी ख़बर को आम तौर पर अधिक देखा जाता है। सोशल मीडिया तब निडर हो गया जब स्टॉक एक्सचेंजों द्वारा रिटेल कस्टमर्स को ब्रोकरेज फर्म को शामिल किए बिना डायरेक्ट मार्केट एक्सेस (DMA) देना का अफवाह फैल गया था। कहने के मतलब एक्सचेंज खुद अब एक ब्रोकर के तरह काम करेगा। मार्केट की सूक्ष्म संरचना (microstructure) और उसकी बारीकियों को समझे बिना कई आर्टिकल प्रकाशित किए गए थे। और इन सबसे ऊपर, ब्रोकरेज स्टॉक की कीमत नीचे चली गई, और इस अफवाह पर एक्सचेंज स्टॉक ऊपर चला गया। मैंने सोचा कि शायद इंडस्ट्री में से किसी को यह स्पष्ट करना चाहिए। आम आदमी के शब्दों में कहा जाए तो, यह मुमकिन नहीं है कि एक्सचेंज रिटेल इन्वेस्टर्स से सीधे डील करेगा, कम से कम आने वाले फ्यूचर में तो नहीं।

अस्वीकरण: इसे लिखने में मेरे हितों का टकराव है।🙂

RMS और एक्सचेंजों में टेक्नोलॉजी 

एक एक्सचेंज का सबसे महत्वपूर्ण भाग इसका मैचिंग इंजन होता है — वह टेक्नोलॉजी जो बिड और आस्क प्राइस के ख़िलाफ़ एक बाय आर्डर को सेल्ल आर्डर से मैच करवाता है, ताकि ट्रेड जेनेरेट हो सकें। यह ट्रेड प्राइस (LTP) और ओपन ऑर्डर ब्रोकर्स को स्ट्रीम किए जाते हैं जो इसका इस्तेमाल अपने ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म (मार्केटवॉच, चार्ट आदि) को फीड करने के लिए करते हैं।

कैपिटल मार्केट बिज़नेस का सबसे मुश्किल हिस्सा रिस्क मैनेजमेंट होता है और ना की मैचिंग इंजन। ये सुनिश्चित करता है कि ट्रेड करने वाले व्यक्ति के पास ट्रेड करने या किसी भी नुकसान को कवर करने के लिए पर्याप्त फंड है, या जब सेल्ल ट्रेड करते हैं तब डिलीवरी देने के लिए पर्याप्त स्टॉक है, इत्यादि। कल एक सवाल घूम रहा था कि “यदि UPI, पेमेंट के लिए यह कर सकता है, तो एक्सचेंजों में ट्रेड्स के लिए समान संरचना (structure) क्यों नहीं हो सकती है?” यह UPI के तरह काम नहीं करता है, जहाँ एक कस्टमर से पूरा पैसा लिया जाता है और दूसरे को दिया जाता है, एक्सचेंज पर हर एक ट्रेड में रिस्क होता है। सोचिए की UPI जहाँ पेमेंट ऐप्प्स या NPCI को हर ट्रांसक्शन पर क्रेडिट रिस्क उठाना पड़ता है, क्या UPI मौजूदा फॉर्म में टिक सकता है?

