6.1 संक्षिप्त विवरण 

IPO प्रक्रिया समझने के बाद और कंपनी के प्राइमरी और सेकेंडरी बाज़ार के पीछे होने वाली वास्तिवकता को जानने के बाद, आइए अब स्टॉक बाज़ार के अगले पड़ाव पर चलते हैं। 

एक सार्वजनिक कंपनी होने के नाते अब कंपनी को वो सभी जानकारी जो कि कंपनी से संबधित है, लोगों को बतानी होगी। पब्लिक लिमिटेड कंपनी के शेयरों में स्टॉक एक्सचेंज पर हर रोज़ खरीद-बिक्री होती है। 

शेयर बाजार में भाग लेने वाले या भागीदार क्यों शेयरों की खरीद-बिक्री करते हैं, इसकी वजहों को हम इस अध्याय में विस्तार में समझेंगे। 

6.2 स्टॉक मार्केट या शेयर बाज़ार आखिर है क्या? 

जैसा कि हमने अध्याय 2 में पढ़ा था कि शेयर बाजार एक इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार है, जहाँ बेचने वाला और खरीदार मिल कर सौदा करते हैं। 

उदाहरण के तौर पर, इंफोसिस की अभी की स्थिती को लीजिए। इस अध्याय को लिखते वक्त इंफोसिस में अगला उत्तराधिकारी कौन होगा, ये बहुत बड़ा मसला बना हुआ है और कई सीनियर कर्मचारियों ने हाल फिलहाल में कंपनी से इस्तीफा भी दिया है। इस वजह से कंपनी की इज्जत/प्रतिष्ठा/मान पर असर पड़ रहा है। और इस वजह से कंपनी का शेयर 3,500 से गिर कर 3,000 रुपये पर आ गया।  जब भी मैनेजमेंट में बदलाव की कोई खबर आती है, कंपनी के शेयर की कीमत यानी शेयर प्राइस/स्टॉक प्राइस पर असर पड़ता है। 

मान लीजिए की दो ट्रेडर्स है – T1 और T2 

इंफोसिस पर T1 का नज़रिया- कंपनी का शेयर और नीचे जाएगा क्योंकि कंपनी को नया CEO चुनने में काफी दिक्कतें या चुनौतियाँ हो सकती है। 

अगर T1 इस नज़रिए के साथ सौदा करता है तो उसे इंफोसिस के शेयर का बिकवाल होना चाहिए या उसे इंफोसिस का शेयर बेचना चाहिए। 

लेकिन T2  इसी हालात को अलग तरह से देख रहा है और उसका नजरिया अलग है। उसके मुताबिक इंफोसिस के स्टॉक ने उत्तराधिकारी मसले पहले ही काफी प्रतिक्रिया दिखा दी है, अब जल्दी ही कंपनी को नया लीडर मिल जाएगा और उसके बाद उसके आने के बाद कंपनी का स्टॉक ऊपर जाएगा। 

अगर T2 इस नजरिए के साथ सौदे में उतरता है तो उसे इंफोसिस स्टॉक का खरीदार होना चाहिए। 

तो 3,000 रुपये के भाव पर T1 बेचने वाला या बिकवाल होगा और T2 इंफोसिस का खरीदार। 

अब दोनों, T1 और T2,  अपने-अपने स्टॉक ब्रोकर के ज़रिए खरीद-ब्रिकी के लिए निर्देश देंगे और ब्रोकर स्टॉक एक्सचेंज के ज़रिए इन सौदों को पूरा करेगा। 

स्टॉक एक्सचेंज इस बात को सुनिश्चित करेगा कि दोनों ऑर्डर मिलें और सौदा पूरा हो। यही स्टॉक मार्केट या बाज़ार का मुख्य अथवा प्राथमिक काम है- एक ऐसा प्लेटफॉर्म देना या बनाना जहाँ खरीदार और बेचने वाला शेयरों का सौदा कर सकें। 

स्टॉक मार्केट वो जगह जहाँ बाज़ार के भागीदार लिस्टेड कंपनियों में अपने-अपने नज़रिए के मुताबिक सौदा करते हैं। और सौदा तभी होगा जब भागीदारों के नज़रिए अलग अलग होंगे। नज़रिया या दृष्टिकोण अलग होने से ही बाजार में खरीद और बिक्री हो सकती है। 

 

6.3- शेयर के दाम ऊपर-नीचे कैसे होते हैं? या शेयर की कीमत में बदलाव कैसे और क्यों होता है?

