भारत में F&O आवश्यकताओं का इतिहास
हमारे क्लाइंट्स जिस सवाल को सबसे ज़्यादा पूछते है, वह यह है की F&O मार्जिन क्या होते हैं। हमने 2013 में अपना मार्जिन कैलकुलेटर को लॉन्च किया था। हमेशा से हमारी यही कोशिश है की हम अपने यूज़र को बता सकें की सालों से मार्जिन सिस्टम में क्या चल रहा है। चूंकि यह एक लोकप्रिय टॉपिक है, इसलिए हम इस पोस्ट में यह चर्चा करेंगे की इतने सालों में F&O के लिए मार्जिन की ज़रूरतें कैसे बढ़ी है और इसे दूसरे मार्केट्स से कैसे तुलना कर सकतें हैं।
जब NSE ने 2000 में Nifty F&O से पहचान कराया था, तब उसके बाद 2001 में स्टॉक F&O को लाया था जिसने भारत में बदला सिस्टम की जगह ली थी। पिछले 20 सालों में, F&O में ट्रेडिंग वॉल्यूम तेजी से ऊपर गया है। 2008 तक, ट्रेडिंग ज़्यादातर फ्यूचर में किया जाता था, लेकिन आज ऑप्शन में ज़्यादा ट्रेड देखने को मिलता है। नवंबर 2015 के आसपास लोगों का ज़्यादा इंटरेस्ट ऑप्शन में आने लगा था जब F&O के लिए मिनिमम कॉन्ट्रैक्ट के वैल्यू 2 लाख रुपये से बढ़कर 5 लाख रुपये हो गए थे। मतलब, फ्यूचर में ट्रेड करने के लिए स्मॉल ट्रेडर्स के पास ज़रूरी मार्जिन नहीं था और इसलिए वे ऑप्शन में ट्रेड करने लगे। 2008 से ऑप्शन ट्रेडिंग में STT को कम कर दिया गया था। यह अब केवल प्रीमियम पर लिया जाता है और ना की स्ट्राइक+प्रीमियम पर। ऐसा करने से काफी मदद मिली। जब 2020 में मार्जिन पर इंट्राडे लेवरेज में रिस्ट्रिक्शन को लाया गया था तब उसके बाद ही यह ट्रेंड होने लगा। आज NSE को दुनिया में सबसे बड़ा डेरिवेटिव एक्सचेंज माना जाता है।
मार्जिन क्यों?
जब आप ऑप्शन को खरीदते हैं, तब इसमें जो रिस्क होता है वह उतना ही होगा जितना की प्रीमियम भरा गया है। लेकिन जब आप फ्यूचर्स में ट्रेडकरते हैं या फिर ऑप्शंस को शॉर्ट करते है, तब तकनीकी रूप से रिस्क की कोई सीमा नहीं होती है। कस्टमर्स द्वारा मार्जिन को कलेक्ट किया जाता है ताकि अगर काउंटर पार्टी डिफ़ॉल्ट करते हैं तब उसके रिस्क को कम किया जा सकें। ऐसा करने से यह सुनिश्चित किया जाता है कि संपूर्ण मार्केट में इन डिफॉल्ट्स के चलते कोई सिस्टमैटिक रिस्क ना हो।
जब शुरू शुरू में SEBI ने F&O से हमें पहचान कराया था, तब इसने एक फ्रेमवर्क को बनाया था, जिसके तहत जो भी मार्केट पार्टिसिपेंट्स इस कॉन्ट्रैक्ट्स में ट्रेड करना चाहते हैं उनसे मार्जिन कलेक्ट किया जा सकें। असीमित रिस्क वाले कॉन्ट्रैक्ट – फ्यूचर & शॉर्ट ऑप्शन – में एंटर करने के लिए जो रिक्वायर्ड अपफ्रंट मार्जिन होते है उसे इनिशियल मार्जिन कहतें है। स्पैन और एक्सपोजर मार्जिन दोनों को जोड़कर जो मार्जिन मिलता है उसे इनिशियल मार्जिन कहतें हैं।