अगला लॉजिकल सवाल होगा – क्या होगा अगर यह सिस्टम केवल उन ट्रेड्स के लिए इस्तेमाल किया जायेगा जब क्लाइंट के अकाउंट में पूरा पैसा या पूरा सिक्योरिटी उपलब्ध है (स्टॉक डिलीवरी ट्रेड्स)? खैर, सभी एक्सचेंज टर्नओवर का 99% से अधिक नॉन-डिलीवरी मार्जिन ट्रेड्स-फ्यूचर, ऑप्शन और इंट्राडे स्टॉक होता है- जहां पूरा पैसा या स्टॉक शामिल नहीं होता है। हालांकि, 1% में भी जहां पूरा पैसा या स्टॉक उपलब्ध है, वहां अभी भी रिस्क है। उदाहरण के लिए, एक इलिक्विड स्टॉक 100 रुपये पर ट्रेड कर रहा है, और मैं 1000 शेयर खरीदने के लिए मार्केट ऑर्डर प्लेस करता हूँ। आर्डर प्लेस होने से पहले, रिस्क मैनेजमेंट सिस्टम (RMS) वैलिडेट करती है कि अकाउंट में क्या रु 1L है। लेकिन जब तक ऑर्डर RMS के माध्यम से जाता है और एक्सचेंज को हिट करता है, तब तक कीमत रु 103 में बदल सकती है। आर्डर अब 103 पर एक्सेक्यूट होगा या अकाउंट में रखे गए 1 लाख रुपये से 1.03 लाख रुपये तक के स्टॉक खरीदे जाएंगे, जिसके चलते 3000 रुपये का शॉर्टफ़ॉल होगा। यह रिस्क आज एंटिटी यानी ब्रोकर द्वारा उठाये जातें हैं जो ट्रेड को आसान बनाते है क्योंकि सेलर पर रु1.03L बकाया होता है।

अब सोचिए कि आपको लाखों क्लाइंट्स के लिए रिस्क मैनेजमेंट करना है और उस रिस्क को रोज़ाना लाखों ट्रेड्स पर लेना होगा। और यह केवल ऊपर बताए गए डिलीवरी ट्रेड्स के साथ रिस्क नहीं है, बल्कि 99% लीवरेज्ड ट्रेड भी हैं जहाँ रिस्क परिमाण के कई ऑर्डर्स से काफ़ी ज़्यादा है। इसलिए दुनिया भर के एक्सचेंज ब्रोकर्स को क्लाइंट-लेवल रिस्क मैनेजमेंट सौंपते हैं और इंडिविजुअल क्लाइंट्स के रिस्क को नहीं देखते हैं। इसलिए अगर Zerodha के पास NSE और BSE के लिए 30 लाख क्लाइंट्स हैं, तब Zerodha सिर्फ एक एंटिटी है जिसने अपने पास पड़े सभी क्लाइंट्स की ओर से फंड रखा है, जिस पर एक्सचेंज ट्रेडिंग की अनुमति देते हैं। अगर कोई क्लैट डिफ़ॉल्ट है, तब ये ब्रोकरेज फर्म पर है, ना कि एक्सचेंज पर। अगर एक बड़ी एंटिटी के रूप में एक्सचेंजों को इस तरह का रिस्क उठाना होता है, तब यह सिस्टेमेटिक होगा और मार्केट में भाग लेने वाले सभी लोगों को बेहद उतार- चढ़ाव के दिन (जैसे 2008 में) रिस्क में डाल देगा। बड़े ट्रेडर द्वारा किया गया एक fat-finger ट्रेड, हो सकता है की वह पूरे एक्सचेंज को नीचे ले आए, और इसके साथ, मार्केट में ट्रेड करने वाले सभी लोग को भी।

एक्सचेंज कई तरह से रिस्क को संभालता हैं। सबसे पहले, एक्सचेंज को मेंबर बनने के लिए, मेंबर/ब्रोकर को सिक्योरिटी डिपॉज़िट मेन्टेन रखना पड़ता है, और क्रेडेंशियल के मामले में क्वालीफाई करना पड़ता है। एक्सचेंज तब ब्रोकर के सभी नए ऑर्डर को ब्लॉक कर देता हैं अगर इस्तेमाल किया गया कुल मार्जिन ब्रोकर द्वारा एक्सचेंज पर रखे गए 90% से अधिक हो। एक्सचेंज रिस्क मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर को सीधे लाखों कस्टमर्स के बजाय केवल कुछ हजार एन्टीटीएस (ब्रोकर्स) के रिस्क को देखना होता है।

