9.1 – फाइनेंशियल रेश्यो की भूमिका
पिछले कुछ अध्यायों में हमने फाइनेंशियल स्टेटमेंट को पढ़ना सीखा है। अब हम इनकी एनालिसिस या विश्लेषण करना सीखेंगे। इसके लिए हमें सबसे पहले फाइनेंशियल रेश्यो को समझना होगा। फाइनेंशियल रेश्यो का प्रचलन सबसे पहले बेंजामिन ग्राहम नाम के फंडामेंटल एनालिस्ट ने किया था। उन्हें फाइनेंशियल रेश्यो का पिता माना जाता है।फाइनेंशियल रेश्यो के जरिए हम कंपनी के वित्तीय नतीजों का आकलन कर सकते हैं। मौजूदा प्रदर्शन को पिछले सालों, पिछले तिमाही और दूसरी कंपनियों के प्रदर्शन के मुकाबले नाप सकते हैं।
फाइनेंशियल रेश्यो में आमतौर पर कंपनी के वित्तीय स्टेटमेंट या फाइनेंशियल स्टेटमेंट के डेटा का इस्तेमाल किया जाता है। फाइनेंशियल रेश्यो को समझने के पहले हमें इसके कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों को जानना जरूरी है।
अपने आप में फाइनेंशियल रेश्यो में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं देते है। उदाहरण के तौर पर अगर मुझे बताया जाए कि अल्ट्राटेक सीमेंट का मुनाफा 15 % का है तो इससे मुझे क्या पता चलेगा? ये सही है कि 15 % का मुनाफा एक अच्छा मुनाफा है, लेकिन क्या यह इस सेक्टर का सबसे अच्छा मुनाफा है?
मान लीजिए कि आपको पता हो कि एसीसी सीमेंट का मुनाफा 12 % है और जब हम इस मुनाफे की तुलना अल्ट्राटेक सीमेंट के मुनाफे से करेंगे, तो हमें पता चलेगा कि अल्ट्राटेक का मुनाफा एसीसी सीमेंट के नाते के मुकाबले ज्यादा है।इससे आपको समझ में आ गया होगा कि रेश्यो अपने आप में ज्यादा कुछ नहीं बताते, लेकिन जब उसका इस्तेमाल किसी तुलना के लिए किया जाता है तो आपको पूरी तस्वीर दिखाई देती है। यानी इसका मतलब यह हुआ कि जब भी आप रेश्यो निकालेंगे तो उसका इस्तेमाल किसी तुलना के लिए करेंगे, तो बेहतर होगा।
रेश्यो निकालते समय एक और महत्वपूर्ण बात जो आपको याद रखी है वह यह है कि हर कंपनी की अपनी एक अलग अकाउंटिंग पॉलिसी होती है। अलग–अलग वित्तीय वर्ष में भी अकाउंटिंग पॉलिसीयां अलग अलग हो सकती हैं। इसलिए रेश्यो का इस्तेमाल करते समय आपको इसकी यह जानकारी होनी चाहिए।
9.2 – फाइनेंशियल रेश्यो
मोटे तौर पर फाइनेंशियल रेश्यो को 4 हिस्सों में बांटा जा सकता है।
- मुनाफे से जुड़े रेश्यो यानी प्रॉफिटेबिलिटी रेश्यो (Profitability Ratios)
- लीवरेज रेश्यो (Leverage Ratios)
- वैल्यूएशन रेश्यो और (Valuation Ratios)
- ऑपरेटिंग रेश्यो (Operating Ratios)
प्रॉफिटेबिलिटी रेश्यो, जैसा कि नाम से ही साफ़ है कि, प्रॉफिटेबिलिटी रेश्यो से कंपनी के प्रॉफिटेबिलिटी यानी मुनाफे का पता चलता है। इससे यह भी पता चलता है कि कंपनी कितनी अच्छी चल रही है, उसका मैनेजमेंट कितना अच्छा है? प्रॉफिटेबिलिटी से यानी मुनाफे से ही कंपनी के विस्तार की योजनाएं चलती हैं, शेयर होल्डर को डिविडेंड दिया जाता है इसीलिए प्रॉफिट या मुनाफा शेयर होल्डर के लिए सबसे महत्वपूर्ण रेश्यो होता है।
लेवरेज रेश्यो को कई बार सॉल्वेंसी रेश्यो (Solvency Ratio) या गियरिंग रेश्यो (Gearing Ratio) भी कहते हैं। इस रेश्यो से पता चलता है कि कंपनी आने वाले समय में लंबी अवधि तक अपना कारोबार कितने अच्छे तरीके से चला सकती है। इससे यह भी पता चलता है कि कंपनी को अपने विस्तार के लिए कितने कर्ज इस्तेमाल कर रही है। याद रखिए कि कंपनी को अपना कारोबार ठीक से चलाने के लिए कई तरीके के बिल अदा करने पड़ते हैं और अपनी दूसरी जिम्मेदारियां पूरी करनी पड़ती हैं। सॉल्वेंसी रेश्यो से हमें यही पता चलता है कि कंपनी इन जिम्मेदारियों को पूरा करने में कितनी सक्षम है।