स्पैन (SPAN- स्टैण्डर्ड पोर्टफ़ोलियो एनालिसिस ऑफ रिस्क) CME (Chicago मर्केंटाइल एक्सचेंज) द्वारा बनाया गया एक लोकप्रिय सिस्टम है जिसका इस्तेमाल F&O पोर्टफोलियो के लिए रिस्क और मार्जिन को कैलकुलेट करने के लिए किया जाता है। इसे दुनिया भर में कई एक्सचेंजों द्वारा अपनाया गया है। जब यह 2000 में लॉन्च हुआ था, तब स्पैन मार्जिन को कलेक्ट किया गया था ताकि एक दिन में कॉन्ट्रैक्ट में जो सबसे ज़्यादा नुक़सानदायक चाल हो, उसे कवर किया जा सकें (जिसे MPOR या मिनिमम मार्जिन पीरियड ऑफ़ रिस्क कहा जाता है)। अंडरलाइंग इंडेक्स या स्टॉक के प्राइस स्कैन रेंज (PSR) को इस्तेमाल करके सबसे ख़राब सिनेरियो जो हो सकता है, उसे कैलकुलेट किया जाता है। अंडरलाइंग के हर दिन के उतार चढ़ाव (वोलेटिलिटी) को इस्तेमाल करके PSR को कैलकुलेट किया जाता है। वर्ष 2000 के दिनों में, इंडेक्स कॉन्ट्रैक्ट के लिए वोलैटिलिटी के 3 स्टैण्डर्ड डीवीएशन पर इसे सेट किया गया था और शेयर्स के लिए इसे 3.5 स्टैण्डर्ड डीवीएशन पर सेट किया गया था।
एक्सपोजर (Exposure) मार्जिन, स्पैन मार्जिन के और ऊपर चार्ज किया जाता है ताकि उन रिस्क को कवर किया जा सके जो स्पैन मार्जिन द्वारा कवर नहीं किए जा सकते हैं। जब F&O को भारत में लाया गया था, तब यह इंडेक्स के लिए कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू के 3% और स्टॉक F&O के लिए 5% (या 1.5 स्टैण्डर्ड डीवीएशन, जो भी अधिक हो) उसपर सेट किया गया था।
शॉर्ट ऑप्शन मिनिमम (SOM) शॉर्ट ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट्स के सभी स्ट्राइक के लिए सबसे कम मार्जिन होता है जो PSR से भी नीचे होता हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर Nifty स्पॉट 16000 पर है, और अगर Nifty का PSR ~1000 पॉइंट्स (जो 7% के मूवमेंट को कवर करता हो) है, तब 17000 CE या 15000 PE से ऊपर के सभी कॉन्ट्रैक्ट्स को स्पैन के तहत रिस्क फ्री माना जाएगा और कोई स्पैन मार्जिन की ज़रूरत नहीं होगी। जबकि एक्सपोजर मार्जिन को अभी भी चार्ज किया गया था, इसे पर्याप्त नहीं समझा गया था। इसलिए, इसे कवर करने के लिए, 3% का एक्स्ट्रा मिनिमम शार्ट ऑप्शन मार्जिन (SOM) कलेक्ट किया गया था।
स्पैन को कलेक्ट नहीं करने के लिए पेनल्टीज़ से पहचान – अगस्त 2011
जबकि SEBI ने आदेश दिया था कि ब्रोकर अपने कस्टमर्स की ओर से सभी F&O पोज़िशंस के लिए क्लीयरिंग कारपोरेशन को मार्जिन प्रदान करता है। लेकिन ब्रोकर के लिए यह ज़रूरी नहीं था कि पहले ही इन मार्जिन को कस्टमर से कलेक्ट करें। 2000 के दशक में, ब्रोकर्स ने ज़रूरी स्पैन+एक्सपोजर से कम मार्जिन के साथ ट्रेड करने का ऑफर देकर बराबरी की थी। यह परसेंटेज ब्रोकरेज का ज़माना था, जहाँ जो कस्टमर्स ज़्यादा पैसों के साथ ट्रेड करते थे वे ब्रोकर को ज़्यादा रेवेनुए देतें थे। यह किसी भी फंडिंग कॉस्ट की कमी को पूरा करता था। 2008 की उतार चढ़ाव के दौरान ज़्यादा लेवरेज की इस सिस्टम ने इंडस्ट्री को चोट पहुंचाई थी और कई ब्रोकर्स लगभग ठप्प हो गए थे। भारत में कैपिटल मार्केट इकोसिस्टम बेहद भाग्यशाली था जिसे किसी तरह का नुक्सान नहीं हुआ और ये इस उतार चढ़ाव से बच गया।