इंफोसिस के उदाहरण से ही शेयर की चाल को समझने की कोशिश करते हैं। मान लीजिए कि आप बाज़ार में खरीद-बिक्री करते हैं यानी शेयर बाज़ार के भागीदार है और इंफोसिस कंपनी पर बारीकी से नज़र बनाए हुए हैं। 

11 जून 2014 का दिन है, सुबह के 10 बजे हैं और इंफोसिस का भाव है 3000 रुपये। कंपनी का मैनेजमेंट मीडिया में ये खबर देता है कि कंपनी को नया CEO मिल गया है, जो कंपनी को नई ऊंचाई पर ले जाएगा। कंपनी को उस नए CEO की काबिलियत पर पूरा भरोसा है। 

दो सवाल यहाँ पर आते हैं- 

  1. इस खबर से इंफोसिस के स्टॉक के भाव या कीमत पर क्या असर होगा? 
  2. अगर आप इंफोसिस में सौदा करना चाहते हैं, तो आप शेयर खरीदेंगे या बेचेंगे? 

पहले सवाल का जवाब बहुत आसान है। इस खबर से कंपनी के शेयर के भाव में बढ़ोतरी होगी। 

इंफोसिस में कंपनी के नेतृत्व को लेकर दिक्कत चल रही थी, और अब वो दिक्कत दूर हो गई है। जब ऐसी सकारात्मक घोषणा की जाती है तो बाज़ार के भागीदार स्टॉक किसी भी कीमत पर खरीदने की कोशिश करते हैं और इसी वजह से स्टॉक में तेज बढ़ोतरी जिसे बाजार की भाषा में रैली (Rally) कहते हैं, देखने को मिलती है। 

इसको थोड़ा और विस्तार से समझते हैं.. 

क्रम संख्या समय लास्ट ट्रेडेड प्राइस- LTP बिकवाल या बेचनेवाले की कीमत खरीदार क्या करता है नया लास्ट ट्रेडेड प्राइस
1 10:00 3000 3002 खरीदता है 3002
2 10:01 3002 3006 खरीदता है 3006
3 10:03 3006 3011 खरीदता है 3011
4 10:05 3011 3016 खरीदता है 3016

ध्यान दीजिए कि बेचनेवाला जो भी कीमत मांग रहा है, खरीदार देने को तैयार है। ये जो प्रतिक्रिया होती है, बेचने और खरीदने वाले के बीच, इससे ही शेयर के भाव ऊपर जाते हैं। 

जैसा कि आप देख सकते हैं कि शेयर का भाव 5 मिनट में 16 रुपये बढ़ गया। हालांकि ये उदाहरण एक काल्पनिक परिस्थिती है, लेकिन ऐसा वाकई में होता है। किसी अच्छी खबर के आने या आने की उम्मीद पर स्टॉक की कीमत बढ़ जाती है। 

ऊपर के उदाहरण में शेयर के भाव ऊपर जाने की दो वजहें हैं। एक तो कंपनी के नेतृत्व का मसला हल हो गया। दूसरा, जो नया CEO आया है वो कंपनी को नई ऊंचाई तक ले कर जाएगा। 

अब दूसरे सवाल का जवाब बहुत आसान हो गया है, आप इंफोसिस का स्टॉक खरीदेंगे क्योंकि कंपनी के बारे में अच्छी खबर आई है। 

अब उसी दिन में आगे बढ़ते हैं। 12:30 PM पर ‘द नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनी’ यानी नैसकॉम (NASSCOM) ने एक स्टेटमेंट यानी अधिसूचना जारी किया। नैसकॉम भारत के सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों यानी IT कंपनियों का व्यापारिक संघ है और इसकी कही हुई बातें IT इंडस्ट्री के लिए बहुत ज्यादा मायने रखती हैं। 

तो नैसकॉम ने अधिसूचना में कहा कि ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि ग्राहकों के IT बजट में 15 परसेंट की गिरावट हुई है, और इसका असर IT इंडस्ट्री पर आगे देखने को मिल सकता है। 

12:30 PM पर मान लें कि इंफोसिस 3030 पर ट्रेड कर रहा है। आपके लिए कुछ सवाल…

  1. इस नई जानकारी का इंफोसिस के स्टॉक पर क्या असर पड़ेगा? 
  2. अगर इस खबर के बाद आपको नया सौदा करना हो, तो वो क्या होगा? 
  3. शेयर बाज़ार के दूसरे IT स्टॉक पर क्या असर होगा? 