वैल्यूएशन रेश्यो का इस्तेमाल कंपनी के शेयरों की कीमत की तुलना उसके मुनाफ़े के साथ करने के लिए किया जाता है। इससे पता चलता है कि कंपनी के शेयरों की कीमत उसके मुनाफे के मुकाबले कम है या ज्यादा? शेयर महंगे हैं या सस्ते? इससे यह भी पता चलता है कि कंपनी की कुल वास्तविक कीमत कितनी है और उसके मुकाबले शेयरों की कीमत कितनी है? शेयर खरीदने के पहले कंपनी के इस रेश्यो को काफी करीब से देखा जाता है।
ऑपरेटिंग रेश्यो, जिसको एक्टिविटी रेश्यो (Activity Ratio) भी कहते हैं यह बताता है कि कंपनी कितने अच्छे से अपने एसेट का इस्तेमाल अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए कर सकती है। इससे ये भी पता चलता है कि कंपनी का मैनेजमेंट कैसा है। इसीलिए कई बार इसे मैनेजमेंट रेश्यो भी कहते हैं।
वास्तव में हर रेश्यो एक कंपनी की वित्तीय हालत के बारे में एक संदेश देता है जैसे प्रॉफिटेबिलिटी रेश्यो कंपनी की कामकाज की कुशलता के बारे में बताता है। कई बार ऑपरेटिंग रेश्यो से भी इसका पता चलता है। इसीलिए रेश्यो को अलग–अलग श्रेणियों में बांटना थोड़ा मुश्किल काम है, लेकिन फिर भी मोटा मोटी तौर पर इन को ऊपर बताए गए चार हिस्सों में बांटा जा सकता है।
9.3 – प्रॉफिटेबिलिटी रेश्यो
प्रॉफिटेबिलिटी रेश्यो के तहत हम निम्न रेश्यो को देखेंगे:
1. EBITDA मार्जिन (ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन- Operating Profit Margin)
– EBITDA वृद्धि दर (CAGR Growth)
2. PAT मार्जिन
– PAT वृद्धि दर (CAGR Growth)
3. रिटर्न ऑन इक्विटी (ROE)
4. रिटर्न ऑन एसेट (ROA)
5. रिटर्न ऑन कैपिटल एम्प्लॉयड (ROCE)
EBITDA मार्जिन :
अर्निंग बिफोर इंटरेस्ट टैक्स डिप्रेशिएशन एंड अमॉर्टाइजेशन (EBITDA) मार्जिन कंपनी के मैनेजमेंट की कुशलता को बताता है। यह ये भी बताता है कि कंपनी का कारोबार कैसा चल रहा है। कंपनी कारोबारी तौर पर कितना मुनाफा (प्रतिशत में) कमा रही है। कंपनी के इस मार्जिन को दूसरी कंपनी से तुलना करके हमें पता चलता है कि कंपनी अपने खर्चों को किस तरह से काबू में रख रही है।
EBITDA मार्जिन को जानने के लिए हमें पहले कंपनी का EBITDA पता करना होगा।
EBITDA = [ऑपरेटिंग आमदनी (Operating Revenues) – ऑपरेटिंग खर्च (Operating Expenses)]
ऑपरेटिंग आमदनी = [कुल आमदनी (Total Revenue) – अन्य आमदनी (Other Income)]
ऑपरेटिंग ख़र्च = [कुल खर्च (Total Expense) – फ़ाइनेंस कॉस्ट (Finance Cost) – डेप्रिशिएसन और अमॉर्टाइजेशन (Depreciation & Amortization) ]
EBITDA मार्जिन = EBITDA / [कुल आमदनी – अन्य आमदनी]
उदाहरण के लिए अमारा राजा बैटरीज का FY 14 का EBITDA मार्जिन निकालते हैं:
पहले EBITDA :
[कुल आमदनी – अन्य आमदनी] – [कुल खर्च – फ़ाइनेंस कॉस्ट – डेप्रिशिएसन और अमॉर्टाइजेशन ]
याद रखें कि अन्य आमदनी निवेश और दूसरी ग़ैर कारोबारी स्त्रोतों से आती है इसीलिए EBITDA में इसे शामिल करने से सही तस्वीर पता नहीं चलेगी।
[3482-46] – [2942-0.7-65]
= [3436] -[2876]
= 560 करोड़ रूपए
EBITDA मार्जिन 560/3436 = 16.3%
यहां 2 सवाल हैं :
- 560 करोड़ रूपये का EBITDA क्या बताता है और 16.3% का EBITDA मार्जिन क्या दिखाता है?