इस रिस्क को काबू में करने के लिए SEBI ने 2011 में कस्टमर मार्जिन के रोज़ाना (daily) रिपोर्टिंग और शॉर्ट मार्जिन पेनल्टी से पहचान कराई थी। दिन के समाप्ति पर अगर कस्टमर अपने ओपन पोजीशन के लिए ज़रूरी स्पैन मार्जिन को नहीं मेन्टेन करते थे, तब उन्हें “शॉर्ट मार्जिन पेनल्टी” नामक एक पेनल्टी लगती थी। सबसे कम स्पैन जिन्हें कलेक्ट किया गया था वह मार्केट में संपूर्ण रिस्क को काफी हद तक कम कर दिया था। पेनल्टीज़ इस प्रकार थे :
शॉर्ट मार्जिन का अमाउंट | प्रति दिन पेनल्टी % |
(< Rs 1 lakh) और (< एप्लीकेबल मार्जिन का 10%) | 0.5 |
(≥ Rs 1 lakh) Or (≥ एप्लीकेबल मार्जिन का 10%) | 1.0 |
क्या आप जानते है? 2010 में Zerodha को शुरू करने में जहाँ से हमें प्रेरणा मिली थी वह यह था कि जब 2008 में मार्केट गिरा था उसके बाद SEBI द्वारा मार्जिन रिपोर्टिंग और शॉर्ट मार्जिन पेनल्टी शुरू करने पर चर्चा हुई थी। हमने सोचा था कि अगर हम ज़्यादा लेवरेज देकर ज़्यादा रिस्क लेते हैं तब दूसरे ब्रोकर्स के साथ हमें बराबरी करने की कोई ज़रूरत नहीं है। हम प्राइसिंग को नाकाम कर सकतें हैं। यही कारण है कि हमने भारत में पहली बार एक फ्लैट प्राइसिंग मॉडल (2010 में 20 रुपये प्रति एक्सेक्यूटेड आर्डर) को लॉन्च किया।
स्पैन और एक्सपोजर कलेक्ट नहीं करने पर पेनल्टी – जून 2018
दिन के ख़तम होने पर सभी पोजीशनों के लिए स्पैन को कलेक्ट करना ज़रूरी था, लेकिन एक्सपोजर मार्जिन ऑप्शनल (वैकल्पिक) था। जून 2018 में, SEBI ने ब्रोकरेज को दिन के ख़तम होने पर सभी पोजीशन पर एक्सपोजर मार्जिन कलेक्ट करना ज़रूरी कर दिया था। यह फिर से मार्केट्स में सम्पूर्ण रिस्क को कम करने के लिए था। इस बदलाव और इसके असर को हमने इस Trading Q&A पोस्ट में शेयर किया था।
रिस्क या MPOR की मार्जिन अवधि में बदलाव – दिसंबर 2018
मिनिमम मार्जिन पीरियड ऑफ़ रिस्क (MPOR) को दिसंबर 2018 में 1 दिन से बदलकर 2 दिन कर दिया गया था। इसका मतलब यह था कि सबसे खराब सिनेरियो कैलकुलेशन को अब 2 दिनों के लिए कवर करना था, जैसा कि आप सोचेंगे, जिसके चलते मार्जिन में बढ़ोतरी हुई। कई कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए इनिशियल मार्जिन कि ज़रूरत लगभग 40% बढ़ गई थी। हमने इसे Trading Q&A के इस पोस्ट में विस्तार से समझाया था।
इक्विटी और F&O के लिए मार्जिन फ्रेमवर्क की रिव्यू (समीक्षा) – जून 2020
जबकि F&O में ट्रेड करने के लिए मार्जिन की हमेशा ज़रूरत होती थी, इक्विटी या स्टॉक के मामले में ऐसा नहीं था। जून 2020 में ट्रेडिंग स्टॉक के लिए मार्जिन आवश्यकताओं को ज़रूरी कर दिया गया था (जनवरी 2020 में मार्जिन कलेक्शन को ज़रूरी कर दिया गया था, पेनल्टी को सितंबर 2020 से लागू किया गया था)। F&O में इनिशियल मार्जिन को कैसे कैलकुलेट करना है उसके तरीके में कुछ बदलाव किए गए थे और जिन कस्टमर्स ने हेजिंग पोजीशन ली थी उन्हें बहुत फायदा हुआ था, जिससे उनका सम्पूर्ण रिस्क कम हो गया था। कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन जो हुए थे उन्हें नीचे बताया गया है :
