11.1 -संक्षिप्त विवरण
कंपनियों के कई फैसले उसके शेयरों पर असर डालते हैं। इन फैसलों को करीब से देखने पर आपको कंपनी की वित्तीय हालत सहित कई जानकारियां मिलती हैं। इन फैसलों के आधार पर आप कंपनी के शेयर बेचने और खरीदने का निर्णय भी कर सकते हैं।
इस अध्याय में हम कंपनियों के ऐसे ही पाँच महत्वपूर्ण फैसलों पर नज़र डालेंगे और शेयर कीमतों पर उनके असर को समझेंगे।
इस तरह के फैसले कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स लेते हैं (Board of Directors) और कंपनी के शेयरधारक उनको मंजूरी देते हैं।
11.2 – डिविडेंड – Dividends
कंपनी को एक साल में जो मुनाफा होता है उसको शेयरधारकों में बाँटा जाता है और इसे ही डिविडेंड कहते हैं। कंपनी अपने शेयरधारकों को डिविडेंड देती हैं। डिविडेंड प्रति शेयर के आधार पर दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर 2012-13 में इन्फोसिस ने हर शेयर पर 42 रुपये का डिविडेंड दिया था। डिविडेंड को शेयर के फेस वैल्यू के प्रतिशत के तौर पर भी देखा जाता है। जैसे इन्फोसिस के उदाहरण में शेयर की फेस वैल्यू 5 रुपये थी और डिविडेंड 42 रुपये, यानी कंपनी ने 840% का डिविडेंड दिया (42/5) ।
हर साल डिविडेंड देना कंपनी के लिए ज़रूरी नहीं होता। अगर कंपनी को लगता है कि साल का मुनाफा डिविडेंड के रूप में बाँटने की जगह उस पैसे का इस्तेमाल नए प्रॉजेक्ट और बेहतर भविष्य के लिए करना चाहिए तो कंपनी ऐसा कर सकती है।
डिविडेंड हमेशा मुनाफे में से ही नहीं दिया जाता। कई बार कंपनी को मुनाफा नहीं होता लेकिन उसके पास काफी नकद पड़ा होता है। ऐसी स्थिति में कंपनी उस नकद में से भी डिविडेंड दे सकती है।
कभी कभी डिविडेंड देना कंपनी के लिए सबसे सही कदम होता है। जब कंपनी के पास कारोबार के विस्तार का कोई सही रास्ता नहीं होता और कंपनी के पास नकदी रकम पड़ी होती है, ऐसे में डिविडेंड दे कर शेयरधारकों को पुरस्कृत करना अच्छा होता है। इससे शेयरधारकों में कंपनी पर भरोसा बढ़ता है।
डिविडेंड देने का फैसला ऐनुअल जनरल मीटिंग यानी AGM में लिया जाता है, जहाँ कंपनी के डायरेक्टर मिलते हैं। डिविडेंड देने की घोषणा होने के साथ ही डिविडेंड नहीं दिया जाता क्योंकि शेयर की खरीद बिक्री एक्सचेंज पर लगातार चल रही होती है और ऐसे में ये पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि डिविडेंड किसे दिया जाए और किसे नहीं। डिविडेंड की प्रक्रिया समझने के लिए इस चार्ट को देखिए
डिविडेंड डेक्लरेशन डेट (Dividend Declaration Date): ये वो दिन है जब AGM की बैठक होती है और बोर्ड डिविडेंड को मंजूरी देता है।
रिकॉर्ड डेट (Record Date): ये वो दिन होता है जिस दिन कंपनी अपने रिकॉर्ड को देखती है और उसमें जिन शेयरधारकों के नाम होते हैं उन्हें डिविडेंड देने का फैसला करती है। आमतौर पर डिविडेंड की घोषणा और रिकॉर्ड डेट के बीच कम से कम 30 दिनों का फासला होता है।
एक्स डिविडेंड डेट (Ex Date/ Ex Dividend Date): ये आमतौर पर रिकॉर्ड डेट से दो कारोबारी दिन पहले का होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भारत में T+2 के आधार पर यानी सौदे के दो दिन बाद सेटेलमेंट होता है। तो अगर आपको डिविडेंड चाहिए तो आपको शेयर एक्स डिविडेंड डेट के पहले खरीदना होता है।
डिविडेंड पे आउट डे (Dividend Payout Date): इस दिन शेयरधारकों को डिविडेंड का भुगतान किया जाता है।
कम डिविडेंड (Cum Dividend): एक्स डिविडेंड डेट तक शेयरों को कम डिविडेंड (Cum Dividend) कहा जाता है।