- 16.3% का EBITDA मार्जिन अच्छा है या बुरा?
पहले सवाल का जवाब काफी आसान है कंपनी ने 3436 करोड़ की ऑपरेटिंग आमदनी की और उसमें से ₹560 बचा लिए। इसका यह भी मतलब है कि कंपनी ने ₹3436 की आमदनी में से 2876 करोड़ खर्च किए। प्रतिशत में देखें तो कंपनी ने अपनी आमदनी का 83.7% खर्च किया और 16.3% आमदनी को कारोबार के लिए बचा लिया।
अब दूसरे सवाल का जवाब देखते हैं। हमने पहले भी बात की है कि फाइनेंशियल रेश्यो अपने आप में कुछ खास जानकारी नहीं देते हैं। इसमें से काम की जानकारी निकालने के लिए हमें इसकी तुलना पिछले साल से या किसी दूसरी कंपनी से करनी पड़ती है। कंपनी के 16.3% EBITDA मार्जिन का मतलब समझने के लिए हम अमारा राजा बैटरी के EBITDA मार्जिन के 4 साल के ट्रेंड को देखते हैं।
साल |
ऑपरेटिंग आमदनी | ऑपरेटिंग खर्च | EBITDA |
EBITDA मार्जिन |
2011 | 1761 | 1504 | 257 | 14.6% |
2012 | 2364 | 2025 | 340 | 14.4% |
2013 | 2959 | 2508 | 451 | 15.2% |
2014 | 3437 | 2876 | 560 | 16.3% |
ऐसा लगता है कि ARBL का EBITDA आमतौर पर औसतन 15% के आस पास बना हुआ है। गौर से देखने पर पता चलता है कि इसका EBITDA मार्जिन धीमे–धीमे बढ़ रहा है। यह एक अच्छा संकेत है जो यह बताता है कि कंपनी का प्रदर्शन ना केवल स्थिर है बल्कि लगातार बेहतर हो रहा है। यह कंपनी के मैनेजमेंट की कुशलता को भी दिखाता है।
साल 2011 में कंपनी का EBITDA 257 करोड़ रूपये था और 2014 में यह 560 करोड़ पर है। इसका मतलब है कि 4 साल में EBITDA की सीएजीआर (CAGR) ग्रोथ (वृद्धि) 21% रही है।
यह साफ है कि EBITDA मार्जिन और EBITDA CAGR बढ़ोतरी सब कुछ काफी अच्छी है । लेकिन हमें यह नहीं पता कि यह दूसरी कंपनियों की तुलना में कैसी है । ARBL के मामले में आपको इसकी तुलना एक्साइड बैटरीज लिमिटेड के EBITDA से करनी चाहिए।
PAT मार्जिन
EBITDA मार्जिन को कंपनी के कारोबारी या ऑपरेटिंग लेवल पर नापा जाता है जबकि PAT मार्जिन को कंपनी के अंतिम मुनाफे के तौर पर देखा जाता है। ऑपरेटिंग मार्जिन में हम सिर्फ ऑपरेटिंग खर्चों को ही शामिल करते हैं , इसमें डिप्रेशिएशन और फाइनेंशियल कॉस्ट को शामिल नहीं किए जाता। टैक्स ख़र्च भी अलग रहते हैं जबकि PAT मार्जिन में इन सबको शामिल करते हैं। जब PAT मार्जिन की गणना की जाती है तो सभी तरह के खर्चों को कुल आमदनी में से घटाया जाता है तब कंपनी का कुल अंतिम मुनाफा पता किया जाता है।
PAT मार्जिन = [PAT / कुल आमदनी (Total Revenue)]
कंपनी का PAT वार्षिक रिपोर्ट में बहुत साफ–साफ बताया जाता है। यह ARBL का FY 14 का PAT 367 करोड़ रूपये था जबकि कंपनी की आमदनी 3482 करोड़ रूपये थी। इस आधार पर कंपनी का PAT मार्जिन हुआ:
367 / 3482
= 10.5%
पिछले कुछ सालों में ARBL का PAT और PAT मार्जिन कैसा रहा है इस पर एक नज़र डालते हैं:
साल |
PAT (करोड़ रू में) |
PAT मार्जिन |
2011 | 148 | 8.4% |
2012 | 215 | 8.9% |
2013 | 287 | 9.6% |
2014 | 367 | 10.5% |