- स्पैन में रिस्क कवरेज को 3 स्टैण्डर्ड डेविएशन से बढ़ाकर 6 स्टैण्डर्ड डेविएशन कर दिया गया था। इससे स्पैन मार्जिन में बढ़ोतरी हुई जो एक्सपोजर मार्जिन में ~ 40% की कमी से ऑफसेट हो गया था । एक्सपोजर मार्जिन अब इंडेक्स के लिए 2% और स्टॉक F&O के लिए 3.5% है।
- शॉर्ट ऑप्शन मिनिमम (SOM), जो दिसंबर 2018 में इंडेक्स के लिए 5% (स्टॉक F&O के लिए 7.5%) तक चला गया था, उसे हटा दिया गया था। इसका मतलब था कि कम या लौ से शून्य रिस्क वाले पोर्टफोलियो को केवल एक्सपोजर मार्जिन को मेन्टेन रखना होगा। उदाहरण के लिए, Nifty क्रेडिट कॉल स्प्रेड के लिए मार्जिन 1 लाख रुपये से घटकर 30 हजार रुपये हो गया है।
इन बदलाव के बारे में अधिक जानकारी Tradingqna के इस पोस्ट में समझाया गया है।
इंट्राडे पीक (peak) मार्जिन पेनल्टी का परिचय (दिसंबर 2020)
अब तक, ब्रोकर की जिम्मेदारी यह थी की वह यह साबित कर सकें कि कस्टमर के पास ओपन पोजीशन के लिए पर्याप्त मार्जिन था। यह एंड-ऑफ-डे (EOD) के आधार पर था। एक्सचेंजों द्वारा लगाए गए सभी शॉर्ट मार्जिन पेनल्टी इस EOD पोजीशन पर आधारित थे। इसका मतलब यह था कि एक ब्रोकर संभावित रूप से कस्टमर्स को अपने अकाउंट में बिना किसी मार्जिन के हाई लेवरेज इंट्राडे के साथ ट्रेड करने की अनुमति दे सकता है, जब तक कि दिन के पोजीशन समाप्त नहीं होता। ब्रोकरेज फर्म ने एक महत्वपूर्ण इंट्राडे रिस्क लिया था और जिसे SEBI ने ठीक करने का फैसला किया था।
SEBI ने पीक मार्जिन फ्रेमवर्क की शुरुआत की है। इसमें क्लियरिंग कॉरपोरेशन, ट्रेडिंग दिनों के दौरान 5 रैंडम अंतराल पर कस्टमर एकाउंट्स में पोजीशन का स्नैपशॉट लेता है। अगर पोजीशन को होल्ड करने के लिए किसी भी समय पर्याप्त मार्जिन नहीं है, तब इंट्राडे पीक मार्जिन पेनल्टी लगाई जाती है। इंट्राडे ट्रेडिंग एक्सचेंजों में महत्वपूर्ण टर्नओवर का योगदान करती है और अब तक के ज़्यादातर इंट्राडे ट्रेड्स में ब्रोकर कुछ एक्स्ट्रा लेवरेज दे रहे थे या न्यूनतम स्पैन+एक्सपोजर से कम मार्जिन मांग रहे थे। चूंकि हो सकता है कि यह रेगुलेशन एक बड़ा प्रभाव पैदा करे, SEBI ने ट्रैन्ज़िशन (परिवर्तनकाल) के लिए 9 महीने का समय दिया। इसलिए सितंबर 2021 से, इंट्राडे के लिए भी F&O ट्रेडिंग करने वाले किसी भी कस्टमर के अकाउंट में न्यूनतम स्पैन+एक्सपोजर मार्जिन होना ज़रूरी हो गया था। इसी तरह, इक्विटी के लिए मार्जिन की आवश्यकता 20% पर सेट की गई थी। Tradingqna की यह पोस्ट इसे विस्तार से बताती है।
पीक (Peak) मार्जिन पेनल्टी कि समस्याएं।
हालांकि इसमें कोई शक नहीं है कि जब से पीक मार्जिन पेनल्टी शुरू हुई है, उसने इंडस्ट्री में सम्पूर्ण रिस्क को कम कर दिया है। जिस तरह से इसे लागू किया गया है, उसके कुछ ना पसंद किये जाने वाले दूसरे आर्डर के प्रभाव हैं जो ट्रेडिंग समुदाय को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