जब शेयर एक्स डिविडेंड हो जाता है तो उसकी कीमत में आमतौर पर डिविडेंड की राशि के बराबर की गिरावट आ जाती है। उदाहरण के तौर पर अगर ITC का शेयर 335 रुपये पर है और कंपनी ने 5 रुपये का डिविडेंड देने का ऐलान किया है तो एक्स डिविडेंड डेट पर शेयर की कीमत 330 रुपये तक गिर सकती है क्योंकि अब कंपनी के पास ये 5 रुपये नहीं हैं।
डिविडेंड वित्त वर्ष के दौरान कभी भी दिया जा सकता है। अगर डिविडेंड साल के बीच में दिया गया तो उसे अंतरिम डिविडेंड और अगर साल के अंत में दिया गया तो फाइनल डिविडेंड कहा जाता है।
11.3 -बोनस इश्यू
बोनस इश्यू एक तरह का स्टॉक डिविडेंड है जो कंपनी अपने शेयरधारकों को पुरस्कृत करने के लिए देती है। इसमें कंपनी डिविडेंड की तरह पैसे नहीं बल्कि शेयर देती है। ये शेयर कंपनी अपने रिजर्व से जारी करती है। बोनस शेयर मुफ्त में दिए जाते हैं और ये शेयरधारकों को इस आधार पर दिए जाते हैं कि उनके पास कंपनी के कितने शेयर मौजूद हैं। बोनस शेयर आमतौर पर एक खास अनुपात में जारी किए जाते हैं जैसे 1:1, 2:1, 3:1 आदि।
अगर अनुपात 2:1 है तो शेयरधारक को हर एक शेयर के बदले में दो और शेयर मिलते हैं। मतलब कि अगर शेयरधारक के पास 100 शेयर हैं तो उसे 200 शेयर और मिलेंगे और उसके पास कुल 300 शेयर हो जाएंगे। इससे उसके पास शेयर तो बढ़ जाते हैं लेकिन उसकी निवेश की कीमत नहीं बढ़ती।
इसे ठीक से समझने के लिए नीचे के चार्ट पर नजर डालिए।
बोनस इश्यू | बोनस के पहले शेयर संख्या | बोनस के पहले शेयर कीमत | निवेश की कीमत | बोनस के बाद शेयर संख्या | बोनस के बाद शेयर कीमत | निवेश की कीमत |
---|---|---|---|---|---|---|
1:1 | 100 | 75 | 7500 | 200 | 37.5 | 7500 |
3:1 | 30 | 550 | 16500 | 120 | 137.5 | 16,500 |
5:1 | 2000 | 15 | 30000 | 12000 | 2.5 | 30000 |
डिविडेंड की ही तरह बोनस में भी अनाउंसमेंट डेट (Announcement Date) , एक्स बोनस डेट और रिकॉर्ड डेट होती है।
कंपनियां शेयर में रिटेल निवेशक की भागीदारी बढाने के लिए भी बोनस इश्यू लाती हैं खासकर तब जब कि शेयर की कीमत काफी उपर पहुंच गई हो और छोटे निवेशक के लिए शेयर खरीदना मुश्किल हो रहा हो। बोनस इश्यू आने पर बाजार में शेयरों की संख्या बढ जाती है लेकिन उसकी कीमत गिर जाती है हालांकि शेयर का फेस वैल्यू नहीं बदलता।
11.4 स्टॉक स्प्लिट (Stock Split)
शेयर स्प्लिट यानी शेयर का हिस्सों में बंटना बाजार की एक आम घटना है। इसमें एक शेयर कुछ शेयरों में बदल जाता है।
इसमें भी बोनस की तरह शेयरों की संख्या बढ़ जाती है लेकिन निवेश की कीमत और मार्केट कैपिटलाइजेशन नहीं बदलता। स्टॉक स्प्लिट शेयर के फेस वैल्यू से जुड़ी होती है। जैसे मान लीजिए शेयर की फेस वैल्यू 10 रुपये है और 1:2 के अनुपात में शेयर स्प्लिट होता है तो शेयर की फेस वैल्यू 5 रुपये हो जाएगी और अगर आपके पास एक शेयर था तो अब आपके पास दो शेयर हो जाएंगे। इस सारणी से आपको ये बात और साफ हो जाएगी।
स्प्लिट अनुपात | पुराना फेस वैल्यू | स्प्लिट के पहले शेयर संख्या | स्प्लिट के पहले शेयर कीमत | निवेश की कीमत | नया फेस वैल्यू | स्प्लिट के बाद शेयर संख्या | स्प्लिट के बाद शेयर कीमत | स्प्लिट के बाद निवेश की कीमत |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|
1:2 | 10 | 100 | 900 | 90,000 | 5 | 200 | 450 | 90,000 |
1:5 | 10 | 100 | 900 | 90,000 | 2 | 500 | 180 | 90,000 |
बोनस इश्यू की तरह ही स्टॉक स्प्लिट का इस्तेमाल भी और निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए होता है।