कंपनी का शेयर और PAT मार्जिन का प्रदर्शन काफी अच्छा दिख रहा है। हम देख सकते हैं कि कंपनी का मार्जिन लगातार बढ़ रहा है, पिछले 4 साल में यह 25.48% CAGR से बढ़ रहा है जो कि काफी अच्छा है। लेकिन मुक़ाबला करने वाली दूसरी कंपनियों से इसकी तुलना करने के बाद ही हमें सही तस्वीर का पता चलेगा।
रिटर्न ऑन इक्विटी (ROE)
रिटर्न ऑन इक्विटी एक बहुत ही महत्वपूर्ण रेश्यो है यह हमें बताता है कि कंपनी के शेयर होल्डर को उनके निवेश पर कितनी कमाई हो रही है। ये बताता है कि कंपनी शेयरधारकों के निवेश पर कितना मुनाफ़ा कमा रही है। ROE जितना ज्यादा होगा शेयरहोल्डर्स के लिए उतना ही अच्छा होगा। वास्तव में एक निवेश योग्य कंपनी पहचानने के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण आधार बन जाता है। आपकी जानकारी के लिए, भारत की बेहतरीन कंपनियों में ROE 14% से 16% के बीच में होता है, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मैं उन कंपनियों को पसंद करता हूं जिनका ROE 18% से भी ज्यादा हो।
इस रेश्यो की भी उस इंडस्ट्री में काम करने वाली दूसरी कंपनियों से तुलना की जाती है। पिछले ऐतिहासिक आँकड़ों से भी इसकी तुलना की जाती है ।
यह भी ध्यान दीजिए कि ROE अधिक होने का मतलब है कि कंपनी के पास काफी मात्रा में नकदी आ रहा है और कंपनी को बाहर से कर्ज लेने या पैसे जुटाने की जरूरत कम पड़ने वाली है। इसलिए अच्छे ROE का मतलब है कि कंपनी का मैनेजमेंट अच्छा काम कर रहा है।
ROE निकालने का समीकरण: [ कुल मुनाफ़ा (नेट प्रॉफिट) / शेयर होल्डर्स इक्विटी *100]
ROE एक अच्छा रेश्यो है लेकिन कई दूसरे रेश्यो की तरह इसमें भी कुछ कमियां हैं। इनको अच्छे से समझने के लिए एक उदाहरण देखते हैं ।
मान लीजिए विशाल एक पिज़्ज़ा स्टोर चलाता है। पिज़्ज़ा बनाने के लिए उसको एक ओवन की जरूरत है जिसकी कीमत ₹10000 है। ओवन विशाल के लिए एक एसेट है। इसको खरीदने के लिए वो कोई कर्ज नहीं लेता बल्कि अपने पैसों से ही खरीदता है। ऐसे में उसके बैलेंस शीट पर शेयर होल्डर इक्विटी होगी ₹10000 और एसेट भी होंगे ₹10000 के।
अब मान लीजिए पहले साल के कारोबार में विशाल को ₹2500 का मुनाफा होता है। उसका ROE क्या हुआ? ये काफी आसान है :
ROE = 2500 /10000 *100
=25.0%
अब स्थिति में थोड़ा बदलाव करते हैं। मान लीजिए विशाल के पास ₹8000 है और वह ₹2000 अपने पिताजी से क़र्ज़ लेता है ताकि ₹10000 का ओवन खरीद सके। अब उसकी बैलेंस शीट कैसी दिखेगी। बैलेंस शीट के लायबिलिटी के हिस्से में शेयरहोल्डर इक्विटी होगी ₹8000 की और कर्ज होगा ₹2000 का। इस तरह विशाल की कुल लायबिलिटी होगी ₹10000। इसको बैलेंस करने पर एसेट के हिस्से में भी उसके पास ₹10000 के एसेट होंगे। अब देखते हैं कि उसकी ROE कितनी है:
लायबिलिटी के हिस्से में उसके पास होगा:
शेयरहोल्डर्स इक्विटी = 8000 रूपये
क़र्ज़ = 2000 रूपये
अब विशाल की कुल लायबिलिटी हुई 10000 रूपये और एसेट भी हुए 10000 रूपये. अब ROE देखते हैं :
ROE = 2500/ 8000*100
=31.25%