- एक ट्रेडिंग दिन के दौरान स्पैन+एक्सपोजर मार्जिन 5 बार बदले जातें है। यह बदलाव इंट्राडे के उतार चढ़ाव पर आधारित होता है। अगर कोई कस्टमर पहले से कोई पोजीशन होल्ड कर रहा है और अगर इंट्राडे के उतार चढ़ाव के कारण मार्जिन बढ़ता है, तो अकाउंट संभावित रूप से ज़रूरी न्यूनतम स्पैन+एक्सपोजर से कम हो सकता है जिससे ज़्यादा से ज़्यादा मार्जिन पेनल्टी हो सकती है। मौजूदा पोजीशन के लिए अकाउंट में फंड को जोड़ने के लिए जितना समय चाहिए उसे दिए बिना, लगाया गया पेनल्टी काफी कठोर है।
इस पीक मार्जिन की ज़रूरत जब उतार चढ़ाव के कारण मार्जिन तेजी से इंट्राडे में बढ़ोतरी करता है, तब इसका अनुपालन करना असंभव है। यहाँ तक कि अगर कोई कस्टमर इस तरह के इंट्राडे मार्जिन जिनका अनुमान नहीं लगाया जा सकता है, स्पाइक्स को कवर करने के लिए 10% एक्स्ट्रा फंड को होल्ड करता है, तब असलियत में, मार्जिन की ज़रूरत उतार चढ़ाव के दिनों में मनमाने लेवल तक जा सकती है, जिससे पेनल्टी लगाया जा सकता है।
- जब मार्केट बंद हो जाता है तब दिन के आखरी स्पैन+एक्सपोजर को जारी किया जाता है। अगर किसी भी वजह से ज़रूरी मार्जिन चौथे स्नैपशॉट से 5वें स्नैपशॉट तक बढ़ जाता है, तब कस्टमर को बताया नहीं जा सकता है और ना ही एक्स्ट्रा मार्जिन को कलेक्ट किया जा सकता है जिसकी ज़रूरत ट्रेडिंग दिन के आख़री में होगी।
जबकि इंट्राडे पीक मार्जिन आवश्यकताओं को लागू करने के साथ कुछ दूसरे छोटी समस्याएं हैं। ऊपर बताए गए दोनों बातें, ब्रोकर्स और ट्रेडिंग समुदाय दोनों पर गेहरा प्रभाव पड़ता है। हम एक्सचेंजों, क्लियरिंग कॉरपोरेशनों और SEBI से विनती करते रहतें हैं कि वे इनका समाधान जल्द से जल्द निकाले। इंट्राडे पीक मार्जिन कि ज़रूरतों को कैलकुलेट करते समय केवल स्पैन मार्जिन आवश्यकताओं पर सोचना सबसे आसान तरीका होगा क्योंकि इंट्राडे पोजीशन में जो रिस्क होता है वह ओवरनाइट पोजीशन कि तुलना में बहुत कम होता है, और इसके लिए स्पैन मार्जिन काफी है।
भारतीय एक्सचेंज बनाम ग्लोबल एक्सचेंज
बेंचमार्क | कमैंट्स |
मार्जिन्स | भारत में, स्पैन और एक्सपोजर मार्जिन दोनों पर चार्ज लिया जाता है जबकि विश्व स्तर पर (CME, ASX, आदि) केवल स्पैन मार्जिन को कलेक्ट किए जाते हैं। एक्सपोजर मार्जिन को केवल उन दिनों में लाया जाता है जिस दिन अनचाहे उतार चढ़ाव होते हैं। |
मार्जिन कलेक्शन फ्रीक्वेंसी | यूरोनेक्स्ट (Euronext) और CME इंट्राडे मार्जिन कॉल को इशू करते हैं जिन्हें एक दिए गए समय सीमा के अंदर पूरा करना होता है।
भारत में, पीक मार्जिन स्नैपशॉट रैंडम अंतराल पर होते हैं, जिससे मार्जिन की कमी का सही मोल या पूरा करना असंभव हो जाता है। |
इंट्राडे मार्जिन्स | CME इंट्राडे मार्जिन के तौर पर इनिशियल मार्जिन का 25-50% चार्ज करता है।
भारत में, इनिशियल मार्जिन (स्पैन+एक्सपोजर) का 100% मार्जिन को मेन्टेन रखना पड़ता है। |
टाइमलाइन
- 2000 का दशक- भारत में F&O का परिचय
- 2011- स्पैन मार्जिन पर पेनल्टी का परिचय।
- 2018- स्पैन+ एक्सपोजर पर पेनल्टी
- 2020- हेज पोजीशन में मदद करने के लिए मार्जिन में सुधार।
- 2021- पीक मार्जिन का परिचय।