इन सब सवालों के जवाब बहुत आसान है। लेकिन जवाब देने के पहले हम ज़रा नैसकॉम की अधिसूचना को विस्तार से समझते हैं। 

नैसकॉम ने कहा कि ग्राहकों के IT बजट में 15 परसेंट की गिरावट होने के आसार है। इसका मतलब कि IT कंपनियों के आय और मुनाफे में कमी होगी। तो ये IT इंडस्ट्री के लिए अच्छी खबर नहीं है। 

अब हम ऊपर के 3 सवालों के जवाब देने की कोशिश करते हैं…

  1. क्योंकि इंफोसिस IT सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनी है, तो वहाँ प्रतिक्रिया तो ज़रूर दिखेगी। लेकिन ये प्रतिक्रिया किसी एक दिशा में शायद न दिखे क्योंकि उसी दिन, कुछ देर पहले कंपनी की तरफ से अच्छी खबर भी आई है। पर आय में 15 परसेंट तक की गिरावट कोई मामूली बात तो है नहीं, और इसलिए इंफोसिस के स्टॉक प्राइस में गिरावट देखने को मिल सकती है। 
  2. 3030 पर अगर किसी को नया सौदा करना है तो इंफोसिस को बेचने का सौदा होगा। 
  3. नैसकॉम की अधिसूचना में जो कहा गया है, वो सभी IT कंपनियों पर लागू होगा, सिर्फ इंफोसिस पर नहीं। तो ऐसे में सभी IT कंपनियों में बिकवाली का दबाव देखने को मिल सकता है। 

तो जैसा आपने देखा कि शेयर बाज़ार के भागीदार खबरों और घटनाओं पर प्रतिक्रिया करते हैं और उस प्रतिक्रिया से शेयरों के भाव में उठा-पटक होती रहती है। 

हो सकता है कि इस वक्त आपके दिमाग में एक बहुत ही वाजिब सवाल आए। आप सोच सकते हैं कि अगर आज किसी एक कंपनी के बारे में कोई खबर ना आए तो क्या होगा? क्या उस कंपनी के शेयर के भाव में कोई बदलाव नहीं होगा? 

इस सवाल का जवाब हाँ में भी हो सकता है और ना में भी और ये पूरी तरह से उस एक कंपनी के ऊपर निर्भर करता है, जिसकी बात हो रही है। 

उदाहण के लिए मान लेते हैं कि दो अलग-अलग कंपनियों के बारे में एक भी खबर नहीं आई…

  1. रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड
  2. श्री लक्ष्मी शुगर मिल्स

जैसा कि हम सब जानते हैं कि रिलायंस देश की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है और इस कंपनी के बारे में खबर आए या ना आए, बाज़ार के भागीदार इसके शेयर खरीदते और बेचते रहते हैं, इसलिए इसके शेयर की कीमत लगातार बदलती रहती है। 

जो दूसरी कंपनी है, उसे बहुत लोग नहीं जानते, तो अगर उस कंपनी पर कोई खबर न आए तो शेयर की कीमत शायद न बदले और अगर बदलाव होगा भी तो बहुत ही कम। 

संक्षेप में ये कह सकते हैं कि खबरों और घटनाओं की उम्मीद की वजह से कीमतों में बदलाव होता है। ये खबर और घटनाएं या तो सीधे तौर पर कंपनी या इंड्स्ट्री से जुड़ी हो सकती हैं या फिर पूरी अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई। जैसे नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनने को सकारात्मक या अच्छी खबर की तरह देखा गया और नतीजे के तौर पर पूरे शेयर बाज़ार में तेजी देखी गई। 

कुछ मामलों में हो सकता है कि कोई खबर ना हो फिर भी कीमतों में बदलाव देखने को मिले। ऐसा डिमांड-सप्लाई यानी मांग और आपूर्ति की वजह से हो सकता है। 

6.4 – शेयर की ट्रेडिंग कैसे होती है?