इस क़र्ज़ की वजह से विशाल का ROE काफी ज्यादा बढ़ गया है। अब मान लीजिए विशाल के पास सिर्फ ₹5000 होते और उसे अपने पिता से ₹5000 का कर्ज लेना पड़ता, तब उसकी बैलेंस शीट कैसी दिखती? हो लायबिलिटी के हिस्से में उसके पास होता :
शेयर होल्डर्स इक्विटी = ₹5000
कर्ज = ₹5000
कुल मिलाकर उसके लायबिलिटी होती ₹10000 और का एसेट के हिस्से में भी होता ₹10000
ऐसे में उसकी ROE कैसी दिखती :
ROE =2500 / 5000*100
= 50%
आप देख सकते हैं कि जैसे जैसे विशाल का कर्ज बढ़ता जा रहा है वैसे–वैसे उसका ROE भी बढ़ रहा है। ऊंचा ROE अच्छा होता है लेकिन कर्ज के साथ नहीं क्योंकि जैसे–जैसे कर्ज बढ़ता है वैसे–वैसे बिजनेस को चलाना रिस्की होता जाता है क्योंकि फाइनेंशियल कॉस्ट बढ़ती जाती है। इसको पता करने का एक अच्छा तरीका है ड्यूपॉन्ट मॉडल (Dupont Model) लागू करना, जिसको ड्यूपॉन्ट आइडेन्टिटी (Dupont Identity) भी कहते हैं।
इस मॉडल को 1920 में ड्यूपॉन्ट नाम की कंपनी ने विकसित किया था। इस मॉडल में ROE के फार्मूले को तीन हिस्सों में बांटा जाता है और हर हिस्सा बिजनेस के एक खास भाग को दिखाता है। ड्यूपॉन्ट एनालिसिस में बिजनेस के बैलेंस शीट और P&L स्टेटमेंट दोनों का इस्तेमाल किया जाता है।
इस मॉडल के तहत ROE इस तरह से निकाला जाता है :
अगर आप ध्यान से देखेंगे इस फार्मूले में अंश और विभाजक (Denominator & Numerator) एक दूसरे को काट देते हैं और अंतत: हमारे पास ओरिजिनल यानी पहले वाला ROE फॉर्मूला ही बचता है:
ROE = कुल मुनाफ़ा (नेट प्रॉफिट) / शेयर होल्डर्स इक्विटी *100
लेकिन इसका फायदा यह होता है कि हमें बिजनेस के तीन अलग–अलग हिस्सों में देखने का मौका मिलता है। इस मॉडल के तीनों हिस्सों को देखते हैं :
- नेट प्रॉफिट मार्जिन (Net Profit Margin) = नेट प्रॉफिट (Net Profit) / नेट सेल्स (Net Sales) * 100
यह ड्यूपॉन्ट मॉडल का पहला हिस्सा है इस कंपनी के प्रॉफिट बनाने की क्षमता को दिखाता है। लेकिन वास्तव में यह और कुछ नहीं सिर्फ PAT मार्जिन है जिनके कम होने का मतलब है कि कंपनी की लागत ज्यादा है और उसको एक कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है। - एसेट टर्नओवर (Asset Turnover) = नेट सेल्स (Net Sales) / ऐवरेज टोटल एसेट (Average Total Asset)
एसेट टर्नओवर रेश्यो यह दिखाता है कि कंपनी अपने एसेट का इस्तेमाल अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए कितने अच्छे तरीके से कर रही है। ये रेश्यो जितना ऊंचा होता है कंपनी को उतना ही कुशल माना जाता है। जब ये रेश्यो कम होता है तो यह माना जाता है कि कंपनी का मैनेजमेंट ठीक नहीं है या उसके उत्पादन में मुश्किल आ रही है। इसको दिखाने के लिए प्रति साल की संख्या बतायी जाती है। - फाइनेंशियल लेवरेज (Financial Leverage) = ऐवरेज टोटल एसेट (Average Total Assets) / शेयरहोल्डर्स इक्विटी (Shareholders Equity)
फाइनेंशियल लेवरेज रेश्यो में हमें पता चलता है कि कंपनी के शेयर होल्डर इक्विटी के प्रति यूनिट पर कंपनी के पास कितने प्रति यूनिट एसेट हैं। उदाहरण के लिए अगर फाइनेंशियल लेवरेज 4 है तो इसका मतलब है कि हर ₹1 की इक्विटी पर कंपनी के पास ₹4 का एसेट है। कंपनी का फाइनेंशियल लेवरेज रेश्यो ज्यादा हो और कंपनी ने काफ़ी क़र्ज़ भी ले रखा हो तो निवेशकों को ऐसी कंपनी में निवेश करते हुए सावधानी बरतनी चाहिए।