इसलिए, मुझे नहीं पता कि रेगुलेटर्स एक्सचैंजेस को इतना बड़ा सिस्टमैटिक रिस्क उठाने की अनुमति देंगा या नहीं। अगर वे ऐसा करते भी हैं, तो मुझे नहीं लगता कि दुनिया में किसी भी एक्सचेंज में रिस्क मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी है जो अभी लाखों कस्टमर्स तक पहुंचती होगी। यह उन एक्सचैंजेस की तरह है जहाँ लाखों ब्रोकर डायरेक्टली रेजिस्टर्ड हैं। पहले इस टेक्नॉलजी को बनाना होगा, जो अपने आप में बहुत ही मुश्किल काम होगा। 

यहाँ एक उदाहरण है – 20 अप्रैल, 2020 को Crude Oil की कीमत एक नेगेटिव कीमत पर बंद हुईं। भारत में ब्रोकरेज इंडस्ट्री को क्लाइंट डिफॉल्ट में 330 करोड़ रुपये से ज़्यादा का नुकसान हुआ। अगर ब्रोकरेज फर्म नहीं होतीं, तब 330 करोड़ रुपये का यह नुकसान मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) पर होता ना की कई ब्रोकर्स के ऊपर। जबकि MCX का नेटवर्थ 1500 करोड़ रुपये से ज़्यादा है, यह सभी लिक्विड इंस्ट्रूमेंट्स में नहीं हो सकता है, इसलिए इसका मतलब है कि इस घटना से एक्सचेंज और MCX पर ट्रेड करने वाले बाकी सभी लोग रिस्क में पड़ सकते हैं। इस घटना के बारे में अधिक पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

तब DMA फ़िलहाल इंस्टीटूशन्स के लिए कैसे काम करता है?

एक ग़लतफ़हमी है कि इंस्टीटूशन्स के लिए उपलब्ध मौजूदा DMA किसी तरह उन्हें एक्सचेंज पर डायरेक्ट ऑर्डर प्लेस करने की सुविधा प्रदान करता है। यह गलत है। ऑर्डर अभी भी ब्रोकर के ऑर्डर मैनेजमेंट सिस्टम (OMS) और RMS से होकर गुजरता है। अंतर केवल इतना है कि DMA में, ब्रोकर की RMS टीम या डीलिंग टीम में कोई भी दिए गए ऑर्डर को मॉडिफाई या कैंसिल नहीं कर सकता है। अगर कोई रिस्क मैनेजमेंट समस्या है, तब ब्रोकर को इंस्टीटूशन को कॉल करना होगा और उन्हें ऑर्डर को मॉडिफाई करने या कैंसिल करने, पोज़ीशन से बाहर निकलने, या ज़्यादा फंड जोड़ने के लिए कहना होगा।

क्या यह DMA जो फ़िलहाल केवल इंस्टीटूशन्स को दिया जाता है, HNIs या बड़े रिटेल इन्वेस्टर्स को उपलब्ध कराया जा सकता है? यह संभव है, हो सकता है कि कुछ काम कर गया हो और हो सकता है यही वजह से अफवाह को बनाया गया। इसके कारण झूठी ख़बर फैली और ब्रोकिंग शेयर्स में गिरावट आई है, जबकि एक्सचेंज स्टॉक में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन, अभी जिस तरह DMA रिटेल को ऑफर किया जाता है उसमें ब्रोकरेज फर्म शामिल होता है।