आपने इंफोसिस के 200 शेयर 3030 के भाव खरीदने और इस शेयर को 1 साल अपने पास रखने का फैसला किया। लेकिन ये होता कैसे है? शेयर खरीदने की पूरी प्रक्रिया कैसे चलती है? एक बार आप शेयर खरीद लेते हैं तो उसके बाद क्या होता है?

सौभाग्यवश इसके लिए एक बड़ी अच्छी प्रक्रिया है जो पूरा काम आसानी से कर देती है।

इंफोसिस खरीदने के लिए आपको अपनी ट्रेडिंग अकाउंट में लॉग-इन करना होगा (आपको ये सुविधा आपका ब्रोकर देता है)। शेयर खरीदने का ऑर्डर देने के बाद आपको ऑर्डर टिकट मिलेगा, जिसमें ये जानकारियां होंगी:

  1. आपके ट्रेडिंग अकाउंट की डिटेल जिसके जरिए आप इंफोसिस का शेयर खरीदना चाहते हैं। इस तरह से आपकी पहचान सामने आएगी।
  2. वह कीमत जिस पर आप इंफोसिस का शेयर खरीदना चाहते हैं।
  3. आप कितने शेयर खरीदना चाहते हैं।

आपका ब्रोकर यह जानकारी एक्सचेंज के पास आगे बढ़ाए, इसके पहले वह यह जानना चाहेगा कि आपके पास इन शेयरों को खरीदने के लिए पर्याप्त पैसे हैं। जब वह संतुष्ट हो जायेगा कि आपके पास पैसे हैं तब आपका ऑर्डर टिकट स्टॉक मार्केट में भेजा जाएगा। आर्डर स्टॉक एक्सचेंज में पहुंचने के बाद एक्सचेंज एक ऐसे विक्रेता यानी बेचने वाले को खोजने की कोशिश करेगा ( अपने आर्डर मैचिंग साफ्टवेयर के जरिए) जो कि आपको 200 इन्फोसिस के शेयर 3030 के भाव पर बेचने को तैयार हो।

हो सकता है कि विक्रेता एक ही व्यक्ति हो जो कि पूरे 200 शेयर 3030 के भाव पर आप पर बेचने को तैयार हो या फिर 10 लोग हैं जिनमें से हर एक 20 शेयर बेचना चाहता हो या सिर्फ दो लोग हों जिनमें से एक 1 शेयर और दूसरा 199 शेयर बेचने को तैयार हो।  कितने लोग हैं जिनके बेचे हुए शेयर आप तक आ रहे हैं यह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है, आपके लिए जरूरी यह है कि आपको 200 शेयर 3030 के भाव पर मिलें। आपने इसी का ऑर्डर दिया है। स्टॉक एक्सचेंज यही करने की कोशिश करता है कि अगर बाजार में बेचने वाले मौजूद हैं तो आपको शेयर मिल जाएं। एक बार सौदा हो गया तो यह सारे शेयर इलेक्ट्रॉनिक तरीके से आपके डीमैट अकाउंट में पहुंच जाएंगे और इलेक्ट्रोनिक तरीके से ही बेचने वाले के डिमैट अकाउंट से निकल जाएंगे।

6.5- शेयर आपके हो गए, अब?

आपके खरीदने के बाद शेयर आपके डीमैट अकाउंट में रहते हैं। अब कंपनी का एक हिस्सा आपका है यानी कंपनी में आप भी हिस्सेदार हैं। समझने के लिए आपको बता दें कि अगर आपने इंफोसिस के 200 शेयर खरीदे हैं तो आप इंफोसिस में 0.000035% के हिस्सेदार हैं। कंपनी के शेयर धारक होने की वजह से अब आपको डिविडेंड, स्टॉक स्प्लिट, बोनस, राइट्स इश्यू, वोटिंग राइट आदि तमाम सुविधाएं कंपनी की तरफ से मिलती रहेंगी। इन सब को हम आगे विस्तार से समझेंगे।

6.6- होल्डिंग पीरियड (Holding period) क्या है?