जैसा कि आप देख सकते हैं कि ड्यूपॉन्ट मॉडल ROE फार्मूले को तीन विशेष हिस्सों में बांटता है हर हिस्सा कंपनी के कामकाज और वित्तीय क्षमता के बारे में एक तस्वीर देता है।
अब हम इस मॉडल का इस्तेमाल अमारा राजा बैटरी के FY14 के ROE को निकालने के लिए करते हैं।
नेट प्रॉफिट मार्जिन: जैसा कि पहले बता चुके हैं यह और कुछ नहीं सिर्फ PAT मार्जिन है। हम अमारा राजा बैटरीज यानी ARBL का PAT मार्जिन पहले भी निकाल चुके हैं और यह 9.2% है ।
एसेट टर्नओवर = नेट सेल्स / ऐवरेज टोटल एसेट
हम जानते हैं कि FY14की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक ARBLकी कुल बिक्री 3437 करोड़ रूपये है ।
यहां विभाजक (Denominator) के तौर पर ऐवरेज टोटल एसेट है। हम जानते हैं कि हम बैलेंस शीट से एसेट का आँकड़ा निकाल सकते हैं, लेकिन यहां ऐवरेज यानी औसत का क्या मतलब है?
ARBL की बैलेंस शीट में कुल एसेट्स 2139 करोड़ रूपये के दिखाए गए हैं। लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2014 का है जो 1 अप्रैल 2013 को शुरू होता है और 31 मार्च 2014 को खत्म होता है। इसका मतलब यह है कि कंपनी ने वित्त वर्ष के शुरू में (अप्रैल 2013) जब कामकाज शुरू किया था तो उसके पास कुछ एसेट थे जो कि FY13 के थे और जिनको वहां से आगे ले आया गया था। बाद में (FY14 में) कुछ नए एसेट भी जोड़े गए और ये सारे एसेट मिला कर 2139 करोड़ रूपये के हुए। इसका मतलब यह है कि साल की शुरुआत में कंपनी के पास जो एसेट थे उनकी कीमत कुछ और थी और साल के अंत में एसेट की कीमत कुछ और थी।
इस को ध्यान में रखते हुए हम अब एसेट टर्नओवर रेश्यो निकालेंगे, तो हमें अब एसेट की कौन सी कीमत लेनी चाहिए– साल की शुरुआत वाली या साल के अंत वाली क़ीमत? इसी दुविधा को दूर करने के लिए एसेट की औसत कीमत निकाली जाती है।
किसी लाइन आइटम का औसत निकालने की इस तकनीक को याद रखिए, दूसरे रेश्यो निकालने में भी इसका इस्तेमाल करना होगा। ARBL की वार्षिक रिपोर्ट से हमें पता है कि:
FY14 नेट सेल्स = 3437 करोड़ रूपये
FY13 कुल एसेट = 1770 करोड़ रूपये
FY14 कुल एसेट = 2139 करोड़ रूपये
औसत कुल एसेट = (1770+2139) / 2
= 1954.50
एसेट टर्नओवर = 3437 / 1954.50
= 1.75
इसका मतलब ये हुआ कि हर 1 रूपये के एसेट पर कंपनी 1.75 रूपये की कमाई कर रही है।
अब फाइनेंशियल लेवरेज के अंतिम हिस्से की गणना करते हैँ:
फाइनेंशियल लेवरेज = औसत टोटल एसेट / शेयरहोल्डर्स इक्विटी
हमें पता है कि कुल एसेट का औसत कीमत 1955 करोड़ रूपये है। हमें सिर्फ शेयर होल्डर इक्विटी निकालना है। जिस तरह हमने मौजूदा एसेट को देखने के बजाय औसत एसेट को देखा है उसी तरीके से हम औसत शेयरहोल्डर्स इक्विटी देखेंगे ना कि सिर्फ मौजूदा साल की शेयरहोल्डर्स इक्विटी।
FY13 शेयरहोल्डर्स इक्विटी = 1059 करोड़ रूपये