11.5- राइट्स इश्यू
कंपनियां राइट्स इश्यू का इस्तेमाल पूंजी जुटाने के लिए करती हैं। अंतर बस इतना है कि जहाँ पब्लिक इश्यू नए निवेशक लाता है वहीं राइट्स इश्यू में मौजूदा शेयरधारकों से ही पैसा जुटाया जाता है। एक तरह से आप इसे कुछ खास लोगों (शेयरधारकों) के लिए लाया गया पब्लिक इश्यू मान सकते हैं। राइट्स इश्यू का मतलब होता है कि कंपनी कुछ नया काम करने जा रही है। पुराने शेयरधारक अपने पास मौजूद शेयरों के अनुपात में राइट्स इश्यू से शेयर खरीद सकते हैं। उदाहरण के तौर पर 1:4 के राइट्स इश्यू का मतलब होता है कि अगर आपके पास 4 शेयर हैं तो आप एक और शेयर खरीद सकतें हैं। एक खास बात ये कि राइट्स इश्यू में शेयर बाजार भाव से नीचे मिलते हैं।
वैसे निवेशकों को केवल शेयर की कीमत पर मिल रही छूट नहीं देखनी चाहिए। ये बोनस शेयर नहीं है यहाँ आप शेयर के लिए पैसे दे रहे हैं और इसीलिए आपको पैसे तभी लगाने चाहिए जब आप कंपनी के भविष्य को ले कर संतुष्ट हों।
एक और बात, अगर राइट्स इश्यू के पहले बाजार में शेयर की कीमत गिर जाती है और राइट्स इश्यू की इश्यू कीमत से नीचे चली जाए तो शेयर को बाजार से खरीदना ज्यादा ठीक रहेगा।
11.6- शेयर बाय बैक (Buyback of Shares)
बाय बैक में कंपनी अपने शेयर बाजार से खुद खरीदती है। इसे कंपनी के खुद में निवेश के तौर पर देखा जा सकता है। बाय बैक से बाजार में कंपनी के शेयरों की संख्या कम हो जाती है। इसे कारपोरेट फेरबदल का भी एक तरीका माना जाता है। बाय बैक की और भी बहुत सारी वजहें हो सकती हैं..
- प्रति शेयर मुनाफा ज्यादा बढ़ाना
- कंपनी में प्रमोटर का हिस्सा बढ़ाना
- किसी और के टेक ओवर यानी कब्जा करने से बचना
- कंपनी को ले कर प्रमोटर के आत्मविश्वास को दिखाना
- शेयर कीमत में आ रही गिरावट को रोकना
बायबैक कंपनी के आत्मविश्वास को दिखाता है इसलिए इसकी घोषणा से शेयर की कीमत ऊपर जाती है।
इस अध्याय की खास बातें
- कंपनियों के फैसले शेयर कीमत पर असर डालते हैं
- डिविडेंड के जरिए शेयरधारकों को पुरस्कृत किया जाता है, डिविडेंड को फेस वैल्यू के प्रतिशत में दिया जाता है।
- किसी कंपनी से डिविडेंड पाने के लिए आपके पास कंपनी का शेयर एक्स डिविडेंड डेट के पहले होना चाहिए।
- बोनस शेयर एक तरह से स्टॉक डिविडेंड है। कंपनी बोनस शेयर के तौर पर और शेयर दे कर अपने शेयरधारकों को पुरस्कार देती है।
- स्टॉक स्प्लिट में शेयर की फेस वैल्यू बदल जाती है, इसी के अनुपात में शेयर की कीमत भी बदल जाती है।
- कंपनी राइट्स इश्यू ला कर अतिरिक्त पूंजी जुटाती है। इसमें कंपनी के मौजूदा शेययधारक पैसा लगाते हैं। आपको राइट्स इश्यू में तभी पैसा लगाना चाहिए जब आप कंपनी के भविष्य को ले कर आश्वस्त हों।
- बाय बैक कंपनी के आत्मविश्वास को दिखाता है और कंपनी के प्रमोटर का भरोसा भी।
Thanks
Karthik sir
kya aapne khud translation kiya hai?
No Sir, we took external help. Do you like the translation?
Yes sir
Bahut badhiya translation 👌
Please translate your all module in Hindi as soon as possible because I am very poor in English.
You can understand by my typing 😉
Thanks, we are working towards it 🙂
Thank u sir
God bless you
Keep uploading hindi module
सर, अगर आप सभी माड्यूल हिन्दी मे अपलोड कर देते तो आपकी महान कृपा होती । बहुत बहुत धन्यबाद सर ।
Hi मंजीत, हम जल्द ही और मॉड्यूल्स अपलोड करने वाले हैं। कुछ महीनो में सारे मॉड्यूल्स आप हिंदी में पढ़ पाएंगे। 🙂