होल्डिंग पीरियड वह अवधि होती है जिस अवधि तक आप शेयर को अपने पास रखना चाहते हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि होल्डिंग पीरियड कुछ मिनटों से लेकर हमेशा के लिए भी हो सकता है। जैसे जाने-माने निवेशक वारेन बफेट से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मेरे लिए होल्डिंग पीरियड का मतलब है शेयर को हमेशा के लिए अपने पास रखना। 

इस अध्याय में हमने एक उदाहरण में पहले देखा था कि कैसे इंफोसिस का शेयर 5 मिनट में 3000 से 3016 तक पहुंच गया। 5 मिनट के होल्डिंग पीरियड के लिए यह एक बहुत अच्छा रिटर्न है और अगर आप इससे संतुष्ट हैं तो आप इस सौदे को बंद कर इससे निकल सकते हैं और अपने लिए एक नया मौका ढूंढ सकते हैं। बाजार में ऐसा होना पूरी तरह संभव है। जब बाजार तेजी में होता है ऐसे सौदे कई बार होते हैं।

6.7- रिटर्न कैसे देखें?

बाजार में हर चीज एक खास मुद्दे के आसपास घूमती है और वह है कि आपको अपने निवेश पर अच्छा रिटर्न मिल रहा है या नहीं। अगर आप अपने सौदे में अच्छी कमाई कर रहे हैं या अच्छा रिटर्न पा रहे हैं तो आप की पुरानी सारी गलतियां माफ की जा सकती हैं क्योंकि रिटर्न पाना ही सबसे महत्वपूर्ण है। आमतौर पर रिटर्न को सालाना कमाई के तौर पर देखा जाता है। रिटर्न नापने के कई तरीके होते हैं जिनको आप को जानना जरूरी है। नीचे हम आपको कुछ तरीके के रिटर्न बता रहे हैं और यह भी बता रहे हैं कि उनको कैसे कैलकुलेट किया जाए।

ऐब्सल्यूट रिटर्न (Absolute Return)- यह रिटर्न आपको बताता है कि आपने अपने सौदे या निवेश पर कुल कितनी कमाई की है। आपको यह हिस्सा इस सवाल का जवाब देता है कि मैंने अगर इंफोसिस 3030 के भाव पर खरीदा 3550 के भाव पर बेचा तो मैंने कुल कितने प्रतिशत पैसे इस सौदे में बनाए।

इस रिटर्न को मापने का फार्मूला है:

{बेचने वाली कीमत÷खरीदने के समय की कीमत -1}×100

हमारे उदाहरण में

{3550÷3030-1}×100

= 0.1716×100

= 17.16%

यह एक काफी अच्छा रिटर्न माना जाएगा।

कम्पॉउंड ऐनुअल ग्रोथ रेट यानी सीएजीआर (Compound Annual Growt Rate-CAGR)- अगर आप अपने दो निवेश की तुलना करना चाहते हैं तो कुल रिटर्न यानी ऐब्सल्यूट रिटर्न एक बहुत अच्छा मापक नहीं है। इसके लिए आपको CAGR की मदद लेनी होगी। अगर मैंने इंफोसिस का शेयर 3030 के भाव पर खरीदा और शेयर को 2 साल के लिए अपने पास रखा और फिर उसे 3550 पर बेच दिया तो इन 2 सालों में मेरा निवेश किस रफ्तार से बढ़ा ये जानने के लिए CAGR काम आएगा। CAGR में समय एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है जबकि कुल रिटर्न यानी ऐब्सल्यूट रिटर्न में इसकी कोई भूमिका नहीं होती है।

CAGR को पता करने का फार्मूला है:

यहाँ Ending Value = बेचने वाली कीमत

Begining Value = खरीदने वाली कीमत

अब अगर इस फार्मूले को अपने सवाल में डालें तो

{[3550/3030]^(1/2)-1}= 8.2%

इसका मतलब है निवेश 8.2% की रफ्तार से दो साल तक बढ़ा। हम सब को पता है कि इस समय देश में कई जगहों पर फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) पर 8.5% तक का रिटर्न मिल रहा है और वहाँ पर पूंजी भी सुरक्षित रहती है। ऐसे में 8.2%  का रिटर्न आकर्षक नहीं लगेगा।

इसीलिए जब भी कई सालों का रिटर्न जानना हो तो CAGR का इस्तेमाल करना चाहिए। जब आप एक साल या कम का रिटर्न जानना चाहते हैं तभी ऐब्सल्यूट रिटर्न का उपयोग कीजिए।

यदि आपने इन्फोसिस 3030 पर खरीदा और 6 महीने में ही उसे 3550 पर बेच दिया तो? उस स्थिति में आप 17.6% का रिटर्न कमाएंगे जो कि एक साल के लिए 34.32% (17.6%*2) का रिटर्न हुआ। 

तो रिटर्न को हमेशा सालाना तौर पर नापना सबसे अच्छा होता है।

6.8 बाज़ार में आप क्या हैं? / बाज़ार में आप कहाँ हैं?