FY14 शेयरहोल्डर्स इक्विटी = 1362 करोड़ रूपये
औसत शेयरहोल्डर्स इक्विटी = 1211 करोड़ रूपये
फाइनेंशियल लेवरेज = 1955 / 1211
= 1.61
क्योंकि ARBL के पास बहुत कम कर्ज है इसलिए फाइनेंशियल लेवरेज 1.61 है जो कि एक अच्छा आंकड़ा है। इसका मतलब है कि शेयर होल्डर की हर एक रूपये की इक्विटी के सामने ARBL के पास 1.61 रूपये के एसेट हैं।
अब हम ARBL की ROE निकालते हैं :
ROE = नेट प्रॉफिट मार्जिन x एसेट टर्नओवर x फाइनेंशियल लेवरेज
= 9.2%*1.75*1.61
– 25.9%
यह ROE निकालने का यह एक लंबा तरीका है। लेकिन यह शायद सबसे अच्छा तरीका भी है क्योंकि इसकी वजह से हम किसी भी बिजनेस के कई अलग–अलग हिस्सों के बारे में अच्छी से जानकारी प्राप्त कर पाते हैं। ड्यूपॉन्ट मॉडल से न केवल हमें कंपनी के रिटर्न के बारे में पता चलता है बल्कि उस रिटर्न की गुणवत्ता के बारे में भी पता चलता है।
वैसे अगर आप ROE निकालने की जल्दी में हैं तो इस समीकरण का उपयोग करें :
ROE = नेट प्रॉफिट / औसत शेयर होल्डर इक्विटी
वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक़ FY14 का PAT 367 करोड़ है
ROE=367 / 1211
= 30.31%
रिटर्न ऑन एसेट (ROA)
ड्यूपॉन्ट मॉडल को समझने के बाद अगले दो फाइनेंशियल रेश्यो को समझना आसान होगा। रिटर्न ऑन एसेट या ROA हमें यह बताता है कि कंपनी अपने एसेट का इस्तेमाल करके कितना मुनाफा कमा सकती है। एक अच्छी कंपनी ऐसे एसेट में निवेश नहीं करती जिससे उसको फायदा ना हो इसलिए ROA हमें बताता है कि कंपनी का मैनेजमेंट किस तरह के एसेट में पैसे लगा रहा है। कंपनी का ROA जितना ज्यादा होगा कंपनी के लिए उतना ही बेहतर होगा।
ROA = [नेट इनकम +इन्टरेस्ट *(1-टैक्स दर)] / कुल औसत एसेट (Total Average Assets)
वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक़ :
FY14 नेट आमदनी (इनकम) = 367.4 करोड़
कुल औसत एसेट हमने निकाला था = 1955 करोड़
लेकिन इन्टरेस्ट *(1-टैक्स दर) का मतलब यहाँ क्या है? ज़रा सोचिए, कंपनी ने जो कर्ज लिया है उससे जो एसेट खरीदा जाएगा उसका इस्तेमाल कंपनी मुनाफा कमाने के लिए करेगी। तो इस तरह से वह लोग भी कंपनी के हिस्सेदार बन जाते हैं जिन्होंने कंपनी को कर्ज दिया है। साथ ही कंपनी को टैक्स भी कम देना पड़ता है क्योंकि ब्याज चुकाया जा चुका है। इसे टैक्सशील्ड (Tax shield) कहते हैं। इस वजह से जब भी हम कंपनी के ROA निकालते हैं तो हमें हमें ब्याज को (टैक्स शील्ड के नज़रिए से) भी जोड़ना पड़ता है।
अगर कुल ब्याज (फ़ाइनेंस कॉस्ट) 7 करोड़ है तो टैक्स शील्ड होगा :
= 7 *(1-32%), यहाँ औसत टैक्स दर 32% मानी गयी है।
=4.76 करोड़,
तो,
ROA = [367.4 + 4.76] /1955
~ 372.16 / 1955
~ 19.03%
रिटर्न ऑन कैपिटल एंप्लॉयड (Retirn on Capital Employed-ROCE)
रिटर्न ऑन कैपिटल एंप्लॉयड हमें यह बताता है कि कंपनी में जितना कैपिटल या पूंजी लगा रखी है उससे कंपनी कितना मुनाफा कमा रही है। कुल कैपिटल या पूंजी में इक्विटी और डेट यानी इक्विटी और कर्ज दोनों शामिल होते हैं।