ब्रोकिंग जटिल है। यह सिर्फ ऑर्डर प्लेसमेंट नहीं है

  • हमारे बिज़नेस के सफल होने का कारण केवल यह नहीं है की हम एक्सचेंज पर कम कॉस्ट पर आर्डर प्लेस करने की अनुमति देते हैं। बल्कि हमारा यूज़र इंटरफेस, यूज़र एक्सपीरियंस, सभी अलग-अलग ऑर्डर टाइप, चार्टिंग, मोबाइल और वेब ऐप्प्स, एनालिटिक्स, रिपोर्टिंग और भी बहुत कुछ है। उदाहरण के लिए, “buy average” प्राइस का कैलकुलेशन, FIFO में स्टॉक होल्डिंग फैक्टरिंग के समय,कॉर्पोरेट एक्शन्स, स्टॉक जो अंदर और बाहर ट्रांसफर होते हैं, यह सब जो आसान लगता है दरअसल एक बहुत ही मुश्किल काम है।
  • रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए शेयर मार्केट्स कठिन होता हैं। ब्रोकिंग इंडस्ट्री में कस्टमर्स के प्रश्नों का जवाब देने के लिए हजारों लोग होते हैं जो उनके लिए काम करते हैं। यहाँ तक ​​​​कि सबसे अनुभवी ट्रेडर्स के पास भी सवाल होते हैं। उदाहरण के लिए, जो सवाल अक्सर पूछे जातें है वह यह है कि ट्रेड क्यों एक्सेक्यूट हुआ जबकि यह चार्ट पर दिखाई नहीं देता है। यह सवाल हमें धोखेबाज कहने से शुरू होता है जब तक कि वह समझ नहीं पाते कि ऐसा क्यों है।
  • ऑनबोर्डिंग के दौरान और उसके बाद भी मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए चेक करते रहना। 
  • जब आप स्टॉक खरीदते हैं और उसकी डिलीवरी नहीं होती हैं, तब स्टॉक के शॉर्ट डिलीवरी को देखना।
  • लाखों बैंक एकाउंट्स में फंड ट्रांसफर और विथड्रॉवल्स को देखना।
  • ट्रेड प्रोसेस को देखना, प्रतिदिन लाखों ट्रेड्स को reconcile करना, कॉन्ट्रैक्ट नोट भेजना आदि।
  • और निश्चित रूप से, कस्टमर के कभी न समाप्त होने वाली बेकार ज़रूरतें जैसे 25 या 75 मिनट की कैंडल्स, डार्क मोड, चार्ट से ट्रेडिंग आदि।
  • और यह चलती रहती है।
  • क्या कोई एक्सचेंज यह सब कर सकता है? सिद्धांत रूप में, कर सकता है। लेकिन क्या यह लाखों कस्टमर्स के लिए इसे कुशलतापूर्वक कर सकता है? इनमें से हर एक प्रक्रिया को बनाने में लंबा समय लग सकता है।

एक रेगुलेटर के रूप में एक्सचेंज; सेल्फ-रेगुलेशन?

भारत में एक्सचेंज प्रथम लेवल रेगुलेटर्स के रूप में काम करता हैं। कहने का मतलब, वे सभी ब्रोकरेज फर्म्स की निगरानी करते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि वे नियमों और रेगुलेशन को फॉलो करते हैं, और कस्टमर्स की शिकायतों को भी सुनते हैं और मध्यस्थ ( arbitrators) के रूप में कार्य करते हैं। लेकिन, सोचिए कि एक्सचेंज खुद कस्टमर्स के साथ डायरेक्ट डीलिंग करना शुरू कर दें तो, कौन एक्सचेंजों को रेगुलेट करेगा और कौन शिकायतों को देखेगा? यह तब तक मुमकिन नहीं होगा जब तक की इंडियन कैपिटल मार्किट का स्ट्रक्चर बदल नहीं जाता है। 

स्टॉकब्रोकिंग एक बहुत ही कठिन बिज़नेस है जो कंप्लायंस, ऑपरेशन्स और टेक्नोलॉजी जिसमें काफ़ी रिस्क होता है, उसको देखता है। स्टॉक ब्रोकर रिस्क को कम करता हैं जो अन्यथा सिस्टेमेटिक हो सकता है। स्टॉक ब्रोकिंग रियल एस्टेट या कृषि या म्यूचुअल फंड बेचने जैसा कोई दूसरा ब्रोकर नहीं है, जिसे आसानी से बदला जा सकता है, अगर मुमकिन हो तो।

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