बाज़ार का हर भागीदार अपनी एक अलग स्टाइल ले कर आता है। जैसे-जैसे वो बाज़ार में समय गुजारते हैं, वैसे-वैसे उनका स्टाइल बेहतर होता जाता है। बाज़ार में कोई इंसान कितना रिस्क ले सकता है उससे भी उसका स्टाइल प्रभावित होता है। हर भागीदार या तो ट्रेडर की कैटेगरी में आता है या फिर इंवेस्टर की। 

एक ट्रेडर वो व्यक्ति होता है जो मौके को पहचानता है और सौदा कर लेता है इस उम्मीद के साथ कि फायदा मिलते ही वो इस सौदे से बाहर निकल जाएगा। एक ट्रेडर का नज़रिया बहुत छोटे समय का होता है। एक ट्रेडर हमेशा सजग रहता है और बाजार के समय जिसे हम मार्केट आवर (Market Hour ) कहते हैं, हमेशा मौके की तलाश में रहता है और अपने रिस्क और रिवार्ड (Reward) यानी जोखिम और जोखिम लेने की वजह से मिलने वाले फायदे को आंकता रहता है। ट्रेडर तेजी और मंदी में किसी को प्राथमिकता नहीं देता, वह बस मौके तलाशता रहता है। ट्रेडर 3 तरीके के होते हैं। 

  1.  लेने में कोई दिक्कत नहीं होती। उदाहरण के तौर पर, वह TCS के 100 शेयर 2212 रुपये की कीमत पर  12 जून को खरीदेगा और 19 जून को इसे 2214 रुपये पर बेच देगा। 

दुनिया के कुछ मशहूर ट्रेडर हैं – जॉर्ज सोरॉस, एड सेयकोटा, पॉल ट्यूडॉर, वॉन के थार, स्टैनली ड्रकेन मिलर। 

एक इंवेस्टर वो होता है जो शेयर को इस उम्मीद के साथ खरीदता है कि उसमें उसको काफी मुनाफा होगा। वो अपने निवेश को लंबा समय देने को तैयार रहता है जिससे उसका निवेश बढ़ सके। एक निवेशक या इंवेस्टर के लिए होल्डिंग पीरियड कुछ सालों का भी हो सकता है। आमतौर पर निवेशक दो तरह के होते हैं…

  1. ग्रोथ इंवेस्टर (Growth Investor)– इस तरह के निवेशक की कोशिश होती है कि ऐसी कंपनियां तलाशी जाएं जिनके बड़े होने या बढ़ने के मौके हों। उभरती हुई इंडस्ट्री की वजह से या मौजूदा आर्थिक हालात की वजह से। भारत में हिंदुस्तान यूनिलीवर, इंफोसिस, जिलेट इंडिया जैसी कंपनियों को 1990 में खरीदना इसका एक उदाहरण होता। इन कंपनियोंने तब से लेकर अब तक काफी ग्रोथ दिखाई है क्योंकि इनकी पूरी इंडस्ट्री में काफी बड़े बदलाव आए हैं। इन कंपनियों ने इस ग्रोथ या बढ़ोतरी की वजह से अपने शेयरधारकों के लिए बहुत सारी दौलत कमा कर दी है। 
  2. वैल्यू इंवेस्टर (Value Investor)– एक वैल्यू इन्वेस्टर की कोशिश होती है कि वह अच्छी कंपनियों को पहचाने और उन में निवेश करे। कंपनी अपने शुरुआती दौर में है या बाजार की जमी जमायी कंपनी है उसके लिए ये महत्वपूर्ण शहीं होता। वैल्यू इन्वेस्टर हमेशा ऐसी कंपनी की तलाश में रहता है जो कि बाजार का मूड खराब होने की वजह से अपनी असली कीमत से नीचे मिल रही हो। इसका एक उदाहरण है l &t का शेयर। कुछ समय के लिए माहौल खराब होने की वजह से अगस्त- सितंबर 2013 में l&t का शेयर बुरी तरीके से गिरा यह शेयर ₹1200 से गिरकर ₹690 तक पहुंच गया था। ₹690 के भाव पर (कंपनी के फंडामेंटल के मद्देनज़र) इसकी वैल्यूएशन काफी सस्ती थी। इसलिए ये इसे खरीदने का बढिया मौका था। जिन निवेशकों ने इसे उस समय खरीदा उनको इसका इनाम भी मिला जब मई 2014 में ये शेयर 1440 पर पहुंच गया। 