ROCE = [ प्रॉफिट बिफोर इन्टरेस्ट एंड टैक्स (Profit before Interest & Taxes) / कुल कैपिटल एम्प्लॉयड (Overall Capital Emplyed) ]
कुल कैपिटल एम्प्लॉयड = शार्ट टर्म क़र्ज़ + लाँग टर्म क़र्ज़ + इक्विटी
ARBL की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक :
प्रॉफिट बिफोर इन्टरेस्ट एंड टैक्स = 537.7 करोड़
कुल कैपिटल एम्प्लॉयड :
शार्ट टर्म क़र्ज़ = 8.3 करोड़
लाँग टर्म क़र्ज़ = 75.9 करोड़
शेयर होल्डर इक्विटी = 1362 करोड़
कुल कैपिटल एम्प्लॉयड : 8.3 + 75.9 + 1362 = 1446.2 करोड़
ROCE = 537.7 / 1446.2
= 37.18 %
इस अध्याय की मुख्य बातें
- फाइनेंशियल रेश्यो किसी भी कंपनी को जांचने या नापने का एक बहुत महत्वपूर्ण तरीका है लेकिन फाइनेंशियल रेश्यो खुद–ब–खुद बहुत कम जानकारी देते हैं।
- रेश्यो का सबसे अच्छा इस्तेमाल तब होता है जब आप उसकी तुलना पिछले डाटा से करें या इंडस्ट्री की किसी दूसरी कंपनी से करें जो इस कंपनी से मुकाबला कर रही है।
- फाइनेंशियल रेश्यो को प्रॉफिटेबिलिटी, लेवरेज, वैल्यूएशन और ऑपरेटिंग रेश्यो के 4 हिस्सों में बांटा जा सकता है। यह चारों हिस्से कंपनी के बारे में किसी एनालिस्ट को अलग–अलग तरीके की जानकारी देते हैं।
- ऑपरेटिंग कमाई में से ऑपरेटिंग खर्चा निकालने के बाद जो रकम बचती है उसे EBITDA कहते हैं।
- EBITDA मार्जिन ऑपरेटिंग स्तर पर कंपनी का प्रतिशत मुनाफा दिखाता है।
- PAT मार्जिन से कंपनी के कुल मुनाफे का पता चलता है।
- रिटर्न ऑन इक्विटी यानी ROE एक बहुत महत्वपूर्ण रेश्यो है जो बताता है कि कंपनी के शेयर होल्डर शुरूआती निवेश पर कितने पैसे कमा रहे हैं।
- एक ऊंचा ROE और ऊंचा कर्ज बहुत अच्छा संकेत नहीं होता है।
- कंपनी के ROE को अलग–अलग हिस्सों में बांटने के लिए ड्यूपॉन्ट मॉडल का इस्तेमाल किया जाता है जिससे कंपनी के बिजनेस के अलग–अलग हिस्सों के बारे में ठीक से जानकारी मिलती है।
- किसी कंपनी का ROE निकालने के लिए ड्यूपॉन्ट मॉडल शायद सबसे अच्छा मॉडल होता है।
- रिटर्न ऑन एसेट यह बताता है कि कंपनी अपने एसेट का कितना अच्छा इस्तेमाल कर रही है।
- रिटर्न ऑन कैपिटल एंप्लॉयड बताता है कि कंपनी अपने कर्ज और इक्विटी का कैसा इस्तेमाल कर रही है और उस पर कितना रिटर्न कमा रही है।
- किसी भी रेश्यो का अच्छा इस्तेमाल तब होता है जब उसको किसी तरीके की तुलना में इस्तेमाल किया जाए।
- रेश्यो किसी एक जगह पर या एक समय पर तुलना के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है और एक लंबी अवधि के तुलना के लिए भी।
explaination is very simple.
thanks you sir.
Sir EBITDA margin me se DA NIKAL DENGE TO WO EBIT HI BACHEGA
जी हाँ।
Sir EBITDA margin calculation is wrong h.
Plz check
Sir du point method me pat margin 10.5 ki Jagah 9.2 Le rakha h & usi me asset turnover calculation me net sales 3437 Le rakhi h jabki ise 3482 liya jana chaiye
PAT Margin = net profit margin 9.2 kasha nikala aapna please details me batta do.
कैलकुलेशन उसी अध्याय में दिया गया है।