कुछ नामी गिरामी वैल्यू इन्वेस्टर के नाम हैं: चार्ली मंगर, पीटर लिंच, बेंजामिन ग्राहम, थॉमस रो, वॉरेन बफेट, जॉन बोगल, जॉन टेम्प्लटन इत्यादि। 

तो आप शेयर बाज़ार में किस तरह के इंवेस्टर बनना चाहेंगे? 


इस अध्याय की खास बातें –

  1. स्टॉक मार्केट या शेयर बाज़ार वो जगह है, जहां पर कोई ट्रेडर या इंवेस्टर शेयर को खरीद या बेच सकता है। 
  2. स्टॉक मार्केट वे जगह है जहां बेचने वाला या खरीदने वाला इलेक्ट्रॉनिक्ली मिलते हैं। 
  3. मार्केट में अलग अलग विचारों और नज़रिया रखने वाले लोग होते हैं। 
  4. स्टॉक एक्सचेंज ये सुविधा मुहैया कराता है कि खरीदार और बिकवाल यानी बेचने वाला इलेक्ट्रॉनिकली मिल सकें। 
  5. घटनाएं और समाचार, शेयर कीमतों को हर दिन ऊपर-नीचे करते हैं। 
  6. मांग और आपूर्ति की वजह से भी शेयर की कीमतें ऊपर नीचे होती हैं। 
  7. जब आपके पास एक शेयर होता है, तो आप कंपनी से बोनस, डिविडेंड, राइट्स जैसी सुविधाएं पा सकते हैं। 
  8. होल्डिंग पीरियड (Holding Period) का मतलब है कि आप उस शेयर को कितने दिन अपने पास रखते हैं। 
  9. जब होल्डिंग पीरियड एक साल या उससे कम हो तो आपको कुल रिटर्न देखना चाहिए और अगर होल्डिंग पीरियड कई सालों का है तो आपको CAGR रिटर्न देखना चाहिए। 
  10. ट्रेडर और इंवेस्टर में दो मुख्य अंतर होते हैं – रिस्क लेने की क्षमता और होल्डिंग पीरियड।



103 comments

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  1. sanjiban das says:

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    • Kulsum Khan says:

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  2. DARSHAN SINGH SIKARWAR says:

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      Hi, आपका सुझाव देने के लिए धन्यवाद। अभी के लिए हमारे पास यह सुविधा उपलब्ध नहीं है ऐप पर हम निश्चित रूप से आपको बताएंगे कि अगर हम भविष्य में इसे उपलब्ध कराते हैं
      तो।

  3. Rakesh Kumar Srivastava says:

    सर
    शेयर बाजार में हमारे जैसे नये लोगों को लाइव ट्रेडिंग सीखने एव करने के लिए आपकी तरफ से कोई वेब सिरीज़ है क्या।

  4. Manoj kulkarni says:

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  5. sunil kumar says:

    श्रीमान जी आप से एक बात जानना चाहता हूँ की मेने एक शेयर ख़रीदा उस को में किसी अन्य खरीदार को बेच सकता हूँ मेरा उस कंपनी से क्या सम्बन्ध रहा यदि उस शेयर को कोई खरीदने वाला न मिले वास्तव में तो ये कंपनी द्वारा ली गयी रकम ही तो है कृपया बताएं धन्यवाद्

    • Kulsum Khan says:

      जब कोई खरीदार नहीं होता है, तो आप अपने शेयरों को नहीं बेच सकते हैं, और जब तक कि अन्य निवेशकों से कुछ खरीदने की दिलचस्पी न हो, तब तक आप उनके साथ रहेंगे। आमतौर पर, मार्केट्स में कोई न कोई व्यक्ति कहीं खरीदने के लिए तैयार होता है। मार्केट्स बिना खरीददार या बेचने वाले के कभी चल नहीं सकता।

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